Indo Farm Tractor Price starts from Rs. 3.90 lakh. The most expensive Indo Farm Tractor is Indo Farm DI 3090 price at Rs. 16.99 Lakh. Indo Farm offers a range of 19+ tractor models in India, and the HP range starts from 26 hp to 90 hp. The most popular Indo Farm Tractor models are Indo Farm 3048 DI, Indo Farm 3035 DI, and Indo Farm 2042 DI, etc. The most popular Indo Farm Mini Tractor model is Indo Farm 1026 NG.
Indo Farm Tractors in India | Tractor HP | Tractor Price |
Indo Farm 2035 DI | 38 HP | Rs. 5.00 Lakh - 5.20 Lakh |
Indo Farm 3040 DI | 45 HP | Rs. 5.30 Lakh - 5.60 Lakh |
Indo Farm 3048 DI | 50 HP | Rs. 5.89 Lakh - 6.20 Lakh |
Indo Farm 3055 DI | 60 HP | Rs. 7.40 Lakh - 7.80 Lakh |
Indo Farm 2042 DI | 45 HP | Rs. 5.50 Lakh - 5.80 Lakh |
Indo Farm 4175 DI 2WD | 75 HP | Rs. 10.50 Lakh - 10.90 Lakh |
Indo Farm 1026 NG | 26 HP | Rs. 3.90 Lakh - 4.10 Lakh |
Indo Farm 3055 DI 4WD | 60 HP | Rs. 8.35 Lakh |
Indo Farm DI 3090 4WD | 90 HP | Rs. 16.90 Lakh |
Indo Farm DI 3075 | 75 HP | Rs. 15.89 Lakh |
Indo Farm 2030 DI | 34 HP | Rs. 4.70 Lakh - 5.10 Lakh |
Indo Farm 3035 DI | 38 HP | Rs. 5.10 Lakh - 5.35 Lakh |
Indo Farm 3055 NV | 55 HP | Rs. 7.40 Lakh - 7.80 Lakh |
Indo Farm 4190 DI 4WD | 90 HP | Rs. 12.30 Lakh - 12.60 Lakh |
Indo Farm 4175 DI | 75 HP | Rs. 12.30 Lakh |
Data Last Updated On : Jan 22, 2021 |
Indo Farm Tractor is one of the most trusted and performing brands in the Indian subcontinent. IndoFarm not only manufactures tractors but also cranes, engines and has recently developed a harvester specifically for the purpose of wetland Paddy cultivation.
The founder of Indo Farm is Ranbir Singh Khadwalia, in 1994. That is why they established Indo Farm that not only satisfies farmers and also helps in attaining their dreams.
Today the company not only produces fine tractors but also tractors of various ranges, having models starting from that of 26 HP to 90 HP, Indo Farm tractors speak for the varied concerns of the Indian farmers by providing the best in class technology with amazing tractor specifications at a affordable price.
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Why is Indo Farm the best tractor company? | USP
Indo Farm is works on a pan India basis and quite a popular brand, related to the best quality products. Indo Farm Equipment Ltd Company is an ISO verified company.
Indo Farm Tractor Last Year Sales Report
Indo Farm sales increase by 6.6% in Jan 2020 as compared to Jan 2019.
In Feb 2020 sales were 239 units whereas in Feb 2019 sales were 145 units. This clearly shows sales increased by 64.82%.
IndoFarm Tractor Dealership
Indo Farm manages 15 regional offices and a worldwide spread 300 powerful dealer network for sales and services.
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Indo Farm Service Center
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Why Tractorjunction for Indo Farm Tractor
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नौकरी छोड़ अपनाई बांस की खेती, आज सालाना कमा रहे एक करोड़
जानें, कैसे करें बांस की खेती ताकि हो मोटी कमाई? बांस की खेती ने महाराष्ट्र के उस्मानाबाद के रहने वाले राजशेखर की तकदीर ही बदल दी। कभी वह 2 हजार की नौकरी करके अपना गुजारा करते थे। पर आज बांस की खेती कर सालाना एक करोड़ रुपए से ज्यादा का टर्नओवर कर रहे हैं। राजशेखर की कामयाबी से प्रभावित होकर दूर-दूर से लोग उनके खेत में लगे बांस के पौधों को देखने के लिए आते हैं और बांस की खेती के तरीके की जानकारी लेते हैं। बता दें कि राजशेखर एक किसान परिवार से संबंध रखते हैं। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रैक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 अन्ना हजारे के संपर्क में आए, खेेती और जल संरक्षण के गुर सीखे मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार राजशेखर बताते हैं कि उनके पास 30 एकड़ जमीन भी थी। लेकिन, पानी की कमी के चलते उपज अच्छी नहीं होती थी। तब न तो बिजली थी, न ही हमें सिंचाई के लिए पानी मिल पाता था। इसलिए हमारे गांव का नाम निपानी पड़ गया। मैंने अपनी तरफ से नौकरी की पूरी कोशिश की, लेकिन जब कहीं मौका नहीं मिला तो अन्ना हजारे के पास रालेगण चला गया। उन्हें गांव में काम करने के लिए कुछ युवाओं की जरूरत थी। वहां भी मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ। अन्ना से बहुत मिन्नत की तो मुझे पानी और मिट्टी के संरक्षण का काम दिया गया। दो हजार रुपए महीने की तनख्वाह थी। चार-पांच साल तक वहां काम किया। तनख्वाह कम थी, लेकिन इस दौरान मुझे खेती और जल संरक्षण को लेकर काफी कुछ सीखने को मिला। ऐसे की बांस की खेती की शुरुआत, पहले साल ही टर्नओवर पहुंचा 20 लाख राजशेखर के अनुसार जब वे 30 साल थे तब एक दिन खबर मिली कि उनके पिता को पैरालिसिस हो गया है। इसके बाद वह अपने गांव लौट आए। यहां आकर फिर से खेती करने का विचार किया। इसी बीच उन्हें पता चला कि पास के गांव में एक किसान अपनी बांस की खेती को उजाडऩा चाहता है। उसे बांस की खेती में फायदा नहीं हो रहा था। उन्होंने वहां से बांस के 10 हजार पौधे उठा लिए और अपने खेत में लगा दिए। तीन साल बाद जब बांस तैयार हुए तो हाथों-हाथ बिक गए। इसका सत्कारात्मक परिणाम यह निकला कि बांस की खेती से पहले ही साल टर्नओवर 20 लाख रुपए पहुंच गया। आज खेत में उगा रखें हैं 50 तरह के बांस पहले ही साल अच्छी कमाई होने से राजशेखर का कॉन्फिडेंस बढ़ गया। अगले साल उन्होंने पूरे खेत में बांस के पौधे लगा दिए। सिंचाई के लिए गांव के 10 किलोमीटर लंबे नाले की सफाई करवाई। उसे खोदकर गहरा किया ताकि बारिश का पानी जमा हो सके। इससे उन्हें सिंचाई में भी मदद मिली और गांव को पानी का एक सोर्स भी मिल गया। उनके आसपास के लोग बताते हैं कि रोजाना कम से कम 100 लोग उनसे मुलाकात करने और सलाह लेने आते हैं। राजशेखर ने बांस की 50 से ज्यादा किस्में लगा रखी हैं। इनमें कई विदेशी वैराइटी भी हैं। महाराष्ट्र के साथ-साथ दूसरे राज्यों से भी लोग उनके यहां बांस खरीदने आते हैं। उन्होंने एक नर्सरी का सेटअप भी तैयार किया है, जिसमें बांस की पौध तैयार की जाती है। यह भी पढ़ें : गणतंत्र दिवस पर महिंद्रा लेकर आया किसानों के लिए खास ऑफर किसानों को देते हैं ट्रेनिंग, मिल चुके हैं कई पुरस्कार और सम्मान बांस की खेती के साथ-साथ राजशेखर किसानों को इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं। कुछ साल पहले उन्हें नागपुर में हुई एग्रो विजन कांफ्रेंस में भी बुलाया गया था। राजशेखर इंडियन बैंबू मिशन के एडवाइजर के तौर पर भी काम कर चुके हैं। उन्हें कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। अभी उनके यहां 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं। ये लोग खेती के अलावा मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का भी काम देखते हैं। ऐसे करें बांस की खेती राजशेखर के अनुसार बांस की खेती के लिए किसी खास जमीन की जरूरत नहीं होती है। आप ये समझ लीजिए कि जहां घास उग सकती है, वहां बांस की भी खेती हो सकती है। इसके लिए बहुत देखभाल और सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती है। जुलाई में बांस की रोपाई होती है। अमूमन बांस तैयार होने में तीन साल लगते हैं। इसकी खेती के लिए सबसे जरूरी है, उसकी वैराइटी का चयन। अलग-अलग किस्म के बांस का उपयोग और मार्केट रेट अलग होता है। बांस का पौधा तीन-चार मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इसके बीच की जगह पर दूसरी फसल की खेती भी की जा सकती है। बांस की खेती के लिए राष्ट्रीय बैंबू मिशन से भी मदद ली जा सकती है। इसके तहत हर राज्य में मिशन डायरेक्टर बनाए गए हैं। बांस की चीजों की है बाजार में मांग आजकल मार्केट में बांस की खूब डिमांड है। गांवों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी बांस से बने प्रोडक्ट की मांग है। लोग घर की सजावट और नया लुक देने के लिए बांस से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। बांस से बल्ली, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौने तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा कागज बनाने में भी बांस का उपयोग होता है। राजशेखर बताते हैं कि अभी देश में बांस एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में उभर रहा है। बहुत कम लोग हैं जो बांस की खेती कर रहे हैं। जो कर रहे हैं, वे इसे बिजनेस के लिहाज से नहीं कर रहे हैं। यह भी पढ़ें : कंबाइन हार्वेस्टर : खेती की लागत घटाएं, किसानों का मुनाफा बढ़ाएं एक एकड़ में 10 हजार का खर्चा, कमाई तीन लाख तक एक एकड़ खेत में बांस लगाने के लिए 10 हजार के आसपास का खर्च आता है। तीन-चार साल बाद इससे प्रति एकड़ तीन लाख रुपए की कमाई हो सकती है। एक बार लगाया हुआ बांस, अगले 30-40 साल तक रहता है। बाजार में बांस की कीमत बांस की कीमत उसकी क्वालिटी पर निर्भर होती है। उसी के मुताबिक बांस से आमदनी होती है। क्वालिटी के मुताबिक एक बांस की कीमत 20 रुपए से लेकर 100 रुपए तक मिल सकती है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
अब बीज बोने से पहले पता चल जाएगा कैसी होगी फसल
जानें, कैसे होगी गुणवत्तापूर्ण बीज की पहचान और इससे क्या लाभ? कृषि के क्षेत्र में आए दिन नए नवाचार होते जा रहे हैं। इन प्रयासों का परिणाम ही है कि आज खेती की दशा और दिशा दोनों में सुधार हुआ है। इससे न केवल उन्नत व आधुनिक खेती को बढ़ावा मिला है बल्कि किसानों की आय में भी सुधार हुआ है। किसानों की आय बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार काफी प्रयास कर रही है। इसके अलावा इस दिशा में कृषि वैज्ञानिक, विशेषज्ञों समेत कई स्टार्टअप भी काम कर रहे हैं। इसी क्रम में हाल ही में एग्रीकल्चर स्टार्टअप अगधी ने खास आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस टेक्नोलॉजी पेश की है। इसकी मदद से बीजों को देखकर ये पता लगाया जा सकेगा कि फसल की गुणवत्ता कैसी है। साथ ही ये भी पता चल जाएगा कि किस बीज के इस्तेमाल से कितनी पैदावार हो सकती है। स्टार्टअप के संस्थापक निखिल दास ने मीडिया को बताया कि इस तकनीक से फसल की पैदावार बढ़ाकर किसानों की आय बढ़ाने में मदद मिलेगी। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 बीजों की गुणवत्ता जांचने के लिए इस तकनीक का होगा प्रयोग जानकारी के अनुसार स्टार्टअप के तहत बीज और फसलों में कमी जानने के लिए मशीन लर्निंग और कंप्यूटर विजन तकनीक का इस्तेमाल किया जाएगा। इसकी मदद से किसान को अच्छे बीज और ज्यादा पैदावार मिल सकेगी। किसान कमजोर बीज की बुआई कर नुकसान उठाने से बच जाएंगे। स्टार्टअप की नई तकनीक की मदद से सिर्फ कुछ सेकेंड में पता लगाया जा सकता है कि बीच की गुणवत्ता कैसी है। वहीं, पुरानी तकनीक से किसानों को लंबा इंतजार करना पड़ता है। एआई तकनीक की मदद से बीज की जांच करने, बीज की सैंपलिंग करने और फसल की उपज में अंतर आसानी पता लगाया जा सकेगा, जो आज की जरूरत है। ऐसे होगी बीजों की गुणवत्ता की जांच बीज में कमियों का पता लगाने के पारंपरिक तरीके फिजिकल टेस्ट पर निर्भर करते हैं। इस तकनीक से ऑटोमैटिक मशीनों से बीजों की जांच की जा सकेगी। अगधी की एआई विजन तकनीक फोटोमेट्री, रेडियोमेट्री और कंप्यूटर विजन की मदद से बीज की गुणवत्ता की जांच करेगी। बीज की इमेज से उसका रंग, बनावट और आकार निकालकर कंप्यूटर विजन से बीज की कमियों की पहचान की जाएगी। बीजों की छंटाई के लिए किसी व्यक्ति द्वारा निरीक्षण करने की अपेक्षा यह ऑटोमेटिक तकनीक ज्यादा कारगर होगी। यह तकनीक बीजों का प्रोडक्शन करने वाली कंपनियों के लिए अधिक उपयोगी है। अगधी के संस्थापक निखिल दास के अनुसार, नई तकनीक के लॉन्च करने के साथ पैदावार बढ़ाने के लिए अब इलेक्ट्रॉनिक यंत्र बनाने की योजना है। यह भी पढ़ें : कृषि यंत्र अनुदान योजना : सब्सिडी पर मिल रहे हैं ये 7 महत्वपूर्ण कृषि यंत्र किसान अपने स्तर पर इस तरह कर सकते हैं अच्छे बीज की पहचान अच्छे बीजों की पहचान करने से पहले आपको यह जानना जरूरी होगा कि आखिर अच्छा बीज कौनसा होता है और इसके क्या मानक हैं। तो जान लें अच्छा बीज वह होता है जिसकी अंकुरण क्षमता अधिक हो तथा बीमारी, कीट, खरपतवार के बीज व अन्य फसलों के बीजों से मुक्त हो। किसान अच्छे बीजों की बुवाई करके पैदावार व अपनी आमदनी बढ़ा सकता है। जबकि खराब गुणों वाले बीजों को बोने से खेती के अन्य कार्य जैसे- खाद, पानी, खेत की तैयारी आदि पर किसान द्वारा किया गया खर्च व मेहनत बेकार हो जाती है। इन सब बातों से बचने के लिए जरूरी है अच्छे बीज का चयन किया जाए। अब सवाल यह उठाता है कि अच्छे बीज का चयन कैसे किया जाए। बीजों का चयन करते समय बीजों की भौतिक शुद्धता, बीजों की आनुवंशिक शुद्धता, बीजों का गुण, आकार एवं रंग, बीजों में नमी की मात्रा, बीजों की परिपक्वता, बीजों की अंकुरण क्षमता तथा बीजों की जीवन क्षमता का पता लगाना बेहद जरूरी है। ऐसे करें अच्छे बीज की पहचान अच्छा बीज वह होता है जिसकी अंकुरण क्षमता अधिक होती है। इसके लिए जरूरी है कि इसके अंदर किसी भी अन्य बीज की मिलावट व कंकड़, पत्थर की मिलावट न हो। इसके अलावा बीज का आकार व रंग में एक जैसे हो और बीज के अंदर नमी की मात्रा सही होना चाहिए ताकि बीज अच्छे से अंकुरित हो सके। अगर बीज में नमी की मात्रा सही नहीं होगी तो बीज के अंदर उपस्थित भू्रण की मृत्यु हो जाएगी तथा बीज अंकुरित नहीं हो पाएगा। बीजों की परिपक्वता सही होना चाहिए ताकि फसल अच्छी हो। यह भी पढ़ें : पीएम किसान सम्मान निधि योजना : बजट 2021 में किसानों को मिल सकता है तोहफा बाजार से बीज खरीदने समय किसान इन बातों का रखें ध्यान जब भी किसान बाजार से बीज खरीदें, तो इस बात का ध्यान रखे कि बीज हमेशा भरोसेमंद दुकान या किसान से ही खरीदें। बीज कटा हुआ नहीं होना चाहिए। क्योंकि कटे बीज से अंकुरण कम होता है। अच्छा बीज कंकड़, पत्थर व धूल रहित होना चाहिए। इसमेें अन्य किसी दूसरे बीज की मिलावट नहीं होनी चाहिए। अच्छा बीज कीटों से मुक्त होना चाहिए। जो भी बीज लें वे रोग मुक्त हो, ऐसे खेत का बीज न ले जो दीमक ग्रस्त रहा हो। बीज छोटा व सूखा नहीं होना चाहिए। बीजों के अंदर नमी की मात्रा पर्याप्त होना चाहिए ताकि अंकुरण अच्छे से हो सके। बीज में भौतिक शुद्धता का अपेक्षित स्तर होना चाहिए। बीज खरपतवार रहित होना चाहिए, जैसे- सावा, अकरी, मुर्दो, केना आदि बीज की उपस्थिति नहीं होनी चाहिए। अगर किसान बीजों को लेते समय इन सब बातों का ध्यान रखे तो वह अपने खतों के लिए उत्तम बीज का चयन कर सकता है और अच्छी फसल प्राप्त कर सकता है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
गन्ने की फसल से अधिक मुनाफा कमाने के लिए करें ये उपाय
जानें, गन्ने की फसल उत्पादन काल में बरती जाने वाली सावधानियां व उपाय? गन्ना भारत वर्ष में उगाई जाने वाली एक प्रमुख नकदी / व्यावसायिक फसल है, जो कि भारतीय शक्कर उद्योग का आधार है किंतु इसके बाद भी किसान इस फसल से उचित लाभ प्राप्त करने में असमर्थ हैं। इसका मुख्य कारण यह है कि चीनी मिलों की मांग के अनुरूप गन्ने का उत्पादन नहीं हो पा रहा है। इधर किसान की गन्ना उत्पादन में आने वाली लागत बढ़ रही है। इससे किसानों के लिए गन्ने का उत्पादन करना महंगा सौदा साबित होता जा रहा है। यदि किसान गन्ने की फसल के उत्पादन काल में कुछ महत्वपूर्ण उपायों को अपनाने तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। इसके लिए किसान को आधुनिक तरीके अपनाने होंगे जिससे उत्पादन लागत को कम किया जा सके ताकि किसानों को इस फसल का पूरा लाभ मिल सके। आज आवश्यकता इस बात की है कि खेती को बाजार आधारित बनाया जाए। इसके लिए किसान को चाहिए कि वे आधुनिक तकनीक के साथ ही बाजार के रूख को पहचाने और उसी अनुरूप खेती करें। इसके लिए जरूरी है कि उसे सही उत्पादन तकनीक का पता हो। आज इसी विषय लेकर हम आए है कि किसान भाई गन्ना उत्पादन में क्या-क्या सावधानियां और उपाय करें ताकि अच्छा मुनाफा मिल सके। आज हम आपको उन उन्नत वैज्ञानिक तकनीकों को बताएंगे जो आपकी आय में वृद्धि करने में सहायक हो सकते हैं। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रैक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 खेत की तैयारी, ऐसे करें जुताई एक बार लगाने के बाद गन्ना खेत में 3-4 साल तक लगा रहता है। इस कारण खेती की खड़ी, आड़ी एवं गहरी जुताई करें। अंतिम जुताई के बाद पाटा चलकर खेत को समतल करें। रिज फरो की सहायता से गहरी नालियां बनायें क्योंकि जितनी गहरी नालियां बनेगी उतनी ही मिट्टी चढ़ाने हेतु मिलेगी जिससे गन्ने में अच्छी बढ़वार प्राप्त होगी और गिरने की समस्या भी कम होगी। पौध ज्यामितीय का रखें ध्यान किसी भी फसल के उन्नत एवं अधिक उत्पादन लेने के लिए उसका पौध विन्यास एक महत्वपूर्ण कारक है। अत: गन्ना लगाते समय भी पौध ज्यामितीय का ध्यान रखना आवश्यक है। गन्ना मुख्यत: तीन प्रकार से लगाया जाता है- 3-4 आंख के टुकड़े नालियों के बीच 3 फुट दूरी पर टुकड़े सिरे-से-सिरा मिलाकर लगायें। इस विधि में बीज की मात्रा 80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक लगती है। 2 आंख के टुकड़े नालियों के बीच 3 फुट दूरी एवं दो टुकड़ों के बीच 9 इंच दूरीकर लगाएं। इस विधि से 55-60 क्विंटल प्रति हेक्टेयर बीज की मात्रा लगती है। एक आंख का टुकड़ा नालियों के बीच 3 फुट दूरी दो टुकड़ों के बीच 1 फुट की दूरी रखकर लगाएं इसमें बीज मात्रा 25-30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर लगती है। बीज का चुनाव करने में ये बरते सावधानियां उन्नत जाति के बीज का चयन करें। बीज की उम्र 8-9 माह हो तो सर्वोत्तम है। बीज रोग एवं कीट ग्रस्त नहीं हो। ताजा बीज ही उपयोग करें। बीज काटन एवं लगाने में कम से कम अंतर हो। बीज उपचारित करें अथवा टिश्यू कल्चर से उत्पादित बीज का ही चयन करें। यह भी पढ़ें : कृषि यंत्र अनुदान योजना : सब्सिडी पर मिल रहे हैं ये 7 महत्वपूर्ण कृषि यंत्र बीज बोने का सर्वोत्तम समय गन्ना बोने का सर्वोत्तम समय शरद कालीन गन्ने के लिए अक्टूबर-नबंवर एवं बसंत कालीन गन्ने की फसल के लिए फरवरी-मार्च तक है। इस समय साधारणत: दिन गर्म एवं रातें ठंडी होती हैं। अर्थात् दिन व रात के औसत तापमान में 5-10 डिग्री सेल्सियस तक का अंतर होता है एवं तापमान का यह अंतर गन्ने के अंकुरण के समय अनुकूल होता है। इस तरह करें बीजोपचार नम गर्म हवा संयंत्र द्वारा उपचार करावें। 1250 ग्राम कार्बेन्डाजिम, 1250 मिली मैंकोजेब 250 लीटर पानी में घोलकर तैयार टुकड़ों को 30 मिनिट डुबायें। अथवा 23 किलो चूने को 100 लीटर पानी में बुझा लेने के बाद, तैयार टुकड़ों को 30 मिनिट तक उपचारित करें। इस तरीके से करें बुवाई सिंचाई के साथ-साथ मेड़ों के ऊपर पहले से बिछाये गये टुकड़ों को गीली मिट्टी में पैर से या हाथ से दबाएं। सूखी बोनी- नालियों में गन्ने के टुकड़े बिछाकर फिर हर एक मेढ़ छोडक़र दूसरी को उल्टे बखर से समतल करें। यह मिट्टी बिछाये गन्ने को दबा देगी तथा सिंचाई में सुविधा होगी। खरपतवार नियंत्रण के लिए अपनाएं उपाय गन्ना बोने के 15-20 दिन बाद एक गुड़ाई चाहिए। जिससे अंकुरण अच्छा होता है। इसके बाद फसल को आवश्यकतानुसार निंदाई-गुड़ाई कर एवं खरपवतार नाशियों का प्रयोग कर 90 दिन तक नींदा रहित रखें। अर्थात् बुवाई से 90 दिन तक गन्ना के खरपतवार हेतु क्रोनिक अवस्था है। अत: इस समय में खरपतवार की रोकथाम न करने से सर्वाधिक हानि होती है। खरपतवार की रोकथाम के लिए कीटनाशकों का छिडक़ाव किया जा सकता है। इसके लिए एट्रॉजीन 2 कि.ग्रा. अथवा ऑक्सीफ्लोरकेन 0.75 कि.ग्रा./हेक्टेयर का छिडक़ाव बुवाई की तीसरे दिन तक 600 लीटर पानी के घोल बनाकर फ्लैट फेन नोजल का प्रयोग करते हुए छिडक़ाव करें। अधिकतम गन्ना उपज के लिए एट्रॉजीन 1.0 कि.ग्रा./हे. बुवाई के तीसरे दिन के साथ 45 दिन बाद ग्लायफोसेट 1.0 ली./ हे. हुड स्प्रेयर के साथ नियंत्रित छिडक़ाव तथा 90 दिन की फसल अवस्था पर निदाईं करवायें। यदि अंकुरण पूर्व छिडक़ाव नहीं कर पाते हैं तब ग्रेमेक्जोन 1.0 ली. 2,4-डी सोडियम साल्ट 2.5 कि.ग्रा./हे. को 600 ली. पानी में घोलकर बुवाई के 21 दिन की अवस्था में छिडक़ाव करें। यदि परजीवी खरपतवार स्ट्राइगा की समस्या है तब 2,4 डी सोडियम सॉल्ट 1.0 कि.ग्रा./हे. 500 ली. पानी में घोलकर छिडक़ाव करें अथवा 20 प्रतिशत यूरिया का नियंत्रित छिडक़ाव कर भी स्ट्राइगा को नियंत्रित किया जा सकता है। मौथा आदि के लिए ग्लायफोसेट 2.0 कि.ग्रा./हे. के साथ 2 : अमोनियम सल्फेट का छिडक़ाव बुुवाई के 21 दिन पूर्व करें तथा बुवाई के 30 दिन बाद पुन: स्पेशल हुड से 2.0 कि.ग्रा./हेक्टेयर एवं 2 प्रतिशत अमोनियम सल्फेट का घोल का नियंत्रित छिडक़ाव करने से मौथा पर अच्छा नियंत्रण प्राप्त होता है। अंतरवर्तीय फसल विशेषकर सोयाबीन, उड़द अथवा मूंगफली के साथ गन्ना फसल होने पर थायबेनकार्ब 1.25 कि.ग्रा./हेक्टेयर की दर में अंकुरण पूर्व उपयोग करना लाभदायक होता है। मिट्टी चढ़ाना एवं संघाई क्रिया गन्ना फसल के लिए मिट्टी चढ़ाना एक महत्वपूर्ण सस्य वैज्ञानिक क्रिया है। क्योंकि गन्ना की ऊंचाई बढऩे पर गन्ना गिरना एक प्रमुख समस्या बन जाती है। जिससे उत्पादन में बहुत हानि होती है। अत: वर्षा पूर्व गन्ना फसल में मिट्टी चढ़ाने का कार्य किया जाना आवश्यक है। इस प्रकार मिट्टी चढ़ाने में गन्ना फसल की जड़ों में मजबूत पकड़ प्राप्त होती है। कल्लों के निकलने पर भी रोक लगती है। गन्ना तेज हवाओं से न गिरे इसके लिए कतारों के गन्ने की झुंडी को गन्ने की सूखी पत्तियों से बांधना चाहिए। यह कार्य अगस्त अंत में या सितम्बर माह में करें। बंधाई का कार्य इस प्रकार करें कि हरी पत्तियों का समूह एक जगह एकत्र न हो अन्यथा प्रकाश संलेषण क्रिया प्रभावित होगी। यह भी पढ़ें : कोविड-19 वैक्सीन साइड इफेक्ट : टीका लगवाने से पहले जान लें ये जरूरी बातें कब और किन अवस्थाओं में करें सिंचाई गन्ना फसल के सफल उत्पादन हेतु लगभग 220-250 से.मी. सिंचाई की आवश्यकता होती है। गन्ना फसल से अधिकतम उत्पादन प्राप्त करने हेतु मौसम के अनुसार सर्दी के मौसम में 15-20 दिन के बाद तथा गर्मी के मौसम में 10-12 दिन के बाद पर सिंचाई करनी चाहिए। इस प्रकार संपूर्ण फसल काल में लगभग 10-12 दिन सिंचाई की आवश्यकता होती है। कम पानी में अधिक उत्पादन कैसे लें? गन्ने की कतारों में सूखी पत्तियों की पलवार बिछाएं। जब खेत में पानी की कमी संभावित हो 2.5 प्रतिशत एमओपी का घोल 2 प्रतिशत यूरिया मिलाकर 15-20 दिन के अंतर से छिडक़ाव करें। जिप्सम एवं गोबर की खाद का प्रयोग अवश्य करें। उन्नत सिंचाई तकनीकें जैसे टपक सिंचाई विधि एवं अधो सतही सिंचन का प्रयोग कर पानी बचाएं। कतार छोड़ सिंचाई पद्धति अपनाएं। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
देसी गाय की उन्नत नस्लें : भारत में सबसे ज्यादा दूध देने वाली देसी गायों की 10 नस्लें
देसी गाय : जानें, कौन-कौनसी है ये नस्ले और कितना दूध देती हैं? दूध और मांस के लिए पशुओं का पालन दुनिया भर में किया जाता रहा है। इसी के साथ भारत में प्राचीन काल से ही पशुपालन व्यवसाय के रूप में प्रचलित रहा है। वर्तमान में भी यह जारी है। भारत में करीब 70 प्रतिशत आबादी गांव में निवास करती है। गांव में रहने वाले लोगों का प्रमुख व्यवसाय खेती और पशुपालन ही है। सरकार की ओर से भी पशुपालन को बढ़ावा देने के लिए योजनाएं चलाई जा रही है। वहीं पशुओं की चिकित्सा के लिए गांव में पशु चिकित्सालय भी खोले गए हैं। इस सब के बाद भी आज पशुपालन करने वाले किसानों को समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है। इनके सामने सबसे बड़ी समस्या देसी गाय के पालन को लेकर है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रैक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 जानें, कैसे होती है देसी गाय की पहचान भारतीय देसी गाय की नस्लों की पहचान सरल है, इनमें कूबड़ पाया जाता है, जिसके कारण ही इन्हें कूबड़ धारी भारतीय नस्लें भी कहा जाता है, अथवा इन्हें देसी नस्ल के नाम से ही पुकारा जाता है। अधिक दूध उत्पादन वाली देसी गायें देसी गाय की कौनसी प्रजाति का चयन किया जाए ताकि अच्छा दूध उत्पादन मिल सके। तो आज हम इसी विषय को लेकर आए है कि आप देसी गाय की कौनसी किस्मों का चयन कर अच्छा दूध उत्पादन प्राप्त कर सकते हैं। यहां यह बात ध्यान देने वाली है कि उसी स्थान की नस्ल की गाय यदि उसी क्षेत्र में पाला जाए और संतुलित आहार दिया जाए तो बहुत अधिक फायदा पहुंचाती है। आइए जानते हैं क्षेत्रानुसार गाय की अच्छी 10 उन्नत प्रजातियों के बारें में- गिर नस्ल गिर नस्ल की गाय का मूल स्थान गुजरात है। गिर गाय को भारत की सबसे ज्यादा दुधारू गाय माना जाता है। यह गाय एक दिन में 50 से 80 लीटर तक दूध देती है। इस गाय के थन इतने बड़े होते हैं। इस गाय का मूल स्थान काठियावाड़ (गुजरात) के दक्षिण में गिर जंगल है, जिसकी वजह से इनका नाम गिर गाय पड़ गया। भारत के अलावा इस गाय की विदेशों में भी काफी मांग है। इजराइल और ब्राजील में भी मुख्य रुप से इन्हीं गायों का पाला जाता है। साहीवाल नस्ल साहीवाल भारत की सर्वश्रेष्ठ प्रजाति है। इसका मूल स्थान पंजाब और राजस्थान है। यह गाय मुख्य रूप से हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश में पाई जाती है। यह गाय सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं जिसकी वजह से ये दुग्ध व्यवसायी इन्हें काफी पसंद करते हैं। यह गाय एक बार मां बनने पर करीब 10 महीने तक दूध देती है। अच्छी देखभाल करने पर ये कहीं भी रह सकती हैं। राठी नस्ल इस नस्ल का मूल स्थान राजस्थान है। भारतीय राठी गाय की नस्ल ज्यादा दूध देने के लिए जानी जाती है। राठी नस्ल का राठी नाम राठस जनजाति के नाम पर पड़ा। यह गाय राजस्थान के गंगानगर, बीकानेर और जैसलमेर इलाकों में पाई जाती हैं। यह गाय प्रतिदन 6 -8 लीटर दूध देती है। हल्लीकर नस्ल हल्लीका गाय का मूल स्थान कर्नाटक है। हल्लीकर के गोवंश मैसूर (कर्नाटक) में सर्वाधिक पाए जाते हैं। इस नस्ल की गायों की दूध देने की क्षमता काफी अच्छी होती है। हरियाणवी नस्ल इस नस्ल की गाय का मूल पालन स्थान हरियाणा, उत्तर प्रदेश और राजस्थान है। इस नस्ल की गाय सफेद रंग की होती है। इनसे दूध उत्पादन भी अच्छा होता है। इस नस्ल के बैल खेती में अच्छा कार्य करते हैं इसलिए हरियाणवी नस्ल की गायें सर्वांगी कहलाती हैं। कांकरेज नस्ल इस नस्ल की गाय का मूल स्थान गुजरात और राजस्थान है। कांकरेज गाय राजस्थान के दक्षिण-पश्चिमी भागों में पाई जाती है, जिनमें बाड़मेर, सिरोही तथा जालौर जिले मुख्य हैं। इस नस्ल की गाय प्रतिदिन 5 से 10 लीटर तक दूध देती है। कांकरेज प्रजाति के गोवंश का मुंह छोटा और चौड़ा होता है। इस नस्ल के बैल भी अच्छे भार वाहक होते हैं। अत: इसी कारण इस नस्ल के गौवंश को द्वि-परियोजनीय नस्ल कहा जाता है। लाल सिंधी नस्ल इस नस्ल की गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु में पाई जाती है। लाल रंग की इस गाय को अधिक दुग्ध उत्पादन के लिए जाना जाता है। लाल रंग होने के कारण इनका नाम लाल सिंधी गाय पड़ गया। यह गाय पहले सिर्फ सिंध इलाके में पाई जाती थीं। लेकिन अब यह गाय पंजाब, हरियाणा, कर्नाटक, तमिलनाडु, केरल और ओडिशा में भी पाई जाती हैं। इनकी संख्या भारत में काफी कम है। साहिवाल गायों की तरह लाल सिंधी गाय भी सालाना 2000 से 3000 लीटर तक दूध देती हैं। कृष्णा वैली नस्ल इस नस्ल की गाय का मूल स्थान कर्नाटक है। कृष्णा वैली उत्तरी कर्नाटक की देसी नस्ल है। यह सफेद रंग की होती है। इस नस्ल के सींग छोटे, शरीर छोटा, टांगे छोटी और मोटी होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 900 किलो दूध देती है। नागोरी नस्ल इस नस्ल की गाय राजस्थान के नागौर जिले में पाई जाती है। इस नस्ल के बैल भारवाहक क्षमता के विशेष गुण के कारण अत्यधिक प्रसिद्ध है। निमरी (मध्य प्रदेश) निमरी का मूल स्थान मध्य प्रदेश है। इसका रंग हल्का लाल, सफेद, लाल, हल्का जामुनी होता है। इसकी चमड़ी हल्की और ढीली, माथा उभरा हुआ, शरीर भारा, सींग तीखे, कान चौड़े और सिर लंबा होता है। एक ब्यांत में यह नस्ल औसतन 600-954 किलो दूध देती है और दूध की वसा 4.9 प्रतिशत होती है। खिल्लारी नस्ल इस नस्ल का मूल स्थान महाराष्ट्र और कर्नाटक के जिले है और यह पश्चिमी महाराष्ट्र में भी पाई जाती है। इस प्रजाति के गोवंश का रंग खाकी, सिर बड़ा, सींग लम्बी और पूंछ छोटी होती है। गलबल काफी बड़ा होता है। खिल्लारी प्रजाति के बैल काफी शक्तिशाली होते हैं। इस नस्ल के नर का औसतन भार 450 किलो और गाय का औसतन भार 360 किलो होता है। इसके दूध की वसा लगभग 4.2 प्रतिशत होती है। यह एक ब्यांत में औसतन 240-515 किलो दूध देती है। देसी गाय की खरीद/देसी गाय की बिक्री अगर आप देसी गाय सहित अन्य दुधारू पशुओं को खरीदना या बेचना चाहते हैं तो ट्रैक्टर जंक्शन पर आपको विश्वसनीय सौदे मिलते हैं। ट्रैक्टर जंक्शन पर किसानों द्वारा किसानों 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पीएम किसान सम्मान निधि योजना : बजट २०२१ में किसानों को मिल सकता है तोहफा
खातें में आ सकते हैं 6000 रुपए से ज्यादा, जानें, किन किसानों को मिलेगा इस योजना का लाभ? बजट 2021 में सरकार किसानों को तोहफा दे सकती है। ऐसी उम्मीद की जा रही है कि इस बजट में सरकार किसानों को खुश करने के लिए पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत दी जाने वाली राशि में बढ़ोतरी कर सकती है। बता दें कि अभी तक पीएम किसान सम्मान निधि योजना के तहत सरकार की ओर से किसानों को एक वर्ष में 2,000-2,000 रुपए की तीन समान किस्तों में कुल 6000 रुपए की राशि दी जाती है। यानि इस योजना के तहत सरकार किसानों को 500 रुपए महीने की सहायता हर माह प्रदान कर रही है। योजना के तहत दी जा रही सहायता राशि को लेकर किसानों का कहना है कि बढ़ती महंगाई के दौर में हर माह सिर्फ 500 रुपए की राशि की सहायता बहुत कम है। वहीं कई कृषि जानकारों का भी कहना है कि इस राशि का बढ़ाया जाना चाहिए। किसानों को उम्मीद है कि इस बार बजट में इस योजना की राशि को बढ़ाया जा सकता है। मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक कहा जा रहा है कि मोदी सरकार किसानों को दी जाने वाली सम्मान राशि में इजाफा कर सकती है। इस इजाफे की घोषणा बजट 2021 में होने की संभावना जताई रही है। हालांकि अभी तक इसकी पुष्टि नहीं हुई है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 किसानों को खुश करने के लिए सरकार कर सकती है कुछ खास ऐलान तीन नए कृषि कानून के विरोध में जारी किसानों के विरोध-प्रदर्शन के बीच वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण आगामी 1 फरवरी को वित्त वर्ष 2021-22 के लिए केंद्रीय बजट पेश करेंगी। जानकारी के मुताबिक इस बार के बजट में खेती-किसानी को लेकर केंद्र सरकार के कुछ खास ऐलान किए जाने की भी संभावना है। कुछ मीडिया रिपोर्ट्स में दावा किया जा रहा है कि इस बार के बजट में सरकार प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि स्कीम के तहत मिलने वाले 6,000 रुपए सालाना को बढ़ाने का ऐलान कर सकती है। इस बार के बजट में किसानों ने मोदी सरकार से इस रकम को बढ़ाने की भी मांग की है। उनका कहना है कि 6,000 रुपए सालाना की रकम पर्याप्त नहीं है। एक एकड़ में फसल बोने पर कितना आता है खर्चा किसानों के अनुसार एक एकड़ जमीन में धान की फसल में 3-3.5 हजार रुपए लगते हैं। वहीं, अगर गेहूं की खेती की जाए तो इसमें 2-2.5 हजार रुपए की लागत आती हैं। ऐसी स्थिति में थोड़ी ज्यादा जमीन रखने वाले किसानों को इस स्कीम से लाभ नहीं मिल रहा है। सरकार को यह रकम बढ़ानी चाहिए ताकि किसानों को कुछ और राहत मिल सके। यह भी पढ़ें : ग्रामीण ऋण मुक्ति विधेयक : अब किसानों का ब्याज सहित कर्जा होगा माफ कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने के उपाय करें सरकार- कृषि विशेषज्ञ वित्त वर्ष 2021-22 के बजट में सरकार को कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन बढ़ाने के साथ ही प्रोत्साहन के उपाय करने चाहिए। कृषि क्षेत्र के जानकारों ने यह बात कही है। उनका मानना है कि सरकार को कृषि क्षेत्र के समग्र विकास पर जोर देना चाहिए। इसके लिए स्वदेशी कृषि अनुसंधान, तिलहन उत्पादन, खाद्य प्रसंस्करण और जैविक खेती को बढ़ावा देने के लिए बजट में अतिरिक्त धनराशि प्रदान करनी चाहिए। जानकारों का यह भी कहना है कि प्रत्यक्ष लाभ अंतरण (डीबीटी) के दायरे में ज्यादा से ज्यादा किसानों को लाने की जरूरत है। डीसीएम श्रीराम के अध्यक्ष और वरिष्ठ एमडी अजय श्रीराम ने कहा, खाद्य प्रसंस्करण उद्योग ने किसान के लिए बेहतर मूल्य प्राप्ति और बिचौलियों की लागत को कम करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बजट में खाद्य प्रसंस्करण को ब्याज प्रोत्साहन, कम कर, प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल और इसके प्रोत्साहन के उपाय करने चाहिए। पिछले वित्त वर्ष भी कृषि के लिए बजट में की गई थी वृद्धि वित्त वर्ष 2019-20 में कृषि क्षेत्र के लिए आवंटन का अनुमान करीब 1.51 लाख करोड़ रुपए रहा था, जो कि अगले साल यानी वित्त वर्ष 2020-21 में मामूली बढ़त के साथ 1.54 लाख करोड़ रुपए पर पहुंच गया। इसके अलावा भी ग्रामीण विकास के लिए वित्त वर्ष 2020-21 में 1.44 लाख करोड़ रुपए का आवंटन हुआ था। इसके पहले वित्त वर्ष (2019-20) में यह 1.40 लाख करोड़ रुपए था। प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के तहत आवंटन की राशि को 2019-20 के 9,682 करोड़ रुपए से बढ़ाकर 2020-21 में 11,217 करोड़ रुपए कर दिया था। छोटे किसानों को मिलता है इस स्कीम से फायदा पीएम-किसान सम्मान निधि योजना केंद्र सरकार द्वारा 100 फीसदी फंड पाने वाली स्कीम है। केंद्र सरकार ने दिसंबर 2018 से इस योजना को शुरू किया था, जिसके तहत छोटे एवं सीमांत किसानों को सालाना 6,000 रुपए उनके बैंक अकाउंट में ट्रांसफर किए जाते हैं। इस स्कीम का लाभ वही किसान उठा सकते हैं, जिनके पास कुल 2 हेक्टेयर से ज्यादा की जमीन नहीं है। राज्य सरकारें और केंद्र शासित प्रदेश इस स्कीम के तहत योग्य किसानों की पहचान करते हैं। 25 दिसंबर 2020 को ही पीएम मोदी ने करीब 9 करोड़ किसानों के खाते में करीब 18,000 करोड़ रुपए ट्रांसफर किया है। यह भी पढ़ें : ऋण समाधान योजना : 31 जनवरी से पहले ऋण जमा कराएं, 90 प्रतिशत तक छूट पाएं पीएम किसान सम्मान निधि में अब तक किसानों को मिली सात किस्तें केंद्र सरकार पीएम किसान सम्मान निधि के तहत अब तक 7 किस्तों में पैसे जारी कर चुकी है। अब तक इस स्कीम के तहत 10.60 करोड़ किसानों को 95,000 करोड़ रुपए की रकम जारी की जा चुकी है। इस योजना के तहत अप्रैल-जुलाई, अगस्त-नवंबर और दिसंबर-मार्च की अवधि में अकाउंट में पैसे ट्रांसफर किए जाते हैं। पीएम-किसान सम्मान निधि की वेबसाइट पर दी गई जानकारी के मुताबिक इस योजना के 11.47 करोड़ किसानों को लाभ मिल चुका है। दिसंबर 2018 में इस योजना की शुरुआत की गई थी। इन किसानों को नहीं मिलेगा इस योजना का लाभ ऐसे किसान जो भूतपूर्व या वर्तमान में संवैधानिक पद धारक हैं, वर्तमान या पूर्व मंत्री हैं, मेयर या जिला पंचायत अध्यक्ष हैं, विधायक, एमएलसी, लोकसभा और राज्यसभा सांसद हैं तो वे इस स्कीम से बाहर माने जाएंगे। भले ही वो किसानी भी करते हों। केंद्र या राज्य सरकार में अधिकारी एवं 10 हजार से अधिक पेंशन पाने वाले किसानों को लाभ नहीं. बाकी पात्र होंगे। पेशेवर, डॉक्टर, इंजीनियर, सीए, वकील, आर्किटेक्ट, जो कहीं खेती भी करता हो उसे लाभ नहीं मिलेगा। केंद्र और राज्य सरकार के मल्टी टास्किंग स्टाफ/चतुर्थ श्रेणी/समूह डी कर्मचारियों लाभ मिलेगा। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
गेहूं का न्यूनतम समर्थन मूल्य 2021-22 राजस्थान : जानें कितनी बढ़ी गेहूं की कीमत
राजस्थान में गेहूं का एमएसपी तय, अब इस कीमत पर होगी खरीद राजस्थान में आगामी रबी विपणन वर्ष 2021-22 के लिए गेहूं का समर्थन मूल्य (एमएसपी) तय कर दिया गया है। अब किसानों से न्यूनतम समर्थन मूल्य 1975 रुपए प्रति क्विंटल की दर से गेहूं की खरीद की जाएगी। बता दें कि रबी विपणन वर्ष 2020-21 में रबी सीजन में उत्पादित गेहूं के लिए केंद्र सरकार ने 1925 रुपए प्रति क्विंटल समर्थन मूल्य यानि एमएसपी तय किया था। अब राजस्थान सरकार की ओर से तय किया गया एमएसपी रबी विपणन वर्ष 2020-21 से 50 रुपए अधिक है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 प्रदेश में 108 लाख मैट्रिक टन गेहूं की पैदावार का अनुमान कृषि विभाग के अनुसार इस बार प्रदेश में 108 लाख मैट्रिक टन गेहूं की पैदावार होने का अनुमान जताया गया है। मीडिया में प्रकाशित खबरों के हवाले से खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के शासन सचिव ने बताया कि कृषि विभाग की ओर से जारी कृषि उत्पादन कार्यक्रम के तहत प्रदेश में लगभग 108 लाख मैट्रिक टन गेहूं की पैदावार होने की संभावना जताई गई है। खाद्य एवं नागरिक आपूर्ति विभाग के शासन सचिव नवीन जैन ने बुधवार को न्यूनतम समर्थन मूल्य पर गेहूं की खरीद की तैयारियों के संबंध में आयोजित बैठक में यह बात कही। उन्होंने बताया कि वर्ष 2020-21 के दौरान ई-प्रोक्योरमेन्ट के तहत कोई कार्य नहीं हुआ। लेकिन, इस रबी विपणन वर्ष 2021-22 में ई-प्रोक्योमेन्ट के तहत समस्त कार्यवाही निर्धारित समयावधि में पूर्ण करने के लिए संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिए जा चुके हैं। शासन सचिव ने बताया कि समस्त खरीद प्रक्रिया के प्रभावी रूप से नियंत्रण एवं पर्यवेक्षण के लिए जिला कलेक्टर की अध्यक्षता में गठित समिति की बैठक के लिए दिशा-निर्देश जारी करने का निर्णय लिया गया है। परिवहन दरों व मंडी लेबर चार्जेज के निर्धारण के लिए विशेषज्ञ उप समिति का गठन उन्होंने बताया कि भारत सरकार के निर्देशानुसार परिवहन दरों के निर्धारण एवं मंडी लेबर चार्जेज के निर्धारण के लिए राज्य स्तरीय समिति की बैठक आयोजित की गई, जिसमें इन दरों के निर्धारण के लिए एक विशेषज्ञ उप समिति का गठन कर लिया गया है। उप समिति आगामी 2 फरवरी को राज्य स्तरीय समिति को रिपोर्ट देगी, जिसके आधार पर आगामी रबी विपणन वर्ष 2021-22 में दरों का निर्धारण किया जाएगा। गेहूं की खरीद से जुड़े हुए विभिन्न बिन्दुओं सहित खरीद कीमतों पर बैठक में विस्तारपूर्वक चर्चा की गई। बैठक में अतिरिक्त खाद्य आयुक्त अनिल कुमार अग्रवाल, राजफैड की प्रबन्ध निदेशक सुषमा अरोड़ा, एफसीआई के महाप्रबन्धक संजीव भास्कर सहित संबंधित विभागों के अधिकारी उपस्थित थे। यह भी पढ़ें : ग्रामीण ऋण मुक्ति विधेयक : अब किसानों का ब्याज सहित कर्जा होगा माफ इधर यूपी में धान की खरीद में गड़बड़ी, छह क्रय प्रभारियों पर कार्रवाई उत्तप्रदेश के सिद्धार्थनगर में धान खरीद में ऑनलाइन पंजीकरण में गड़बड़ी पाए जाने पर यहां के पीसीएफ के चार क्रय केन्द्र प्रभारियों समेत तीन तहसील कर्मियों के खिलाफ कार्रवाई की गई हैं। इसके तहत इन सभी के खिलाफ एफआईआर दर्ज कराई गई है। इसके अलावा कुशीनगर के दो क्रय केन्द्र प्रभारी व तहसील के कम्प्यूटर ऑपरेटर के खिलाफ भी एफआईआर दर्ज की गई। खाद्य आयुक्त मनीष चौहान ने मीडिया को यह जानकारी दी है। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार उन्होंने बताया कि धान खरीद में किसानों को बेचने के लिए खाद्य तथा रसद विभाग की वेबसाइट पर पंजीकरण कराए जाने की व्यवस्था की गई है। सिद्धार्थनगर में सात किसानों ने अपने पंजीकरण में कई हेक्टेयर भूमि पर धान की पैदावार दिखाई थी। इसका सत्यापन तहसील से भी करा लिया। पीसीएफ के चार क्रय केन्दों पर इन तथाकथित किसानों ने हजारों क्विंटल धान भी बेचा। ऑनलाइन आंकड़ों की समीक्षा होने पर यह गड़बड़ी पकड़ में आई तो सातों किसान, चारों क्रय केन्द्र प्रभारी व तीन तहसील कर्मियों के खिलाफ एफआईआर करवाई गई। इसी तरह कुशीनगर में एक किसान ने अपने पंजीकरण में 421 हेक्टयर भूमि दर्ज की और इस पर 22472.98 क्विंटल धान की मात्रा भी सत्यापित करवा दी जबकि जमीन अन्य किसानों के नाम पर थीं। यूपीपीसीयू के दो धान क्रय केन्द्र प्रभारियों द्वारा बिना किसान के प्रपत्र, खतौनी आदि देखे हुए 1064 क्विंटल धान की खरीद भी कर ली गर्ईं। इस पर कार्रवाई करते हुए किसान, दोनों क्रय केन्द्र प्रभारी व तहसील के कम्प्यूटर आपरेटर के खिलाफ एफआईआर की गई है। धान खरीद वर्ष 2020-21 के तहत प्रदेश में अब तक 59.15 लाख मीट्रिक धान की खरीद कर ली गई है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।