Standard Tractor Price starts from Rs.4.90-5.10 Lakh. The most expensive Standard Tractor is Standard DI 490 price at Rs.10.90-11.20 Lakh. Escorts offers a wide range of 7 tractor models in India, and HP range starts from 35 hp to 90 hp. The most popular Escorts Tractor models are Standard DI 345, Standard DI 335, and Standard DI 460, etc.
Standard Tractors in India | Tractor HP | Tractor Price |
Standard DI 335 | 35 HP | Rs. 4.90 Lakh - 5.10 Lakh |
Standard DI 450 | 50 HP | Rs. 6.10 Lakh - 6.50 Lakh |
Standard DI 460 | 60 HP | Rs. 7.20 Lakh - 7.60 Lakh |
Standard DI 345 | 45 HP | Rs. 5.80 Lakh - 6.80 Lakh |
Standard DI 355 | 55 HP | Rs. 6.60 Lakh - 7.20 Lakh |
Standard DI 475 | 75 HP | Rs. 8.60 Lakh - 9.20 Lakh |
Standard DI 490 | 90 HP | Rs. 10.90 Lakh - 11.20 Lakh |
Data Last Updated On : Feb 27, 2021 |
Standard Tractor Company Based in Bathinda Road, Handiaya, Barnala, Punjab (India), STANDARD CORPORATION INDIA LTD. (TRACTOR DIVISION) formerly known as Standard Combines Pvt. Ltd., but due to its gradual growth, it has been changed to Standard Corporation India Ltd., manufactures high quality Combines & Tractors.
SardarNachhattar Singh was the founder of Standard Tractor. The company had its inception in 1975 and the sibling company Standard Tractors was registered in 1990. In the last many years we have made enormous progress by growing from a small production company to one of the leading manufacturers of Combines & Tractors in India. This is also known with the term "tractor standard".
Our extensive production capabilities allow us to service your diverse needs to guarantee quick response and delivery. OUR MISSION is to provide innovative and practical. We believe our first responsibility is to the customer and the quality products & quality service is the only thing a company truly has to offer.
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Why is Standard the best tractor company? | USP
The standard tractor is the best tractor producer of India. It provides products that are of perfect quality and reasonable in price.
Standard tractor new model is produced according to innovative technology. They are specially designed according to the needs and satisfaction of the farmers.
New model Standard tractor has all the qualities which help every farmer to increase performance on the field. They are the best tractors for farmers these tractors are also provided economic mileage on the field. Standard tractors come with features like high fuel efficiency, powerful engine, large fuel tank capacity, heavy hydraulic lifting capacity, and many more. Tractors of Standard are perfect deal for the Indian farmers because it has all the productive qualities.
Standard Tractor Price in India
The standard tractor is the brand that manufactures tractors at a super affordable standard tractor price. They always produce tractors according to the budget of the farmers. Standard tractors are very popular among Indian farmers because of its affordability.
It is Standard DI 460 is the most popular standard tractor of India it comes with 60 hp, 4 cylinders, and 3596 cc powerful engine capacity which generates 2200 engine rated RPM. Standard tractor 460 di price in India is Rs. 7.20-7.60 lakh* and standard tractor 60 hp price is also very suitable according to the Indian farmers. Get Standard tractor price in India only on TractorJunction.
Standard Tractor Dealership
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तेज पत्ता की खेती : तेज पत्ता की खेती से पाएं कम लागत में बड़ा मुनाफा
जानें, तेज पत्ता की खेती का सही तरीका और उससे होने वाले लाभ? तेज पत्ता की बढ़ती बाजार मांग के कारण तेज पत्ता की खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। तेज पत्ता की खेती करना बेहद ही सरल होने के साथ ही काफी सस्ता भी है। इसकी खेती से किसान कम लागत में अधिक मुनाफा कमा सकते हैं। तेज पत्ता कई काम आता है। इसका हमारी खाने में उपयोग होने के साथ ही हमारी सेहत के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसके अलावा तेज पत्ता का इस्तेमाल कई आध्यात्मिक कार्यों के लिए भी किया जाता है। बहरहाल अभी बात हम इसकी खेती की करेंगे कि किस प्रकार इसकी खेती करके हमारे किसान भाई अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। आइए जानते हैं कि कम लागत में तेज पत्ता की खेती कैसे की जाएं। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 तेज पत्ता की खेती पर सब्सिडी और लाभ इसकी खेती को प्रोत्साहित करने के लिए किसानों को राष्ट्रीय औषधीय पादप बोर्ड की ओर से 30 प्रतिशत अनुदान दिया जाता है। अब बात करें इससे होने वाली आमदनी की तो तेजपत्ते के एक पौधे से करीब 3000 से 5000 रुपए तक प्रति वर्ष तथा इसी तरह के 25 पौधों से 75,000 से 1,25,000 रुपए प्रति वर्ष कमाई की जा सकती है। क्या है तेज पत्ता तेज पत्ता 7.5 मीटर ऊंचा छोटे से मध्यमाकार का सदाहरित वृक्ष होता है। इसकी तने की छाल का रंग गहरा भूरे रंग का अथवा कृष्णाभ, थोड़ी खुरदरी, दालचीनी की अपेक्षा कम सुगन्धित तथा स्वादरहित, बाहर का भाग हल्का गुलाबी अथवा लाल भूरे रंग की सफेद धारियों से युक्त होती है। इसके पत्ते सरल, विपरीत अथवा एकांतर, 10-12.5 सेमी लम्बे, विभिन्न चौड़ाई के, अण्डाकार, चमकीले, नोंकदार, 3 शिराओं से युक्त सुगन्धित एवं स्वाद में तीखे होते हैं। इसके नये पत्ते कुछ गुलाबी रंग के होते हैं। इसके फूल हल्के पीले रंग के होते हैं। इसके फल अंडाकार, मांसल, लाल रंग के, 13 मिमी लंबे होते हैं। इसका पुष्पकाल एवं फलकाल अगस्त से फरवरी तक होता है। तेज पत्ता में पाएं जाने वाले पोषक तत्व तेज पत्ता में पाए जाने वाले पोषक तत्वों की बात करें तो प्रति 100 ग्राम तेज पत्ता में पानी-5.44 ग्राम, ऊर्जा-313 कैलोरी, प्रोटीन-7.61 ग्राम, कार्बोहाइड्रेट-74.97 ग्राम, फैट-8.36 ग्राम, फाइबर-26.3 ग्राम, कैल्शियम-834 मिलीग्राम, आयरन-43.00 मिलीग्राम, विटामिन-सी 46.5 मिलीग्राम मात्रा पाई जाती है। तेज पत्ता के खाने में उपयोग तेज पत्ता का इस्तेमाल विशेषकर अमेरिका व यूरोप, भारत सहित कई देशों में खाने में किया जाता है। उनका इस्तेमाल सूप, दमपुख्त, मांस, समुद्री भोजन और सब्जियों के व्यंजन में किया जाता है। इन पत्तियों को अक्सर इनके पूरे आकार में इस्तेमाल किया जाता है और परोसने से पहले हटा दिया जाता है। भारतीय और पाकिस्तान में इसका उपयोग अक्सर बिरयानी और अन्य मसालेदार व्यंजनों में तथा गरम मसाले के रूप में रसोई में रोज इस्तेमाल किया जाता है। सेहत के लिए लाभकारी है तेज पत्ता तेज पत्ता में पाए जाने वाले पोषक तत्वों के कारण ही इसका उपयोग कई रोगों में दवा के तौर पर किया जाता है। तेज पत्ता त्वचा और बालों के लिए भी काफी फायदेमंद है। इसमें पाए जाने वाले एसेंशियल ऑयल का इस्तेमाल कॉस्मेटिक उद्योग में क्रीम, इत्र और साबुन बनाने में किया जाता है। यह त्वचा को गहराई से साफ कर सकता है, क्योंकि इसमें एस्ट्रिंजेंट गुण मौजूद होता है। एक अन्य शोध में तेज पत्ते को मुहांसों से पैदा हुई सूजन को कम करने में भी कारगर पाया गया है। तेज पत्ते का उपयोग सेहत व त्वचा के साथ-साथ बालों के लिए भी किया जा सकता है। यह बालों की जड़ों को फंगल और बैक्टीरियल संक्रमण से दूर रख सकता है, क्योंकि यह एंटी फंगल और एंटी बैक्टीरियल गुणों से समृद्ध होता है। इन्हीं गुणों के चलते तेज पत्ते से निकले एसेंशियल ऑयल का प्रयोग रूसी और सोरायसिस से बचाने वाले लोशन में किया जाता है। इसके अलावा मधुमेह, कैंसर, सूजन कम करने, दंत रोग, किडनी की समस्या आदि रोगों में इसका दवाई के रूप में इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा मक्खियों और तिलचट्टों को खाद्य वस्तुओं से दूर रखने में भी इसका उपयोग किया जाता है। कहां-कहां होती है इसकी खेती इसका ज्यादातर उत्पादन करने वाले देशों में भारत, रूस, मध्य अमेरिका, इटली, फ्रांस और उत्तर अमेरिका और बेल्जियम आदि हैं। वहीं भारत में इसका ज्यादातर उत्पादन उत्तर प्रदेश, बिहार, केरल, कर्नाटक के अलावा उतरी पूर्वी भारत के पहाड़ी क्षेत्रों में किया जाता है। तेज पत्ता की खेती कैसे करें? वैसे तो तेज पत्ता की खेती सभी प्रकार की भूमि या मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन इसके लिए 6 से 8 पीएच मान वाली मिट्टी सबसे उपयुक्त रहती है। इसकी खेती से पहले भूमि को तैयार करना चाहिए। इसके लिए मिट्टी की दो से तीन बार अच्छी तरह जुताई करनी चाहिए। वहीं खेत से खरपतवारों को साफ कर देना चाहिए। इसके बाद जैविक खाद का उपयोग करें। तेज पत्ता के पौधों की रोपाई का तरीका नए पौधों को लेयरिंग, या कलम के द्वारा उगाया जाता है, क्योंकि बीज से उगाना मुश्किल हो सकता है। बे पेड़ को बीज से उगाना मुश्किल होता है, जिसका आंशिक कारण है बीज का कम अंकुरण दर और लम्बी अंकुरण अवधि. फली हटाये हुए ताज़े बीज का अंकुरण दर आमतौर पर 40 प्रतिशत होता है, जबकि सूखे बीज और/या फली सहित बीज का अंकुरण दर और भी कम होता है। इसके अलावा, बे लॉरेल के बीज की अंकुरण अवधि 50 दिन या उससे अधिक होती है, जो अंकुरित होने से पहले बीज के सड़ जाने के खतरे को बढ़ा देता है। इसे देखते हुए खेत में इसके पौधे का रोपण किया जाना ही सबसे श्रेष्ठ है। इसके पौधों का रोपण करते पौधे से पौधे की दूरी 4 से 6 मीटर रखनी चाहिए। ध्यान रहे कि खेत में पानी की समुचित व्यवस्था हो। इन्हें पाले से भी बचाने की जरूरत होती है। कीटों से बचाव के लिए हर सप्ताह नीम के तेल का छिडक़ाव कर करना चाहिए। तेज पत्ता में कब-कब करें सिंचाई तेज पत्ता में विशेष सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। गर्मियों के मौसम में सप्ताह में एक बार सिंचाई की जानी चाहिए। वहीं बरसात के मौसम में मानसून देरी से आए तो सिंचाई कर सकते हैं वर्ना तो बारिश का पानी ही इसके लिए पर्याप्त है। सर्दियों में इसे पाले से बचाने की आवश्यकता होती है। इसके लिए आप आवश्यकतानुसार हल्की सिंचाई कर सकते हैं। तेज पत्ता की कटाई करीब 6 वर्ष में इसका पौधा कटाई के लिए तैयार हो जाता है। इसकी पत्तियों को काटकर छाया में सुखाना चाहिए। अगर तेल निकालने के लिए इसकी खेती कर रहे हैं तो आसवन यंत्र का प्रयोग कर सकते हैं। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
राजस्थान बजट 2021-22 : बजट में किसानों के लिए कई घोषणाएं, मिली ये सौंगाते
जानें, बजट में किसानों को क्या-क्या मिला ? राजस्थान की गहलोत सरकार ने 24 फरवरी को राज्य का वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए पहला पेपरलेस बजट पेश किया। इस बार वित्त वर्ष 2021-22 के लिए 2 लाख 50 हजार 747 करोड़ का बजट पेश किया गया है जो पिछले साल के बजट से 25 हजार करोड़ रुपए ज्यादा है। पिछले साल के लिए 2 लाख 25 हजार 731 करोड़ का बजट पेश किया गया था। इस दौरान राज्य के मुख्यमंत्री श्री अशोक गहलोत ने कहा कि सरकार अगले साल से कृषि बजट अलग से पेश करेगी। अब बात करें इस बजट में किसानों के लिए क्या खास है। इस बार राजस्थान सरकार ने किसानों को राहत प्रदान करते हुए कई घोषणाएं भी की है। आइए जानतें हैं इस बार राजस्थान के बजट से किसानों को क्या-क्या मिला है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 कृषक कल्याण योजना की घोषणा, किसानों को होंगे ये लाभ बजट में कृषकों एवं पशुपालकों के लिए कृषक कल्याण योजना की घोषणा की गई। योजना के तहत सरकार 2 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। योजना के तहत प्रदेश के 3 लाख किसानों को नि: शुल्क बायो फर्टीलाइजर्स एवं बायो एजेंट्स दिए जाएंगे, एक लाख किसानों के लिए कम्पोस्ट यूनिट की स्थापना की जाएगी की जाएगी। तीन लाख किसानों को माइक्रोन्यूट्रीएन्ट्स किट उपलब्ध करवाई जाएंगी, पांच लाख किसानों को उन्नत किस्म के बीज वितरित किए जाएंगे, 30 हजार किसानों के लिए डिग्गी व फार्म पौंड बनाएं जाएंगे, 1 लाख 20 हजार किसानों को स्प्रिंकलर व मिनी स्प्रिंकलर दिए जाएंगे, 120 फार्मर प्रोडूसर आर्गेनाईजेशन, एफपीओ का गठन किया जाएगाा, जिसके उत्पादों की क्लीनिंग, ग्राइंडिंग एवं प्रोसेसिंग इकाइयां स्थापित की जाएंगी, ताकि किसानों को उनके उत्पादों का उचित मूल्य प्राप्त हो सके। राज्य में ड्रिप एवं फव्वारा सिंचाई प्रणाली की उपयोगित को देखते हुए आगामी 3 वर्षों में लगभग 4 लाख 30 हजार हेक्टेयर अतिरिक्त क्षेत्र को सूक्ष्म सिंचाई के तहत लाया जाएगा। साथ ही फर्टिगेशन एवं ऑटोमेशन आदि तकनीकों को भी व्यापक प्रोत्साहन दिया जाएगा। इसके लिए सरकार ने 732 करोड़ रुपये के बजट का प्रावधान प्रस्तावित किया है। राजस्थान के इन जिलों में स्थापित किए जाएंगे मिनी फूड पार्क कृषि जिंसो एवं उनके प्रोसेस्ड उत्पादों के व्यवसाय व निर्यात को बढ़ावा देने के लिए आगामी तीन वर्षों में प्रत्येक जिले में चरणवद्ध रूप से मिनी फूड पार्क स्थापित किए जाएंगे। आगामी वर्ष में पाली, नागौर, बाड़मेर, जैसलमेर, जालौर, सवाई माधोपुर, करौली, बीकानेर एवं दौसा जिलों में 200 करोड़ रुपये की लागत से मिनी फूड पार्क बनाए जाएंगे। साथ ही मथानिया-जोधपुर में लगभग 100 करोड़ रुपये की लागत से मेगा फूड पार्क की स्थापना की जाएगी। यह भी पढ़ें : मल्चर की पूरी जानकारी : खेत में चलाएं, मिट्टी की उर्वरा शक्ति और बढ़ाए 60 करोड़ रुपए की लागत से होगी ज्योतिबा फूले कृषि उपज मंडी की स्थापना किसानों को उनकी उपज के विपणन व बेहतर मूल्य दिलाये जाने के लिए आंगणवा-जोधपुर में आधुनिक सुविधा युक्त 60 करोड़ रुपए की लागत से ज्योतिबा फूले कृषि उपज मंडी स्थापित की जाएगी। इसके अलावा विभिन्न प्रकार की सेवाएं देने के उद्देश्य से आगामी 3 वर्षों में 125 करोड़ रुपए की लागत से भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केन्द्रों में 1 हजार किसान सेवा केन्द्रों का निर्माण करवाया जाएगा। इसके लिए कृषि पर्यवेक्षकों के 1 हजार नए पद भी सृजित किए जाएंगे। नहीं बढ़ेंगी बिजली की दरें, अब दो माह में आएगा बिजली का बिल 5 सालों के लिए बिजली दरें न बढ़े इसके लिए सरकार ने इस वर्ष 12 हजार 700 करोड़ रुपए की सब्सिडी दे रही हैं तथा आगामी वर्षों के लिए भी 16 हजार करोड़ रुपए से अधिक का प्रावधान प्रस्तावित है। खेती हेतु पर्याप्त बिजली की उपलब्धता, बिजली खरीद में पारदर्शिता व अच्छे वित्तीय प्रबंधन के लिए नई कृषि विद्युत वितरण कंपनी बनाने की घोषणा की गई। ग्रामीण कृषि उपभोक्ताओं जिनक बिल मीटर से आ रहा है उनको सरकार प्रतिमाह 1 हजार रुपए तक व प्रतिवर्ष अधिकतम 12 हजार रुपए तक की राशि दिए जाने की घोषणा की गई। इस पर 1 हजार 450 करोड़ रुपए का वार्षिक व्यय संभावित है। 150 यूनिट तक बिजली के बिल अब प्रत्येक माह के स्थान पर अब 2 माह में भेजे जाएंगे। 50 हजार किसानों को दिए जाएंगे सोलर पंप किसानों को पर्याप्त बिजली मिल सके, इसके लिए 50 हजार किसानों को सोलर पम्प उपलब्ध करवाए जाएंगे इसके आलवा 50 हजार किसानों को कृषि विद्युत कनेक्शन दिए जाएंगे। इसके अलावा कटे हुए कृषि कनेक्शन को फिर से शुरू किया जाएगा। इसके अलावा किसानों के लिए अन्य योजनाओं की घोषणा भी की गई जिसमें राज्य की कृषि उपज मंडी समितियों में सडक़ निर्माण, अन्य आधारभूत संरचना विकसित करने तथा मंडियों को ऑनलाइन करने हेतु आगामी तीन वर्षों में एक हजार करोड़ रुपए की लागत कार्य किए जाएंगे। खेती की लागत कम करने के लिए प्राकृतिक खेती को प्रोत्साहन खेती की लागत कम करने के लिए प्रदेश में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से वर्ष 2019 में जीरो बजट प्राकृतिक खेती योजना शुरू की थी। इसके तहत अब आगामी तीन वर्षों में 60 करोड़ रुपए खर्च कर 15 जिलों के 36 हजार किसानों को लाभान्वित किया जाएगा। कृषि कार्य में समय की बचत तथा खेती की लागत कम करने के उद्देश्य से लघु एवं सीमांत किसानों को उच्च तकनीक के कृषि उपकरण किराए पर उपलब्ध करवाने हेतु पीपीपी मोड पर जीएसएस एवं एनी जगहों पर एक हजार कस्टम हायरिंग केन्द्रों की स्थापना करना प्रस्तावित है। इस पर 20 करोड़ रुपए की लागत संभावित है। वर्ष 2021-22 में 100 पैक्स/ लैम्प्स में प्रत्येक में 100 मीट्रिक तन क्षमता के गोदाम का निर्माण करवाया जाएगा। इस पर 12 करोड़ रुपए का व्यय होगा। किसानों को दिया जाएगा 16 हजार करोड़ रुपए का ब्याज मुक्त फसली ऋण जो किसान कर्ज माफी से वंचित रह गए हैं, उन किसानों को भी अपने बजट में राहत देने की घोषणा की गई है। ऐसे किसानों की ओर से कॉमर्शियल बैंकों से लिया गया कर्ज वन टाइम सैटलमेंट के जरिए कर्ज माफ किया जाएगा। इस साल 16 हजार करोड़ का ब्याज मुक्त फसली कर्ज दिया जाएगा। 3 लाख नए किसानों को कर्ज मिलेगा, इस योजना में पशुपालकों और मत्स्य पालकों को भी शामिल किया जाएगा। यह भी पढ़ें : पशुपालन के लिए उन्नत नस्ल : मेवाती गाय का पालन कर कमाएं भारी मुनाफा प्रदेश में होगी कृषि विश्वविद्यालयों की स्थापना बीकानेर के राजस्थान पशु चिकित्सा एवं पशु विज्ञानं विश्वविद्यालय तथा शररे कर्ण नरेंद्र कृषि विश्वविद्यालय, जोबनेर-जयपुर में डेयरी विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी महाविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। बस्सी-जयपुर में डेयरी व खाद्य प्रौद्योगिकी महाविद्यालय खोला जाना प्रस्तावित है। इसी के साथ ही डूंगरपुर, हिंडौली-बूंदी एवं हनुमानगढ़ में नवीन कृषि महाविद्यालयों की स्थापना की जाएगी। नए दुग्ध उत्पादन सहकारी संघ का होगा गठन दूध उत्पादन को बढ़ावा देने व उत्पादकों की सहूलियत के लिए राजसमन्द में स्वतंत्र रूप से नए दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ के गठन किया जाएगा। वर्ष 2021-22 के लिए राज्य में नए दुग्ध संकलन रूट प्रारंभ करने के साथ ही जिला दुग्ध संघों में संचालित 1 हजार 500 दुग्ध संकलन केन्द्रों को प्राथमिक दुग्ध उत्पादक सहकारी समितियों के रूप में पंजीकृत किया जाना प्रस्तावित है। पशुपालकों को घर बैठे उपलब्ध होगी चिकित्सा सुविधा राज्य की गोशालाओं व पशुपालकों को उनके घर पर ही आपातकालीन पशु चिकित्सा उपलब्ध करवाने के लिए 108 एम्बुलेंस की तर्ज पर 102-मोबाइल वेटेनरी सेवा शुरू की जाएगी जिस पर 48 करोड़ रुपए का व्यय किया जाएगा। पशु चिकित्सा सेवाओं को सुदृढ़ एवं आधुनिक बनाने हेतु प्रत्येक पशु चिकित्सालय में राजस्थान पशु चिकित्सा रिलीफ सोसाइटी का गठन किया जाएगा। नंदी शाला की होगी स्थापना, अब प्रगतिशील पशुपालक भी होंगे सम्मानित प्रत्येक ब्लॉक में नंदी शाला की स्थापना की जाएगी। नंदी शालाओं को 1 करोड़ 50 लाख रुपए के मॉडल के आधार पर बनाया जाना प्रस्तावित है। इस हेतु आगामी वर्ष 111 करोड़ रुपए की राशि खर्च की जाएगी। इसके अलावा प्रदेश के प्रगतिशील किसानों की तरह ही, प्रगतिशील पशुपालकों को प्रोत्साहित करने के उद्देश्य से प्रतिवर्ष राज्यस्तरीय पशुपालक सम्मान समारोह आयोजित किए जाएंगे। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
पशुपालन के लिए उन्नत नस्ल : मेवाती गाय का पालन कर कमाएं भारी मुनाफा
जानें, इस नस्ल की गाय की पहचान और विशेषताएं देश के ग्रामीण इलाकों में कृषि के साथ पशुपालन एक मुख्य व्यवसाय बनता जा रहा है। आम तौर गाय, भैंस, बकरी आदि दुधारू पशुओं पालन किया जाता है। पशुपालन का मुख्य उद्देश्य दुधारू पशुओं का पालन कर उसका दूध बेचकर आमदनी प्राप्त करना है। यदि ये आमदनी अच्छी हो कहना ही क्या? पशुपालन से बेहतर आमदनी प्राप्त करने के लिए जरूरी है पशु की ज्यादा दूध देने वाली नस्ल का चुनाव करना। आज हम गाय की अधिक दूध देने वाली नस्ल के बारें में बात करेंगे। आज बात करते हैं मेवाती नस्ल की गाय के बारें में। यह नस्ल अधिक दूध देने वाली गाय की नस्लों में से एक है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 मेवाती गाय कहां पाई जाती है? यह गाय मेवात क्षेत्र में पाई जाती है। राजस्थान के भरपुर जिले, पश्चिम उत्तर प्रदेश के मथुरा और हरियाणा के फरीदाबाद और गुरुग्राम जिलों में अधिक पाई जाती है। गाय पालन में यह नस्ल काफी लाभकारी मानी जाती है। इस नस्ल की गाय को कोसी के नाम से भी जाना जाता है। मेवाती नस्ल लगभग हरियाणा नस्ल के समान होती है। मेवाती गाय की पहचान / विशेषताएं मेवाती नस्ल की गाय की गर्दन सामान्यत: सफेद होती है और कंधे से लेकर दाया भाग गहरे रंग का होता है। इसका चेहरा लंबा व पतला होता है। आंखें उभरी और काले रंग की होती हैं। इसका थूथन चौड़ा और नुकीला होता है। इसके साथ ही ऊपरी होंठ मोटा व लटका होता है तो वहीं नाक का ऊपरी भाग सिकुड़ा होता है। कान लटके हुए होते हैं, लेकिन लंबे नहीं होते हैं। गले के नीचे लटकी हुई झालर ज्यादा ढीली नहीं होती है। शरीर की खाल ढीली होती है, लेकिन लटकी हुई नहीं होती है। पूंछ लंबी, सख्त व लगभग ऐड़ी तक होती है। गाय के थन पूरी तरह विकसित होते हैं। मेवाती बैल शक्तिशाली, खेती में जोतने और परिवहन के लिए उपयोगी होते हैं। कितना दूध देती है मेवाती गाय यह नस्ल एक ब्यांत में औसतन 958 किलो दूध देती है और एक दिन में दूध की पैदावार 5 किलो होती है। मेवाती नस्ल की गाय की खुराक इस नस्ल की गायों को जरूरत के अनुसार ही खुराक दें। फलीदार चारे को खिलाने से पहले उनमें तूड़ी या अन्य चारा मिला लें। ताकि अफारा या बदहजमी ना हो। आवश्यकतानुसार खुराक का प्रबंध नीचे लिखे अनुसार भी किया जा सकता है। खुराक प्रबंध: जानवरों के लिए आवश्यक खुराकी तत्व- उर्जा, प्रोटीन, खनिज पदार्थ और विटामिन होते हैं। गाय खुराक की वस्तुओं का चयन करते समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि उसे दिया जा रहा खाद्य पदार्थ पोष्टिता से भरपूर हो। इसके लिए पशुपालक खुराक का प्रबंध इस प्रकार बताएं अनुसार कर सकते हैं जिससे पोष्टिकता के साथ ही दूध की मात्रा को भी बढ़ाया जा सके। गाय की खुराक में शामिल करें यह वस्तुएं अनाज और इसके अन्य पदार्थ: मक्की, जौं, ज्वार, बाजरा, छोले, गेहूं, जई, चोकर, चावलों की पॉलिश, मक्की का छिलका, चूनी, बड़वे, बरीवर शुष्क दाने, मूंगफली, सरसों, बड़वे, तिल, अलसी, मक्की से तैयार खुराक, गुआरे का चूरा, तोरिये से तैयार खुराक, टैपिओका, टरीटीकेल आदि। हरे चारे : बरसीम (पहली, दूसरी, तीसरी, और चौथी कटाई), लूसर्न (औसतन), लोबिया (लंबी ओर छोटी किस्म), गुआरा, सेंजी, ज्वार (छोटी, पकने वाली, पकी हुई), मक्की (छोटी और पकने वाली), जई, बाजरा, हाथी घास, नेपियर बाजरा, सुडान घास आदि। सूखे चारे और आचार : बरसीम की सूखी घास, लूसर्न की सूखी घास, जई की सूखी घास, पराली, मक्की के टिंडे, ज्वार और बाजरे की कड़बी, गन्ने की आग, दूर्वा की सूखी घास, मक्की का आचार, जई का आचार आदि। अन्य रोजाना खुराक भत्ता: मक्की/ गेहूं/ चावलों की कणी, चावलों की पॉलिश, छाणबुरा/ चोकर, सोयाबीन/ मूंगफली की खल, छिल्का रहित बड़वे की खल/सरसों की खल, तेल रहित चावलों की पॉलिश, शीरा, धातुओं का मिश्रण, नमक, नाइसीन आदि। मेवाती गाय के रहने का प्रबंध शैड की आवश्यकता: अच्छे प्रदर्शन के लिए, पशुओं को अनुकूल पर्यावरणीय परिस्थितियों की आवश्यकता होती है। पशुओं को भारी बारिश, तेज धूप, बर्फबारी, ठंड और परजीवी से बचाने के लिए शैड की आवश्यकता होती है। सुनिश्चित करें कि चुने हुए शैड में साफ हवा और पानी की सुविधा होनी चाहिए। पशुओं की संख्या के अनुसान भोजन के लिए जगह बड़ी और खुली होनी चाहिए, ताकि वे आसानी से भोजन खा सकें। पशुओं के व्यर्थ पदार्थ की निकास पाइप 30-40 सैं.मी. चौड़ी और 5-7 सैं.मी. गहरी होनी चाहिए। अधिक दूध देने वाली गाय की अन्य प्रसिद्ध उन्नत नस्लें मेवाती गाय के अलावा और भी ऐसी नस्ल हैं जिनसे अधिक दूध उत्पादन लिया जा सकता है। इनमें गिर, साहीवाल, राठी, हल्लीकर, हरियाणवी, कांकरेज, लाल सिंधी, कृष्णा वैली, नागोरी, खिल्लारी आदि नस्ल की गाय प्रमुख रूप से शामिल हैं। कहां मिल सकती है मेवाती सहित अन्य उन्नत नस्ल की गायें अगर आप मेवाती सहित अन्य उत्तम नस्ल की गाय किफायती कीमत पर खरीदना चाहते हैं तो आज ही ट्रैक्टर जंक्शन पर विजिट करें। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
अब प्रगतिशील किसान बनेंगे राष्ट्रीय स्तर के आइकॉन
बिहार के इस किसान पर बनाई जा रही है डॉक्यूमेंट्री फिल्म, जानें, किसान पर फिल्म बनाने का सरकार का मकसद और कहां होगा प्रदर्शन? बिहार के तिमौथू के मदारीपुर के एक किसान प्रेम के जीवन पर बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर) भागलपुर एक डॉक्यूमेंट्री फिल्म बना रहा है। बता दें कि प्रेम एक प्रगतिशील किसान है और उन्होंने बहुत बड़े फार्म हाउस का डबलपमेंट कर उसमें अंडा लेयर फार्म, मछली पालन, बटेर पालन, कडक़नाथ मुर्गा पालन, डेयरी फार्म, चूजा उत्पादन आदि सभी प्रकार की सुविधाओं को विकसित किया है। किसान प्रेम पर बन रही फिल्म में यह बताया जाएगा कि किसान ने कैसे एक छोटे से तालाब से शुरुआत कर आज अपना इतना बड़ा फार्म हाउस विकसित किया। विश्वविद्यालय की ओर से इस डॉक्यूमेंट्री फिल्म को बनाने के पीछे ये मकसद है कि किसान प्रेम से और किसान प्रेरणा लेकर अपनी आदमनी बढ़ा सके। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 इंटीग्रेटेड फार्मिंग करने के लिए किसानों के बीच में होगी प्रदर्शित मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार तिलौथू के मदारीपुर में किसान प्रेम के पास बिहार कृषि विश्वविद्यालय (सबौर) भागलपुर की मीडिया टीम उस पर केंद्रित डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने पहुंची। कृषि विश्वविद्यालय की टीम का नेतृत्व कर रहे कृषि विज्ञान केंद्र बिक्रमगंज के कृषि वैज्ञानिक आरके जलज ने बताया कि बिहार सरकार के आदेश पर ऐसे किसानों को राज्य ही नहीं राष्ट्रीय स्तर पर किसानों का आइकॉन बनाने के लिए उनकी पूरी जीवनी व कार्यप्रणाली पर केंद्रित डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाई जा रही है। इसे कृषि विभाग पूरे देश में इंटीग्रेटेड फार्मिंग करने के लिए किसानों के बीच में प्रदर्शित करेगी। इसे बिहार कृषि विश्वविद्यालय के यूट्यूब साइट पर भी देखा जा सकेगा। फिल्म के लिए शूट किए किसान के जीवन के ये पहलू डॉक्यूमेंट्री फिल्म बनाने के दौरान कृषि विश्वविद्यालय सबौर के मीडिया कर्मियों ने किसान प्रेम की जीवनी व इतने बड़े फर्म हाउस का डेवलपमेंट कैसे किया, किस तरह से यह कृषि की ओर प्रेरित हुए, इसे शूट किया। अंडा लेयर फार्म, मछली पालन, बटेर पालन, कडक़नाथ मुर्गा पालन, डेयरी फार्म, चूजा उत्पादन पर पूरी तरह से फोकस करके फिल्मांकन किया गया। यह भी पढ़ें : फसली ऋण : फसली ऋण वितरण की तारीख में किया संशोधन, अब किसान 15 जुलाई तक ले सकेंगे ऋण कृषि विज्ञान केंद्र से मिली प्रेरणा किसान प्रेम ने डॉक्यूमेंट्री के दौरान कैमरा के सामने बताया कि मैंने यह काम तालाब से शुरू किया था, जो मेरे पिताजी ने खुदवाई थी। मुझे विशेष प्रेरणा कृषि विज्ञान केंद्र में ट्रेनिंग लेने से मिली। अब मैं इतने बड़े फार्म हाउस का निर्माण कर लिया हूं। जहां अंडा लेयर फार्म, मछली फार्म, बटेर फार्म, केला उत्पादन, डेयरी फार्म, कडक़नाथ मुर्गा की जानकारी दी। नई तकनीक अपनाकर गेंदे की खेती से की 11 लाख की कमाई इधर इंदौर के धार जिले के गांव एहमद के 39 वर्षीय किसान राजेश शांतिलाल पाटीदार खेती में नई तकनीकों को अपनाकर इससे काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे है। उन्हें उद्यानिकी के तहत 15 बीघे की गेंदे की फसल से 11 लाख का शुद्ध मुनाफा हुआ है। जबकि इन्होंने 20 बीघा क्षेत्र में लगाए अमरुद के 8 हजार पौधों से भी लगाएं हैं। इससे भी अच्छा मुनाफा मिलेगा। मीडिया में प्रकाशित खबरों के हवाले से किसान राजेश ने बताया कि 20 बीघे में गेंदे की फसल लगाई है, जिसमें से 15 बीघे की फसल में साढ़े 15 लाख का उत्पादन हुआ, जिसमें 11 लाख का शुद्ध मुनाफा हुआ। जबकि 5 बीघे की फसल निकालना बाकी है। इसी तरह उद्यानिकी के तहत राजेश ने 20 बीघा में गत अप्रैल से जून के दौरान दो किश्तों में अमरुद के 8 हजार पौधे सघन बागवानी पद्धति से पास-पास लगाए हैं। इससे उत्पादन 3-4 गुना ज्यादा मिलता है। पौधों की किस्म थाईलैंड की है। जिसके पौधे हैदराबाद से बुलवाए थे। इन पौधों की कीमत प्रति पौधा 50 रुपए और कुछ पौधों की कीमत 100 प्रति पौधा है। सिंचाई के लिए फिलहाल एक ड्रिप लाइन लगाई है। पौधे बड़े होने पर दो ड्रिप लाइन और लगाएंगे। उत्तम प्रजाति के इस जामफल की फसल 18 माह में तैयार हो जाती है। यह भी पढ़ें : प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना : सिंचाई साधनों पर 100 प्रतिशत तक सब्सिडी, अभी करें आवेदन 16 लाख की लागत से प्लास्टिक बिछाकर तालाब का किया निर्माण किसान राजेश पाटीदार ने महाराष्ट्र का भ्रमण कर वहां के किसानों द्वारा अपनाई जा रही नई तकनीकों का अवलोकन किया और अपने खेतों में अपनाया। महाराष्ट्र पैटर्न पर पाटीदार ने खेत में साढ़े तीन बीघा में 16 लाख की लागत से प्लास्टिक बिछाकर तालाब का निर्माण भी किया है जिसकी क्षमता 2 करोड़ 40 लाख लीटर है। तीन कुंए हुए एक नदी से पाइप लाइन डालकर इस तालाब को भरा गया है। जिसका उपयोग गर्मी में नदी और कुंओं के पानी के उपयोग के बाद किया जाएगा। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
मरू मेला : जैसलमेर में विश्वविख्यात मेले का आगाज, ये अनोखी प्रतियोगिताएं होंगी
जानें, मरू मेले की खासियत जिसे लेकर विश्वभर में है इसकी अलग पहचान? राजस्थान पर्यटन विभाग तथा जैसलमेर जिला प्रशासन की ओर से आयोजित, चार दिन तक चलने वाले इस परंपरागत मरू महोत्सव में अबकि बार भी कई नवीन और आकर्षक कार्यक्रमों की धूम रहेगी। इस बार जैसलमेर में यह विश्वविख्यात मरू मेला 24 से 27 फरवरी तक आयोजित किया जा रहा है। हर बार ये मेला अपनी विशेष खासियत के लिए चर्चा में रहता है। देश-विदेश से काफी संख्या में पर्यटक इस मेले को देखने के लिए आते हैं। इस बार भी इस मेले के आयोजन को लेकर पिछले काफी दिनों से तैयारियां की जा रही थी। मेले को लेकर स्थानीय प्रशासन ने की ओर से पुलिस व्यवस्था चाक चौबंद की गई हैं ताकि देश-विदेश से मेले में आने वाले पर्यटकों को किसी प्रकार की असुविधा न हो। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 मरू महोत्सव के दौरान होंगे ये कार्यक्रम इस बार मरु महोत्सव ‘नया साल, नई उम्मीद, नया जश्न’ की थीम पर केंद्रित है। मरु महोत्सव में रम्मत नाटक, हॉर्स रन, विभिन्न प्रतिस्पर्धाएं, चित्रकला, हेरिटेज वॉक, फोक डांस, मिस मूमल, मिस्टर डेजर्ट, सांस्कृतिक होंगे। इस बार चार दिवसीय मरु महोत्सव के तहत खुहड़ी, गड़ीसर, जैसलमेर व सम में चार रात स्टार नाइट का आयोजन किया जा रहा है। इसके साथ ही दिन में भी विभिन्न कार्यक्रम आयोजित होंगे, जिसमें विभिन्न प्रतियोगिताएं भी शामिल है। मरु महोत्सव के दौरान यहां स्वयं के घरों को सजाने पर प्रशासन द्वारा पुरस्कार दिया जाएगा। चारों दिन लगेगा रात्रि बाजार, रात एक बजे तक रहेगा खुला इस चार दिवसीय मरु महोत्सव के मद्देनजऱ गड़ीसर क्षेत्र में 24 से 27 फरवरी तक चारों ही दिन रात्रि बाजार लगेगा जो रात्रि एक बजे तक खुला रहेगा। इसमें फूड स्टॉल्स, पपेट शो, जादू शो, बहुरूपिया कला आदि के कार्यक्रम होंगे। इसमें कुल्हड़ में चाय-काफी, नाश्ता, हस्तशिल्प उत्पाद, कशीदाकारी, पेचवर्क, सतरंगी राली, जैसलमेरी पाषाण के जाली-झरोखे, बिना जामण के दूध से दही जमा देने वाला हाबूर का पत्थर आदि का प्रदर्शन एवं विक्रय होगा। इस दौरान प्री रिकाडेर्ड म्यूजिक, लोक कलाकारों की जगह-जगह मोरचंग, रावण हत्था, खड़ताल, ढोलक की लहरियों पर प्रस्तुतियां होंगी। सैलानियों के लिए कैमल राइडिंग होगी। इस दौरान पर्यटकों के लिए मिस मूमल एवं मिस्टर डेजर्ट की पांरपरिक वेशभूषा में फोटो खिंचवाने की भी व्यवस्था उपलब्ध रहेगी। यह भी पढ़ें : फसली ऋण : फसली ऋण वितरण की तारीख में किया संशोधन, अब किसान 15 जुलाई तक ले सकेंगे ऋण मरू मेले के वे प्रसिद्ध आकर्षण जिसे देखने देश-विदेश से आते हैं पर्यटक मरू मेले के दौरान विभिन्न परंपरागत कलाओं का प्रदर्शन किया जाता है जो अपने आप में अनूठा है। ये प्रतिष्ठित कलाएं प्राचीन काल से प्रचलित हैं; यह रेगिस्तानी त्यौहार जैसा अवसर होता है, जो इन निर्धारित कलाकारों की मेहनत की इष्टतम उपयोगिता को बाहर निकालता है। इन कलाओं को देखने के लिए देश-विदेश से पर्यटक यहां आते हैं। मरू मेले के दौरान होने वाली ये प्रसिद्ध कलाएं इस प्रकार से हैं- कठपुतली कला यह राजस्थानी संस्कृति का अभिन्न अंग है, जो हमेशा किसी भी मेले में शामिल होता है। कठपुतली ने हमेशा पारंपरिक नाटक खंड में एक प्रमुख भूमिका निभाई है, जो विशेष रूप से राजस्थान के ग्रामीण क्षेत्रों में दिखाई जाती है। इस प्रकार, विदेशी पर्यटकों को कठपुतली की लुभावनी गतिविधि के माध्यम से राजस्थान की जीवंत संस्कृति में अंतर्दृष्टि मिलती है। डेजर्ट फेस्टिवल इन निर्धारित कलाकारों को वर्ष के अधिकांश समय में आर्थिक रूप से समर्थन देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। नट की कला प्रतिभाशाली कलाबाजों के आश्चर्यजनक कौशल आगंतुकों को गोज़बंप देने के लिए पर्याप्त हैं। स्पाइन-चिलिंग एक्टिविटी को अंजाम देने में कई वर्षों का समय लगता है, जो उन कड़ी मेहनत के संस्करणों को बोलते हैं जो इन बहादुर-दिलों ने अपने जुनून में डाल दिए थे। यहां तक कि, ग्रामीण महिलाएं अपने सिर पर मटका रखकर और साथ ही साथ नृत्य करते हुए अपने शरीर को संतुलित करते हुए अपने अविश्वसनीय कौशल का प्रदर्शन करती हैं। ऊंटों पर कलाबाजी भी की जाती है, जो प्रशिक्षित पेशेवरों द्वारा की जाती है। इस प्रकार, ये अद्भुत गतिविधियां राजस्थानी संस्कृति की विरासत को अपनी महिमा में ले जाती हैं। कालबेलिया नृत्य इस महोत्सव के दौरान कालबेलिया नृत्य का अपना अलग आकर्षण है। इसमें कालबेलिया महिलाओं का प्रदर्शन कुछ ऐसा है जिसे हर कोई दर्शक देखना पसंद करता है। यह राजस्थानी संस्कृति में सबसे पुराने नृत्य रूपों में से एक है। गेयर एंड फायर डांसिंग यह चौंका देने वाली गतिविधि निश्चित रूप से किसी के लिए अनुशंसित नहीं है, क्योंकि विशेषज्ञ भी किनारे पर अपना जीवन जीते हैं। स्थानीय स्टंटमैन अपने मुंह में मिट्टी का तेल डालते हैं, आग की लपटों को पकड़ते हैं। यह स्पाइन चिलिंग अनुभव हजारों आगंतुकों का ध्यान आकर्षित करता है, जो कुल मिलाकर अविश्वसनीय लगता है। यही कारण है कि जब पर्यटक अपने गोल्डन ट्राएंगल टूर पैकेज में अपना पसंदीदा टूर चुनते हैं, तो वे राजस्थान को प्राथमिकता देते हैं। ऊंट की दौड़ प्रतियोगिता यह रेगिस्तान त्योहार मरू उत्सव दौरान होने वाली सबसे प्रतीक्षित घटना है। ऊंटों को उनके सभी शानदार ऐश्वर्य में सजाया जाता है और फिर एक भयंकर दौड़ के लिए रास्ता बनाया जाता है, जो रोमांचकारी भीड़ के बीच एक सनसनी पैदा करता है। यह अविश्वसनीय अनुभव रेगिस्तान के त्योहार में सबसे अद्भुत स्थलों में से एक है, जो रेगिस्तान में एक विशाल महत्व ओड कैमल्स को भी दर्शाता है। इस प्रकार, ऊंटों को देश के इस हिस्से में उनके मूल्य का जश्न मनाने के लिए पूरे उत्साह के साथ सजाया गया है। पोलो मैच यह कार्यक्रम डेजर्ट फेस्टिवल में एक प्रमुख आकर्षण होता है। बीएसएफ (सीमा सुरक्षा बल) के जवानों से बनी दो टीमें पोलो की भीषण लड़ाई में हॉर्न बजाती हैं। लेकिन, खेल के इस संस्करण में एक बड़ा मोड़ है। घोड़ों के लिए चयन करने के बजाय, खिलाड़ी इस आश्चर्यजनक खेल को खेलने के लिए ऊंटों की पीठ पर बैठ जाते हैं। यह निश्चित रूप से सभी पर्यटकों के लिए एक आवश्यक अनुभव है। पनिहारी मटका रेस यह गतिविधि राजस्थान की संस्कृति को सबसे सुंदर तरीके से मनाती है। मिट्टी-बर्तनों में पानी ले जाना विशिष्ट विशेषताओं में से एक है, जो देश के इस हिस्से में वर्षों से प्रचलित है। इस प्रकार, उनके सभी शानदार कपड़े पहने महिलाएं इस पेचीदा प्रतियोगिता में भाग लेती हैं, जिसके लिए उन्हें अपने सिर पर पानी के बर्तन रखने और महिमा के लिए प्रतिस्पर्धा करने की आवश्यकता होती है। कई स्थानीय महिलाएं इस आकर्षक गतिविधि में भाग लेती हैं, जो रेगिस्तान त्योहार पर एक बड़ा आकर्षण है। मूंछ प्रतियोगिता यह एक विचित्र प्रतियोगिता है, जो ग्रामीण पुरुषों के बीच अविश्वसनीय रूप से लोकप्रिय है। राजस्थान में मूंछें मर्दानगी और गर्व की निशानी हैं। इस प्रकार, अपनी अद्भुत संस्कृति का जश्न मनाने के लिए, कई पुरुष सबसे बड़ी मूंछों वाले आदमी के खिताब का दावा करने के लिए अपनी मूंछों को दिमाग की लंबाई तक बढ़ाते हैं। यह विशेष अभ्यास केवल राजस्थान में ही अनुभव किया जा सकता है। यह भी पढ़ें : प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना : सिंचाई साधनों पर 100 प्रतिशत तक सब्सिडी, अभी करें आवेदन पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता पगड़ी को राजस्थानी पुरुषों के लिए प्रतिष्ठित पहचान के रूप में माना जाता है। यह समाज में उनके कद की गरिमा, गौरव और प्रतिष्ठा का प्रतीक है। इस प्रकार, पगड़ी बांधने की प्रतियोगिता रेगिस्तान के त्योहार में होने वाली बहुप्रतीक्षित घटनाओं में से एक बन जाती है। इस अद्भुत अभ्यास में अपने हाथ आजमाने वाले विदेशियों के साथ, घटना के मानक एक अद्वितीय स्तर तक बढ़ जाते हैं। लेकिन, यह हंसी के फटने को भी सुनिश्चित करता है क्योंकि विदेशी पगड़ी बांधने की कुछ उल्लासित शैलियों को अंजाम देते हैं। मारू-श्री (मिस्टरडेर्ट प्रतियोगिता) सभी स्थानीय पोशाक पहनकर इस प्रतिष्ठित खिताब को जीतने के लिए अपनी पूरी कोशिश करते हैं। सभी स्थानीय पुरुषों ने पारंपरिक रूप में धोती, पगड़ी और उभरी हुई मूंछें पहनकर मर्दाना रूप धारण किया जाता है। प्रतियोगिता के तहत सबसे आकर्षक व्यक्तित्व प्रतियोगिता जीतता है। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।
सिंचाई के साधन : बिना किसी सरकारी मदद के किसानों ने सिंचाई के लिए बना डाली डेढ़ किलोमीटर लंबी नहर
कम खर्च पर किया नहर का निर्माण, अब खेतों में लहलहा रही है फसलें आदिवासी समाज आज भी समाज की मुख्य धारा से कटे हुए है और अलग-थलग रह रहे हैं। यही कारण है कि यह समाज आज भी गरीब, अशिक्षित है। यही नहीं इन्हें सरकारी मदद भी बहुत ही कम मिल पाती है। हालांकि सरकार इसको समाज की मुख्य धारा में लाने हेतु योजनाएं संचालित कर रही है पर ये नकाफी साबित हो रहा है। इसके बावजूद इन आदिवासियों में मेहनत और लगन से काम करने का जो जज्बा है वे तारीफे काबिल है। बिना किसी सरकारी मदद और संसाधनों के ये अपने परंपरागत तरीकों को अपनाकर आज भी खेतीबाड़ी का काम कर अपना गुजर-बसर कर रहे हैं। इनके परंपरागत जुगाड़ के तरीके काफी रोचक और इंजीनियरों को आश्चर्य में डाल देने वाले है। इसका एक उदाहरण दक्षिणी राजस्थान के आदिवासी बाहुल्य क्षेत्र कोटड़ा के किसानों ने पेश किया है। सबसे पहले सरकार की सभी योजनाओ की जानकारी के लिए डाउनलोड करे, ट्रेक्टर जंक्शन मोबाइल ऍप - http://bit.ly/TJN50K1 मूलभूत सुविधाओं का अभाव, कोई सरकारी मदद नहीं, फिर भी बना डाली नहर मीडिया में प्रकाशित खबरों के आधार पर यहां के किसानों के पास न मूलभूत सुविधाओं का अभाव है। इनके पास न तो बिजली है, न मोटर और न ही कोई सरकारी सहायता मुहैया हो पा रही है। इसके बावजूद इन किसानों का जज्बा काफी प्रेरणा देने वाला है। इन किसानों ने अपने खेतों में सिंचाई के लिए पानी की कमी के चलते देशी जुगाड़ अपनाकर करीब डेढ़ किलोमीटर लंबी नहर बनाई है जिसका पानी उनके खेतों में जाता है। इस काम के लिए न तो उन्होंने सरकार से मदद ली और न ही ज्यादा खर्चा किया। बस अपने देशी जुगाड़ से इस नहर का निर्माण कर लिया। इसकी बदौलत आज भी ये आदिवासी किसान बंजर भूमि पर खेती कर रहे हैं। कैसे किया नहर का निर्माण मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार उदयपुर से 120 किमी दूर कोटडा अंचल के वीर गांव में 20 किसानों के पास करीब 40 बीघा जमीन है। कमजोर आर्थिक स्थिति के चलते ये लोग ना तो ट्यूबवेल लगवा पा रहे थे और ना बारिश के बाद दूसरी फसल उगा पा रहे थे। ऐसे में इन्होंने खेतों से डेढ़ किलोमीटर दूर बहने वाली नदी का पानी खेतों तक लाने का विचार किया। दरअसल इस गांव में नदी ऊंचाई पर है और उसके आसपास की जमीन कहीं ऊंची तो कहीं नीची है। आदिवासियों ने नदी का पानी खेतों तक पहुंचाने के लिये दो जगह ब्रिज बनाए तो दो जगह जमीन को गैंती-फावड़े से नीचे किया। उसके बाद उस नहर में प्लास्टिक बिछाया। नहर में जब तक पानी बहता है तब तक न तो प्लास्टिक खराब होता और न ही फटता है। इस तरह इन आदिवासी किसानों ने देशी जुगाड़ से डेढ़ किलोमीटर लंबी नहर का निर्माण बिना किसी सरकारी मदद के कर लिया। अब केवल हर साल प्लास्टिक बदलने का होता है खर्चा किसानों ने मीडिया को बताया कि कई बार तेज बारिश में छोटे पत्थर बह जाते हैं और प्लास्टिक फट जाती है। अब वे हर साल बारिश के बाद नहर का मुआयना कर इसमें जरूरी सुधार करते हैं और प्लास्टिक बदलते हैं। अब हर साल प्लास्टिक पर ही खर्च होता है। लेकिन इससे खेतों तक पानी आसानी से पहुंच जाता है। नहर बन जाने से उनकी समस्या का समाधान हो गया। अब ये नदी के पानी से गेहूं और सौंफ की फसल भी उगा रहे हैं। अगर आप अपनी कृषि भूमि, अन्य संपत्ति, पुराने ट्रैक्टर, कृषि उपकरण, दुधारू मवेशी व पशुधन बेचने के इच्छुक हैं और चाहते हैं कि ज्यादा से ज्यादा खरीददार आपसे संपर्क करें और आपको अपनी वस्तु का अधिकतम मूल्य मिले तो अपनी बिकाऊ वस्तु की पोस्ट ट्रैक्टर जंक्शन पर नि:शुल्क करें और ट्रैक्टर जंक्शन के खास ऑफर का जमकर फायदा उठाएं।