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मूंगफली की खेती कैसे करें : जानें मूंगफली की उन्नत खेती और लाभ

Published - 01 Apr 2022

मूंगफली की खेती : किसानों की आमदनी होगी दोगुना, जमीन की उर्वराशक्ति बढ़ेगी 

आजकल परंपरागत खेती का जमाना नहीं है। महंगाई के इस युग में किसानों को चाहिए कि वे अपनी जमीन पर आय बढ़ाने वाली फसलें पैदा करें। आज हम किसान भाइयों को मूंगफली की खेती के बारे में जानकारी दे रहे हैं। किसान भाई ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में मूंगफली की उन्नत किस्मों से लेकर इसकी बुवाई के आधुनिक तरीकों एवं अन्य विधियों की जानकारी हासिल कर सकते हैं।

मूंगफली के लिए उपयुक्त जलवायु की जरूरत 

यदि आप अपने खेत में मूंगफली की फसल उगाना चाहते हैं तो इसके लिए यह जानना जरूरी है कि आपकी जमीन की जलवायु मूंगफली की फसल के अनुकूल है या नहीं? बता दें कि मूंगफली भारत की महत्वपूर्ण तिलहनी फसल है। यह लगभग सभी राज्यों में होती है लेकिन जहां उपयुक्त जलवायु होती है वहां इसकी फसल बेहतर होती है। सूर्य की अधिक रोशनी और उच्च तापमान इसकी बढ़त के लिए अनुकूल माने जाते हैं। वहीं अच्छी पैदावार के लिए कम से कम 30 डिग्री सेल्सियस तापमान होना आवश्यक है। यूं तो इसकी खेती वर्ष भर की जा सकती है लेकिन खरीफ सीजन की बात की जाए तो जून माह के दूसरे पखवाड़े तक इसकी बुवाई की जानी चाहिए। 

मूंगफली के लिए खेत की तैयारी 

बता दें कि मूंगफली की खेत की तीन से चार बार जुताई करनी चाहिए। इसके लिए मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई सही होती है। खेत में नमी को बनाए रखने के लिए जुताई के बाद पाटा लगाना जरूरी है। इससे नमी काफी समय तक बनी रहती है। खेती की आखिरी तैयारी करने के समय 2.5 क्विंटल की प्रति हेक्टेयर की दर से जिप्सप का प्रयोग करें।  

मूंगफली की उन्नत किस्में / मूंगफली की किस्में

यदि आपको मूंगफली की अच्छी पैदावार लेनी है तो अच्छी किस्म के बीज उपयोग करें। इसके लिए आपकों बता दें कि मूंगफली की अच्छी उन्नत किस्में आर.जी. 425, 120-130, एमए10 125-130, एम-548 120-126, टीजी 37ए 120-130, जी 201 110-120 प्रमुख हैं। इनके अलावा अन्य किस्में एके 12, -24, जी जी 20, सी 501, जी जी 7, आरजी 425, आरजे 382 आदि हैं। 

Peanut Farming : बुवाई का समय

खरीफ सीजन की मूंगफली की बुवाई का सही समय जून का दूसरा पखवाड़ा होता है। वहीं रबी एवं जायद की फसलों के लिए उचित तापमान देख कर किया जा सकता है। 

बुवाई के समय रखें इन बातों का ध्यान 

मूंगफली की बुवाई के समय कई बातों का ध्यान रखना जरूरी होता है। सामान्य रूप से 15 जून से 15 जुलाई के मध्य मूंगफली की बुवाई की जा सकती है। बीज बोने से पहले 3 ग्राम थायरम या 2 ग्राम मैकोजेब दवा प्रति किलो बीज के हिसाब से लेना चाहिए। इस दवाई से बीज में लगने वाले रोगों से बचाया जा सकता है और इसके अंकुरण भी अच्छा होता है। 

खरपतवार नियंत्रण

मूंगफली की फसल में खरपतवार नियंत्रण करना बहुत जरूरी है। खरपतवार की अधिकता से फसल पर बुरा असर पड़ता है। बुवाई के करीब 3 से 6 सप्ताह के बीच कई प्रकार की घास निकलना आरंभ हो जाती है। कुछ उपायों या दवाओं के प्रयोग से आप आसानी से इस पर नियंत्रण कर सकते हैं। खरपतवार का प्रबंधन नहीं किया गया तो 30 से 40 प्रतिशत फसल खराब हो जाती है। 

बुवाई के बाद करें ये काम 

  • बुवाई के 15 दिनों बाद पहली निराई-गुड़ाई करें।
  • दूसरी निराई - गुड़ाई बुवाई के 35 दिन बाद करें। 
  • खड़ी फसल में 150-200 लीटर पानी में 250 मिलीलीटर इमेजाथापर 10 प्रतिशत एसएल मिला कर छिडक़ाव करना चाहिए। 
  • तीन दिनों के भीतर प्रति एकड़ खेत में 700 ग्राम पेंडीमिथेलीन 38.7 प्रतिशत का प्रयोग करें। 

मूंगफली की फसल में सिंचाई का तरीका

बता दें कि खरीफ सीजन की मूंगफली की फसल में सिंचाई की अक्सर कम आवश्यकता होती है। सिंचाई वर्षा पर निर्भर करती है फिर भी सिंचाई के लिए आवश्यक है कि आप आधुनिक तरीके से सिंचाई करें। इसके लिए हल्की मिट्टी की नालियां बना लें। इसमें ध्यान रहे कि बारिश का पानी एकत्र नहीं हो सके। पानी इकट्ठा होने पर फसल में कीट या रोग का प्रकोप जल्दी होता है। 

मूंगफली में लगने वाले रोग 

किसान भाइयों की जानकारी के लिए बता दें कि मूंगफली में कई प्रकार के रोगों का प्रकोप होता है। इनमें टिक्का रोग में पत्तियों पर धब्बे पड़ जाते हैं। पत्तियां पकने से पहले ही गिर जाती हैं। इसके लिए कार्बेन्डाजिम रसासन की 200 ग्राम मात्रा को प्रति 100 लीटर पानी में मिलाकर 15-15 दिनों के अंतराल पर छिडक़ाव करें। गेरुई रोग के कारण पैदावार में 14 से 30 प्रतिशत तक की कमी आ जाती है। वहीं ग्रीवा विगलन, तना गलन, पीला कवक आदि रोग होते हैं। 

फसल की कटाई कब करें? 

मूंगफली की फसल की कटाई के लिए यह ध्यान रखें कि जब पत्तियां पूरी तरह से पक जाएं और वे अपने आप गिरने लगें एवं फली सख्त हो एवं दाने का अंदरूनी रंग गहरा हो तो कटाई शुरू कर दें। कटाई में देरी से करने से बीजों को गुच्छों की किस्म में होने के कारण दायर में ही अंकुरित किया जाता है। 

लागत के बाद यह होती है बचत 

मूंगफली की खेती में लागत के बाद किसानों को करीब 40 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर के हिसाब से लाभ हो सकता है। बता दें कि सिंचित क्षेत्रों में मूंगफली की औसत पैदावार 20 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो सकती है। यदि सामान्य भाव 60 रुपये प्रति किलो रहा तो किसानों को खर्चा निकाल कर लगभग  80 हजार रुपये की बचत होती है। 

जायद फसल में कम होता है बीमारियों का प्रकोप 

यहां बता दें कि मूंगफली की फसल यदि जायद सीजन में की जाए तो इसमें कीट और अन्य रोगों का प्रकोप बहुत कम होता है। जायद फसल खरीफ और रबी के मध्य यानि गर्मियों में होती है। यह फसल झांसी, हरदोई, सीतापुर, खीरी, उन्नाव, बरेली, बदायूं, एटा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद, मुरादाबाद, सहारनपुर क्षेत्रों में होती है। गेंहूं की फसल कटने के बाद मूंगफली की जायद फसल की बुवाई की जा सकती है। इसके अलावा इसे आलू, सरसों और अन्य कई रबी फसलों की कटाई के बाद इन फसलों वाले खेतों को तैयार कर उगाया जा सकता है। 

मूंगफली स्वास्थ्य के लिए गुणकारी 

बता दें कि मूंगफली को गरीबों का बादाम कहा जाता है। इसके खाने से कई तरह की बीमारियों को दूर किया जा सकता है। मूंगफली खाने से जुकाम में लाभ मिलता है वहीं ब्लड शुगर भी संतुलित रहता है। इसके अलावा वजन कम करने में में लाभदायक है। वहीं मूंगफली महिलाओं  को पेट के कैंसर को भी मूंगफली नियंत्रित करती है। 

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