Published - 03 Sep 2020 by Tractor Junction
इस साल खरीफ की फसल की बुवाई अधिक क्षेत्र में होने से इसके अच्छे उत्पादन की उम्मीद की जा रही है लेकिन बारिश के मौसम में फसलों पर खरपतवार की समस्या अधिक रहती है जिससे फसलों की उपज में 10 से लेकर 85 प्रतिशत तक उत्पादन घट जाता है। साथ ही फसल की गुणवत्ता में भी कमी आ जाती है। खपतवार की अधिकता फसल को नुकसान पहुंचाती है।
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इसके अलावा ये फसलों को हानि पहुंचाने वाले कीटों को भी अपनी शरण मेें ले लेते हैं जिससे वह पनप कर फसल को हानि पहुंचाते हैं। इस तरह किसान द्वारा उन्नत बीज का प्रयोग करने, अच्छी खाद डालने के बावजूद उसे अच्छा उत्पादन नहीं मिल पाता है। इससे किसान को आर्थिक हानि उठानी पड़ती है। इसलिए फसलों को खरपतवार से बचाना बेहद जरूरी है।
इनमें से सबसे ज्यादा खतरनाक खरपतवार गाजर घास है। यह घास मुख्यत: खुले स्थानों, औद्योगिक क्षेत्रों, सडक़ों के किनारे, नहरों के किनारे व जंगलों में बहुतायात में पाया जाता हैं। अब इसने अपने पांव खेत खलिहानों में भी पसारना शुरू कर दिया है। विश्व में गाजर घास भारत के अलावा अमेरिका, मैक्सिको, वेस्टइंडीज, नेपाल, चीन, वियतनाम तथा ऑस्ट्रेलिया के विभिन्न भागों में भी फैला हुआ है। इसके अलावा कई और खरपतवार है जो पौधों को हानि पहुंचाते हैं।
खरपतवार एक ऐसा अवांछित पौधा है जो बिना बोए ही खेतों तथा अन्य स्थानों पर कर तेजी से बढ़ता है और अपने समीप के पौधों की वृद्धि को दबाकर उपज को घटा देता है जिससे फसलों की गुणवत्ता गिर जाती है। संक्षेप हम इसे ऐसे भी समझ सकते हैं कि जब फसल के साथ ही कई बार अनावश्यक पौधे उग जाते है उन्हें खरपतवार कहा जाता है। ये फसल को हानि पहुंचाते हैं।
गाजर घास बहुत ही खतरनाक खरपतवार हैं। इसका वैज्ञानिक नाम पारथेनियम हिस्ट्रोफोरस है, इसको कई अन्य नामों से भी जाना जाता हैं जैसे कांग्रेस घास, सफेद टोपी, छंतक चांदनी आदि। यह खरपतवार एस्टेरेसी (कम्पोजिटी) कुल का पौधा हैं। भारत में सर्वप्रथम यह घास 1955 में पूना (महाराष्ट्र) में देखी गई थी। आज ये घातक खरपतवार पूरे भारत वर्ष में लाखों हेक्टेयर भूमि पर फैल चुका हैं।
धान की फसल में लगने वाले मुख्य खरपतवार खरपतवार विभिन्न प्रकार के होते है, परन्तु सकरी एवं चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार बहुतायत में खरीफ में उगते है। जैसे सकरी पत्ती वाले खरपतवार धान के खेतों में जंगली सांवा, सवई घास, जंगली कोदो, दूब घास आदि घास वर्गीय प्रमुख खरपतवार है तथा कनकौवा, कांटेदार चौलाई, पत्थरचट्टा, भंगरैया, महकुआ, मिर्च बूटी, फूल बूटी, पान पत्ती, बोन झलोकिया, बमभोली, घारिला, दादमारी, साथिया, कुसल आदि चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार है।
धान की सीधी बुवाई वाले खेतों में 15 व 45 दिन बाद रोपा धान में 20 व 40 दिन बाद खेतों को खरपतवार रहित रखना चाहिए। खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करें धान के फसलों में खरपतवारों के नियंत्रण तथा बुआई या रोपाई के बाद खरपतवारों की समस्या होने पर बिसपायरी बैक सोडियम 250 मिली प्रति हेक्टेयर ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से तथा मेटसल्फु यत्ररान 20 ग्राम प्रति हेक्टेयर मिलाकर धान की फसल पर कट नोजल से छिडक़ाव करें। चौड़ी पत्ती वाले खरपतवारों के नियंत्रण हेतु मेटसल्फ्यूरान मिथाइल 20 प्रतिशत डब्लू.पी. 20 ग्राम या इथाक्सी सल्फ्यूरान 15 प्रतिशत डब्लू.डी.जी. 100 ग्राम रसायनों में से किसी एक रसायन की संस्तुत मात्रा को प्रति हेक्टेयर करीब 500 लीटर पानी में घोलकर फ्लैट फैन नॉजिल से बुवाई के 25 - 30 दिन बाद छिडक़ाव करना चाहिए। यह भी सलाह दी जाती है कि एक ही खरपतवार नाशक का प्रयोग बार-बार न करें।
खरीफ के दलहनी एवं तिलहनी फसलों में महकुंआ, हजारदाना, दूधी, सांवा, कनकौवा, सफेद मुर्ग तथा मोथा विशेष रूप से फसलों को प्रभावित करते है।
दलहनी फसलों में 15 व 20 दिन तथा तिलही फसलों में बुआई के 30 व 45 दिन में फसलों की महत्वपूर्ण क्रांतिक अवस्था में खेतों को खरपतवार रहित रखना चाहिए। इन खरपतवारों की रोकथाम के लिए बुआई के पूर्व ही यांत्रिक विधियों से नियंत्रण कार्य किया जाना चाहिए, परन्तु खरपतवारों की अधिकता होने पर रासायनिक खरपतवार नाशी का उपयोग विशेषज्ञों की सलाह के अनुसार किया जा सकता है। दलहनी एवं तिलहनी फसलों में किसान इन खरपतवारनाशी दवाओं का प्रयोग करें। खरपतवारों के 30 से 70 प्रतिशत तक कमी आ सकती है।
खरपतवारों की वृद्धि को नष्ट करने के लिये बुआई के 30 और 45 दिन बाद गुड़ाई करें। अरहर, मूंग, उड़द फसलों में बुआई के 20 से 25 दिन बाद खरपतवारों की समस्या बढऩे पर इमेजाथाइपर-इमेजा माक्स 100 ग्राम प्रति हेक्टेयर 450 लीटर पानी प्रति हेक्टेयर की दर से या इमेजाथाइपर 750 मिली 450 लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करना चाहिए।
सोयाबीन की फसल में उगने वाले खरपतवारों को मुख्यत : तीन श्रेणी में विभाजित किया जा सकता है जो इस प्रकार हैं-
चौड़ी पत्ती वाले खरपतवार : इस प्रकार के खरपतवारों की पत्तियां प्राय : चौड़ी होती हैं तथा यह मुख्यत: दो बीजपत्रीय पौधे होते हैं जैसे महकुंआ (अजेरेटम कोनीजाइडस), जंगली चौलाई (अमरेन्थस बिरिडिस), सफेद मुर्ग (सिलोसिया अजरेन्सिया), जंगली जूट (कोरकोरस एकुटैंन्गुलस), बन मकोय (फाइ जेलिस मिनिगा), ह्जारदाना (फाइलेन्थस निरुरी) तथा कालादाना (आइपोमिया स्पीसीज) इत्यादि।
सकरी पत्ती वाले खरपतवार : घास कुल के खरपतवारों की पत्तियां पतली एवं लंबी होती हैं तथा इन पत्तियों के अंदर समांतर धारियां पाई जाती हैं। यह एक बीज पत्री पौधे होते हैं जैसे सांवक (इकाईनोक्लोआ कोलोना) तथा कोदों (इल्यूसिन इंडिका) इत्यादि।
मोथा परिवार के खरपतवार : इस परिवार के खरपतवारों की पत्तियां लंबी तथा तना तीन किनारे वाला ठोस होता है। जड़ों में गांठे (ट्यूबर) पाए जाते हैं जो भोजन इकटठा करके नए पौधों को जन्म देने में सहायक होते हैं जैसे मोथा (साइपेरस रोटन्ड्स, साइपेरस) इत्यादि।
सोयाबीन के खेत के मेड़ों में पाए जाने वाले सभी प्रकार के खरपतवारों को नष्ट करना चाहिए क्योंकि ये खरपतवार कीट पतंगों को आश्रय देने का कार्य करता है। इन्हें नष्ट करने के लिए ग्लाफोसेट का छिडक़ाव किया जा सकता है। वहीं जिन किसानों के खेत में सोयाबीन में पुष्पन की क्रिया हो गई है, वे किसान फल अधिकता एवं पुष्पन की गुणवत्ता बढ़ाने हेतु क्लोरमेट क्लोराइड का 500 मिली प्रति हेक्टेयर की दर से छिडक़ाव करें। किसान एक ही खरपतवार नाशक का प्रयोग बार-बार नहीं करें।
विशेष - यदि आप खरपतवार नियंत्रण के संबंध में और अधिक जानकारी चाहते हैं तो अपने क्षेत्र के कृषि विस्तार अधिकारियों से संपर्क कर सकते हैं।
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