Published - 13 Jul 2021 by Tractor Junction
बिहार सरकार की ओर से गन्ना किसानों के हित में अहम फैसला लिया गया है। अब गन्ना किसानों को भी कृषि इनपुट अनुदान का लाभ दिया जाएगा। इससे गन्ना किसानों के नुकसान की भरपाई हो सकेगी। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार गन्ने की फसल को प्राकृतिक आपदा जैसे बाढ़, तूफान ओलावृष्टि से हुए नुकसान का कृषि विभाग की ओर से फसल क्षति का आकलन किया जाएगा। इसके बाद गन्ना किसानों के नुकसान की भरपाई सरकार करेगी। बता दें कि बिहार में गन्ना की खेती गन्ना उद्योग विभाग द्वारा नियंत्रित होती रही है। इसलिए बाढ़ आने पर कृषि विभाग फसलों की होने वाली क्षति का आकलन तो अब तक करता रहा है, लेकिन इससे गन्ने की फसल को होने वाले नुकसान का आकलन नहीं हो पा रहा था। लेकिन सरकार के द्वारा लिए गए फैसले के बाद अब अन्य फसलों के साथ-साथ गन्ने की फसल की क्षति का भी आकलन भी किया जा सकेगा। लिहाजा सरकार के इस फैसले से तीन लाख हेक्टेयर में गन्ना की खेती करने वाले लाखों किसानों को बड़ी राहत मिलने की उम्मीद जताई जा रही है। गन्ना किसानों के हित में कृषि सचिव द्वारा यह आदेश गुरुवार को जारी कर दिया गया है।
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कृषि विभाग के सचिव द्वारा जारी आदेश में यह बताया गया है कि बाढ़, सुखाड़, असमय अधिक बारिश और दूसरी तरह की प्राकृतिक आपदाओं में फसल क्षति का आकलन जब-जब किया जाए तब तब गन्ना फसल को हुए नुकसान का आकलन अलग से जरूर किया जाए। कृषि सचिव की ओर से यह निर्देश सभी कृषि पदाधिकारियों को भेजा गया है। सरकार के इस फैसले से गन्ना उत्पादक किसानों को नियमानुसार कृषि इनपुट अनुदान पर लाभ मिल सकेगा।
कृषि सचिव की मानें तो अनाज और फसलों के साथ-साथ राज्य में गन्ना भी प्रमुख नकदी फसल के रूप में जानी जाती है। बिहार में करीब ढाई से 3 लाख हेक्टेयर में लाखों किसान गन्ना की खेती करते हैं। गन्ना की सर्वाधिक खेती पूर्वी चंपारण, पश्चिमी चंपारण, गोपालगंज, सीतामढ़ी और मुजफ्फरपुर जिले में की जाती रही है।
इस समय अधिकांश भारतीय राज्यों में गन्ना की खेती की जाती है। उत्तर प्रदेश, देश में सबसे अधिक क्षेत्रफल, देश में गन्ना क्षेत्रफल के लगभग 50 प्रतिशत रखता है। उसके बाद महाराष्ट्र, कर्नाटक, तमिलनाडु, आन्ध्र प्रदेश, गुजरात, बिहार, हरियाणा एवं पंजाब हैं। ये नौ राज्य सर्वाधिक महत्वपूर्ण गन्ना उत्पादक राज्य हैं। उत्तर प्रदेश में गन्ना उत्पादन सबसे अधिक है, उसके बाद महाराष्ट्र का स्थान है। उत्पादकता की दृष्टि से तमिलनाडु 100 टन से अधिक प्रति हैक्टेयर के साथ प्रथम स्थान पर है। उसके बाद कर्नाटक एवं महाराष्ट्र का स्थान है। बिहार प्रमुख गन्ना उत्पादक राज्यों के बीच निम्नतम उत्पादकता रखता है।
चीनी उद्योग कृषि आधारित एक महत्व पूर्ण उद्योग है जो लगभग 50 मिलियन गन्ना किसानों की ग्रामीण जीविका प्रभावित करता है और चीनी मिलों में लगभग 5 लाख कामगार परोक्ष रूप से नियोजित हैं। परिवहन, मशीनों के व्यापार और कृषि आदानों की आपूर्ति से संबंधित विभिन्न आनुषांगिक गतिविधियों में भी रोजगार सृजित होता है। ब्राजील के बाद विश्व में भारत दूसरे नंबर का सबसे बढ़ा चीनी उत्पादक देश है और सबसे बड़ा उपभोक्ता भी है। आज भारतीय चीनी उद्योग का वार्षिक उत्पादन लगभग 80,000 करोड़ रुपए कीमत का है।
देश में 31.01.2018 की स्थिति के अनुसार 735 स्थापित चीनी कारखाने हैं जिनकी लगभग 340 लाख टन चीनी का उत्पादन करने के लिए पर्याप्त पेराई क्षमता है। यह क्षमता मोटे तौर पर प्राइवेट क्षेत्र की यूनिटों और सहकारी क्षेत्र की यूनिटों के बीच समान रूप से विभाजित है। चीनी मिलों की क्षमता कुल मिलाकर 2500 टीसीडी-5000 टीसीडी की रेंज में है, लेकिन यह लगातार बढ़ रही है और 10,000 टीसीडी से अधिक भी हो रही है। गुजरात और पश्चिम बंगाल के तटीय क्षेत्र में देश में 2 मात्र रिफाइनरियां भी स्थापित की गई हैं जो मुख्य रूप से आयातित रॉ चीनी और स्वंदेशी रूप से उत्पादित रॉ चीनी से परिष्कृत चीनी का उत्पादन करती हैं।
गन्ना किसान इस समय दो समस्याओं से जूझ रहे हैं। एक तरफ उन्हें गन्ने का भुगतान नहीं मिल रहा है। मिल रहा है तो वह भी देरी से। वहीं भूजल स्तर में लगातार गिरावट आ रही है। इससे उत्पादन का खर्च भी बढ़ रहा है। किसानों को समय से भुगतान न मिलने का मुख्य कारण यह है कि गन्ने का दाम सरकार द्वारा निर्धारित किया जाता है जबकि चीनी मिलों को चीनी बाजार भाव पर बेचनी पड़ती है। वर्तमान में बाजार भाव पर गन्ने का यह ऊंचा दाम अदा नहीं किया जा सकता है। इधर गन्ने का ऊंचा दाम होने से किसानों को अधिक लाभ मिल रहा है। इसीलिए किसान गन्ने का उत्पादन बढ़ा रहे हैं जबकि चीनी मिलें उससे उत्पादित चीनी को बेचने में असमर्थ हैं। चीनी मिलों को घाटा हो रहा है।
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