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दिसंबर माह में करें इन फसलों की खेती, होगा भरपूर मुनाफा

Published - 25 Nov 2020

दिसंबर माह में बोई जाने वाली फसलें, जानें, कौनसी हैं वे फसलें जो दे सकती है भरपूर कमाई

हर फसल की बुवाई का अपना समय होता है। यदि उचित समय पर फसलों की बुवाई की जाएं तो अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। इसलिए हमें इस बात की जानकारी होना बेहद जरूरी है कि किस माह कौनसी खेती करें ताकि भरपूर उत्पादन के साथ ही अच्छा मुनाफा कमाया जा सके। वैसे तो आजकल अधिकतर सब्जियों की खेती बारहों माह होने लगी है। पर बेमौसमी फसल लेने से उत्पादन में कमी तो आती ही साथ ही फसल की गुणवत्ता भी कम होती है जिससे उसके बाजार में अच्छे भाव नहीं मिल पाते जबकि सही समय पर फसल लेने से बेहतर उत्पादन के साथ भरपूर कमाई की जा सकती है। तो आइए जानते हैं दिसंबर माह में कौन-कौनसी फसल की खेती करें ताकि भरपूर कमाई हो सके।

 

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टमाटर की खेती

दिसंबर माह में टमाटर की खेती की जा सकती है। इसके लिए इसकी उन्नत किस्मों का चयन किया जाना चाहिए। इसकी उन्नत किस्मों में अर्का विकास, सर्वोदय, सिलेक्शन -4, 5-18 स्मिथ, समय किंग, टमाटर 108, अंकुश, विकरंक, विपुलन, विशाल, अदिति, अजय, अमर, करीना, अजित, जयश्री, रीटा, बी.एस.एस. 103, 39 आदि प्रमुख रूप से शामिल हैं।

ऐसे करें नर्सरी तैयार : टमाटर की नर्सरी में दो तरह की क्यारियां बनाई जाती हैं। पहली उपर उठी हुई क्यारियां तथा दूसरी समतल क्यारियां। गर्मी के मौसम पौधे तैयार करने हेतु समतल क्यारियां बनाते हैं, और अन्य मौसम जैसे वर्षा एवं ठंड के लिए उपर उठी हुई क्यारियां बननी चाहिए। ओपन पोलिनेटेड किस्मों में 400 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर एवं संकर जातियों में 150 ग्राम बीज प्रति हेक्टेयर की दर से आवश्यकता होती है।

रोपाई की विधि : टमाटर के पौधे 25-30 दिन में अक्सर रोपाई योग्य हो जाते है, यदि तापमान में कमी हो तो बोवाई के बाद 5-6 सप्ताह भी लग जाते हैं। लाइन से लाइन की दूरी 60 से. मी. एवं पौधे से पौधे की दूरी 45 से. मी. रहे। पौधों के पास की मिट्टी अच्छी तरह उंगलियों से दबा दें एवं रोपाई के तुरंत बाद पौधों को पानी देना ने भूलें। शाम के समय ही रोपाई करें, ताकि पौधों को तेज धूप से शुरू की अवस्था में बचाया जा सके।

 


मूली की खेती

मूली की फसल के लिए ठंडी जलवायु अच्छी रहती है। मूली का अच्छा उत्पादन लेने के लिए जीवांशयुक्त दोमट या बलुई दोमट मिट्टी अच्छी होती है। इसकी उन्नत किस्में जापानी सफ़ेद, पूसा देशी, पूसा चेतकी, अर्का निशांत, जौनपुरी, बॉम्बे रेड, पूसा रेशमी, पंजाब अगेती, पंजाब सफ़ेद, आई.एच. आर1-1 एवं कल्याणपुर सफ़ेद है। शीतोषण प्रदेशो के लिए रैपिड रेड, ह्वाइट टिप्स, स्कारलेट ग्लोब तथा पूसा हिमानी अच्छी प्रजातियां है।

बुवाई का तरीका : मूली की बुवाई मेड़ों तथा समतल क्यारियों में भी की जाती है। लाइन से लाइन या मेड़ों से मेंड़ों की दूरी 45 से 50 सेंटीमीटर तथा उचाई 20 से 25 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। वहीं पौधे से पौधे की दूरी 5 से 8 सेंटीमीटर होनी चाहिए। मूली की बुवाई के लिए मूली का बीज 10 से 12 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। मूली के बीज का शोधन 2.5 ग्राम थीरम से एक किलोग्राम बीज की दर से उप शोधित करना चाहिए या फिर 5 लीटर गौमूत्र प्रतिकिलो बीज के हिसाब से बीजोपचार के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है। इसके बाद उपचारित बीज को 3 से 4 सेंटीमीटर की गहराई पर बोना चाहिए।


पालक की खेती

पालक को ठंडे मौसम की जरूरत होती पालक की बुवाई करते समय वातावरण का विशेष ध्यान देना चाहिए। उपयुक्त वातावरण में पालक की बुवाई वर्ष भर की जा सकती है। पालक की उन्नत किस्मों में प्रमुख रूप से पंजाब ग्रीन व पंजाब सलेक्शन अधिक पैदावार देने वाली किस्में मानी जाती हैं। इसके अलावा पालक की अन्य उन्नत किस्मों में पूजा ज्योति, पूसा पालक, पूसा हरित, पूसा भारती आदि शामिल हैं।

बुवाई का तरीका : अधिकतर पालक सीधे खेत में बोया जाता है। किसान सीधे जमीन पर पंक्तियों में पालक के बीज (ज्यादातर संकर) लगा सकते हैं या उन्हें खेत में फैला सकते हैं। पौधों को बढऩे के लिए बीच में पर्याप्त जगह की आवश्यकता होती है। सीधे बीज बोने पर, हम 1-1,18 इंच (2,5-3 सेमी) की गहराई में पंक्तियों में बीज लगाते हैं। निरंतर उत्पादन के लिए, हम हर 10-15 दिनों में बीज बो सकते हैं।


पत्ता गोभी की खेती

इसे हर तरह की भूमि पर उगाया जा सकता है पर अच्छे जल निकास वाली हल्की भूमि इसके लिए सबसे अच्छी हैं मिट्टी की पी एच 5.5-6.5 होनी चाहिए। यह अत्याधिक अम्लीय मिट्टी में वृद्धि नहीं कर सकती। किसकी उन्नत किस्मों में गोल्डन एकर, पूसा मुक्त, पूसा ड्रमहेड, के-वी, प्राइड ऑफ इंडिया, कोपन हगें, गंगा, पूसा सिंथेटिक, श्रीगणेश गोल, हरयाणा, कावेरी, बजरंग आदि हैं। इन किस्मों की औसतन पैदावार 75-80 क्विंटल प्रति एकड़ होती है।

बुवाई का तरीका : इसकी बीजों की बुवाई 1-2 सेंटीमीटर की गहराई पर करनी चाहिए। जल्दी बोई जाने वाली फसल में फासला 45&45 सेंटीमीटर और देर से बोई जाने वाली फसल के लिए 60&45 सेंटीमीटर होना चाहिए। एक एकड़ में बुवाइ के लिए इसके 200-250 ग्राम बीज की मात्रा पर्याप्त होती है। बीजों को बुवाई से पहले उपचारित कर लेना चाहिए। इसके लिए पहले बीज को गर्म पानी में 50 डिग्री सेल्सियस 30 मिनट के लिए या स्ट्रैपटोसाइकलिन 0.01 ग्राम प्रति लीटर में दो घंटों के लिए भिगो दें । बीज उपचार के बाद उन्हें छांव में सुखाएं और बैडों पर बीज दें। रबी की फसल में गलने की बीमारी बहुत पाई जाती है और इससे बचाव के लिए बीज को मरकरी कलोराईड के साथ उपचार करें। इसके लिए बीज को मरकरी कलोराइड 1 ग्राम प्रति लीटर घोल में 30 मिनट के लिए डालें और छांव में सुखाएं। रेतली जमीनों में बोई फसल पर तने का गलना बहुत पाया जाता है। इसको रोकने के लिए बीज को कार्बेनडाजिम 50 प्रतिशत डब्लयू पी 3 ग्राम से प्रति किलो बीज का उपचार करें। इसकी बिजाई दो तरीके से की जा सकती है। पहली गड्ढा खोदकर व दूसरा खेत में रोपाई करके। नर्सरी में सबसे पहले बिजाई करें और खादों का प्रयोग आवश्यकता के अनुसार करें। बिजाई के 25-30 दिनों के बाद नए पौधे रोपाई के लिए तैयार हो जाते हैं। खेत में पौध की रोपाई के लिए 3-4 सप्ताह पुराने पौधों का प्रयोग करें।


बैंगन की खेती

बैंगन की खेती के लिए जैविक पदार्थों से भरपूर दोमट एवं बलुआही दोमट मिट्टी बैंगन के लिए उपयुक्त होती है। इसकी उन्नत किस्मों में पूसा पर्पल लौंग, पूसा पर्पल राउंड, पूसा पर्पल क्लस्टर, पूजा क्रांति, पूसा अनमोल, मुक्तकेशी अन्नामलाई, बनारस जैट आदि है।

बुवाई का तरीका : बैंगन लगाने के लिए बीज को पौध-शाला में छोटी-छोटी क्यारियों में बोकर बिचड़ा तैयार करते हैं। जब ये बिचड़े चार- पांच सप्ताह के हो जाते हैं तो उन्हें तैयार किए गए उर्वर खेतों में लगाते हैं। इसकी बुवाई के लिए प्रति हेक्टेयर 500-700 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसकी बुवाई करते समय लंबे लम्बे फलवाली किस्मों में कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे की दूरी 45 सेंटीमीटर तथा गोल फलवाली किस्में कतार से कतार की दूरी 75 सेंटीमीटर व पौधे से पौधे के बीच 60 सेंटीमीटर की दूरी रखी जानी चाहिए।


सलाद की खेती

सलाद एक मुख्य विदेशी फसल है। दूसरी सब्जियों की तरह यह भी पूरे भारत में पैदा की जाती है। इस की कच्ची पत्तियों को गाजर, मूली, चुकंदर व प्याज की तरह सलाद और सब्जी के तौर पर प्रयोग में लाया जाता है। इस फसल को ज्यादातर व्यावसायिक रूप से पैदा करते हैं और फसल की कच्ची व बड़ी पत्तियों को बड़े-बड़े होटलों और घरों में मुख्य सलाद के रूप में इस्तेमाल करते है। इसकी खेती के लिए 12 -15 डिग्री सेंटीगे्रड तापमान उपयुक्त होता है। सलाद की फसल के लिए हल्की बलुई दोमट व मटियार दोमट भूमि उपयुक्त होती है। भूमि में पानी रोकने की क्षमता होनी चाहिए ताकि नमी लगातार बनी रहे। पी.एच. मान 5.8-6.5 के बीच की भूमि में अच्छा उत्पादन होता है। इसकी उन्नत किस्मों में ग्रेट लेकस, चाइनेज यलो तथा स्लोवाल्ट मुख्य जातियां हैं।

बुवाई का तरीका : सलाद की बुवाई के पहले पौधशाला में पौध तैयार करते है। इसकी बुवाई के लिए 500-600 ग्राम प्रति हेक्टर पर्याप्त होता है। बीज को पौधशाला में क्यारियां बनाकर पौध तैयार करना चाहिए। जब पौध 5-6 सप्ताह की हो जाए तब उसे खेत में रोपा जाना चाहिए। पौधों की रोपाई करते लगाते समय कतारों की दूरी 30 सेमीमीटर तथा पौधे से पौधे की 25 सेमीमीटर रखनी चाहिए।


प्याज की खेती

प्याज रबी और खरीफ दोनों की मौसम में होता है। प्याज की बुवाई आमतौर पर नवंबर के अंतिम सप्ताह में की जाती है लेकिन किसान इसकी बुवाई दिसंबर तक कर सकते हैं। रबी के प्याज के लिए अच्छी किस्मों का चयन करना होगा। इसकी उन्नत किस्मों में प्रमुख रूप से आर.ओ.-1, आर.ओ.59, आर.ओ. 252 और आर.ओ. 282 व एग्रीफाउंड लाइट रेड है।

बुवाई का तरीका : प्याज की बुवाई नर्सरी में की जाती है। एक हैक्टेयर खेत के लिए पौध तैयार करने के लिए 1000 से 1200 वर्ग मीटर में बुवाई की जानी चाहिए। एक हैक्टेयर खेत के लिए 8 से 10 किलो बीज की जरूरत होती है। अनुमानत- एक वर्ग मीटर में 10 ग्राम बीज डालना चाहिए। बुवाई के बीजों को कतार में डालना चाहिए। इसमें कतार से कतार की दूरी 4 से 5 सेमी और बीज से बीज की दूरी दो तीन सेमी गहराई दो से ढाई सेमी होनी चाहिए। इसे मिट्टी से ढका जा सकता है। बुवाई के तत्काल बाद में या एक-दो दिन बाद फव्वारा से ड्रिप से सिंचाई की जा सकती है। बुवाई वाले स्थान को नेट की जाली या घास फूस डालकर ढक दें, जिससे पक्षी इन बीजों को खा सकें। अंकुरण के बाद पौध के सीधा खड़ा होने पर नेट हटा दें। बुवाई वाले स्थान पर सड़े हुए गोबर की खाद को ट्राइको डर्मा और एजेटोबेक्टर के 200 ग्राम के एक-एक पैकेट मिलाकर बुवाई वाले स्थान पर डाल दें। इससे फफूंद नहीं होगी और बढ़वार भी ठीक होगी। अच्छी बढ़वार के लिए केल्शियम, अमोनिया नाइट्रेट 25 ग्राम प्रति वर्गमीटर की दर से भुरकाव किया जा सकता है। नर्सरी में इसकी पौध 7 या 8 सप्ताह में तैयार हो जाती है। बुवाई से पहले बीजों को 2 ग्राम थाइरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लें।

ऐसे करें रोपाई : नर्सरी में पौध तैयार होने के बाद 20 से 25 दिसंबर के दौरान पौध की रोपाई शुरू कर देनी चाहिए और यह काम 15 जनवरी से पहले पूरा हो जाना चाहिए। नर्सरी के पौध के उखाडऩे से पहले हल्की सिंचाई करनी चाहिए, ताकि पौधों को आसानी से उखाड़ा जा सके। उखाडऩे के बाद पौधे की एक तिहाई पत्तियों को काट लेना चाहिए। साथ ही गुलाबी जड़ सडऩ रोग से बचाने के लिए पौधों को बावस्टीन या कार्बनडेजिम एक ग्राम एक लीटर की दर से टब में भरकर रखे और उसमें पौधों को डुबो कर रोपते जाएं। रोपाई कतार में करनी चाहिए और एक कतार से दूसरी के बीच में 15 सेमी और पौधे से पौधे की दूरी 10 सेमी होनी चाहिए। 

सरसों की खेती

सरसों की फसल के लिए दोमट भूमि सर्वोतम होती है, जिसमें की जल निकास उचित प्रबन्ध होना चाहिए। राई या सरसों के लिए बोई जाने वाली उन्नतशील प्रजातियां जैसे क्रांति, माया, वरुणा, इसे हम टी-59 भी कहते हैं, पूसा बोल्ड उर्वशी, तथा नरेन्द्र राई प्रजातियां की बुवाई सिंचित दशा में की जाती है तथा असिंचित दशा में बोई जाने वाली सरसों की प्रजातियां जैसे की वरुणा, वैभव तथा वरदान, इत्यादि प्रजातियों की बुवाई करनी चाहिए।

बुवाई का तरीका : सिंचित क्षेत्रों में सरसों की फसल की बुवाई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज प्रति हैक्टर के दर से प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से बीजों को 2 से 5 ग्राम थीरम प्रति किलोग्राम बीज की दर से उपचारित कर लेना चाहिए और इसके बाद देशी हल के पीछे 5-6 सेंटीमीटर गहरे कूडों में 45 सेंटीमीटर की दूरी पर इसकी बुवाई करनी चाहिए।

 

 

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