Published - 25 May 2021 by Tractor Junction
भारत में 2020 से जारी महामारी दौर थमने का नाम नहीं ले रहा है। कोरोना के बाद ब्लैक फंगस और अब एक ओर नई बीमारी व्हाइट फंगस के रूप में सामने आई है। इसने डॉक्टरों की मुसीबत बढ़ा दी है। अभी देश में कोरोना के मामलों में भले ही कमी आई हो लेकिन ब्लैक फंगस के मामले बढऩे लगे हैं और अब व्हाइट फंगस के मामले भी देखने में आ रहे हैं। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार पूरे देश में महामारी की तरह फैल रहे ब्लैग फंगस के बाद अब व्हाइट यानी सफेद फंगस ने लोगों की चिंता बढ़ा दी है। सोशल मीडिया पर इससे जुड़ी कई डरावनी खबरें फैल रही हैं। इससे लोगों में इस बीमारी को लेकर काफी दहशत होने लगी है। इन सब के बीच ये जानना जरूरी हो जाता है कि आखिर ये व्हाइट फंगस बीमारी है क्या और ये कैसे फैलती है और इसकी बचाव के लिए हम क्या सावधानियां बरत सकते हैं। आज हम इसी विषय को लेकर आए हैं ताकि आप इस बीमारी से सचेत रहे और सावधानी बरते ताकि इससे बचा जा सके।
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व्हाइट फंगस बीमारी म्यूकॉरमाइसाइट्स नामक फफूंद से होती है जो नाक के माध्यम से बाकी अंग में पहुंचती है। ये फंगस हवा में होता है जो सांस के जरिए नाक में जाता है। इसके अलावा शरीर के कटे हुए अंग के संपर्क में अगर ये फंगस आता है तो ये संक्रमण हो जाता है। डॉक्टरों के अनुसार ये संक्रमण जो खून के माध्यम से शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के आधार पर विशेषज्ञों के मुताबिक ये नया संक्रमण ब्लैक फंगस से भी ज्यादा खतरनाक है क्योंकि ये केवल एक अंग नहीं, बल्कि फेफड़ों और ब्रेन से लेकर हर अंग पर असर डालता है। चिकित्सकीय भाषा में इसे कैंडिडा कहते हैं, जो रक्त के जरिए होते हुए शरीर के हर अंग को प्रभावित करता है। ये नाखून, स्किन, पेट, किडनी, ब्रेन, प्राइवेट पार्ट और मुंह के साथ फेफड़ों को संक्रमित कर सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार व्हाइट फंगस (एस्परगिलोसिस) ब्लैग फंगस जितना खतरनाक नहीं है। ब्लैक फंगस का हमला जहां शरीर के आंतरिक हिस्सों पर है वहीं व्हाइट फंगस शरीर के बाहरी भाग पर होता है। इस संक्रमण का घर रहते इलाज किया जा सकता है। ऐसे बहुत कम मामले हैं जिसमें अस्पताल जाने की जरूरत पड़ी है। ब्लैक फंगस में सर्जरी आदि की जरूरत पड़ती है जबकि व्हाइट फंगस डॉक्टर की सलाह मात्र से दवाएं आदि लेकर ठीक की जा सकती है। व्हाइट फंगस से मृत्यु का खतरा बहुत कम है जबकि ब्लैक फंगल के मामले में 20 से 80 प्रतिशत मृत्युदर दर्ज की गई है। यह तेजी से नहीं फैलता इसलिए इसका इलाज किया जा सकता है।
डॉक्टरों के अनुसार कोरोना संक्रमण से ठीक हो चुके मरीज जो लंबे समय तक ऑक्सीजन सपोर्ट पर रहे उनमें ये व्हाइट फंगस मिला है। हालांकि ये पहले भी कैंसर, एसचआईवी मरीजों में देखा गया है। इसके अलावा ये संक्रमण कमजोर इम्युनिटी वाले लोगों में होता है, विशेष रूप से मधुमेह, एचआईवी पेसेन्ट या स्टेरॉयड का प्रयोग करने वाले लोगों में इसका संक्रमण देखने को मिला है। इसके अलावा बच्चों को इससे जल्दी संक्रमित होने का खतरा है। यह बच्चों में दूध की निप्पल और डायपर के गीलेपन की वजह से ज्यादा होता है। इसके अलावा यह आइसोलेशन के कारण उन बुजुर्ग लोगों में भी देखा गया है जो साफ सफाई का ख्याल नहीं रखते और समय पर कपड़े आदि नहीं बदलते। डायबिटीज और कैंसर के मरीजों को भी यह जल्दी अपनी गिरफ्त में लेता है।
मीडिया से मिली जानकारी के आधार पर पिछले दिनों हिसार में व्हाइट फंगस के दो केस मिले हैं। जिला नागरिक अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में उपचाराधीन शुगर पीडि़त दोनों महिलाएं कोरोना संक्रमित हैं। वहीं रोहतक पीजीआई में भी करीब 10 मरीजों का उपचार चल रहा है। बता दें कि व्हाइट फंगस का पता लगाने के लिए भी ब्लैक फंगस की तरह केओएच यानी फंगल कल्चर टेस्ट किया जाता है। वहीं पटना मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल यानी पीएमसीएच में माइक्रोबायोलॉजी विभाग के हेड डॉ. एसएन सिंह के मुताबिक अब तक ऐसे चार मरीज मिले हैं, जिनमें कोरोना जैसे लक्षण थे पर वो कोरोना नहीं बल्कि व्हाइट फंगस से संक्रमित थे। मरीजों में कोरोना के तीनों टेस्ट रैपिड एंटीजन, रैपिड एंटीबॉडी और आरटी-पीसीआर टेस्ट निगेटिव थे। व्हाइट फंगस का पता चलने पर वो सिर्फ एंटी फंगल दवाओं से ठीक हो गए है।
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