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पारंपरिक खेती से हटकर नई फसल की खेती पर मिलेगा 90 प्रतिशत अनुदान

Published - 18 Aug 2021

जानें, क्या है राज्य सरकार की योजना और इससे आप कैसे उठा सकते हैं फायदा

देश में अधिकांश किसान पारंपरिक खेती करते चले आ रहे हैं। जैसे कोई किसान धान की खेती करता है तो हर साल धान की खेती ही कर रहा है। और गेहूं की खेती करने वाला किसान गेहूं की। ये पारंपरिक खेती की श्रेणी में आता है। जबकि सरकार चाहती है किसान पारंपरिक खेती से हटकर नई फसल की खेती करें। नई खेती को प्रोत्साहित करने के लिए सरकार काफी प्रयास कर रही है। यहां नई खेती से तात्पर्य ऐसी खेती से जिसमें पानी की बचत हो और उत्पादन भी अधिक मिले। हरियाणा सरकार भी कम पानी में बोई जाने वाली फसलों को प्रोत्साहित कर रही है और इसके लिए इटपुट सब्सिडी भी प्रदान करती है। इसका लाभ हरियाणा के किसानों को मिल रहा है। राज्य के कई किसानों ने पारंपरिक खेती को छोडक़र नई खेती को अपना लिया है। इससे राज्य में धान और गेहूं का रकबा कम हुआ है जबकि दलहन और कम पानी में अधिक उत्पादन देने वाली फसलों का रकबा बढ़ा है। इससे राज्य में पानी के अनावश्यक दोहन पर विराम लगा है। इसी तर्ज पर बिहार भी चाहती है राज्य के किसान पारंपरिक खेती को छोडक़र अन्य नई फसल की खेती करें ताकि उत्पादन के साथ किसानों की आमदनी भी बढ़े। इस दिशा में बिहार सरकार तेजी से काम कर रही है। 

 

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क्या है बिहार सरकार की योजना

बिहार सरकार राज्य के किसानों को पारंपरिक खेती से हटकर नई पद्धति की खेती करने के लिए प्रोत्साहित कर रही है। इसके लिए सरकार ने कई योजनाओं की शुरुआत की है। इसके तहत किसानों को धान-गेहूं की खेती से हटकर दूसरी नई खेती करने के लिए अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। बिहार के किसानों को संपन्न बनाना और बिहार की खेती को आत्मनिर्भर बनाने के लक्ष्य के साथ सरकार ने इन योजनाओं की शुरुआत की है। राज्य सरकार का मानना है कि किसान पारंपरिक ख्ेाती से हटकर नई फसल की खेती करके अधिक लाभ प्राप्त कर सकते हैं। 


मसालों की खेती करने पर मिलेगा आधी कीमत पर खाद और बीज

बिहार मसाला उत्पादन के क्षेत्र में अन्य राज्यों की तुलना में काफी पीछे है क्योंकि यहां के किसान मसालों की खेती नहीं करते हैं। ऐसे में सरकार इन किसानों को मसाला की खेती करने के लिए प्रोत्साहित अनुदान देने की योजना की शुरुआत की है। इसके तहत मसाला की खेती करने वाले किसानों को सरकार बीज और खाद की कीमत का आधा पैसा भी देगी। साथ ही तकनीकी सहायता भी देगी। समेतकित कृषि योजना के तहत किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए कृषि विभाग ने इस पर काम शुरू भी कर दिया है।


मशरूम की खेती के लिए सरकार से मिलेगा 50 प्रतिशत तक अनुदान

मशरूम उत्पादन के मामले में बिहार ने बिहार देश का तीसरा राज्य बन गया है। प्रदेश में बड़े काफी संख्या में किसान मशरूम उत्पादन से जुड़े हैं और मशरूम की खेती बड़े पैमाने पर कर रहे हैं। इन किसानों को प्रोत्साहित करने के लिए बिहार सरकार की ओर से मशरूम की खेती करने वाले किसानों को सब्सिडी प्रदान की जा रही है ताकि राज्य में मशरूम का उत्पादन बढ़े ताकि किसानों की आय में इजाफा हो सके।  इसके लिए सरकार की ओर से मशरूम उत्पादक किसानों को पूरी योजना पर लागत का 50 फीसदी सब्सिडी प्रदान की जा रही है। अगर कोई किसान मशरूम उत्पादन के लिए पांच लाख रुपए की पूंजी लगाता है तो सरकार की तरफ से उसे 50 फीसदी अनुदान दिया जाएगा। जिन नए किसानों को  मशरूम की खेती करने में परेशानी हो रही है, उनक लिए भी सरकार ने ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की है। ट्रेनिंग के दौरान प्रत्येक किसान को बीज से लेकर कृषि तक की जानकारी दी जाती है।


मत्स्य पालन के लिए तालाब खुदवाने पर मिलेगा 90 तक प्रतिशत अनुदान

बिहार सरकार की ओर से खेती से हटकर मत्स्य पालन करने वालों किसानों को भी प्रोत्साहित किया जा रहा है। इसके लिए बिहार सरकार ने मत्स्य पालकों के लिए योजनाओं की शुरुआत की है। मत्स्य पालन के लिए नए तालाब खुदवाने वालों को सरकार की ओर से 50 प्रतिशत अनुदान प्रदान किया जा रहा है। अति पिछड़े वर्ग के लोगों को तलाब खुदवाने के लिए 90 प्रतिशत तक अनुदान देने की व्यवस्था की गई है। साथ ही पिछड़े वर्ग के वैसे लोग जिनके पास अपनी जमीन नहीं है, उन्हें यह सुविधा दी गई है कि वो लीज पर जमीन लेकर खेती की शुरुआत कर सकते हैं।


दो हेक्टेयरी में नया तालाब खुदवाने के लिए मिलेंगे 7 लाख

राज्य सरकार की योजना के तहत दो हेक्टेयर में नया तालाब खुदवाने पर एक किसान को मत्स्य विभाग की ओर से अधिकतम सात लाख रुपए तक का अनुदान दिए जाने का प्रावधान है। वहीं अनुसूचित जाति और जनजाति वर्ग के किसानों को 70 प्रतिशत तक अनुदान प्रदान किया जाएगा। इसके साथ ही मत्स्य पालन की तकनीक सीखने के इच्छुक किसानों को प्रशिक्षण की व्यवस्था भी विभाग की ओर से की गई है। इसके तहत विभाग द्वारा चयनित मत्स्य पालकों को प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए बाहर भ्रमण पर भेजा जाता है।

 

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