Published - 12 Feb 2021
वित्तीय वर्ष 2021-22 के बजट में केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के लिए 16000 करोड़ रुपए का आवंटन किया है। जबकि वित्त वर्ष 2020-21 के लिए पीएमएफबीवाई का बजट 15,695 करोड़ रुपए रखा गया था। इस तरह पिछले वित्त वर्ष 2020-21 की तुलना में वित्त वर्ष 2021-22 के लिए लगभग 305 करोड़ रुपए की बजटीय वृद्धि की गई है। बता दें कि इस वर्ष रबी सीजन में 5.5 करोड़ से अधिक किसानों ने इस योजना के तहत आवेदन किया है जिसको देखते हुए केंद्र सरकार ने इस वित्तीय वर्ष में योजना के बजट में वृद्धि की गई है। बजट में बढ़ोतरी के पीछे सरकार का मानना है कि इससे अधिक से अधिक किसानों को फसल सुरक्षा बीमा का लाभ प्रदान करना संभव हो पाएगा। साथ ही किसानों के बकाया बीमा दावों का भुगतान भी हो सकेगा। वर्तमान में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत नामांकित कुल किसानों में से 84 प्रतिशत छोटे और सीमांत किसान हैं।
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पांच वर्ष पूर्व 13 जनवरी 2016 को केंद्र सरकार ने प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना को मंजूरी दी थी। तब से लेकर अभी तक योजना में कई सुधार किए गए है, सुधारों के साथ यह योजना लगभग संपूर्ण देश (कुछ राज्यों को छोडक़र) में लागू है। पहले प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत सभी ऋणी किसानों का बीमा हो जाता था परंतु वर्ष 2020 में इसके सुधार के बाद किसानों के लिए स्वैच्छिक बनाया गया है। इसके अलावा पीएमएफबीवाई पोर्टल के साथ भूमि रिकॉर्ड का संयोजन, किसानों के नामांकन को आसान बनाने के लिए फसल बीमा मोबाइल-ऐप का उपयोग और उपग्रह इमेजरी, रिमोट-सेंसिंग तकनीक, ड्रोन, कृत्रिम बुद्धिमत्ता और मशीन लर्निंग जैसी तकनीक से फसल नुकसान का आंकलन करना आदि सुविधाएं इस योजना में सम्मिलित की गईं हैं।
फसल बीमा योजना के तहत केंद्र सरकार, राज्य सरकार एवं फसल बीमा कंपनियों के द्वारा मिलकर किसानों को फसल नुकसान की भरपाई की जाती है। किसानों के लिए देश भर में सबसे कम और एक समान प्रीमियम की व्यवस्था की गई है। इसमें खरीफ फसलों के लिए बीमा राशि का दो प्रतिशत, रबी फसलों के लिए डेढ़ प्रतिशत और वाणिज्यिक-बागवानी फसलों के लिए पांच प्रतिशत प्रीमियम राशि किसानों द्वारा देय है। शेष राशि का भुगतान केंद्र तथा राज्य सरकार को बराबर-बराबर करना होता है। पीएम फसल बीमा योजना फसलों के बुवाई चक्र के पूर्व से लेकर फसल की कटाई के बाद तक के लिए सुरक्षा प्रदान करती है, जिसमें सुरक्षित की गई बुवाई और फसल सत्र के मध्य में प्राकृतिक आपदाओं से होने वाले नुकसान के लिए सुरक्षा भी प्रदान करना शामिल है।
फसल बीमा योजना में किसान को फसल बीमा ऐप, कृषक कल्याण केंद्र- सीएससी केंद्र या निकटतम कृषि अधिकारी के माध्यम से किसी भी घटना के होने के 72 घंटों के भीतर हुए फसल के नुकसान की सूचना दे सकते हैं। इसके बाद नुकसान के दावा का लाभ किसान के बैंक खातों में इलेक्ट्रॉनिक रूप से प्रदान किया जाता है।
देश के जिन राज्यों में प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना लागू नहीं है उनमें पश्चिम बंगाल, बिहार और आंध्र प्रदेश शामिल हैं। इनमें बिहार सबसे पहला राज्य है जिसने इस योजना से दूरी बनाई है, क्योंकि बिहार ने साल 2018 में ही इस योजना से नाता तोड़ लिया था। बिहार सरकार ने अलग से फसल बीमा योजना शुरू की है। इन राज्यों का कहना है कि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना से किसानों की तुलना में बीमा कंपनियों को ज्यादा फायदा हुआ है। इसके अलावा चार बीमा कंपनियां भी बाहर निकल गई हैं, जिनमें आईसीआईसीआई लोम्बार्ड, टाटा एआईजी, चोलामंडलम एमएस और श्रीराम जनरल इंश्योरेंस शामिल हैं।
कई राज्यों की सरकारें फसल बीमा योजना को लागू करने से पीछे हट रहीं हैं, क्योंकि इसमें प्रीमियम पहले जमा करना है, जिससे राज्यों पर बोझ काफी बढ़ा जाएगा है। अगर बिहार की बात करें, तो इस राज्य को रबी सीजन में कृषि बजट का लगभग 25 प्रतिशत भाग बीमा प्रीमियम पर खर्च करना पड़ेगा। तो वहीं मध्य प्रदेश सरकार को लगभग 60 प्रतिशत, राजस्थान को लगभग 37 प्रतिशत भाग कृषि बजट से देना होगा। यही मुख्य वजह है कि कई राज्यों ने इसको लागू नहीं किया है।
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