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प्राकृतिक खेती : फसल में नुकसान होने पर सरकार तीन साल तक देगी पैसा

Published - 17 Mar 2022

जानें, क्या है प्राकृतिक खेती पर हरियाणा सरकार की योजना और इससे लाभ

केंद्र सरकार की ओर से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने पर जोर दिया जा रहा है। इस संबंध में कुछ दिन पहले देश के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने प्राकृतिक खेती के लाभ बताए थे और देश के किसानों से इसे अपनाने की सलाह दी थी। इसके बाद राज्य सरकारें भी इस दिशा में काम कर रही हैं। कई राज्यों ने प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए अपने बजट में इसके लिए अलग से राशि का प्रावधान किया है। जिसका उपयोग राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए किया जाएगा। इसी क्रम में हरियाणा सरकार ने राज्य में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के उद्देश्य से इस बार के वित्तीय वर्ष 22-23 के बजट में 32 करोड़ रुपए का बजट प्रावधान किया गया है। 

उत्पादन घटा तो सरकार तीन साल तक करेगी नुकसान की भरपाई

प्राकृतिक खेती को लेकर किसानों के मन में सबसे बड़ी आशंका ये हैं कि यदि वे प्राकृतिक खेती को अपनाते हैं तो उत्पादन में कमी आ सकती है। ऐसे में उन्हें नुकसान भी हो सकता है। दूसरा जो प्राकृतिक कृषि के उत्पाद होंगे उनके लिए बाजार उपलब्ध नहीं है। वे इसे कहां बेचेंगे। किसानों की इसी आशंका को दूर करने के लिए हरियाणा सरकार की ओर से किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभ गिनाए जा रहे हैं। वहीं राज्य के कृषि मंत्री जय प्रकाश दलाल ने कहा है कि प्राकृतिक खेती से यदि किसानों की पैदावार को नुकसान होता है तो उसकी तीन साल तक भरपाई सरकार की ओर से की जाएगी। 

प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए बोर्ड का होगा गठन

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार दलाल ने कहा कि हरियाणा सरकार की ओर से प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए प्रदेश में प्राकृतिक कृषि बोर्ड का गठन किया जाएगा। प्राकृतिक खेती से किसान की फसल की लागत कम होगी और फसल की गुणवत्ता में भी सुधार होगा। प्रदेश में प्राकृतिक खेती को गति देने के लिए क्षेत्र को चिह्नित करने को कहा गया है। हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय, हिसार की ओर से आयोजित किसान मेला में पहुंचे मंत्री ने इस बात की जानकारी दी। 

प्राकृतिक खेती को लेकर प्रदेश में बनेंगे 100 क्लस्टर

वहीं पिछले दिनों हुए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय के सभागार में प्राकृतिक खेती के संबंध में आयोजित कृषि कार्यशाला में राज्य के मुख्यमंत्री मनोहरलाल खट््टर ने बताया कि प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए तीन साल के उत्पादन पर आधारित योजना तैयार की गई है। योजना के तहत प्रदेश में प्राकृतिक खेती के लिए 100 क्लस्टर बनाए जाएंगे। प्रत्येक कलस्टर में 25 एकड़ भूमि को शामिल किया जाएगा। मुख्यमंत्री ने बताया कि दो साल पहले गुरुकुल कुरुक्षेत्र में इस अभियान का आगाज किया गया था। लेकिन कोरोना महामारी के कारण ये आगे नहीं बढ़ सका। अब सरकार ने इस अभियान को एक जन आंदोलन का स्वरूप देने का प्रयास शुरू कर दिया है।

देश के किन-किन राज्यों में हो रही है प्राकृतिक खेती

इस समय देश के 11 राज्यों के सिर्फ 6.5 लाख हेक्टेयर क्षेत्र में प्राकृतिक खेती की जा रही है। इसमें आंध्र प्रदेश प्राकृतिक खेती करने वाले राज्यों में सबसे आगे है। इसके अलावा केरल, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, तमिलनाडु, ओडिशा, मध्य प्रदेश, राजस्थान और उत्तर प्रदेश में कई किसान प्राकृतिक खेती कर रहे हैं।

प्राकृतिक खेती से होगा लोगों के स्वास्थ्य में सुधार

दलाल ने कहा कि आज हमारे खाद्यान्न भंडार भरे हुए हैं। अब कृषि की पैदावार बढ़ाने की जगह कृषि उपज की गुणवत्ता बढ़ाने की आवश्यकता है। क्योंकि, अधिक पैदावार लेने के लिए कृषि रसायनों का बहुत अधिक प्रयोग किया जा रहा है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होने के साथ लोगों की सेहत भी खराब हो रही है। ये समस्या काफी हद तक प्राकृतिक खेती से दूर हो सकती है। बता दें कि हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से प्राकृतिक खेती को लोकप्रिय बनाने के लिए इस पर रिसर्च की जा रही है। 

प्राकृतिक खेती करने से किसानों को होंगे ये लाभ

प्राकृतिक खेती में जैविक खाद का उपयोग किया जाता है जो पूर्णरूप से प्राकृतिक अवयवों पर आधारित होती है। जैविक खाद किसान स्वयं तैयार करके इसका उपयोग कर सकते है। इसमें कैचुआं खाद, हरि खाद आदि। ये खाद काफी सस्ती पड़ती है और इसके प्रयोग से स्वस्थ उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। उत्पादन लागत कम होने से किसानों की आय में बढ़ोतरी होती है। जैविक खेती करने पर भूमि की उपजाऊ क्षमता बनी रहती है। सिंचाई अंतराल में बढ़ोतरी होती है जिससे पानी की बचत होती है। प्राकृतिक खेती में रासायनिक खाद के प्रयोग नहीं किया जाता है। यदि किसान प्राकृतिक खेती को अपनाते है तो उनका रासायनिक खाद व उर्वरकों पर खर्च होने वाले पैसे की बचत होगी।

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