फरवरी माह में बोएं ये 5 फसलें, होगा भरपूर मुनाफा

Share Product Published - 27 Jan 2022 by Tractor Junction

फरवरी माह में बोएं ये 5 फसलें, होगा भरपूर मुनाफा

जानें, कौन-कौनसी फसलों की करें बुवाई और किन बातों का रखें ध्यान?

किसान भाइयों की सुविधा के लिए हम हर माह, महीने के हिसाब से फसलों की बुवाई की जानकारी देते हैं। जिससे आप सही समय पर फसल की बुवाई कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सके। इसी क्रम में आज हम फरवरी माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसी के साथ उनकी अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों से भी आपको अवगत करा रहे हैं ताकि आप अपने क्षेत्र के अनुकूल रहने वाली उन्नत किस्मों का चयन करके उत्पादन को बढ़ा सके। आशा करते हैं हमारे द्वारा दी जा रही ये जानकारी किसान भाइयों के लिए फायदेमंद साबित होगी। तो आइए जानते हैं फरवरी माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में।

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1. मिर्च- अधिक उपज के लिए करें इन किस्मों का चयन

मिर्च की खेती कम भूमि में भी अच्छी आमदनी देती है। यह समय इस फसल की रोपाई की जा सकती है। बाजार में हरी व लाल दोनों तरह की मिर्ची की अच्छी कीमत मिलती है। ग्रीष्म मिर्च की रोपाई फरवरी-मार्च में करना अच्छा रहता है। मिर्च की उन्नत किस्म काशी अनमोल, काशी विश्वनाथ, जवाहर मिर्च-283, जवाहर मिर्च -218, अर्का सुफल तथा संकर किस्म काशी अर्ली, काषी सुर्ख या काशी हरिता शामिल हैं जो ज्यादा उपज देती हैं। मिर्च की बुवाई के लिए मिर्च की ओ.पी. किस्मों के 500 ग्राम तथा संकर (हायब्रिड) किस्मों के 200-225 ग्राम बीज की मात्रा एक हेक्टेयर क्षेत्र की नर्सरी तैयार करने के लिए पर्याप्त होती है।


2. भिंडी- बीज की मात्रा रखें ध्यान

भिंडी की खेती वर्ष में दो बार की जा सकती है। ग्रीष्म-कालीन भिंडी की खेती के लिए बुआई का सही समय अभी है। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुआई फरवरी-मार्च में में की जा सकती है। भिंडी की उन्नत किस्मों में पूसा ए-4, परभनी क्रांति, पंजाब-7, अर्का अभय, अर्का अनामिका, वर्षा उपहार, हिसार उन्नत, वी.आर.ओ.- 6 (इस किस्म को काशी प्रगति के नाम से भी जाना जाता है।) भिंडी की बुवाई के लिए सिंचित अवस्था में 2.5 से 3 किलोग्राम तथा असिंचित दशा में 5-7 किलोग्राम प्रति हेक्टेअर बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए 5 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की बीजदर पर्याप्त होती है। भिंडी के बीज सीधे खेत में ही बोए जाते हैं। बीज बोने से पहले खेत को तैयार करने के लिये 2-3 बार जुताई करनी चाहिए। ग्रीष्मकालीन भिंडी की बुवाई कतारों में करनी चाहिए। भिंडी की फसल में अच्छा उत्पादन लेने हेतु प्रति हेक्टेर क्षेत्र में लगभग 15-20 टन गोबर की खाद एवं नत्रजन, स्फुर एवं पोटाश की क्रमश: 80 कि.ग्रा., 60 कि.ग्रा. एवं 60 कि.ग्रा. प्रति हेक्टर की दर से मिट्टी में देना चाहिए। नत्रजन की आधी मात्रा स्फुर एवं पोटाश की पूरी मात्रा बुवाई के पूर्व भूमि में देना चाहिए। नत्रजन की शेष मात्रा को दो भागों में 30-40 दिनों के अंतराल पर देना चाहिए।

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3. टमाटर- नर्सरी में बुवाई लिए बनाए उठी हुई क्यारियां

टमाटर की खेती भी वर्ष में दो बार किया जाता है। शीत ऋतु के लिए इसकी बुवाई जनवरी-फरवरी माह में की जाती है। इस बात कर ध्यान रखें कि फसल पाले रहित क्षेत्रों में उगाई जानी चाहिए या इसकी पाले से समुचित रक्षा करनी चाहिए। इसके एक हेक्टेयर क्षेत्र में फसल उगाने के लिए नर्सरी तैयार करने के लिए 350 से 400 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। संकर किस्मों के लिए बीज की मात्रा 150-200 ग्राम प्रति हेक्टेयर ली जानी चाहिए है। टमाटर की उन्नत किस्मों में देशी किस्म-पूसा रूबी, पूसा- 120, पूसा शीतल, पूसा गौरव, अर्का सौरभ, अर्का विकास, सोनाली तथा संकर किस्मों में पूसा हाइब्रिड-1, पूसा हाइब्रिड -2, पूसा हाइब्रिड -4, अविनाश-2, रश्मि तथा निजी क्षेत्र से शक्तिमान, रेड गोल्ड, 501, 2535 उत्सव, अविनाश, चमत्कार, यू.एस. 440 आदि है। नर्सरी में बुवाई हेतु 1 से 3 मी. की ऊठी हुई क्यारियां बनाकर फोर्मेल्डिहाइड द्वारा स्टेरीलाइजशन कर ले अथवा कार्बोफ्यूरान 30 ग्राम प्रति वर्गमीटर के हिसाब से मिलावें। बीज को कार्बेन्डाजिम/ट्राइकोडर्मा प्रति किग्रा. बीज की दर से उपचारित कर 5 से.मी. की दूरी रखते हुए कतारों में बीजों की बुवाई करे। बीज बोने के बाद गोबर की खाद या मिट्टी ढक दे और हजारे से छिडक़ाव बीज उगने के बाद डायथेन एम-45/मेटालाक्सिल छिडकाव 8-10 दिन के अंतराल पर करना चाहिए। 25 से 30 दिन का रोपा खेतो में रोपाई से पूर्व कार्बेन्डिजिम या ट्राईटोडर्मा के घोल में पौधों की जड़ों को 20-25 मिनट उपचारित करने के बाद ही पौधों की रोपाई करें। पौध को उचित खेत में 75 से.मी. की कतार की दूरी रखते हुए 60 से.मी के फासले पर पौधो की रोपाई करे।


4. सूरजमुखी- बीजों को पक्षियों से बचाएं, इस तरह करें बुवाई

सूरजमुखी की फसल नकदी फसलों में से एक है। यह अधिक मुनाफा देने वाली फसलों में शुमार है। सूरजमुखी की फसल 15 फरवरी तक लगाई जा सकती है। इसकी फसल की बुवाई करते समय इसके बीजों की पक्षियों से रक्षा करना बेहद जरूरी है क्योंकि पक्षी बीजों को निकाल कर ले जाते है। इनसे बचाव के लिए ध्वनि करें। सूरजमुखी की बुवाई के लिए किस्म मार्डन बहुत लोकप्रिय है। इसके अलावा इसकी संकर किस्में भी बोई जा सकती है। इनमें बीएसएस-1, केबीएसएस-1, ज्वालामुखी, एमएसएफएच-19, सूर्या आदि शामिल हैं। इसकी बुवाई करने से पूर्व खेत में भरपूर नमी न होने पर पलेवा लगाकर जुताई करनी चाहिए। पहली जुताई मिट्टी पलटने वाले हल से करने के बाद साधारण हल से 2-3 बार जुताई कर के खेत को भुरभुरा बना लेना चाहिए या रोटावेटर का इस्तेमाल करना चाहिए। इसकी बुवाई करते समय कतार से कतार की दूरी 4-5 सेमी व पौध से पौध की दूरी 25-30 सेमी रखनी चाहिए। बुवाई से पूर्व 7-8 टन प्रति हैक्टेयर की दर से सड़ी हुई गोबर खाद भूमि में खेत की तैयारी के समय खेत में मिलाएं व अच्छी उपज के लिए सिंचित अवस्था में यूरिया 130 से 160 किग्रा, एसएसपी 375 किग्रा व पोटाश 66 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करें। नाइट्रोजन की 2/3 मात्रा व स्फुर व पोटाश की समस्त मात्रा बोते समय प्रयोग करें एवं नाइट्रोजन की 1/3 मात्रा को बुवाई के 30-35 दिन बाद पहली सिंचाई के समय खड़ी फसल में देना लाभप्रद पाया गया है।

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5. पेठा - इन प्रजातियों पर कम होगा कीट व बीमारियों का असर

मेठा दोमट, बलुई और अम्लीय मिट्टी में आसानी से उगाया जा सकता है। पेठा कद्दू की खेती के लिए तमाम उन्नत प्रजातियां मौजूद हैं, जो न केवल ज्यादा उत्पादन देने वाली हैं, बल्कि उन पर कीट, बीमारियों व विपरीत मौसम का असर भी कम होता है। इस की उन्नतशील प्रजातियों में पूसा हाइब्रिड 1, कासी हरित कद्दू, पूसा विश्वास, पूसा विकास, सीएस 14, सीओ 1 व 2, हरका चंदन, नरेंद्र अमृत, अरका सूर्यमुखी, कल्यानपुर पंपकिंग 1, अंबली, पैटी पान, येलो स्टेटनेप, गोल्डेन कस्टर्ड आदि प्रमुख हैं। एक हेक्टेयर में पेठा कद्दू की खेती के लिए 7 से 8 किलो बीज की जरूरत पड़ती है। इसके लिए एक 15 हाथ लंबा लकड़ी का डंडा लें जिसकी सहायता से सीधी लाइन में पेठा के बीज की बुवाई करें। एक हाथ की दूरी में पेठा के 3 से 4 बीज बोए जाते हैं।

 

 

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