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बेबी कॉर्न की खेती की जानकारी - जानें बेबी कॉर्न मक्का की खेती कैसे करें.

Published - 26 Feb 2020

बेबी कॉर्न की खेती : कम इनवेस्टमेंट में ज्यादा कमाई

ट्रैक्टर जंक्शन पर किसान भाइयों का एक बार फिर स्वागत है। आज हम बात करते हैं बेबी कॉर्न की खेती से मोटी कमाई की। बेबी कॉर्न दोहरे उद्देश्यों वाली महत्वपूर्ण फसलों में से एक है। यह अधिक तेजी से विकास करने वाली फसल है। आजकल अपरिपक्व मक्के के भुट्टे को सब्जी के रूप में उपयोग किया जा रहा है, जिसको बेबी कॉर्न कहा जाता है। पहले बेबीकॉर्न के व्यजंन सिर्फ बड़े शहरों के होटलों में मिलते थे लेकिन अब यह आमजन के बीच काफी लोकप्रिय हो गया है। बेबी कॉर्न उद्योग उच्च आय के अवसर  प्रदान करता है तथा किसानों के लिए रोजगार और निर्यात की संभावनाएं पैदा करता है।
 

बेबी कॉर्न (मक्का) एक स्वादिष्ट आहार

 
बेबी कॉर्न एक स्वादिष्ट, पौष्टिक तथा बिना कोलेस्ट्रोल का खाद्य आहार है। इसके साथ ही इसमें फाइबर भी प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। इसमें खनिज की मात्रा एक अंडे में पाए जाने वाले खनिज की मात्रा के बराबर होती है। बेबी कॉर्न के भुट्टे, पत्तों में लिपटे होने के कारण कीटनाशक रसायन से मुक्त होते हैं। स्वादिष्ट एवं सुपाच्य होने के कारण इसे एक आदर्श पशु चारा फसल भी माना जाता है। हरा चारा, विशेष रूप से दुधारू मवेशियों के लिए अनुकूल है जो एक लैक्टोजेनिक गुण है।
 
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बेबी कॉर्न की फसल से कमाई / Baby Corn Cultivation
 
मक्का के अपरिपक्व भुट्टे को बेबी कॉर्न कहा जाता है, जो सिल्क की 1-3 सेमी लंबाई वाली अवस्था तथा सिल्क आने के 1-3 दिनों के अंदर तोड़ लिया जाता है। इसकी खेती एक वर्ष में तीन से चार बाज की जा सकती है। बेबी कॉर्न की फसल रबी में 110-120 दिनों में, जायद में 70-80 दिनों में तथा खरीफ के मौसम में 55-65 दिनों में तैयार हो जाती है। एक एकड़ जमीन में बेबीकॉर्न फसल में 15 हजार रुपए का खर्च आता है जबकि कमाई एक लाख रुपए तक हो सकती है। साल में चार बार फसल लेकर किसान चार लाख रुपए तक कमा सकता है।
 
 

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विश्व और भारत में बेबी कॉर्न की वैज्ञानिक खेती / भारतीय बेबी कॉर्न की माँग विदेश में
 
वर्तमान समय में बेबी कॉर्न की खेती विश्व में सबसे अधिक थाईलैंड एवं चीन में की जा रही है। विकासशील देशों जैसे एशिया-प्रशांत क्षेत्रों में बेबीकॉर्न खेती की तकनीक को बढ़ावा देने की काफी गुंजाइश है। भारत में बेबी कॉर्न की खेती उत्तरप्रदेश, हरियाणा, महाराष्ट्र, कर्नाटक, मेघालय तथा आंधप्रदेश में की जा रही है। बिहार राज्य के लघु एवं सीमांत किसानों के लिए इसकी खेती काफी फायदेमंद हो सकती है। आमतौर पर धान और गेहूं कृषि प्रणाली में जायद की फसल के रूप में गरमा मूंग लिया जाता है। जिसका आर्थिक लाभ किसान नहीं उठा पाते हैं। गरमा मूंग की खेती अगर किसान 15 मार्च के बाद करते हैं तो लाभांश की दृष्टि से यह किसान के लिए फायदेमंद नहीं होती है। उस परिस्थिति में अगर किसान बेबीकॉर्न की वैज्ञानिक खेती करते हैं तो काफी लाभ की संभावना है।
 
 

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बेबी कॉर्न भुट्टे का उपयोग

बेबी कॉर्न का पूरा भुट्टा खाया जाता है। इसे कच्चा या पकाकर खाया जाता है। कई प्रकार के व्यंजनों में इसका उपयोग किया जाता है। जैसे पास्ता, चटनी, कटलेट, क्रोफ्ता, कढ़ी, मंचूरियन, रायता, सलाद, सूप, अचार, पकौड़ा, सब्जी, बिरयानी, जैम, मुरब्बा, बर्फी, हलवा, खीर आदि। इसके अलावा पौधे का उपयोग चारे के लिए किया जाता है जो कि बहुत पौष्टिक है। इसके सूखे पत्ते एवं भुट्टे को अच्छे ईंधन के रूप में इस्तेमाल किया जाता है।
 
 

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बेबी कॉर्न की श्रेष्ठ प्रभेद/प्रजाति का चयन 
 
बेबी कॉर्न की प्रजाति का चयन करते समय भुट्टे की गुणवत्ता को ध्यान में रखना चाहिए। भुट्टे के दानों का आकार और दानों का सीधी पंक्ति में होना चयन में एक समान भुट्टे पकने वाली प्रजाति जो मध्यम ऊंचाई की अगेती परिपक्व (55 दिन) हों, उनको प्राथमिकता देनी चाहिए। भारत में पहला बेबी कॉर्न प्रजाति वीएल-78 है। इसके अलावा एकल क्रॉस हाईब्रिज एचएम-4 देश का सबसे अच्छा बेबी कॉर्न हाइब्रिड है। वीएन-42, एचए एम-129, गोल्डन बेबी (प्रो-एग्रो) बेबी कॉर्न का भी चयन कर सकते हैं। 
 
 
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बेबी कॉर्न खेती : उत्पादन तकनीक और मृदा की तैयारी
 
स्वीटकॉर्न और पॉपकॉर्न की तरह ही बेबी कॉर्न की खेती के लिए मृदा की तैयारी और फसल प्रबंधन किया जाता है। इसकी खेती की अवधि केवल 60-62 दिनों की होती है जबकि अनाज की फसल के लिए यह 110-120 दिनों की होती है। इसके अलावा कुछ और विभिन्नताएं हैं जैसे झंडों (नर फूल) को तोडऩा, भुट्टों में सिल्क (मोचा) आने के 1-3 दिन में तोडऩा।
 

बेबी कॉर्न के लिए खेत की तैयारी और बुवाई का तरीका (baby corn plant)

 
बेबी कॉर्न की खेती के लिए खेत की तीन से चार बार जुताई करने के बाद 2 बार सुहागा चलाना चाहिए, जिससे सरपतवार मर जाते हैं और मृदा भुरभुरी हो जाती है। इस फसल में बीज दर लगभग 25-25 किग्रा प्रति हैक्टेयर होती है। बेबी कॉर्न की खेती में पौधे से पौधे की दूरी 15 सेमी और पौधे की पंक्ति से पंक्ति की दूरी 45 सेमी होनी चाहिए। इसके साथ ही बीज को 3-4 सेमी गहराई में बोना चाहिए। मेड़ों पर बीज की बुवाई करनी चाहिए और मेड़ों को पूरब से पश्चिम दिशा में बनाना चाहिए।
 

बेबी कॉर्न में बीजोपचार/बेबीकॉर्न में रोग से बचाव

  • बेबी कॉर्न के बीजों को बीज और मृदा से होने वाले रोगों से बचाना होता है। इसके लिए उच्च गुणवत्ता वाले बीजों का चयन करना सबसे अच्छा तरीका है। एहतियात के तौर पर बीज और मृदा से होने वाले रोगों एवं कीटों से बचाने के लिए उन्हें फफूंदनाशकों और कीटनाशकों से उपचारित करना चाहिए।
  • बाविस्टिन : इसका प्रयोग 1:1 में 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज की दर से पत्ती अंगमारी से बचाने के लिए किया जाता है।
  • थीरम : इसका प्रयोग 2 ग्राम प्रति किग्रा बीज दर से बीज को डाउनी मिल्ड्यू से बचाने के लिए किया जाता है।
  • कार्बेन्डाजिम : इसका प्रयोग 3 ग्राम प्रति किग्रा बीज दर से पौधों को अंगमारी से बचाने के लिए किया जाता है।
  • फ्रिपोनिल : इसका प्रयोग 44 मिली प्रति किग्रा बीज की दर से दीमक को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है। इसके अलावा बुवाई से पहले जैविक खाद एजोस्पिरिलम के 3-4 पैकेट से उपचार करने से बेबीकॉर्न की गुणवत्ता और उपज में वृद्धि होती है।
 
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बुवाई का समय 

 
बेबी कॉर्न की खेती पूरे वर्ष की जा सकती है। बेबी कॉर्न को नमी और सिंचित स्थितियों के आधार पर जनवरी से अक्टूबर तक बोया जा सकता है। मार्च के दूसरे सप्ताह में बुवाई के बाद अप्रैल के तीसरे सप्ताह में सबसे अधिक उपज प्राप्त की जा सकती है।
 

बेबी कॉर्न की खेती में खाद और उर्वरक प्रबंधन

बेबी कॉर्न की खेती में भूमि की तैयारी के समय 15 टन कम्पोस्ट या गोबर प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। बेसल ड्रेसिंग उर्वरकों के रूप में 75:60:20 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से एनपीके एवं बुवाई के तीन सप्ताह बाद शीर्ष ड्रेसिंग उर्वरकों के रूप में 80 किग्रा नाइट्रोजन और 20 किग्राम पोटाश देना चाहिए।
 
 

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बेबी कॉर्न की खेती में सिंचाई प्रबंधन

बेबी कॉर्न की फसल जल जमाव एवं ठहराव को सहन नहीं करती है। इसलिए खेत में अच्छी आतंरिक जल निकासी होनी चाहिए। आमतौर पर पौध एवं फल आने की अवस्था में, बेहतर उपज के लिए सिंचाई करनी चाहिए। अत्यधिक पानी, फसल को नुकसान पहुंचाता है। बरसात के मौसम में सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है, जब तक कि लंबे समय तक सूखा न रहें।
 
 

बेबी कॉर्न की खेती में खरपतवार नियंत्रण

बेबी कॉर्न की खेती में खरपतवार को नियंत्रित करने के लिए 2-3 बार हाथ से खुरपी द्वारा निराई पर्याप्त होती है। खरीफ के मौसम में और जब मृदा गीली होती है तो किसी भी किसी कृषि कार्य को करना मुश्किल होता है। ऐसी स्थिति में खरपतवारनाशक दवाइयों के प्रयोग से खरपतवारों को नियंत्रित किया जा सकता है। बुवाई के तुरंत बाद सिमाजीन या एट्राजीन दवाइयों का उपयोग करना चाहिए। औसतन 1-1.5 किग्रा प्रति हैक्टेयर की दर से 500-650 लीटर पानी में मिलाकर प्रयोग करना चाहिए। पहली निराई बुआई के दो सप्ताह बाद करनी चाहिए। मिट्टी चढ़ाना या टॉपड्रेसिंग बुवाई के 3-4 सप्ताह के बाद करनी चाहिए। बुवाई के 40-45 दिनों के बाद झंडों या नर फूलों को तोडऩा चाहिए।
 
 

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कीट और रोग प्रबंधन

बेबी कॉर्न फसल में शूट फ्रलाई, पिंक बोरर और तनाछेदक कीट प्रमुख रूप से लगते हैं। कार्बेरिल 700 ग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से 700 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव करने से इन कीटों पर नियंत्रण पाया जा सकता है।
 

बेबी कॉर्न के साथ अंतर्वर्ती फसल

बेबी कॉर्न के साथ अंतर्वर्ती फसल किसानों को और अधिक लाभ प्रदान करती है। ये फसलें दूसरी फसल पर कोई बुरा प्रभाव नहीं डालती है और मृदा की उर्वराशक्ति को भी बढ़ाती है। अत: फसली खेती में बेबी कॉर्न की फसल आलू, मटर, राजमा, चुकंदर, प्याज, लहसुन, पालक, मेथी, फूल गोभी, ब्रोकली, मूली, गाजर के साथ खरीफ के मौसम में लोबिया, उड़द, मंूग आदि के साथ उगाई जा सकती है।
 

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बेबी कॉर्न की कटाई / तुड़ाई / बेबी कॉर्न का उत्पादन
 
बेबी कॉर्न को आमतौर पर रेशम उद्भव अवस्था में बुवाई के लगभग 50-60 दिनों के बाद हाथ से काटा जाता है। इसकी तुड़ाई के समय भुट्टे का आकार लगभग 8-10 सेमी लंबा, भुट्टे के आधार के पास व्यास 1-1.5 सेमी एवं वजन 7-8 ग्राम होना चाहिए। भुट्टे को 1-3 सेमी सिल्क आने पर तोड़ लेना चाहिए। इसको तोड़ते समय इसके ऊपर की पत्तियों को नहीं हटाना चाहिए। नहीं तो ये जल्दी खराब हो जाता है। खरीफ के मौसम में प्रतिदिन एवं रबी के मौसम में एक दिन के अंतराल पर सिल्क आने के 1-3 दिनों के अंदर भुट्टों की तुड़ाई कर लेनी चाहिए नहीं तो अंडाशय का आकार, भुट््टे की लंबाई एवं भुट्टा लकड़ी की तरह हो जाता है। जब बेबी कॉर्न को एक माध्यमिक फसल के रूप में उगाया जाता है तो पौधों के शीर्ष के भुट्टों को छोडक़र दूसरे भुट्टों की बेबी कॉर्न के लिए तुड़ाई की जाती है और शीर्ष भुट्टों को स्वीट कॉर्न या पॉपकार्न के लिए परिपक्त होने के लिए छोड़ दिया जाता है।
 

कटाई के बाद बेबी कॉर्न का प्रबंधन

तुड़ाई के बाद बेबीकॉर्न की ताजगी लंब समय तक बनाए रखना बहुत मुश्किल होता है। तुड़ाई के बाद भुट्टों को छायादार जगह में रखकर उसके छिलके को हटाना चाहिए। इसका भंडारण रेफ्रीजरेटर या किसी ठंडी जगह में किसी टोकरी या प्लास्टिक थैले में करना चाहिए।
 

बेबी कॉर्न खेती के लिए सरकारी सहायता

 
मक्का अनुसंधान निदेशालय, भारत सरकार देशभर में बेबीकॉर्न की खेती के लिए किसानों के बीच जागरूकता अभियान चला रहा है। अधिक जानकारी के लिए वेबसाइट https://iimr.icar.gov.in पर लॉगिन कर सकते हैं।
 
 
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