बकरी पालन : टीका लगवाकर करें बकरियों की सुरक्षा, होगा लाभ

Share Product Published - 10 Jun 2022 by Tractor Junction

बकरी पालन : टीका लगवाकर करें बकरियों की सुरक्षा, होगा लाभ

जानें, बकरियों में होने वाले रोग और इससे बचाव के उपाय

ग्रामीण इलाकों में बकरी पालन एक लाभकारी बिजनेस के रूप में उभरा है। आज लघु व सीमांत खेती के साथ बकरी पालन करके किसान अपनी आय बढ़ा रहे हैं। इस बिजनेस की खास बात ये हैं कि इसमें कम निवेश पर अधिक मुनाफा कमाया जा सकता है। बकरी के दूध और मांस की मांग बाजार में अधिक रहती है। बकरी दूध कई प्रकार की बीमारियों को दूर करने में भी सहायक है। इसे देखते हुए बकरी पालन लाभ का सौंदा साबित हो रहा है। 

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यदि आप बकरी पालन करते हैं या करना चाहते हैं तो आपको बकरियों की स्वास्थ्य सुरक्षा संबंधी जानकारी होना जरूरी है। इसके लिए आपको बकरियों में होने वाले रोग और उनके बचाव के उपाय भी पता होने चाहिए ताकि आपको इस बिजनेस से अधिक लाभ हो सके। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को बकरियों में होने वाली बीमारियों और इससे उनकी सुरक्षा के उपाय बता रहे हैं। 

बबकरियों को बीमारी से बचाएं, ये करें उपचार

बकरियों में बहुत से रोग होते हैं। कई रोग इतने घातक होते हैं कि समय पर इलाज नहीं होने पर बकरी की मौत भी हो जाती है। इसके बचाव के लिए बकरियों की उचित देखभाल के साथ ही इसके बचाव के उपाय करने चाहिए। इसी के साथ बकरियों को टीके लगवाने चाहिए ताकि संभावित हानि से बचा जा सकें। बकरियों में होने वाले रोग निम्नलिखित हैं- 

बकरियों में पी.पी.आर. रोग

एक विषाणु जनित रोग है। यह किसी भी आयु कि बकरियों में हो सकता है। बकरियों में इस रोग का संक्रमण दूषित हवा, पानी और भोजन से होता है। इस रोग से पीड़ित बकरियों में बुखार, नाक व आंख से पानी का बहना, पतले दस्त, मुंह में छाले का पडऩा प्रमुख लक्षण हैं। ये रोग पीड़ित पशु से स्वस्थ पशु में तेजी से फैलता है, इसलिए पीड़ित पशु को स्वस्थ पशु से अलग रखना चाहिए। 

बकरियों को पी.पी.आर. रोग से बचाने के उपाय

इस रोग का अभी कोई प्रभावी इलाज नहीं है। फिर भी संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जीवाणु नाशक औषधियों प्रयोग किया जा सकता है। इनमें एन्रोफ्लोक्सासिन नामक एंटीबायोटिक इस रोग के लिए असरकारक मानी जाती है। इसके अलावा लक्षण के आधार पर एंटीइन्फ्लेमेंट्री,एंटीपायरेटिक एवं एंटी एलर्जिक प्रयोग भी किया जा सकता है। इस रोग से बचाव के लिए बकरियों को समय पर टीका लगवाना चाहिए।

1. बकरियों में चेचक (माता रोग)

यह रोग बकरियों में तेजी से फैलने वाला रोग है। इस रोग से सभी आयु के पशु प्रभावित होते हैं। इस रोग से पीड़ित पशु को बुखार आता है और उसकी त्वचा पर दाने निकल आते हैं। चेचक रोग का फैलाव रोग ग्रसित पशुओं का दूसरे स्वस्थ पशु के संपर्क में आने से होता है। रोग ग्रसित पशु और स्वस्थ पशु का एक ही जगह चारा खाना, दूषित भोजन, रोग ग्रसित पशु के गोबर और मूत्र से भी ये संक्रमण स्वस्थ पशु में पहुंचता है। इसके अलावा पशुपालक के हाथों से भी इस रोग का संचरण होता है। 

बकरियों को चेचक से बचाने के उपाय

हांलाकि अभी तक चेचक रोग का कोई प्रभावी उपचार अभी तक नहीं मिला है। लेकिन संक्रमण को फैलने से रोकने के लिए जीवाणु नाशक औषधियों व मलहमों का फफोलो पर प्रयोग करना चाहिए। इसके लिए टिंचर आयोडीन का प्रयोग किया जा सकता है। संक्रमित बकरियों को स्वस्थ पशुओं से अलग रखना चाहिए एवं तुरंत चिकित्सक की सलाह लेनी चाहिए। 

2. बकरियों में खुरपका व मुंहपका रोग

यह विषाणु-जनित (पिकोर्ना नामक विषाणु) संक्रामक रोग है। यह रोग अधिकांशत: गाय, भंैस, बकरी, सुअर में पाया जाता है। सामान्यत: यह रोग सभी आयु के पशुओं मे देखा जा सकता है। इस रोग के प्रकोप की संभावना बसंत व वर्षा ऋतु में अधिक होती है। इस रोग से पीड़ित पशु के तेज बुखार आता है। पशु के मुंह, थन, व खुरों के बीच व निचली सतह पर छाले, लंगड़ापन, लगातार  अत्यधिक मात्रा में लार का टपकना, गर्भ का गिर जाना, दुधारू पशुओं में दूध उत्पादन में गिरावट व पशु को जुगाली करने में परेशानी आना इस रोग प्रमुख लक्षण हैं।

बकरियों को खुरपका व मुंहपका रोग से बचाने के उपाय

खुरपका व मुहंपका रोग ग्रसित पशुओं के उपचार के लिए सबसे पहले रोग से पीड़ित पशु को स्वस्थ पशुओं से अलग कर देना चाहिए। रोगी पशु के खुरों व मुंह के छालों को एंटीसेप्टिक लोशन जैसे पोटाश, फिटकरी, बोरिक एसिड व नमक को पानी में डालकर धोना चाहिए। रोग के बचाव के लिए पशु को टीका लगवाना चाहिए। ऐसे क्षेत्र जहां रोग का प्रकोप अधिक है वहां वर्ष में दो बार नियमित टीकाकरण करके पशुओं को इस रोग से बचाया जा सकता है।

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बकरियों में थनैला रोग

यह रोग सभी प्रकार के दुधारू पशुओं को हो सकता है। सह रोग पशुओं में कई प्रकार के जीवाणु, विषाणु, फफूंद व यीस्ट से होता है। दूध के लिए पाली गईं बकरियों में भी यह रोग देखा जा सकता है। इस रोग से पीड़ित पशु के थनों में चोट व प्रतिकूल परिस्थिति में थैनेला रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। इस रोग से पीड़ित पशु के थनों में सूजन, दूध गर्म करने पर फटना, दूध में छिछडे व खून का आना थनैला रोग के मुख्य लक्षण हैं। सामान्यत: थनैला रोग एक या एक से अधिक थनों को प्रभावित कर सकता है। यदि समय पर इस बीमारी का इलाज नहीं किया जाए तो पशु क थनों में सूजन कठोर हो जाती है और पशु दूध देना स्थाई रूप से बंद कर देता है। 

बकरियों को थनैला रोग से बचाव के उपाय

बकरियों को थनैला रोग से बचाव के लिए कुछ सावधानियां रखनी चाहिए और इसके बचाव के उपाय करने चाहिए, जो इस प्रकार से हैं-

  • पशुओं को व पशु घर को हमेशा साफ सुथरा रखना चाहिए।
  • दूध दुहने के बाद थनों को अच्छी तरह से साफ पानी से साफ करना चाहिए और सूखे सूती कपड़े से पोछना चाहिए।
  • समय समय पर पशु के दूध की जांच करते रहना चाहिए। 
  • यदि दूध के रंग, स्वाद व किसी भी प्रकार का परिवर्तन दिखाई दे तो तुरंत पशु का परिक्षण कराकर उपचार लेना चाहिए परिक्षण के लिए कई तरह के टेस्ट कर जैसे- सीएमटी, एससीसी, पीएच परिक्षण कराना चाहिए ताकि रोग की पुष्टि हो सके। थनैला रोग से बचाव के लिए पशु को एंटीबायोटिक्स, एंटीइन्फ्लेमेंट्री,एंटीपायरेटिक नियमित रूप से दिए जाने चाहिए। 

बकरियों में निमोनिया पाश्चरलोसिस रोग

यह रोग पाश्चुरेला हिमोलिटिक नामक जीवाणु के कारण होता है। यह रोग शीघ्र ही एक पशु से दूसरे में फैलता है। इस रोग से पीड़ित पशु तीव्र गति से दूसरे पशुओ में संचारित होता है। यह रोग अचानक जलवायु परिवर्तन, पशुओं मे पोषक तत्वों की कमी या पशु को लंबी दूरी की यात्रा करवाना आदि कारणों से होता है। अधिकतर यह रोग बारिश के मौसम मेेें होता है। पशुओं में प्राय: से यह रोग संक्रमित भोजन और पानी से होता है। इसके अलावा सांस से भी ये संक्रमण हो सकता है। इस रोग से पीड़ित पशु तीव्र ज्वर आता है। पशु अवसाद में रहने लगता है। उसे सांस लेने में तकलीफ होती है। इसी के साथ सांस लेने के दौरान पशु के मुंह से घर्र-घर्र की आवाज आती है। इस रोग से पीड़ित पशु की शीघ्र मौत हो जाती है।  

बकरियों को निमोनिया पाश्चरलोसिस रोग से बचाने के उपाय

  • पशुओं को प्रतिवर्ष वर्षा ऋतु से पहले इस रोग का टीकाकरण करवाना चाहिए।  
  • इस रोग के उपचार में सेफ्टीऑफुर सोडियम, ऑक्सी टेट्रासाइक्लिन नामक एंटीबायोटिक्स दवा का प्रयोग किया जा सकता है। इसके साथ ही लक्षण के आधार एंटीइन्फ्लेमेंट्री, एंटीपायरेटिक नियमित रूप से दिए जा सकते हैं।
  • इसके अलावा कुछ सावधानियां भी रखनी चाहिए जैसे- रोगग्रस्त पशुओं को अन्य स्वस्थ पशुओं से अलग रखें, पशुघर को साफ और स्वच्छ रखें।   
  • रोग के प्रारंभिक लक्षण दिखाई देते ही पशुचिकित्सक से संपर्क करना चाहिए ताकि समय पर बीमारी का इलाज हो सके। 

बकरियों में अफरा रोग

अफरा उत्पन्न होने पर पशु को सांस लेने मे परेशानी होने लगती है और पेट का आकार सामान्य से अधिक बढ़ जाता है। अधिक मात्रा में पेट में गैस का उत्पन्न होना या गैसों के निकाय में अवरोध होना अफरा का मुख्य कारण होता है। अफरा होने पर पशु का बायीं ओर का पेट फूल जाता है। दर्द के कारण पशु खाना बंद कर देता है। पशु को सांस लेने में परेशानी होती है। अफरा से पीड़ित पशु बार-बार जीभ बाहर निकालकर तेजी से गहरी-गहरी सांसें लेता है। पशु जुगाली करना बंद कर देता है। पशु जमीन पर लेट कर पैर पटकता है। इस प्रकार के लक्षण दिखाई दे तो तुरंत पशु चिकित्सक से संपर्क करना चाहिए। क्योंकि समय पर इलाज नहीं मिलने पर पशु की मौत तक हो सकती है। 

बकरियों को अफारा रोग से बचाव के उपाय

उपचार के लिए सबसे पहले आधा लीटर खाद्य तेल पशु को पिलाना चाहिए। पशु के बाएं तरफ के पेट को ट्रोकार एवं केनुला से पंच करना चाहिए ताकि गैस बाहर निकल सके। झागिये अफरा के उपचार के लिए एंटीफोमिंग एजेंट का उपयोग किया जा सकता है। 

बकरियों में लगने वाले प्रमुख टीकों के नाम

बकरियों को रोग सुरक्षा के लिए जो टीके लगाए जाते हैं उनके नाम इस प्रकार से हैं-

  • पी. पी. आर 
  • एफएमडी 
  • चेचक 
  • टिटनेस 
  • ब्लैक क्वार्टर 
  • एंटेरोटोक्सिमिया  


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