गरीब परिवारों को गोबर के बदले गैस सिलेंडर

Share Product Published - 29 Jun 2021 by Tractor Junction

गरीब परिवारों को गोबर के बदले गैस सिलेंडर

एग्रीकल्चर यूनिवर्सिटी के अनूठे पायलट प्रोजेक्ट से सुधरेगी किसानों की दशा

केंद्र सरकार के महत्वाकांक्षी प्रोजेक्ट प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत देश के करोड़ों गरीब परिवारों को खाना पकाने के लिए गैस चूल्हा व सिलेंडर नि:शुल्क उपलब्ध कराया था। योजना के लाभार्थी परिवारों ने एक बार तो सिलेंडर का उपयोग कर लिया लेकिन उनके सामने दूसरी बार सिलेंडर भराने के लिए पैसों की तंगी बनी हुई है। अधिकांश परिवारों ने दूसरी बार सिलेंडर रिफिल ही नहीं कराया है। नतीजतन अब ये परिवार पुन: खाना बनाने के लिए लकड़ी, उपले व अन्य वस्तुओं का इस्तेमाल ईंधन के रूप में कर रहे हैं। ऐसे गरीब परिवारों को सिलेंडर भराने के लिए राशि उपलब्ध कराने के लिए बिहार के मधुबनी जिले में चल रहा पायजट प्रोजेक्ट इन दिनों खासी चर्चा में है। ट्रैक्टर जंक्शन की इस पोस्ट में आपको इस योजना के बारे में बताया जाएगा।

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केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर पूसा का अनूठा प्रयोग

बिहार के मधुबनी जिले स्थित सुखैत गांव में करीब 104 परिवार हैं। गांव के अधिकांश गरीब परिवारों को प्रधानमंत्री उज्जवला योजना के तहत गैस सिलेेंडर व चूल्हा नि:शुल्क मिला था। इन परिवारों ने एक बार तो सिलेंडर का उपयोग कर लिया, लेकिन अब उन्हें सिलेंडर रिफिल कराने के लिए आर्थिक तंगी से गुजरना पड़ रहा है। ग्रामीण परिवेश के परिवारों की पीड़ा को समझते हुए डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर पूसा ने एक अनूठा प्रयोग किया है। इसमें गोबर के बदले गैस सिलेंडर देने का प्रावधान है। विश्वविद्यालय ने इस योजना की शुरुआत मधुबनी जिले के सुखैत गांव से की है। 


गोबर के बदले गैस सिलेंडर पायलट प्रोजेक्ट से मिलेगा रोजगार

डॉक्टर राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर पूसा के कुलपति डा. रमेश चंद्र श्रीवास्तव इस योजना को लेकर काफी उत्साहित हैं और उनका कहना है कि इस योजना के तहत सुखैत गांव को हमने पायलट प्रोजेक्ट के रूप में लिया है। इससे किसान और वहां के परिवार के लोगों को रोजगार भी मिलेगा और गांव की जीवनशैली में बदलाव आएगा। लोगों की उत्सुकता और सहयोग को देखते हुए इसे सभी गांव में लागू किया जा सकता है। किसान इस योजना से जुडक़र अगर लगातार गोबर देता रहेगा तो उसे गैस सिलेंडर भराने के लिए हर माह पैस आसानी से मिलते रहेंगे।


आखिर क्यों शुरू किया गया पायजल प्रोजेक्ट, जानें असल वजह

इस पायलट प्रोजेक्ट की जिम्मेदारी वरिष्ठ भूमि वैज्ञानिक डा. शकर झा को दी गई है। शंकर झा के मीडिया में प्रकाशित बयानों के अनुसार इस प्रोजेक्ट के तहत सबसे पहले गहन शोध किया और पाया कि यहां गरीब लोगों के घरों में गैस चुल्हा तो है लेकिन सिलेंडर में गैस नहीं है। ज्यादातर परिवार में पुरुष रोजगार के लिए बाहर गए हुए हैं। महिलाओं को ही पारिवारिक जिम्मेदारी उठानी पड़ रही है। आर्थिक हालात ठीक नहीं होने के कारण महिलाएं अपने घरों में पारंपरिक तरीके से यानी लकड़ी और उपले पर खाना पका रही हैं। गांव में पीएम उज्ज्वला योजना के तहत गरीब परिवारों को गैस कनेक्शन मुफ्त में देने से लोगों की जिंदगी आसान हुई है, लेकिन वे एक फ्री सिलेंडर के बाद दूसरी बार भराने की हिम्मत नहीं कर रहे थे। इसी को देखते हुए इस समस्या के समाधान की दिशा में काम करना शुरू कर दिया और लोगों के घरों से गोबर लेने लगे।


प्रत्येक परिवार से प्रतिदिन लेते हैं 20 से 25 किलो गोबर 

पायलट प्रोजेक्ट से जुड़े किसान परिवारों से प्रतिदिन 20 से 25 किलो गोबर इकट्ठा किया जाता है। प्रतिदिन किसान के घर एक ठेला गाड़ी जाती है और 20 से 25 किलो गोबर और उनके घर से निकलने वाले कचरे को इकट्ठा करती है। इसके अलावा पुआल और जलकुंभी को भी इकट्ठा किया जाता है। 


गोबर से बनी खाद से कमाई

इस गांव के गोबर से 500 टन वर्मी कम्पोस्ट बनाने की योजना है, लेकिन पहले चरण में सिर्फ 250 टन बनाने की योजना पर काम चल रहा है। पायलट प्रोजेक्ट के तहत 60 फीसदी गोबर और 40 फीसदी वेस्ट मेटेरियल के साथ मिलावट के बाद गोबर और कचड़े से कम्पोस्ट तैयार किया जा रहा है। स्मोकलेस रूरल सेनिटाइजेशन प्रोग्राम के तहत अभी तक यूनिवर्सिटी ने 28 परिवार को सिलेंडर दिया है। इस योजना में अब तक कुल 56 परिवार जुड़ गए हैं। गांव में सिर्फ 104 परिवार ही है। प्रोजेक्ट के तहत 500 टन वर्मी कम्पोस्ट बनाकर इन किसानों को ही दिया जाएगा। इससे सलाना लाखों की बचत होगी। साथ ही यहां के किसान ऑर्गेनिक फसल उगाएंगे और यहीं उनकों रोजगार भी मिल जाएगा। उनके घर का चूल्हा भी जलेगा और खेती भी होगी। 5 साल बाद इन्हीं गांव वालों को ही यूनिवर्सिटी यह प्रोजेक्ट सुपुर्द कर देगी। 


भविष्य में बढ़ेगा योजना का दायरा

पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर फिलहाल इसे सिर्फ एक गांव में शुरू किया गया है। आने वाले समय में निजी कंपनियों और एनजीओ की मदद से प्रोजेक्ट को जिले के सभी पंचायतों में शुरू करने की योजना है। यूनिवर्सिटी के कुलपति डॉक्टर रमेश चंद्र श्रीवास्तव यहां के सभी पंचायतों में इस प्रोजेक्ट को लागू कराने के लिए कई निजी कंपनियों और एनजीओं से भी बातचीत कर रहे हैं।


योजना से जुडऩे के बाद लोगों की जिंदगी में आया बदलाव

यूनिवर्सिटी की इस योजना से जुडऩे के बाद गांव के लोगों की जिंदगी में कई बदलाव आए हैं। अब उन्हें सिलेंडर भराने के लिए पैसों की चिंता नहीं करनी पड़ती। गांव में इस योजना से सबसे पहले जुडऩे वाले सुनील यादव बताते हैं कि हमारे यहां अभी भी गरीबी है। सिलेंडर के पूरे पैसे इक_ा करना एक बड़ी समस्या रहती है। ग्रामीण कई महीनों में या साल में एक बार ही सिलेंडर ले पाते थे। इस योजना से जुडऩे के साथ ही हमलोगों की जिंदगी में कई बदलाव महसूस होने लगे हैं। पहले हम बच्चों की फीस, बूजुर्गों की दवाई और बाढ़ की परेशानी में उलझे रहते थे। अब भविष्य में हमलोग भी बेहतर कर सकते हैं। आपको बता दें कि सुनील ने ही वर्मी कम्पोस्ट बनाने के लिए जमीन भी उपलब्ध कराई है।

 

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