प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इंदौर में बने एशिया के सबसे बड़े बायो सीएनजी प्लांट गोबर-धन का वर्चुअल तरीके से लोकार्पण किया। इस अवसर पर प्रधानमंत्री मोदी ने कहा कि इंदौर के कचरे और पशुधन से गोबर धन और इससे स्वच्छता धन और फिर ऊर्जा धन बनेगा। उन्होंने कहा यह गोबर-धन बायो सीएनजी प्लांट कचरे को कंचन बनाने का काम है। देश के अन्य शहरों और गांवों में भी इस तरह के प्लांट बन रहे है। इससे पशुपालकों को गोबर से आय हो रही है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कचरे से कंचन बनाने के अभियान की जानकारी अधिक से अधिक लोगों को दी जानी चाहिए। यहां बनने वाली जैविक खाद से धरती मां को जीवन दान मिलेगा। इस प्लांट से लोगों को रोजगार मिलेगा। इस तरह ग्रीन रोजगार विकसित होंगे।
शहरों को कूड़े के पहाड़ों से मुक्त करने का लक्ष्य है। इंदौर एक मॉडल के रूप में तैयार हुआ है। आज देवगुराडिया में जहां प्लांट है, वहां पहले कूड़े का ढेर होता था, जिसे इंदौर ने बदला है। प्रधानमंत्री ने कहा कि कूड़े के पहाड़ों से हमारे शहरों को मुक्ति मिले और उन्हें ग्रीन जोन के रूप में तैयार करेंगे।
पीएम मोदी ने कहा कि हमारे पास तेल के कुएं नहीं लेकिन बायो फ्यूल से इथेनाल बनाने की क्षमता है। पेट्रोल में एथेनाल का प्रतिशत 8 प्रतिशत तक है। पहले देश में 40 करोड़ एथेनाल ब्लेंडिंग में इस्तेमाल होता था अब 300 करोड़ एथेनाल ब्लेंडिंग के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। भारत सोलर से बिजली बनाने में दुनिया के पांच प्रमुख देशों में शामिल है।
सीएम शिवराज सिंह चौहान ने भी कार्यक्रम को संबोधित किया। अपने संबोधन में उन्होंने कहा कि इंदौर एकमात्र ऐसा शहर है जो 6 तरह के कचरे को अलग करता है। 20 से ज्यादा बाजार जीरो वेस्ट बने है, 3 हजार बेकलेन बनी जहां बच्चे खेलते है। यहां नदियों को पुर्नजीवित किया जा रहा है। इस प्लांट में गीले कचरे से खाद बनाई जाएगी। इस प्लांट में बैक्टीरिया तैयार करने में गोबर का इस्तेमाल करेंगे, किसानों से गोबर खरीदा जाएगा। प्लांट में सौर उर्जा का उपयोग करेगा।
बता दें कि इस सीएनजी प्लांट का निर्माण 2020 में शुरू हुआ था। इस प्लांट पर 150 करोड़ रुपए खर्च आया है। ये प्लांट 15 एकड़ में फैला हुआ है। इस प्लांट में प्रतिदिन 100 टन एकड़ खाद का निर्माण होगा। इस प्लांट में प्रतिदिन 600 टन गीले कचरे की कटाई कर सीएनजी बनाने के लिए स्लरी तैयार की जाएगी। 4 डाइजेस्ट में स्लरी डाला जाएगा, जिससे बायोगैस तैयार होगी। अभी 250 टन क्षमता के दो डाइजेस्टरों में गीला कचरा डालकर बायो सीएनजी गैस तैयार की जा रही है। अन्य दो डाइजेस्टरों में कल्चर तैयार किया जा रहा है, जिसमें मार्च की शुरुआत में गीला कचरा डालकर बायो-सीएनजी का उत्पादन शुरू किया जाएगा।
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार प्लांट का संचालन दो शिफ्टों में किया जाएगा। इसमें सुबह व रात को शिफ्ट में कर्मचारी कार्य करेंगे। अभी यहां 65 कर्मचारी कार्य प्लांट में कार्य कर रहे हैं। सेंट्रल कमांड कंट्रोल रूम से प्लांट की निगरानी की जाएगी।
प्रोजेक्ट हेड नितेश त्रिपाठी के मुताबिक जैविक कूड़े को डीप बंकर में डाला जाता हैं, फिर वहां से ग्रैब क्रेन से उठाकर प्री-ट्रीटमेंट एरिया में मिलिंग होती है। इसके बाद इसे स्लरी में कंवर्ट करते हैं। स्लरी को डायजर्स में डाइजेस्ट किया जाता है और उससे बायोगैस बनाई जाती है। इसके बाद बायोगैस को स्टोरेज एरिया में ले जाया जाता है, जिसमें मीथेन 55-60 होता है। इसके बाद फिर उसे गैस क्लीनिंग और अपग्रेडेशन में ले जाया जाता है। पूरी प्रक्रिया कंट्रोल रूम के कंप्यूटर और मशीनों से संचालित होती है। आम भाषा में महीने भर से कम वक्त तक ये डाइजस्टर टैंक स्लरी को पचाते हैं, जिससे इनका बायो मिथेनेशन हो सके और एक रासायनिक प्रक्रिया से यहां बायो गैस तैयार होती है।
जर्मनी में 12 डाइजेस्टर के माध्यम से गीले कचरे का उपयोग कर बिजली बनाई जाती है। इंदौर में भी इसी तर्ज पर बायो गैस का निर्माण किया जाएगा। इंदौर में तैयार हुए 550 टन क्षमता वाले इस बायो सीएनजी प्लांट को फिलहाल एशिया का सबसे बडा प्लांट बताया जा रहा है। अभी जर्मन में ही इस तरह का बायोगैस प्लांट होने का दावा किया जा रहा है। विश्व बायोगैस फोरम के माध्यम से इस प्लांट का प्रमाणिकरण करवाया जाएगा। इसके बाद यह संभावना जताई जा रही है कि यह प्लांट विश्व का सबसे अधिक क्षमता वाला बायो सीएनजी प्लांट हो सकता है।
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