Published - 11 Feb 2021
अब वन्य प्राणियों से फसल को नुकसान होने पर सरकार की ओर से मुआवजा दिया जाएगा। हाल ही में मध्यप्रदेश राज्य कैबिनेट ने यह फैसला लिया है। इसके तहत किसान की फसल को यदि वन्य जीव से नुकसान होता है तो उसकी भरपाई की एवज में राज्य सरकार मुआवजा देगी। मीडिया में प्रकाशित खबरों के हवाले से राज्य कैबिनेट ने निर्णय लिया है कि यदि वन्य प्राणी फसल को नुकसान पहुंचाते हैं, तो सरकार किसान को मुआवजा देगी। इसके लिए राजस्व पुस्तिका परिपत्र में संशोधन के प्रस्ताव को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी है। यदि जानवर मकान को नुकसान पहुंचाते हैं तो भी किसान मुआवजा के लिए पात्र होंगे। इसके साथ ही प्राकृतिक आपदा या अग्नि दुर्घटना पर किसान को न्यूनतम 5 हजार रुपए आर्थिक अनुदान के रूप में देने निर्णय भी लिया गया है। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में मंगलवार को हुई बैठक में राजस्व पुस्तक परिपत्र में संशोधन प्रस्ताव को मंजूरी दी गई।
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अभी तक किसी जानवर के फसल और मकान को नुकसान पहुंचाने पर मुआवजे का प्रावधान नहीं था, लेकिन अब राजस्व पुस्तक परिपत्र में संशोधन कर इसे जोड़ा गया है। दरअसल, सिंगरौली, सीधी, अनूपपुर और शहडोल जिले में जंगली हाथियों द्वारा रहवासी क्षेत्रों में ग्रामीणों की परिसंपत्ति को पहुंचाया जा रहा है। 2017-18 में शहडोल में जंगली हाथियों ने मकान और घरेलू सामग्री को नुकसान पहुंचाया था। इस पर वनमंडलाधिकारी ने 12 प्रकरण में 5.06 लाख रुपए का मुआवजा देने का प्रस्ताव कलेक्टर को भेजा था, लेकिन उन्होंने इसे यह कहकर लौटा दिया था कि राजस्व पुस्तक परिपत्र में इसके लिए प्रावधान नहीं है, जबकि वन विभाग के 1989 के आदेश में क्षतिपूर्ति देने के निर्देश हैं। अब सरकार ने वन्य प्राणियों द्वारा नुकसान करने पर मुआवजे का प्रावधान कर दिया है।
संभागायुक्त कवींद्र कियावत ने संभाग के सभी जिलों के कृषि अधिकारियों को निर्देश दिए हैं कि खरीदी केंद्रों पर सभी तरह के विवाद से बचने के लिए किसानों को जागरूक कर गेंहू में मिट्टी मिलने से रोकने और चना में तेवड़ा रोकने के उपाय बताए। कियावत ने एक बैठक में निर्देश दिए कि किसानों को किसान खेत पाठशाला के अलावा पंजीयन केंद्र पर शिविर आयोजित कर बताएं कि खेत में ही चने के साथ पैदा हुए तिवड़ा को कैसे दूर किया जाए। उन्होंने कहा कि किसान तिवड़ा का उपयोग पशुचारे के रूप में भी कर कर सकते हैं। उन्होंने कहा कि धान वाले क्षेत्रों और मेड़ से लगकर बोए गए गेहूं में थ्रेसर के दौरान मिट्टी मिलने की आशंका रहती है। उन्होंने सभी उपसंचालक से कहा कि किसानों को थ्रेसर के समय मेड से लगी फसल को हाथ से ही काटने की सलाह देने की किसानों को समझाइश दी जाए। उन्होंने कहा कि पंजीयन शिविरों के अलावा सभी तरह के संदेश और प्रचार कर यह व्यवस्था सुनिश्चित की जाए।
संभागायुक्त ने निर्देश दिए कि सभी किसानों को जनहित और पर्यावरण हित में नरवाई नहीं जलाने के लिए संकल्प पत्र भरवाएं जिसमें एस्ट्रारीपर के साथ ही थ्रेसिंग करवाने का संकल्प लिया जाए। उन्होंने कहा कि नरवाई नहीं जलाने पर भूसा भी मिलता है। नरवाई जलाने के दुष्परिणामों का व्यापक प्रचार-प्रसार कराया जाए। हर साल नरवाई जलाने से जन-धन की हानि के साथ ही पर्यावरण का नुकसान होता है एवं मिट्टी की उर्वरक क्षमता कम होती है। साथ ही शासकीय गौशालाओं के पशुओं के लिए चारा दान करने के लिए भी संकल्प पत्र भरवाया जाए। खरीदी केन्द्रों पर किसानों को सभी नियमों की अच्छे से जानकारी दी जाए दें।
सम्मेलन में भी स्थानीय जनप्रतिनिधि, मीडिया सहित गणमान्य नागरिकों को भी शामिल किया जाए। उन्होंने निर्देश दिए कि किसानों की जागरूकता के लिए किसान दीदी और किसान मित्रों को भी खेत-खेत पहुंचाया जाए। यहां यह बताना जरूरी है कि मध्यप्रदेश के रायसेन में एक लाख 14 हजार हेक्टेयर, विदिशा में एक लाख 134500, राजगढ़ में 82 हजार 580, सीहोर में 51 हजार हेक्टेयर में चना की बोवनी हुई है।
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