Published - 29 Jun 2020
किसानों की आमदनी बढ़ाने को लेकर केंद्र व राज्य सरकार अपने-अपने स्तर पर कई योजनाएं चला रही है जिसका किसानों को फायदा भी हो रहा है। कृषि की तरफ सरकार का ज्यादा फोकस होने से खेती-किसानी व पशुपालन को बढ़ावा मिल रहा है। इसके सकात्मक परिणाम भी देखने को मिल रहे हैं। इन योजनाओं का लाभ मिलने से किसानों की फसलों का उत्पादन तो बढ़ा ही है साथ ही किसानों की आमदनी में भी इजाफा हुआ है। इसी कड़ी में छत्तीसगढ़ सरकार ने एक योजना चलाई है जो अन्य राज्य सरकारों की योजनाओं से कुछ हटकर है। इसमें छत्तीसगढ़ सरकार पशुपालक किसान से गाय-भैंस का गोबर खरीदेगी। इस अनूठी योजना की शुरुआत गोधन न्याय योजना के तहत 21 जुलाई को हरेली त्योहार के दिन से की जाएगी। गौरतलब है कि छत्तीसगढ़ देश का पहला राज्य होगा जो पशुपालकों से गोबर की खरीद करेगा। इससे एक ओर सडक़ पर घूम रहे आवारा पशुओं को रोकने में मदद मिलेगी। वहीं गोबर से वर्मी कम्पोस्ट खाद बनाई जाएगी जिसका उपयोग जैविक खेती को बढ़ावा देने में किया जाएगा।
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मीडिया व समाचार पत्रों में प्रकाशित खबरों के हवाले से छत्तीसगढ़ राज्य के मुख्यमंत्री भूपेश बघेल ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में गोबर खरीद योजना की जानकारी देते हुए बताया कि गोबर प्रबंधन की दिशा में प्रयास करने वाली ये देश की पहली सरकार है जो पशुपालकों से गोबर की खरीद करेगी जिसका उपयोग वर्मी कम्पोस्ट बनाने में किया जाएगा। उन्होंने कहा कि आने वाले समय में सरकार गोमूत्र खरीदने पर भी विचार कर सकती है। इससे ग्रामीण अर्थव्यवस्था के दृष्टिकोण से बेहतर परिणाम होंगे। मुख्यमंत्री बघेल ने कहा कि सरकार चाहती है कि प्रदेश जैविक खेती की तरफ आगे बढ़े। फसलों की गुणवत्ता में सुधार हो जिससे किसान की आमदनी बढ़े।
राज्य के मुख्यमंत्री बघेल के अनुसार राज्य में हरेली पर्व पर यानि 21 जुलाई से पशुपालकों एवं किसानों से गोबर निर्धारित दर पर क्रय किए जाने की शुरुआत की जाएगी। गोधन न्याय योजना के तहत पशुपालकों से गोबर क्रय करने के लिए दर निर्धारित की जाएगी। दर के निर्धारण के लिए कृषि एवं जल संसाधन मंत्री श्री रविन्द्र चौबे की अध्यक्षता में पांच सदस्यीय मंत्री मंडलीय उप समिति गठित की गई है। यह मंत्री मंडलीय समिति राज्य में किसानों, पशुपालकों, गौशाला संचालकों एवं बुद्धिजीवियों के सुझावों के अनुसार आठ दिन में गोबर क्रय का दर निर्धारित करेगी। मुख्यमंत्री ने कहा कि गोबर खरीदी से लेकर उसके वित्तीय प्रबंधन एवं वर्मी कम्पोस्ट के उत्पादन से लेकर उसके विक्रय तक कि प्रक्रिया के निर्धारण के लिए मुख्य सचिव की अध्यक्षता में प्रमुख सचिवों एवं सचिवों की एक कमेटी गठित की गई है।
छत्तीसगढ़ में सरकार द्वारा गावों में पशुधन के संरक्षण ओर संवर्धन के लिए गौठानों का निर्माण किया गया है। इनमें से राज्य के 2200 गावों में गौठानों का निर्माण हो चुका है और 2800 गावों में गौठानों का निर्माण अभी और किया जा रहा है। आनेवाले दो-तीन महीने में लगभग 5 हजार गावों में गौठान बन जाएंगे। इन गठानों को आजीविका केंद्र के रूप में विकसित किया जा रहा है। इन गौठानों में गोबर खरीद से लेकर वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण कार्य किया जाएगा। इसके अलावा इस योजना के तहत महिला स्व-सहायता समूहों को बढ़ावा दिया जाएगा।
केंचुआ खाद या वर्मीकम्पोस्ट पोषण पदार्थों से भरपूर एक उत्तम जैव उर्वरक है। यह केंचुआ आदि कीड़ों के द्वारा वनस्पतियों एवं भोजन के कचरे, गोबर आदि को विघटित करके बनाई जाती है। वर्मी कम्पोस्ट में बदबू नहीं होती है और मक्खी एवं मच्छर नहीं बढ़ते है तथा वातावरण प्रदूषित नहीं होता है। तापमान नियंत्रित रहने से जीवाणु क्रियाशील तथा सक्रिय रहते हैं। वर्मी कम्पोस्ट डेढ़ से दो माह के अंदर तैयार हो जाता है। इसमें 2.5 से 3 प्रतिशत नाइट्रोजन, 1.5 से 2 प्रतिशत सल्फर तथा 1.5 से 2 प्रतिशत पोटाश पाया जाता है। इस खाद को तैयार करने में प्रक्रिया स्थापित हो जाने के बाद एक से डेढ़ माह का समय लगता है। प्रत्येक माह एक टन खाद प्राप्त करने हेतु 100 वर्गफुट आकार की नर्सरी बेड पर्याप्त होती है। केचुंआ खाद की केवल 2 टन मात्रा प्रति हैक्टेयर आवश्यक है।
वर्मी कम्पोस्ट खाद को तीन विधियों से बनाया जा सकती है। इसे बनाने में खर्चा बहुत ही कम आता है लेकिन इसकी उपयोगिता अधिक होती है। इसके उपयोग से फसलों व भूमि को पोषण मिलने के साथ ही उत्पादन में बढ़ोतरी होती है।
पेड़ विधि : इस विधि के अंतर्गत पेड़ के चारों ओर गोबर गोलाई में डाला जाता है। हर रोज गोबर को डालकर धीरे-धीरे इस गोल चक्र को पूरा किया जाता है। पहली बार प्रक्रिया शुरू करते समय गोबर के ढेर में थोड़े से केंचुए डाल कर गोबर को जूट के बोरे से ढक दिया जाता है। नमी के लिए बोर के ऊपर समय-समय पर पानी का छिडक़ाव किया जाता है। केंचुए डाले गए गोबर को खाते हुए धीरे-धीरे आगे बढ़ते जाते हैं और अपने पीछे वर्मी कम्पोस्ट बना कर छोड़ते जाते हैं। इस तैयार वर्मी कम्पोस्ट को इकट्ठा करके बोरों में भरकर रख लिया जाता है।
बेड विधि : बेड विधि से खाद तैयार करने के लिए छायादार जगह पर जमीन के ऊपर 2-3 फुट की चौड़ाई और अपनी आवश्यकता के अनुरूप लंबाई के बेड बनाए जाते हैं। इन बेड़ों का निर्माण गाय-भैंस के गोबर, जानवरों के नीचे बिछाए गए घासफूस-खरपतवार के अवशेष आदि से किया जाता है। ढेर की ऊंचाई लगभग लगभग 01 फुट तक रखी जाती है। बेड के ऊपर पुवाल और घास डालकर ढक दिया जाता है। एक बेड का निर्माण हो जाने पर उसके बगल में दूसरे उसके बाद तीसरे बेड बनाते हुए जरूरत के अनुसार कई बेड बनाए जा सकते हैं। शुरुआत में पहले बेड में केंचुए डालने होते हैं जोकि उस बेड में उपस्थित गोबर और जैव-भार को खाद में परिवर्तित कर देते हैं। एक बेड का खाद बन जाने के बाद केंचुए स्वत: ही दूसरे बेड में पहुंच जाते हैं। इसके बाद पहले बेड से वर्मी कम्पोस्ट अलग करके छानकर भंडारित कर लिया जाता है तथा पुन: इस पर गोबर आदि का ढेर लगाकर बेड बना लेते हैं।
टटिया विधि : इस विधि में प्लास्टिक की बोरी या तिरपाल से बांस के माध्यम से टटिया बनाकर वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। इस विधि में प्लास्टिक की बोरियों को खोलकर कई को मिलाकर सिलाई की जाती है। फिर बांस या लट्ठे के सहारे चारों ओर से सहारा देकर गोलाई में रख कर उसमें गोबर डाल दिया जाता है। गोबर में केंचुए डालकर टटिया विधि से वर्मी कम्पोस्ट का निर्माण किया जाता है। जिसमें लागत न के बराबर आती है।
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