Published - 09 Oct 2020
कहावत है कि जहां चाह होती है वहां राहें अपने आप बनती चली जाती है। ऐसा ही कुछ धौलपुर के किसानों ने अपनी मेहनत से कर दिखाया है। विषम भौगोलिक परिस्थितियों के बावजूद यहां के किसानों ने चंबल जैसे दुर्गम क्षेत्र में फसलें उगाकर यह साबित कर दिया है कि यदि मन में कुछ करने की चाहत हो तो परिस्थितियां कितनी ही विषय क्यूं न हो सब संभव किया जा सकता है। आज यहां के किसान चंबल के बीहड़ों में गेहूं की फसल उगाकर काफी अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आगे यहां के किसानों की बागवानी और फलों की नई किस्में विकसित करने की योजना है जिसके लिए भी वे प्रयास कर रहे हैं। माना जाता है कि किसानों के प्रयास से यहां आने वाले समय में फल-फूलों का उत्पादन भी जैविक खेती के जरिये संभव हो सकेगा।
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किसानों ने यहां फसल उगाने के लिए जैविक खेती को आधार बनाया। इसके पीछे कारण ये हैं कि जैविक खेती से फसल उगाने पर खर्चा तो कम आता ही है साथ ही विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों से जो भूमि की उर्वरा शक्ति का ह्रास होता है वे नहीं होता है। जैविक खेती से भूमि की उर्वरा शक्ति बनी रहती है। वहीं इससे प्राप्त होने वाली फसल स्वास्थ्य की दृष्टि से भी उत्तम होती है।
धौलपुर के किसानों को जैविक खेती के प्रति जागरूक करने वाले डीएम आके जायसवाल ने मीडिया को बताया कि भूमि की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने तथा मनुष्य व पशु स्वास्थ्य पर कृषि में उपयोग हो रहे रसायनों के प्रयोग से उत्पन्न दुष्प्रभावों से बचने के लिए जैविक खेती करना आज की आवश्यकता है। इसके लिए सबसे पहले किसानों को जागरूक करना होगा तभी अच्छे परिणाम सामने आएंगे। यहां के किसानों को पहले जैविक खेती की महत्ता बनाई गई और उन्हें जैविक खेती करने के प्रति जागरूक करते किया गया। इसके लिए धौलपुर जिले में कृषि विभाग के माध्यम से जैविक ख्ेाती के लिए वर्ष 2018-19 में परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत एक हजार हैक्टेयर क्षेत्रफल के लिए 1148 किसानों का चयन किया गया।
इन सभी चयनित किसानों को पंचायत समितिवार कुल 50 समूहों में बांटा गया। इसके अंतर्गत प्रत्येक समूह में 20 हैक्टेयर जमीन के लगभग 20 किसानों का पीजीएस इंडिया (पार्टीसिपेटरी गारंटी सिस्टम, इंडिया) पर पंजीयन करवाया गया था। इन किसानों को परंपरागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक उत्पादन लेने हेतु वर्मी कम्पोस्ट इकाई निर्माण, जैविक काढ़ा उत्पादन इकाई, भूमि का जैविक परिवर्तन एवं जैविक आदान हेतु कृषि विभाग द्वारा प्रत्येक किसान को अधिकतम राशि 9 हजार रुपए का अनुदान दिया गया था। इसके बाद जैविक खेती की जो मुहिम शुरू की गई उसके बेहतर परिणाम मिले, आज की बीहड़ की बेकार पड़ी भूमि का उपयोग तो हुआ ही साथ ही किसानों को कमाई का जरिया भी मिल गया। आज किसान जैविक खेती कर अच्छी कमाई कर रहे हैं।
जैविक खेती के आंकड़ों के अनुसार पंचायत समिति सैपऊ में 182 किसानों द्वारा 184 हैक्टेयर क्षेत्रफल में 6774 क्विंटल, पंचायत समिति, धालपुर में 303 किसानों द्वारा 220 हैक्टेयर क्षेत्रफल में 8303 क्विंटल, पंचायत समिति, बाड़ी के 247 किसानों द्वारा 253 हैक्टेयर क्षेत्रफल में 9054 क्विंटल, पंचायत समिति बसेड़ी के 85 किसानों द्वारा 167 हैक्टेयर क्षेत्रफल में 6109 क्विंटल रूपातरंण अवधि के जैविक गेहूं का उत्पादन किया गया है। इस प्रकार जिले में कुल 1100 किसानों द्वारा 895 हैक्टेयर क्षेत्रफल 32806 क्विंटल जैविक कार्यक्रम हेतु भूमि का जैविक रूपांतरण अवधि के जैविक गेहूं का उत्पादन लिया गया है।
धौलपुर जिले में जैविक खेती के इस कार्यक्रम से जुड़े किसानों को इस वर्ष पीजीएस इंडिया पर पंजीकरण उपरांत दो वर्ष के भूमि के जैविक परिवर्तन होने केे स्कोप सर्टीफिकेट जारी किए जा चुके हैं। इन सभी किसानों द्वारा जैविक खेती करने की दिशा में यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि है। यह प्रमाण-पत्र मिलने के बाद आगामी वर्षों में यहां के किसान अपना जैविक उत्पादन तैयार कर सकेंगे और बाजार में बेच सकेंगे। जिससे उन्हें बाजार में गुणवत्ता के आधार पर 100 प्रतिशत तक अधिक मूल्य मिल सकेगा।
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