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गन्ना किसानों की आर्थिक दशा और उनकी आय बढ़ाने के लिए मिलेगा मुआवजा

Published - 28 Feb 2022

राज्य के लाखों गन्ना किसानों को मिलेगी राहत, जानें, पूरी जानकारी

किसानों की आर्थिक दशा सुधारने और उनकी आय बढ़ाने के लिए केंद्र और राज्य स्तर सरकार प्रयास कर रही है। इसके लिए सरकार की ओर से किसानों के लिए कई लाभकारी योजनाएं चलाई जा रही है। इसी क्रम में बिहार सरकार की ओर से फसल मुआवजा योजना चलाई जा रही है। इसके तहत किसानों को फसल क्षति पर मुआवजा प्रदान किया जाता है। अभी तक इस योजना में गन्ना किसान शामिल नहीं थे, लेकिन अब इस योजना में गन्ना किसानों को भी शामिल कर लिया गया है। इसके तहत यदि प्राकृतिक आपदा से गन्ना किसानों की फसल को नुकसान होता है तो इसकी भरपाई राज्य सरकार करेगी। इसके लिए उन्हें इनपुट सब्सिडी का लाभ प्रदान किया जाएगा। 

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार इस संबंध में गन्ना उद्योग विभाग के मंत्री प्रमोद कुमार ने बताया कि अब गन्ना उद्योग से जुड़े किसानों को घबराने की जरूरत नहीं है। उन्हें भी फसल क्षति का मुआवजा दिया जाएगा। प्रमोद कुमार ने कहा कि काफी समय से हमारा प्रयास था कि गन्ना उद्योग से जुड़े किसानों को भी इसका लाभ मिले और अब बिहार सरकार ने इसको लागू किया है। इसके लिए हम बिहार सरकार को धन्यवाद देते हैं। उन्होंने बताया कि फसल क्षति का आंकलन कृषि विभाग की ओर से किया जाएगा। किसानों को जो भी नुकसान होगा या उनकी जो फसल की क्षति हुई होगी उन किसानों को अनुदान भी अनुदान दिया जाएगा। इस खबर से राज्य के लाखों गन्ना किसानों को राहत मिलेगी।

अन्य फसलों की तरह ही गन्ना पर भी मिलेगा मुआवजा 

मंत्री प्रमोद कुमार ने बताया कि बाढ़, सुखाड़ के कारण अक्सर गन्ना उद्योग से जुड़े किसानों के फसल को क्षति पहुंचता था और किसान काफी चिंतित रहते थे। बिहार के पूर्वी चंपारण, पश्चिम चंपारण, सीतामढ़ी, गोपालगंज और मुजफ्फरपुर जिले के किसान सबसे अधिक प्रभावित रहते थे। लेकिन अब गन्ना की खेती करने वाले किसानों को भी मुआवजा मिलेगा। मंत्री ने कहा कि इस बार हमने लक्ष्य भी रखा है कि जो गन्ना की खेती तीन लाख हेक्टेयर में होती है। उसे चार लाख हैक्टेयर किया जाए। इसके लिए विभाग लगातार कार्य कर रहा है

गन्ना क्षति पर बिहार के किसानों को कितना मिलेगा मुआवजा

कृषि विभाग ने मुआवाजा देने के लिए कुछ शर्त भी रखी हैं। इसके मुताबिक, वैसी परती भूमि, जिस पर पिछले तीन वर्षों में फसल लगाये हों, उसी खेत के इस साल परती रहने पर मुआवजा मिलेगा। कृषि विभाग की तरफ से फसल क्षति के लिए मुआवजे की राशि भी निर्धारित कर दी गई है जो इस प्रकार से है-

  • वर्षा पर आश्रित रहने वाले फसल क्षेत्र के लिए 6,800 रुपए प्रति हेक्टेयर रुपए मुआवजा दिया जाएगा।
  • जबकि सिंचित क्षेत्र के लिए 13,500 रुपए प्रति हेक्टेयर मुआवजा मिलेगा। 
  • शाश्वत फसल (गन्ना सहित) के लिए 18,000 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से मुआवजा दिया जाएगा। 
  • परती भूमि के लिए भी 6,800 रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से कृषि इनपुट अनुदान दिया जाएगा। 
  • बता दें कि यह अनुदान प्रति किसान अधिकतम दो हेक्टेयर ही दिया जाएगा। किसान को इस योजना के अंतर्गत फसल क्षेत्र के लिए न्यूनतम 1,000 रुपए मुआवजा दिया जाएगा। ये मुआवजा सभी प्रभावित रैयत एवं गैर रैयत किसान को दिया जाएगा।

किसानों को कैसे मिलेगा मुआवजा का लाभ

प्रदेश के किसानों को यह मुआवजा इनपुट अनुदान के रूप में प्राप्त होता है। इसकेे लिए किसानों को बिहार कृषि विभाग की अधिकारिक वेबसाइट dbtagriculture.bihar.gov.in पर जाकर आवेदन करना होता है। आवेदन का सत्यापन होने के बाद किसानों को मुआवजे की राशि उनके खातों में डीबीटी के माध्यम उनके प्रदान की जाएगी।

बिहार में किन-किन जिलों में होती है गन्ना की खेती

बिहार में पश्चिम चंपारण, पूर्वी चंपारण, सीवान, गोपालगंज, सीमामढ़ी, समस्तीपुर, मुजफ्फरपुर सहित कई जिलों में गन्ने की खेती होती है। 

बिहार में घट रहा है गन्ने का उत्पादन और मिठास

मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर बिहार में बीते वर्षों के मुकाबले गन्ना उत्पादन में कमी आई है। इसके पीछे सरकार नीतियों को जिम्मेदार ठहराया जा रहा है। बिहार में गन्ने से चीनी निकालने की दर मात्र 9.2 प्रतिशत है, जो 1980 में 13 प्रतिशत थी। जबकि महराष्ट्र और तमिलनाडु में गन्ने से चीनी निकालने की दर 13 प्रतिशत के करीब है। इधर राज्य के गन्ना उद्योग मंत्री अवधेश प्रसाद कुशवाहा का कहना है कि गन्ना उत्पादन में बिहार का पुराना गौरव हासिल करने के लिए उत्पादन के साथ-साथ अधिक से अधिक मात्रा में चीनी निकालने का लक्ष्य हासिल करना जरूरी है। गौरतलब है कि पूर्व में राज्य में चीनी निगम की 15 चीनी मिलों सहित कुल 29 चीनी मिलें थीं। लेकिन वर्ष 1995 के बाद घाटे में चलने के कारण निगम की सभी मिलें धीरे-धीरे बंद हो गईं। भारतीय किसान संघ की बिहार इकाई के अध्यक्ष नेसार अहमद ने बताया कि प्रत्येक वर्ष दिसंबर में गन्ने की पेराई प्रारंभ होती है और मार्च के अंत से लेकर 15 अप्रैल तक चीनी मिलों से चीनी का उत्पादन प्रारंभ होता है। उन्होंने कहा कि बिहार में 1950-60 के दशक में पूरे देश के कुल चीनी उत्पादन की 60 प्रतिशत चीनी बिहार में उत्पादित होती थी, लेकिन सरकार की गलत नीतियों के कारण इसमें कमी आती गई। गन्ना विभाग के एक अन्य अधिकारी ने कहा कि बिहार में प्रोसेसिंग देर से प्रारंभ होती है, जिसके कारण गन्ने से चीनी कम निकलती है।

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