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भारत में शून्य बजट प्राकृतिक खेती से किसानों को कैसे मिलेगी राहत, जानिए क्या है

Published - 09 Nov 2019

शून्य बजट प्राकृतिक खेती, जानिए क्या है ( Zero Budget Farming )

भारत एक कृषि प्रधान देश है। यहां की लगभग 75 प्रतिशत आबादी कृषि व कृषि से संबंधित व्यवसायों से जुड़ी है। भारत के कृषकों की आर्थिक स्थिति को सुदृढ़ करने के लिए भारत सरकार का 2022 तक अन्नदाता की आय को दोगुना करने का लक्ष्य है।

इसी बात को ध्यान में रखते हुए भारत सरकार ने 17 वीं लोकसभा के बजट में शुन्य बजट व प्राकृतिक कृषि की अवधारण को देश भर में लागू करने का फैसला किया है।

‘‘हमारी धरती यहां रहने वाले सभी जीवों की आवश्यकता पूर्ति कर सकती है, लेकिन उनके लालच की नहीं - महात्मा गांधी’’

इस अवधारण के पालन करने से शुन्य बजट अर्थात आर्थिक रूप से परेशान हुए बिना प्राकृतिक रूप से खेती की जा सकती है। अन्नदाता को कर्ज के कभी न समाप्त होने वाले कुचक्र में फंसे बिना अपनी उपज को खेतों में खड़ा कर सकता है।

प्राकृतिक कृषि (रसायनों का उपभोग किए बिना प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग कर उपज उगाना) द्वारा रसायनों के निरंतर उपयोग से जो विषाक्त पदार्थ खाद्य पदार्थों में फैल रहें है, से बचा जा सकता है। हरित क्रांति के बाद खाद्यान्न की मात्रा तो बढ़ गई किन्तु अत्याधिक रसायनों के उपयोग से धरती विषाक्त होगई है।

शून्य बजट प्राकृतिक खेती (ZBNF) खेती के तरीकों का एक समूह है, और एक जमीनी स्तर पर किसान आंदोलन भी, जो भारत के विभिन्न राज्यों में फैल गया है। इसे दक्षिणी भारत, विशेषकर कर्नाटक के दक्षिणी भारतीय राज्य में व्यापक सफलता मिली है जहाँ यह पहली बार विकसित हुआ है। कर्नाटक राज्य में इस आंदोलन का जन्म श्री सुभाष पालेकर के सहयोग से हुआ था। शून्य बजट प्राकृतिक कृषि को पहचान दिलाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका पदमश्री प्राप्त श्री सुभाष पालेकर की मानी जाती है।

भारतीय अर्थव्यवस्था के नवउपनिवेशीकरण ने एक गहरे कृषि संकट को जन्म दिया, जो छोटे पैमाने पर खेती को एक असफल व्यवसाय बना रहा है।

किसानों के लिए अच्छे बीजऔरखाद महंगे एवं बाजार दुर्गम है उच्च उत्पादन लागत, ऋण के लिए उच्च ब्याज दर, फसलों की वाष्पशील बाजार कीमतों, जीवाश्म ईंधन आधारित आदानों की बढ़ती लागत और निजी बीजों के कारण भारतीय किसान तेजी से कर्ज के एक दुष्चक्र में फंसते जा रहे हैं। ऋण भारत में सभी आकार के किसानों के लिए एक समस्या है। ऐसी परिस्थितियों में, ’शून्य बजट’ की खेती ऋणों पर निर्भरता को खत्म करने और उत्पादन लागत में भारी कटौती करने का वादा करती है, जिससे हताश किसानों के लिए ऋण चक्र समाप्त हो जाता है। शब्द ‘बजट’ लेनदारी और खर्चों को संदर्भित करता है, इस प्रकार वाक्यांश ‘शून्य बजट’ का अर्थ है बिना किसी लेनदारी का उपयोग किए और खेती उपयोग आवष्यक सामग्री पर पर कोई पैसा खर्च किए बिना। ‘प्राकृतिक खेती’ का अर्थ है प्रकृति के साथ और बिना रसायनों के खेती।

  • भारत में इस कृषि पद्धति का प्रचलन दक्षिण के क्षेत्रों में प्रमुख रूप से कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में है।

 

शून्य बजट प्राकृतिक कृषि के चार स्तंभ

जीवामृतः- इसमें पालतू पशुओं के गोबर, मल-मूत्र आदि को किण्वित करके उपयोग में लाया जाता है। इससे मिट्टी में सूक्ष्म जीवों को एक अनुकूल स्थिति प्राप्त होती है।

बीजामृतः- इसमें बीजों का उपचार नीम के पत्तियों, तंबाकू एवं हरि मिर्च गाय के गोबर आदि का लेपन, से किया जाता है। जिससे यह अंकुरों को मिट्टी एवं बीज जनित बीमारियों से बचाती है।

आच्छादन (Mulching):- इसके माध्यम से मृदा में आदृता बनाये रखने हेतु मृदा को और अधिक मृदा से भूसे ढक दिया जाता है। जिससे मृदा ऊपर की परत जो उपजाऊ होती है। वो हवा के साथ बहे नहीं।

वाष्प (Moisture):- वाष्प एक ऐसी स्थिति है जिसमें वायु एवं जल के कण मृदा में उपस्थित होते हैं। इससे अति सिंचाई में कमी आती है तथा कम समय के लिये ही निश्चित अंतराल पर सिंचाई की आवश्यकता होती है। मृदा के आच्छादान से मृदा में नमी बनी रहती है।

 

ZBNF का महत्त्व

नेशनल सैंपल सर्वे ऑफिस (NSSO) के आंकड़ों के मुताबिक, लगभग 70 प्रतिषत कृषि परिवार जितना कमाते हैं, उससे ज्यादा खर्च करते हैं और सभी किसानों का आधे से ज्यादा कर्ज में होता है। आंध्र प्रदेश और तेलंगाना जैसे राज्यों में ऋणग्रस्तता का स्तर लगभग 90 % है, जहां प्रत्येक घर पर औसतन 1 लाख का कर्ज है। 2022 तक किसानों की आय दोगुनी करने के लिए केंद्र सरकार के वादे को प्राप्त करने के लिए, एक पहलू माना जा रहा है कि र्ठछथ् जैसे प्राकृतिक खेती के तरीके हैं जो कि उन इनपुट खरीद के लिए किसानों की ऋण पर निर्भरता कम करते हैं जो वे बर्दाश्त नहीं कर सकते। इस बीच, इंटर-क्रॉपिंग बढ़े हुए रिटर्न की अनुमति देता है।

ZBNF की आलोचना

  • ZBNF पूरी तरह से शून्य बजट कृषि नहीं है। इसमें कई तरह की लागतें शामिल होती हैं, जैसे- गायों के रखरखाव, सिंचाई हेतु बिजली और पम्पों की लागत, श्रम आदि।
  • ऐसा कोई अध्ययन नहीं है जो यह प्रमाणित करे कि ZBNF में प्रयुक्त भूमि अपेक्षाकृत अधिक उत्पादक होती है।
  • भारतीय मिट्टी कार्बनिक पदार्थों की दृष्टि से कम गुणवत्ता वाली है और कई अन्य सूक्ष्म पोषक तत्त्वों की मात्रा मिट्टी के प्रकार के आधार पर भिन्न-भिन्न होती है।
  • ZBNF अलग-अलग प्रकार की मिट्टी की समस्या के लिये एक ही तरह के सुझाव पर जोर देता है, जबकि भारत में अत्यधिक भौगोलिक विविधता विद्यमान है।
  • औद्योगिक इकाइयों और नगरपालिका के कचरे से रासायनिक संदूषण या उर्वरकों एवं कीटनाशकों का अत्यधिक प्रयोग, मिट्टी की विषाक्तता का कारण है।
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