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गेहूं की खेती कैसे करें : ये नई किस्म देगी एक हेक्टेयर में 70 क्विंटल तक उत्पादन

Published - 18 Nov 2020

भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र इंदौर ने विकसित की गेहूं की ये दो प्रजातियां

रबी का सीजन चल रहा है और इस दौरान रबी की प्रमुख फसल गेहूं की बुवाई का कार्य जोरों पर है। इसके लिए किसान बाजार से उन्नत बीज लाकर बुवाई का कार्य कर रहे हैं जिससे उन्हें बेहतर उत्पादन मिल सके। हम हमेशा ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को खेती से जुड़ी नई तकनीक, नई किस्म और नए-नए खेती से संबंधित प्रयोगों व तरीकों की जानकारी प्रदान करते रहते हैं। इसी क्रम में आज हम रबी की फसल गेहूं की उन दो किस्मों के बारे में आपको बताएंगे जो एक हेक्टेयर में अधिकतम 70 क्विंटल तक का उत्पादन देती है। इन किस्मों को भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र इंदौर ने विकसित किया है। यह दोनों ही किस्म जो चपाती के लिए उपयुक्त है, इन किस्मों के विकास में डॉ. एस.वी. साई प्रसाद और वैज्ञानिक जंगबहादुर सिंह का योगदान रहा है। वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि दोनों प्रजातियां अपनी गुणवत्ता और उच्च उत्पादन क्षमता के कारण किसानों के लिए वरदान साबित होंगी।

 

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भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र इंदौर द्वारा विकसित दो नई किस्मे

1. पूसा अहिल्या (एच.आई.1634)
2. पूसा वानी (एच.आई .1633)

 


पूसा अहिल्या (एच.आई .1634 ) की विशेषताएं

  • इस प्रजाति को मध्य भारत के प्रमुख उत्पादक क्षेत्र मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, झांसी एवं उदयपुर डिवीजन के लिए देर से बुवाई सिंचित अवस्था में अधिक उत्पादन प्राप्त करने के लिए चिन्हित किया गया है।
  • पूसा अहिल्या की औसत उत्पादन क्षमता 51.6 क्विंटल/हेक्टेयर और अधिकतम उत्पादन क्षमता 70.6 क्विंटल/हेक्टेयर है।
  • यह प्रजाति काले /भूरे रतुआ रोग अवरोधी होने के साथ ही इसमें करनाल बंट रोग की प्रतिरोधक क्षमता भी है।
  • इसका दाना बड़ा, कठोर, चमकदार और प्रोटीनयुक्त है, चपाती भी गुणवत्ता से परिपूर्ण है।


पूसा वानी (एच.आई .1633) की विशेषताएं

  • इसे प्रायद्वीपी क्षेत्र (महाराष्ट्र और कर्नाटक) में देर से बुवाई और सिंचित अवस्था में उत्पादन हेतु चिन्हित किया गया है।
  • पूसा वानी की औसत उत्पादन क्षमता 41.7 क्विंटल /हेक्टेयर और अधिकतम उत्पादन क्षमता 65 .8 क्विंटल/हेक्टेयर है।
  • यह किस्म प्रचलित एच.डी. 2992 से 6 .4 प्रतिशत अधिक उपज देती है।
  • यह प्रजाति काले और भूरे रतुआ रोग से पूर्ण अवरोधी और है और कीटों का प्रकोप भी नगण्य है।
  • • इसकी चपाती की गुणवत्ता इसलिए उत्तम है, क्योंकि इसमें प्रोटीन 12.4 प्रतिशत, लौह तत्व 41.6 पीपीएम और जिंक तत्व 41.1 पीपीएम होकर पोषक तत्वों से भरपूर है।


बीज प्राप्ति स्थान

भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, क्षेत्रीय केंद्र इंदौर, मध्यप्रदेश

 

 

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