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रजनीगंधा की खेती : फरवरी माह में करें रजनीगंधा की खेती होगी बंपर कमाई

Published - 08 Jan 2022

जानें, रजनीगंधा की इन किस्मों की विशेषताएं, लाभ और खेती का तरीका

सुगंधित पुष्पों में रजनीगंधा का भी अपना एक अलग महत्वपूर्ण स्थान है। रजनीगंधा के फूल लंबे समय तक सुगंधित और ताजा बने रहते हैं। इसलिए इनकी मांग बाजार में काफी अच्छी खासी है। रजनीगंधा (पोलोएंथस ट्यूबरोज लिन) की उत्पति मैक्सिको देश में हुई है। यह फूल एमरिलिडिएसी कुल का पौधा है। भारत में इसकी खेती पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, तामिलनाडु, महाराष्ट्र, उत्तर प्रदेश सहित अन्य राज्यों में की जाती है। भारत में रजनीगंधा के फूलों की खेती करीब 20 हजार हैक्टेयर क्षेत्र में हो रही है। फ्रांस, इटली, दक्षिणी अफ्रीका, अमेरिका आदि देशों में भी इसकी खेती की जाती है। किसान भाई इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा सकते हैं। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से रजनीगंधा की किस्मों और उसकी खेती की जानकारी दे रहे हैं ताकि किसान भाई इससे लाभान्वित हो सकें।

रजनीगंधा के फूलों की खेती से लाभ

रजनीगंधा के फूलों को माला बनाने, सजावट के काम में लेने में अधिक उपयोग किया जाता है। इसी के साथ ही इसके फूलों से अच्छी और शुद्ध किस्म के 0.08 से 0.135 प्रतिशत तेल भी प्राप्त होता है, जिसका उपयोग इत्र या परफ्यूम बनाने में किया जाता है। इस कारण इसकी बाजार मांग काफी अधिक है। 

कैसा होता है रजनीगंधा का पौधा

रंजनीगंधा के पौधे 60 से 120 सें.मी. लंबे होते हैं जिनमें 6 से 9 पत्तियां जिनकी लम्बाई 30-45 सें.मी. और चौड़ाई 1.3 सें. मी. होती है। पत्तियां चमकीली हरी होती हैं तथा पत्तियों के नीचे लाल बिंदिया होती है। फूल लाउड स्पीकर के चोंगे के आकार के एकहरे, तथा दोहरे सफेद रंगों के होते हैं।

रजनीगंधा की उन्नत किस्में / रजनीगंधा की उन्नत खेती

रजनीगंधा उन्नत किस्मों रजत रेखा, श्रीनगर, सुभाषिणी, प्रज्ज्वल, मैक्सिकन सिंगल हैं। यह रजनीगंधा की इकहरी किस्में हैं। इसके अलावा इसकी दोहरी किस्मों में कलकत्ता डवल, स्वर्ण रेखा, पर्ल आती है। 

रजनीगंधा की नई किस्मों का हुआ विमोचन

अभी बीते महीने में महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय पंद्रहवें दीक्षांत समारोह का 20-12-2021 के सफल समापन पर आयोजित कार्यक्रम में कुलपति प्रोफ़ेसर नरेंद्र सिंह राठौड़ ने रजनीगंधा पुष्प की दो किस्मों का विमोचन किया गया है। यह दो किस्मे प्रताप रजनी 7 एवं प्रताप रजनी -7 (1) हैं। वर्तमान में पुष्प दोनों की किस्मों का 14 अखिल भारतीय पुष्प अनुसंधान केंद्रों पर परीक्षण किया जा रहा है। 

रजनीगंधा की इन दो नई किस्मों की विशेषताएं

  • रजनीगंधा की इन दोनों किस्मों का उपयोग लैंडस्केपिंग, टेबल डेकोरेशन, भूमि सौंदर्य एवं फ्लावर एक्जीबिशन, कम ऊंचाई के गुलदस्ते बनाने में किया जा सकता है। 
  • इसके साथ ही दोनों किस्मों मैं अत्यधिक सुगंधित होने के कारण  कमरे में प्राकृतिक छिडक़ाव का एहसास कराती है।  
  • इन किस्मों में 35 के लगभग फ़्लोरेंस पाए जाते हैं  एवं की  कली का रंग हरा रहता है। 
  • प्रताप रजनी-7  की ऊंचाई लगभग 38  सेंटीमीटर एवं प्रताप रजनी-7 (1) की ऊंचाई लगभग 42 सेंटीमीटर रहती है एवं कली अवस्था पर लाल रंग पाया जाता है।

रजनीगंधा की खेती के लिए सरकार से मिलती है सब्सिडी

उद्यान एवं खाद्य प्रसंस्करण विभाग उत्तर प्रदेश की तरफ से राष्ट्रीय औद्यानिक मिशन के तहत किसानों की आर्थिक मदद भी दी जाती है। छोटे और सीमांत किसानों के लिए कुल लागत का 50 प्रतिशत या अधिकतम 35000 रुपए प्रति हेक्टेयर लाभ दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ दो हेक्टेयर जमीन तक ही लाभ दिया जाता है। अन्य किसानों के लिए कुल लागत का 33 प्रतिशत या अधिकतम 23100 रुपए प्रति हेक्टेयर दिया जाता है और एक लाभार्थी को सिर्फ चार हेक्टेयर ज़मीन पर ही लाभ दिया जाता है। 

रजनीगंधा की खेती के लिए जलवायु व भूमि (Rajnigandha Farming)

रजनीगंधा एक शीतोष्ण जलवायु का पौधा है, किन्तु यह पूरे वर्ष मध्यम जलवायु में उगाया जाता है। भारत में समशीतोष्ण जलवायु में गर्म और आर्द्र जगहों पर इसकी अच्छी वृद्धि होती है। 20 से 35 डिग्री सेंटीग्रेट तापमान रजनीगंधा के विकास और वृद्धि के लिए उपयुक्त होता है। हल्के धूप युक्त खुली जगहों में इसे अच्छी प्रकार से उगाया जा सकता है। छायादार स्थान इसके लिए उपयुक्त नहीं होता है। वैसे तो रजनीगंधा की खेती हर तरह की मिट्टी में की जा सकती है, लेकिन यह बलुई-दोमट या दोमट मिट्टी में इसकी अच्छी उपज मिलती है। 

रजनीगंधा की खेती कैसे करें

सब से पहले खेत, क्यारी व गमले की मिट्टी को मुलायम व बराबर कर लें। साल भर फूल लेने के लिए प्रत्येक 15 दिन के अंतराल पर कंद रोपण भी किया जा सकता है, कंद का आकार दो सेमी. व्यास का या इस से बड़ा होना चाहिए। हमेशा स्वस्थ और ताजे कंद ही इस्तेमाल करें। कन्द को उसके आकार और भूमि की संरचना के अनुसार चार-आठ सेमी. की गहराई पर और 20-30 सेमी. लाइन से लाइन और और 10-12 सेमी. कन्द से कन्द के बीच की दूरी पर रोपण करना चाहिए, रोपण करते समय भूमि में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। एक हेक्टेयर क्षेत्रफल में लगभग 1200-1500 किलो ग्राम कंदों की आवश्यकता होती है। 

रजनीगंधा की खेती में खाद व उर्वरक

रजनीगंधा की फसल में फूलों की अधिक पैदावार लेने के लिए उसमें आवश्यक मात्रा में जैविक खाद, कम्पोस्ट खाद का होना आवश्यक है। इसके लिए एक एकड़ भूमि में 25-30 टन गोबर की अच्छे तरीके से सड़ी हुई खाद देना चाहिए। बराबर-बराबर मात्रा में नाइट्रोजन तीन बार देना चाहिए। एक तो रोपाई से पहले, दूसरी इस के करीब 60 दिन बाद और तीसरी मात्रा तब दें जब फूल निकलने लगे। (लगभग 90 से 120 दिन बाद) कंपोस्ट, फास्फोरस और पोटाश की पूरी खुराक कंद रोपने के समय ही दे दें। 

रजनीगंधा में सिंचाई व्यवस्था

रजनीगंधा कन्द की रोपाई के समय पर्याप्त नमी होना जरूरी है जब कन्द के अंखुए निकलने लगे तब सिंचाई से बचाना चाहिए। गर्मी के मौसम में फसल में पांच-सात दिन और सर्दी के मौसम में 10-12 दिन के अंतर पर आवश्यकतानुसार सिंचाई करना उचित रहता है। इसके बाद भी मौसम की दशा, फसल की वृद्धि अवस्था तथा भूमि के प्रकार को ध्यान में रखकर सिंचाई व्यवस्था का निर्धारण करना चाहिए। 

रजनीगंधा की खेती में निराई-गुड़ाई कार्य

रजनीगंधा की खेती में समय-समय पर निराई-गुड़ाई का काम करना चाहिए। यह कार्य आवश्यकतानुसार माह में कम से कम एक जरूर करना चाहिए। खेत में कई अनाश्यक पौधे उग आते हैं उन्हें खुरपी की सहायता से निकालना चाहिए। 

रजनीगंधा के फूलों की तुड़ाई

रजनीगंधा में रोपण के 3 से 5 महीने बाद फूल आते हैं। फूलों को तभी तोडऩा चाहिए जब वह पूर्ण तरह से खिल गए हों तथा कट फ्लावर के लिए उस समय काटना चाहिए जब नीचे के एक-दो जोड़ फूल खिल गए हों। फूलों को काटने का अच्छा समय सुबह या शाम का होता है। फूल के डंडे को सकती स्केटियर की सहायता से पौधे के ऊपर 4-5 सें.मी. की दूरी से काटना चाहिए। इससे बल्व को नुकसान नहीं होता है। काटने के शीघ्र बाद उन्हें पानी में डालकर रखना चाहिए।

रजनीगंधा की खेती से प्राप्त उपज

उन्नत किस्मों के इस्तेमाल और सही तरीके से इसकी खेती करने पर करीब 80 से 120 क्विंटल खुले फूल का प्राप्त किया जा सकता है।  


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