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चीनी के निर्यात की अवधि बढ़ाने से गन्ना किसानों को मिलेगा बकाया राशि का भुगतान

Published - 18 Sep 2020

अतिरिक्त समय मिलने से चीनी मिलों को बकाया चुकाने में मिलेगी मदद

सरकार की ओर से चीनी के निर्यात की अवधि को तीन महीने बढ़ाए जाने दिए जाने से चीनी मिलों को राहत मिली है वहीं किसानों को भी उनका गन्ने की फसल का बकाया भुगतान मिलने की राह खुल गई है। हाल ही में सरकार ने चीनी के निर्यात के लिए समय सीमा और तीन महीने बढ़ाकर दिसंबर कर दी है। इससे चीनी मिलों को ज्यादा निर्यात करने का मौका मिलेगा। इससे मिलें किसानों के गन्ने के बकाए का भुगतान करने के लिए अतिरिक्त रकम हासिल कर सकेंगी। इससे वे गन्ना किसानों का बकाया चुकता कर सकेगी। जानकारी के अनुसार चालू शुगर सीजन ( अक्टूबर -सितंबर 2019-20 ) में चीनी मिलों ने 57 लाख टन चीनी का अनुबंध किया है, जो 60 लाख टन के लक्ष्य के करीब है।

 

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बता दें कि हर साल, सरकार अधिकतम स्वीकार्य निर्यात मात्रा (एमएईक्यू) के तहत निर्यात के लिए अलग-अलग मिल का कोटा तय करती है। खाद्य मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने मीडिया को बताया कि यह निर्णय लिया गया है कि उन चीनी मिलों, जिन्होंने इस महीने के अंत तक आंशिक रूप से चीनी सीजन 2019-20 का ( एमएईक्यू)  कोटा निर्यात किया है, उन्हें इस कैलेंडर वर्ष के अंत तक अपने कोटा की शेष राशि का निर्यात करने की अनुमति दी जाएगी। ऐसा मानना है कि इस निर्णय से चीनी मिलों के पास नकदी बढ़ेगी जिससे वे किसानों का गन्ना बकाया रुपए का भुगतान कर सकेंगे। 

 

 

गन्ना किसानों का 13,000 करोड़ रुपए है बकाया

गन्ना किसानों का चीनी मिलों के ऊपर करीब 13,000 रुपए बकाया है जिसका भुगतान अभी तक चीनी मिलों की ओर से नहीं किया गया है। इसको लेकर सरकार ने चीनी मिलों को चीनी निर्यात के लिए अतिरिक्त समय दिया है ताकि वे इस समय के दौरान चीनी का निर्यात करके उससे प्राप्त रुपए से किसानों को भुगतान करेंगे। बता दें कि सरकार निर्यात के लिए चीनी मिलों को प्रति टन 10,448 रुपए की सहायता प्रदान करती है। अधिकारी ने कहा कि कोविड-19 के बीच आपूर्ति में व्यवधान के कारण वैश्विक बाजार में चीनी की मांग बढ़ी है। अधिकारी ने बताया कि थाईलैंड में सूखा है। इसलिए इंडोनेशिया और मलेशिया जैसे देश जो थाईलैंड से आयात करते हैं, वे भारत पर निर्भर हैं। अधिकारी ने कहा कि समय सीमा के विस्तार के कारण 60 लाख टन का लक्ष्य पूरा होने की उम्मीद है। अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ के अध्यक्ष प्रफुल्ल विठलानी ने बताया कि समय अवधि में विस्तार से चीनी मिलों को शेष 3 लाख टन चीनी का पूरी तरह से निर्यात करने में मदद मिलेगी।

 

किसानों के खाते में जाएगी रकम

सरकार ने 60 लाख टन चीनी के निर्यात को मंजूरी दे दी है। इस पर सरकार 6268 करोड़ रुपए का निर्यात सब्सिडी देगी। सरकार ऐसी व्यवस्था करेगी, जिससे निर्यात से हासिल रकम किसानों के खाते में जाएगी। कैबिनेट की बैठक में यह फैसला लिया गया। कैबिनेट की बैठक के बाद रेल मंत्री पीयूष गोयल और पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने इस बारे में प्रेस कॉन्फ्रेंस के माध्यम से मीडिया को यह जानकारी दी। जावड़ेकर ने चीनी निर्यात के फैसले के बारे में बताया कि इससे किसानों को सीधे तौर पर फायदा होगा। अभी किसानों का काफी पैसा चीनी मिलों पर बकाया है। सरकार के इस फैसले से उनके हाथ में पैसा आएगा। उन्होंने बताया कि अभी देश में 162 लाख टन चीनी का स्टॉक है। इसमें से 40 लाख टन का बफर स्टॉक शामिल है। कुल स्टॉक से 60 लाख टन के निर्यात को मंजूरी दी गई है। इस स्टॉक के निर्यात होने से प्राप्त रुपए से किसानों का बकाया भुगतान किया जाएगा।

 

इस वर्ष कितना चीनी निर्यात हुआ अब तक

देश का चीनी निर्यात मौजूदा मार्केटिंग ईयर में अब तक बढक़र 17.44 लाख टन रहा है, जबकि पिछले पूरे चीनी मार्केटिंग सीजन 2017-18 में करीब पांच लाख टन चीनी का ही निर्यात हुआ था। चीनी उद्योग के आंकड़ों में यह जानकारी दी गई। देश में चीनी का मार्केटिंग सीजन 1 अक्टूबर से शुरू होकर 30 सितंबर तक चलता है। अखिल भारतीय चीनी व्यापार संघ ने एक बयान में कहा, एक अक्टूबर 2018 से छह अप्रैल 2019 के बीच 17.44 लाख टन चीनी का निर्यात किया गया। इसमें से कच्ची चीनी की मात्रा लगभग आठ लाख टन थी।

 

अभी 4.3 लाख टन चीनी का निर्यात होना है बाकी

व्यापार संघ के अनुसार अभी 4.3 लाख टन चीनी फिलहान निर्यात की प्रक्रिया में है। चीनी व्यापार संघ के मुख्य कार्याधिकारी आरपी भगरिया ने बताया कि अब तक कुल मिलाकर करीब 27 लाख टन चीनी निर्यात अनुबंध किया जा चुका है जिसमें से 21.7 लाख टन चीनी मिलों से भेजी जा चुकी है। वैश्विक बाजारों में चीनी के दाम काफी नीचे चल रहे हैं। यही वजह है कि घटी कीमतों के बीच भारतीय निर्यात प्रतिस्पर्धा में नहीं ठहर पा रहा है, क्योंकि देश में चीनी के दाम विश्व बाजार के दाम के मुकाबले कहीं ज्यादा हैं। यही वजह है कि पिछले मार्केटिंग ईयर में केवल पांच लाख टन चीनी का ही निर्यात हो पाया था।

 

 

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