Published - 14 Oct 2020
गन्ना किसानों की मुश्किलें कम होने का नाम ही नहीं ले रही है। एक ओर चीनी मिलों ने गन्ना किसानों की बकाया राशि का भुगतान नहीं किया और रही सही कसर गन्ने में लगा रेड रॉट रोग ने पूरी कर दी। इन दिनों गन्ने की खेती करने वाले किसान रेड रॉट रोग से परेशान हैं। इस रोग के प्रकोप से उनकी गन्ने की फसल सूखने लगी है। गन्ने की किस्म कोशा 0238 में रेड रॉट की समस्या देखने को मिल रही है। इस रोग के चलते किसानों की गन्ने की फसल सूख रही है जिससे खेत के खेत बर्बाद हो रहे हैं।
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इस रोग का प्रभाव उत्तरप्रदेश के कई जिलों में देखा गया है जिनमें सीतापुर, लखीमपुर खोरी, पीलीभीत, शाहजहांपुर आदि कई ऐसे जिले हैं जहां इस रोग के प्रभाव से किसानों की 80 फीसदी फसल सूख गई है। किसान बताते हैं कि पांच एकड़ में गन्ने की बुवाई की थी, गन्ने में महंगी कीटनाशक दवाओं का छिडक़ाव कर चुके हैं लेकिन रेड रॉट रोग की समस्या बनी हुई है। इस रोग के चलते साल दर साल गन्ने का रकबा घटता जा रहा है जिससे किसानों को नुकसान हो रहा है। यही कारण है कि यहां के किसानों का गन्ने की फसल से मोह कम होता जा रहा है और अब वे परेशान होकर दूसरी फसलों की ओर रूख कर रहे हैं। इसकी एक मुख्य वजह ये भी है कि गन्ने में अधिक लागत व रोग की परेशानी अन्य फसलों की तुलना में अधिक रहती है।
उत्तरप्रदेश के गन्ना शोध परिषद शाहजहांपुर के पैथोलॉजी अनुभाग के अनुभागाध्यक्ष डॉ. सुजीत प्रताप सिंह ने मीडिया को जानकारी देते हुए बताया कि गन्ने में रेड रॉट यानि लाल सडऩ एक बीज जनित रोग है, जिसे गन्ने का कैंसर भी कहा जाता है। यह फंफूदी से होता है। हरियाणा, पंजाब, उत्तरप्रदेश, बिहार, आंध्रप्रदेश और उड़ीसा में इस रोग से गन्ने को अधिक हानि होती है। उत्तरी बिहार और पूर्वी व मध्य उत्तरप्रदेश में इस रोग का प्रकोप महामारी के रूप में होता है।
इस रोग से ग्रसित होने पर गन्ने के तने के अंदर लाल रंग के साथ सफेद धब्बे के जैसे दिखते हैं। इसके कारण पौधा धीरे-धीरे सूखने लगता है और अंत में पूरा सूख जाता है। इस रोग से ग्रसित होने पर गन्ने की मिठास कम हो जाती है और उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ता है। कभी-कभी तो समय पर बचाव नहीं करने से पूरी की पूरी फसल बर्बाद हो जाती है।
इस रोग से गन्ने की फसल को बचाने के लिए किसान को चाहिए कि संक्रमित पौधे को जड़ से उखाडक़र नष्ट कर दें। उस जगह पर 10-20 ग्राम ब्लीचिंग पाउडर का बुरकाव करें। उस जगह पर 0.2 प्रतिशत थायो फेनेट मेथिल / कार्बेन्डाजिम को जड़ों के पास मिट्टी में डाले। 0.1 फीसदी थायो फेनेट मेथिल/काबेन्डाजिम/ टिबूकोनाजोल सिस्टेमेटिक फफूंदी नाशक का छिडक़ाव करें।
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