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कृषि बिलों पर बवाल, किसानों के साथ कई राजनीतिक पार्टियां भी उतरी विरोध में

Published - 19 Sep 2020

कृषि के तीन बिल: क्या है ये कृषि के ये तीन विधेयक और इनसे किसानों को क्या होगा फायदा या नुकसान, जानें पूरी जानकारी

केंद्र सरकार की ओर से लोकसभा में पेश किए कृषि बिलों को लेकर चारों और बवाल मचा हुआ है। कई राजनीतिक पार्टियां किसानों के साथ इस बिल के विरोध में मैदान में उतर चुकी है। यहीं नहीं सतारूढ़ सरकार के अंदर ही इसको लेकर कुछ लोगों में विरोधाभास है। हाल ही में खाद्य प्रसंसकरण मंत्री हरसिमरत कौर बादल इन बिलों के विरोध स्वरूप अपना इस्तीफा दे दिया। यही नहीं हरियाणा, पंजाब सहित अन्य राज्यों में भी इसके विरोध के सुर मुखर हो गए हैं। जगह-जगह विपक्षी पार्टियां इस बिल के खिलाफ रणनीति बनाने में जुट गई हैं। वहीं किसान भी इन बिलों को लेकर चिंतित है। उसे लगता है कि इस बिल के लागू हो जाने पर उसके हाथ बंध जाएंगे और वह अपने ऊपर होने वाले शोषण के विरूद्ध आवाज तक नहीं उठा पाएगा। इधर सतारूढ़ भाजपा पार्टी इस बिल की खूबियों के बारे में चर्चा करते नहीं थक रही है पर सरकार की बात किसानों के गले नहीं उतर रही है। उसे लगता है कि ये बिल उसके अस्तित्व को खत्म करने के लिए ही लागू किए जा रहे हैं।

 

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क्या है वे कृषि के तीन बिल जिन पर मचा हुआ है घमासान

  • कृषि उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सुविधा) बिल
  • आवश्यक वस्तु (संशोधन) बिल, मूल्य आश्वासन
  • कृषि सेवाओं पर किसान (सशक्तिकरण और संरक्षण) समझौता बिल


क्या है इन तीन बिलों में

 

1. कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा ) विधेयक 2020


कृषि उत्पादन व्यापार और वाणिज्य ( संवर्धन और सुविधा ) अध्यादेश, 2020, राज्य सरकारों को मंडियों के बाहर की गई कृषि उपज की बिक्री और खरीद पर टैक्स लगाने से रोकता है और किसानों को लाभकारी मूल्य पर अपनी उपज बेचने की स्वतंत्रता देता है। सरकार का कहना है कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी, जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।

 

सरकार का तर्क

सरकार का कहना है कि इस अध्यादेश से किसान अपनी उपज देश में कहीं भी, किसी भी व्यक्ति या संस्था को बेच सकते हैं। इस अध्यादेश में कृषि उपज विपणन समितियों (एपीएमसी मंडियों) के बाहर भी कृषि उत्पाद बेचने और खरीदने की व्यवस्था तैयार करना है। इसके जरिये सरकार एक देश, एक बाजार की बात कर रही है।

 

किसानों की घबराहट

मंडी के बाहर किसानों को उपज बेचने की सुविधा मिलने के बाद मंडियों में कौन आएगा। इस तरह तो मंडियों का अस्तित्व खतम हो जाएगा और इससे मंडी में काम करने वाले लोग बेरोजगार हो जाएंगे। बता दें कि मंडी के अंदर किसानों को उपज क्रय-विक्रय करने पर शुल्क देना पड़ता है पर मंडी के बाहर इनसे किसी भी प्रकार का शुल्क नहीं लिया जाएगा। इसके बावजूद भी एक बात जो किसान के मन में हैं कि इससे मंडी के बाहर उपज क्रय-विक्रय होने से मंडी की भूमिका ही खतम हो जाएगी और इससे समर्थन मूल्य पर फसल बेचना भी बंद कर दिया जा सकता है। इससे किसानों को यदि मंडी के बाहर व्यापारियों से कम दाम मिला तो उनके पास कोई दूसरा विकल्प नहीं रहेगा। हालांकि सरकार किसानों को आश्वस्त कर रही है कि इस बिल के बाद भी न तो मंडी बंद की जाएगी और न ही समर्थन मूल्य पर खरीद। 

 

2. आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020

पहले व्यापारी फसलों को किसानों के औने-पौने दामों में खरीदकर उसका भंडारण कर लेते थे और कालाबाजारी करते थे, उसको रोकने के लिए आवश्यक वस्तु अधिनियम 1955 में संशोधन 1955 बनाया गया था जिसके तहत व्यापारियों द्वारा कृषि उत्पादों के एक लिमिट से अधिक भंडारण पर रोक लगा दी गई थी। अब नये विधेयक आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक, 2020 आवश्यक वस्तुओं की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाने के लिए लाया गया है। इन वस्तुओं पर राष्ट्रीय आपदा या अकाल जैसी विशेष परिस्थितियों के अलावा स्टॉक की सीमा नहीं लगेगी।


सरकार का तर्क

इस पर सरकार का मानना है कि अब देश में कृषि उत्पादों को लक्ष्य से कहीं ज्यादा उत्पादित किया जा रहा है। किसानों को कोल्ड स्टोरेज, गोदामों, खाद्य प्रसंस्करण और निवेश की कमी के कारण बेहतर मूल्य नहीं मिल पाता है।

 

किसानों को इससे क्या नुकसान

इस विधेयक के तहत आवश्यक वस्तु की सूची से अनाज, दाल, तिलहन, खाद्य तेल, प्याज और आलू जैसी वस्तुओं को हटाया गया है। इससे व्यापारी मंडी के बाहर किसानों से समर्थन मूल्य से कुछ रुपए ज्यादा में सौंदे कर लेंगे और इसका स्टॉक कर लेंगे। और कुछ समय बाद बाजार में कृत्रिम तेजी दिखाकर ऊंचे दामों में विक्रय करेंगे। इससे किसान को सिर्फ चंद पैसे ज्यादा ही मिलेंगे जबकि व्यापारियों की पौ बारह होगी। होना तो ऐसा चाहिए कि सरकार न्यूनतम समर्थन मूल्य की तरह व्यापारियों के लिए भी सूची जारी करें ताकि उस सूची से कम में किसानों से सौदा नहीं कर पाएं। वहीं यदि कल को सरकार ने न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को खतम कर दिया गया तो व्यापारियों को खुली छूट मिल जाएगी और वे मनमाने मूल्य (यानि समर्थन मूल्य से भी नीचे) पर सौंदे करेंगे जिससे किसानों को हानि होगी। और तो और बिल के अनुसार किसान किसी विवाद के लिए कोर्ट का दरवाजा भी नहीं खटखटा सकते है। इससे एक प्रकार से किसानों को ही नुकसान होने की संभावना अधिक दिखाई देती है। इधर सरकार आश्वासन और तर्कों से किसानों को संतुष्ट करने में लगी हुई है।


 

3. कृषि सेवाओं पर किसान ( सशक्तिकरण और संरक्षण ) समझौता बिल

इस अध्यादेश में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की बात है। छोटे किसानों को ध्यान में रखते हुए यह फैसला किया गया है। सरकार का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों को शोषण के भय के बिना समानता के आधार पर प्रोसेसर्स, एग्रीगेटर्स, थोक विक्रेताओं, बड़े खुदरा कारोबारियों, निर्यातकों आदि के साथ जुडऩे में सक्षम बनाएगा। इससे बाजार की अनिश्चितता का जोखिम किसानों पर नहीं रहेगा और साथ ही किसानों की आधुनिक तकनीक और बेहतर इनपुट्स तक पहुंच भी सुनिश्चित होगी. इससे किसानों की आय में सुधार होगा।


सरकार का तर्क

सरकार का कहना है कि यह अध्यादेश किसानों की उपज की वैश्विक बाजारों में आपूर्ति के लिए जरूरी आपूर्ति चेन तैयार करने को निजी क्षेत्र से निवेश आकर्षित करने में एक उत्प्रेरक के रूप में काम करेगा. किसानों की ऊंचे मूल्य वाली कृषि के लिए तकनीक और परामर्श तक पहुंच सुनिश्चित होगी, साथ ही उन्हें ऐसी फसलों के लिए तैयार बाजार भी मिलेगा। बिचौलियों की भूमिका खत्म होगी और किसानों को अपनी फसल का बेहतर मूल्य मिलेगा।

 

किसानों द्वारा इस बिल का विरोध क्यूं

इस बिल का विरोध करने वालों का दावा है कि अब निजी कंपनियां खेती करेंगी जबकि किसान मजदूर बन जाएगा। किसान नेताओं का कहना है कि इसमें एग्रीमेंट की समयसीमा तो बताई गई है लेकिन न्यूनतम समर्थन मूल्य का जिक्र नहीं किया गया है। इस नए अध्यादेश के तहत किसान अपनी ही जमीन पर मजदूर बन के रह जायेगा। इस अध्यादेश के जरिये केंद्र सरकार कृषि का पश्चिमी मॉडल हमारे किसानों पर थोपना चाहती है लेकिन सरकार यह बात भूल जाती है कि हमारे किसानों की तुलना विदेशी किसानों से नहीं हो सकती क्योंकि हमारे यहां भूमि-जनसंख्या अनुपात पश्चिमी देशों से अलग है और हमारे यहां खेती-किसानी जीवनयापन करने का साधन है वहीं पश्चिमी देशों में यह व्यवसाय है। कृषि अध्यादेशों को लेकर किसान विरोध प्रदर्शन भी कर रहे हैं।

विरोधियों का मनना है कि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग से किसानों का शोषण होता है। पिछले साल गुजरात में पेप्सिको कम्पनी ने किसानों पर कई करोड़ का मुकदमा किया था जिसे बाद में किसान संगठनों के विरोध के चलते कंपनी ने वापस ले लिया था। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के तहत फसलों की बुआई से पहले कंपनियां किसानों का माल एक निश्चित मूल्य पर खरीदने का वादा करती हैं लेकिन बाद में जब किसान की फसल तैयार हो जाती है तो कंपनियाँ किसानों को कुछ समय इंतजार करने के लिए कहती हैं और बाद में किसानों के उत्पाद को खराब बता कर रिजेक्ट कर दिया जाता है। यदि ऐसा हुआ तो इससे किसानों को काफी हानि होने की संभावना रहेगी।

 


 

प्रधानमंत्री के किसानों को आश्वासन और विरोधी पार्टियों का हंगामा

प्रधानमंत्री के अनुसार न्यूनतम समर्थन मूल्य सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी किसान अपना उत्पाद खेत में या व्यापारिक प्लेटफॉर्म पर देश में कहीं भी बेच सकेंगे। इस बारे में केंद्रीय कृषमंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने लोकसभा में बताया कि इससे किसान अपनी उपज की कीमत तय कर सकेंगे। वह जहां चाहेंगे अपनी उपज को बेच सकेंगे जिसकी मदद से किसान के अधिकारों में इजाफा होगा और बाजार में प्रतियोगिता बढ़ेगी। किसान को उसकी फसल की गुणवत्ता के अनुसार मूल्य निर्धारण की स्वतंत्रता मिलेगी। लोकसभा में बिल पास करते हुए सरकार ने कहा कि इस बदलाव के जरिए किसानों और व्यापारियों को किसानों की उपज की बिक्री और खरीद से संबंधित आजादी मिलेगी। जिससे अच्छे माहौल पैदा होगा और दाम भी बेहतर मिलेंगे।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के अनुसार, विधेयकों से किसानों को लाभ होगा। प्रधानमंत्री मोदी ने गुरुवार को ट्वीट कर कहा, ये विधेयक सही मायने में किसानों को बिचौलियों और तमाम अवरोधों से मुक्त करेंगे। उन्होंने कहा, इस कृषि सुधार से किसानों को अपनी उपज बेचने के लिए नए-नए अवसर मिलेंगे, जिससे उनका मुनाफा बढ़ेगा। इससे हमारे कृषि क्षेत्र को जहां आधुनिक टेक्नोलॉजी का लाभ मिलेगा, वहीं अन्नदाता सशक्त होंगे। मोदी ने बिलों के विरोध को लेकर कहा कि किसानों को भ्रमित करने में बहुत सारी शक्तियां लगी हुई हैं। 

प्रधानमंत्री ने एक ट्वीट में साफ किया कि एमएसपी और सरकारी खरीद की व्यवस्था बनी रहेगी। अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा। वह मंडियों और बिचौलियों के जाल से निकल अपनी उपज को खेत पर ही कंपनियों, व्यापारियों आदि को बेच सकेगा। उसे इसके लिए मंडी की तरह कोई टैक्स नहीं देना पड़ेगा। मंडी में इस वक्त किसानों से साढ़े आठ फीसद तक मंडी शुल्क वसूला जाता है। इसकेे अलावा उन्होने कई फायदे भी बताएं।


प्रधानमंत्री के आश्वासन के बाद भी विरोध के स्वर

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आश्वासन देने के बाद भी किसान संगठन और राजनीतिक पार्टियां इसका लगातार विरोध कर प्रदर्शन करने में लगी हुई है। किसानों को व्यापारियों द्वारा शोषण किए जाने की चिंता सता ही है तो राज्य सरकारों को अपने सरकारी मंडी के संदर्भ में मिले अधिकारों को छिनने का डर सता रहा है। इसके विपरीत अन्य विरोधी राजनीतिक पार्टियों को सरकार के विरूद्ध मोर्चा खोलने का एक मुद्दा हाथ आ गया है जिसे वो किसी भी सूरत में खोना नहीं चाहती है। इस तरह पक्ष व विपक्ष दोनों के लिए किसान अहम बने हुए हैं।

 

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