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तेज गर्मी में नुकसान से बच सकते हैं मेंथा किसान, ऐसे करें बचाव

Published - 18 May 2022

जानें, गर्मी में मेंथा की फसल में लगने वाले कीट और उनसे बचाव की जानकारी

भीषण गर्मी के कारण कई फसलों को नुकसान हुआ है। वहीं बिजली कटौती और पानी की बढ़ती समस्या ने सिंचाई कार्य को भी बाधित किया है। इससे फसलों को नुकसान हो रहा है। इसके अलावा गर्मी के कारण फसलों में कीटों का प्रकोप भी बढ़ गया है जिससे फसलोत्पादन घटने का अंदेशा बना हुआ है। इसी क्रम में मेंथा की फसल को गर्मी जनित कीटों से नुकसान हो रहा है। किसानों को मेंथा की फसल को बर्बाद होने से बचाने के लिए उपाय करने चाहिए। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को मेंथा की फसल को गर्मी और कीटों से बचाने के वैज्ञानिक उपाय बता रहे हैं।  

तापमान बढ़ने से मेंथा की फसल हो रही प्रभावित

भीषण गर्मी के कारण बढ़ते तापमान ने मेंथा किसानों की चिंता को बढ़ा दिया है। मेंथा की फसल को नमी की आवश्यकता होती है। आवश्यकता से अधिक तापमान मेंथा की फसल के लिए अच्छा नहीं होता है लेकिन इस बार अप्रैल माह से ही तापमान में तेजी होने से मेंथा की फसल को नुकसान होने लगा है। गर्मी के कारण इसमें कीटों का प्रकोप दिखाई दे रहा है जो मेंथा के पौधों को नुकसान पहुंच रहा हैं। बता दें कि मेंथा खेती 20 से 40 डिग्री तापमान में आसानी से की जा सकती है। लेकिन इससे अधिक तापमान इसकी फसल के लिए नुकसान देय हो सकता है। 

भारत में सबसे अधिक उत्तर प्रदेश में होती है मेंथा की खेती

भारत दुनिया में मेंथा ऑयल का प्रमुख निर्यातक देश है। भारत में मुख्य रूप से इसकी खेती यूपी, पंजाब, हरियाणा और बिहार आदि में की जाती है। यूपी में बदायूं, रामपुर, मुरादाबाद, बरेली, पीलीभीत, बाराबंकी, फैजाबाद, अंबेडकर नगर, लखनऊ आदि जिलों में किसानों द्वारा बड़े पैमाने पर मेंथा की खेती की जाती है। इसके तेल का उपयोग सुगंध के लिए व औषधि बनाने में किया जाता है। इसमें उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी 85 प्रतिशत है, पूरे राज्य में बाराबंकी जिले की अकेले 33 प्रतिशत हिस्सेदारी है, जो जिले के लिए एक नकदी फसल है।

मेंथा में हो रहे नुकसान पर किसानों का क्या कहना है

मेंथा यानि पुदीना जिससे पिपरमेंट और ऑयल तैयार किया जाता है। इसकी खेती को लेकर यूपी मेें किसानों की चिंता बढ़ गई है। तेज गर्मी के कारण यहां के किसानों की मेंथा की फसल में कीटों का प्रकोप हो गया है। इससे किसानों को अब मेंथा की फसल नष्ट होने का डर सता रहा है। किसानों का कहना है कि ऐसे ही गर्मी और कीटों का प्रकोप रहा तो मेंथा का उत्पादन घट जाएगा। बता दें कि मेंथा यानि पिपरमेंट की फसल की ताजगी और गंध बरकरार रखने के लिए नमी बनाए रखना जरूरी होता है लेकिन बढ़ते तापमान के कारण सिंचाई का खर्च बढ़ गया है। इससे लागत पहले से अधिक आ रही है। अब फसल में कीटों के प्रकोप से फसल बर्बाद होने का डर सता रहा है। 

मेंथा की फसल को कैस्टर सेमीलूपर (गडेहला) कीट से हो रहा नुकसान

यूपी के बाराबंकी में जिले के जिला फसल सुरक्षा अधिकारी की मानें तो कैस्टर सेमी-लूपर (गडेहला) कीट से मेंथा की फसल को नुकसान हो रहा है। इसे स्थानीय भाषा में गडेहला भी कहा जाता है। यह कीट भूरे, हरे या काले रंग का होता हैं जो मेंथा के पत्तों को खाता हैं। यह कीट दिन में छिपा रहता है और रात में पौधों की पत्तियों को खाता है। 

कैस्टर सेमी-लूपर कीट से बचाव के उपाय

कैस्टर सेमी-लूपर (गडेहला) कीट की रोकथाम के लिए किसान क्विनालफॉस (25 प्रतिशत), इमिडाक्लोप्रिड (17.8 प्रतिशत), क्लोरपाइरीफोस (20 प्रतिशत), एमामेक्टिन बेंजोएट (पांच प्रतिशत) 600 से 800 लीटर पानी में मिला कर पत्तों पर छिडक़ाव करें। ये एक हेक्टेयर खेती का फार्मूला है। 

मेंथा में लगने वाले अन्य कीट

कैस्टर सेमी-लूपर (गडेहला) कीट के अलावा भी मेंथा की फसल में अन्य कीट और रोगों का प्रकोप होता है। मेंथा की खेती करने वाले किसानों को इन कीटों और रोगों की जानकारी होनी चाहिए ताकि समय रहते इसकी रोकथाम कर फसल को नुकसान से बचाया जा सकें। 

मेंथा में माहू कीट का प्रकोप और उससे बचाव के उपाय

ये कीट पौधों के कोमल अंगों का रस चूसता हैं। कीट के शिशु और प्रौढ़, दोनों पौधे को नुकसान पहुंचाते हैं। इस कीट के प्रकोप से पौधों की बढ़वार रुक जाती है जिससे पौधे का ठीक से विकास नहीं हो पाता है।  

रोकथाम के उपाय - मेंथा की फसल को माहू कीट से बचाने के लिए मेटासिस्टॉक्स 25 ईसी 1 प्रतिशत का घोल बनाकर खेतों में छिडक़ाव करना चाहिए।

मेंथा में लालड़ी कीट का प्रकोप और रोकथाम के उपाय

ये कीट पत्तियों के हरे पदार्थ को खाकर उसे खोखला कर देते हैं। इससे पत्तियों में पोषक तत्वों की कमी आ जाती है। इसका प्रभाव मेंथा की तेल की मात्रा पर पड़ता है।

रोकथाम के उपाय - लालड़ी कीट से मेंथा की फसल नुकसान से बचाने के लिए कार्बेरिल का 0.2 प्रतिसत घोल बनाकर किसान 15 दिन के अंतराल पर दो-तीन बार फसल पर छिडक़ाव करना चाहिए।

मेंथा में जालीदार कीट का प्रकोप और इससे बचाव के उपाय

ये कीट लगभग 2 मिमी लंबे और 1.5 मिमी चौड़े काले रंग के होते हैं. यह कीट पत्तियों और तने का रस चूसते हैं। इससे पौधे जले हुए दिखाई देते हैं।

रोकथाम के उपाय - इस कीट की रोकथाम के लिए डाइमेथोएट का 400 से 500 मिलि प्रति हेक्टेयर की दर से फसल पर छिडक़ाव करना चाहिए।

मेंथा की फसल में सुंडी का प्रकोप और इसकी रोकथाम के उपाय

मेंथा में लगने वाली सूंडी पीले - भूरे रंग की रोयेंदार और करीब 2.5 से 3.0 सेमी लंबी होती हैं। मेंथा की फसल में सूंडी का प्रकोप अप्रैल-मई की शुरुआत और अगस्त माह में होता है। इसके प्रकोप से पत्तियां गिरने लगती हैं और पत्तियों के हरे ऊपक खाकर सूंडी इन्हें जालीनुमा कर देती है। इससे पौधों का विकास सही तरह से नहीं हो पाता है।

सूंडी से मेंथा की फसल की रोकथाम उपाय- सूंडी से मेंथा की फसल की रोकथाम के लिए 1.25 लीटर थायोडान 35 ईसी  व मैलाथिऑन 50 ईसी को 1000 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से फसल पर छिडक़ाव करना चाहिए।

मेंथा में दीमक का प्रकोप और उसकी रोकथाम के उपाय

मेंथा की फसल को दीमक लगने पर फसल खराब हो सकती है। दीमक भूमि से लगे भाग के अंदर घुसकर फसल को नुकसान पहुंचाती है। इससे मेंथा के ऊपरी भाग को उचित पोषक तत्वों की पूर्ति नहीं हो पाती है। इसके परिणामस्वरूप पौधे मुरझाने लगते हैं।वहीं पौधों का विकास भी ठीक से नहीं हो पाता है।

रोकथाम के उपाय - मेंथा की फसल में दीमक लगने पर इसकी रोकथाम के लिए सही समय पर सिंचाई करनी चाहिए। इसके अलावा खरपतवार को खेत हटा कर नष्ट कर देना चाहिए। वहीं खड़ी फसल में दीमक का प्रकोप होने पर क्लोरपाइरीफास 2.5 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से सिंचाई के पानी के साथ प्रयोग करना चाहिए।


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