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इस मौसम में कद्दूवर्गीय सब्जी की देखरेख जरूरी, अंकुरण में आ सकती है गिरावट

Published - 10 Apr 2022

खेती-बाड़ी सलाह : अपनाएं ये तरीकें, होगा बेहतर उत्पादन

इस मौसम में जब कभी तापमान कम या ज्यादा हो रहा है। वहीं कई जगहों पर तापमान में काफी गिर गया है। इसके चलते कद्दूवर्गीय सब्जी की देखरेख करना किसानों के लिए जरूरी हो जाता है। क्योंकि गिरते तापमान में कद्दूवर्गीय फसल तरबूज, खरबूज, लौकी, टिन्डा, कद्दू, करेला आदि के अंकुरण में गिरावट आ सकती है। यदि आपने भी अपने खेत में जायद फसल की बुवाई की है या करने जा रहे हैं तो आपको भी इस इन बातों का ध्यान रखना जरूरी है। 

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गिरते तापमान का अंकुरण पर सीधा असर 

कृषि जानकारों के अनुसार इस समय मौसम में दिन का तापमान अधिक व रात का तापमान गिर जाता है। इस कारण इन फसलों के अंकुरण पर प्रभाव पड़ सकता है। किसानों को इसके लिए निम्न उपाय अपनाने की सलाह कृषि जानकारों की ओर से दी जाती है ताकि उत्पादन पर विपरित प्रभाव नहीं पड़े। कद्दूवर्गीय फसल तरबूज, खरबूज, लौकी, टिन्डा, कद्दू, करेला आदि के बीजों की बुआई यदि सीधे -सीधे खेतों में नदी किनारे की गई हो तो अंकुरण में गिरावट आ सकती है। गिरते तापमान का सीधा असर अंकुरण पर होता है और एक बार यदि अंकुरण ही प्रभावित हो गया तो उत्पादन पर विपरित प्रभाव पड़ता है।


पौधों में बेहतर अंकुरण के लिए अपनाये ये तरीकें

  • किसानों को चाहिए कि छोटी-छोटी पॉलीथिन की थैलियों में रेत मिट्टी/खाद का मिश्रण भरकर उसमें बीज डाल कर थैलियों को छाया में रखा जाए। फुहारे से सींच कर पौधे तैयार किए जाए फिर इन अंकुरित 2-3 पत्तियों वाले पौधों को मुख्य खेत में रोपा जाए ताकि वातावरण के अतिरेक को सहने की शक्ति पौधों को हो जाए।
  • अधिक संतोषजनक अंकुरण के लिए बीजों को 2-3 घंटे गुनगुने पानी में भिगोकर रखने के बाद यदि पॉलीथिन में बोया जाए तो लाभकारी होगा।
  • वर्तमान के मौसम को परखते हुए जायद फसल की बुआई का कार्यक्रम हाथ में लिया जाए तो अधिक उपयोगी होगा।
  • प्रमुख फसलों में भिंडी, मूंगफली, तिल इन फसल के बोने का समय फरवरी माह है यथा संभव तापमान की परख देखने के बाद ही इनकी बुआई कुछ दिनों के लिए बढ़ाया जाना अच्छा होगा ताकि अंकुरण प्रभावित होने से बच जाए। उल्लेखनीय है कि वर्तमान के मौसम में तापमान का उतार-चढ़ाव बहुत आ रहा है जिनका सामना अंकुरण को करना पढ़ता है। अत: बुआई के पहले इस और ध्यान रखें ताकि जायद से अतिरिक्त आय का उद्देश्य पूरा हो सके।
  • इसी प्रकार मूंग, उड़द की बुआई भी अप्रैल माह में ही की जाए तो उत्तम होगा।
  • ध्यान दें कि जितना खरीफ/रबी के बीजों का बीजोपचार किया जाना आवश्यक है उतना ही जायद के बीजों का भी उपचार आवश्यक होगा क्योंकि अधिकांश जिन्सों के बीज की बाहरी सतह में छुपी हुई फफूंदी रहती है जो अंकुरण प्रभावित कर सकती है और कालान्तर में पत्तियों के विभिन्न रोगों की कारक भी बन सकती है।
  • कद्दूवर्गीय फसलों में नरपुष्पों की संख्या मादा पुष्प से अधिक होती है फलस्वरूप वृद्धि नियंत्रणों का उपयोग आवश्यक रूप से किया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक मादा पुष्प प्राप्त होकर अधिक फल बन सकें।
  • अंकुरण उपरांत 4-6 पत्तियों की अवस्था में वृद्धि नियंत्रकों का छिडक़ाव लाभकारी माना गया है।
  • ध्यान रहे गोबर खाद के साथ रसायनिक उर्वरकों का उपयोग भी सिफारिश के अनुरूप किया जाना जरूरी होता है। अच्छा बीज, बीजोपचार, भरपूर पोषक तत्व के साथ क्रांतिक अवस्था में सिंचाई से ही लक्षित उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है।
  • बेलों वाली फसलों को सहारा देकर मिट्टी से ऊपर रखने की व्यवस्था यदि हो जाए पुख्ता मंडप यदि बन जाए तो फलों की गुणवत्ता बहुत बढ़ेगी यदि फल जमीन पर हो तो उनको उलट-पलट करते रहना जरूरी होगा। इसका रखरखाव भी उसी मान से किया जाए।

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जायद की फसलों की बुवाई का सही तरीका

जायद फसलों की बुवाई फरवरी से मार्च तक की जाती हैं। इन फसलों में प्रमुख रूप से टिंडा, तरबूज, खरबूजा, खीरा, ककड़ी, लौकी, तुरई, भिंडी, अरबी शामिल हैं। यदि समय और सही तरीके से बुवाई की जाए तो काफी अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है।

  • सब्जियों की बुवाई हमेशा पंक्तियों में करें।
  • बेल वाली किसी भी फसल लौकी, तुरई, ङ्क्षटडा एक फसल के पौधे अलग-अलग जगह न लगाकर एक ही क्यारी में बुवाई करें।
  • यदि लौकी की बेल लगा रहे हैं तो इनके बीच में अन्य कोई बेल जैसे- करेला, तुरई आदि न लगाएं। क्योंकि मधु मक्खियां नर व मादा फूलों के बीच परागकण का कार्य करती हैं तो किसी दूसरी फसल की बेल का परागकण लौकी के मादा फूल पर न छिडक़ सकें और केवल लौकी की बेलों का ही परागकण परस्पर ज्यादा से ज्यादा छिडक़ सकें। जिससे अधिक से अधिक फल लग सकें।
  • बेल वाली सब्जियां लौकी, तुरई, टिंडा आदि में कई बार फल छोटी अवस्था में ही गल कर झडऩे लग जाते हैं। ऐसा इन फलों में पूर्ण परागण और निषेचन नहीं हो पाने के कारण होता है। मधु मक्खियों के भ्रमण को बढ़ावा देकर इस समस्या से बचा जा सकता है।
  • बेल वाली सब्जियों की बुवाई के लिए 40-45 सेंटीमीटर चौड़ी और 30 सेंटीमीटर गहरी लंबी नाली बनाएं। पौधे से पौधे की दूरी करीब 60 सेंटीमीटर रखते हुए नाली के दोनों किनारों पर सब्जियों के बीच या पौध रोपण करें।
  • बेल के फैलने के लिए नाली के किनारों से करीब 2 मीटर चौड़ी क्यारियां बनाएं। यदि स्थान की कमी हो तो नाली के सामानांतर लंबाई में ही लोहे के तारों की फैंसिग लगाकर बेल का फैलाव कर सकते हैं। रस्सी के सहारे बेल को छत या किसी बहुवर्षीय पेड़ पर भी फैलाव कर सकते है।


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