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तिल की खेती कैसे करें : जानें तिल की नई किस्म की विशेषता और लाभ

Published - 06 Jun 2022

जानें, तिल की नई किस्म की विशेषता, और खेती का तरीका

तिलहन फसलों में सरसों, मूंगफली, सूरजमुखी के साथ ही तिल का भी अपना एक महत्वपूर्ण स्थान है। तिल का प्रयोग सर्दियों में गजक, रेवड़ी, तिल के लड्डू बनाने में किया जाता है। इसके अलावा तिल से तेल भी प्राप्त होता है। तिल के तेल का उपयोग आयुर्वेदिक हेयर ऑयल बनाने में किया जाता है। तिल का तेल बालों और त्वचा के लिए भी फायदेमंद होता है। भारत में तिल की खेती एक महत्वपूर्ण तिलहन फसल के रूप में की जाती है। आज हम ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से किसानों को तिल की नई किस्म के बारे में जानकारी दे रहे हैं जो कम पानी और कम लागत में तैयार की जा सकती है। 

तिल की नई कांके सफेद किस्म

देश में तिल का उत्पादन बढ़ाने के लिए कृषि विश्वविद्यालयों की ओर से काम किया जा रहा है। इसके तहत इसकी तिल की नई किस्मों एवं तकनीकों का विकास किया गया है। अभी हाल ही में झारखंड के बिरसा कृषि विश्वविद्यालय की ओर से तिल की एक ऐसी ही किस्म विकसित की गई हैं जिसकी खेती किसान गरमा एवं खरीफ दोनों सीजन में कर सकते हैं। तिलहन फसल विशेषज्ञ डॉ. सोहन राम ने बताया कि प्रदेश के उपयुक्त कांके सफेद किस्म विकसित की गई है जो अधिक उत्पादन दे सकती है। 

तिल की नई किस्म कांके सफेद की विशेषता और लाभ

तिल की नई किस्म कांके सफेद 75-80 दिनों की अवधि की फसल है। इसकी उपज क्षमता 4-7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और तेल की मात्रा 42 से 45 प्रतिशत तक होती है। गरमा मौसम में सिंचाई साधन होने पर धान की परती भूमि में मौजूद नमी का फायदा उठाकर इसकी खेती की जा सकती है। खरीफ में प्रदेश के लिए कांके सफेद, कृष्णा एवं शेखर उपयुक्त एवं अनुशंसित किस्में है। इन किस्मों की उपज क्षमता 6-7 क्विंटल प्रति हेक्टेयर और 42 से 45 प्रतिशत तक तेल की मात्रा पाई जाती है। 

गरमा तिल का किया अवलोकन

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ ओंकार नाथ सिंह ने तकनीकी पार्क में प्रदर्शित गरमा तिल फसल प्रत्यक्षण का अवलोकन किया। उनके साथ निदेशक अनुसंधान डॉ एसके पाल, तिलहन फसल विशेषज्ञ डॉ सोहन राम और आनुवंशिकी एवं पौधा प्रजनन विभाग के वैज्ञानिक भी थे। इस अवसर पर उन्होंने वैज्ञानिकों संग राज्य में तिल की खेती की संभावना पर चर्चा की। 

कम पानी और कम लागत में की जा सकती है तिल कि खेती

बिरसा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति ने इस अवसर पर कहा कि तिल की खेती को एक अच्छा वाणिज्यिक व्यवसाय माना जाता है। इस सफलता से प्रदेश के किसान गरमा एवं खरीफ मौसम में दो बार तिल की खेती कर सकते है। यह कम लागत एवं कम सिंचाई में उपजाई जाने वाली तिलहनी फसल है। विवि ने तिल की कांके सफेद प्रभेद विकसित की है। यह प्रभेद प्रदेश के लिए उपयुक्त एवं अनुशंसित है। झारखंड के किसान गुजरात एवं सौराष्ट्र के किसानों की तरह दोनों मौसम में तिल की सफल खेती से अच्छा लाभ अर्जित कर सकते हैं।  

खरीफ एवं गरमा दोनों सीजन में कर सकते हैं तिल की खेती

निदेशक अनुसंधान डॉ एसके पाल ने बताया कि राज्य में गरमा तिल की खेती भी की जा सकती है। गरमा मौसम में खेतों में सीमित सिंचाई सुविधा होने पर किसान गरमा तिल की सफल खेती कर सकते है। गरमा में 10-15 दिनों के अंतराल में 5-6 सिंचाई की जरूरत होती है, जबकि खरीफ मौसम में वर्षा आधारित खेती से और खरपतवार के उचित प्रबंधन से बेहतर उपज एवं लाभ लिया जा सकता है। बता दें कि गरमा फसलें मई-जून में बोई जाती हैं और जुलाई-अगस्त में काट ली जाती हैं। यानि ये रबी और खरीफ के बीच के समय में बोई जाती है। गरमा फसल में राई, मक्का, ज्वार, जूट और मडुआ आदि शामिल हैं। अब तिल का नाम भी इसमें जुड़ चुका है। तिल की खेती से किसानों को अधिक लाभ मिलता है। 

बेहतर उत्पादन के लिए इस तरह करें तिल की खेती

तिलहन फसल विशेषज्ञ डॉ राम ने बताया कि एक हेक्टेयर में बुआई के लिए 5 से 6 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। खरीफ में वर्षा प्रारंभ होने पर जून से मध्य जुलाई तक बुआई की जा सकती है। बुवाई में कतार से कतार की दूरी 30 सेंटीमीटर और पौधा से पौधा की दूरी 10 सेंटीमीटर रखनी चाहिए। बेहतर अंकुरण के लिए बुआई के समय हल्की सिंचाई जरूर कर देनी चाहिए ताकि भूमि में नमी बनी रहे। बुवाई के समय 52 किलो ग्राम यूरिया, 88 किलो ग्राम डीएपी और 35 किलो ग्राम म्यूरिएट ऑफ पोटाश प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। खरपतवार नियंत्रण के लिए पहली निकाई-गुड़ाई बुवाई के 15-20 दिनों के बाद और दूसरी  निकाई-गुड़ाई 30-35 दिनों के अंदर कर देना चाहिए। वैज्ञानिक प्रबंधन से तिल की खेती से किसानों को कम लागत में अच्छा मुनाफा मिलेगा।

देश के किन राज्यों में होती है तिल की खेती

देश में तिल की खेती महाराष्ट्र, राजस्थान, पश्चिम बंगाल, आंध्र प्रदेश, गुजरात, तमिलनाडू, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश व तेलांगाना में होती है। इनमें सबसे अधिक तिल का उत्पादन उत्तर प्रदेश के बुंदेलखंड में किया जाता है।

क्या है तिल का बाजार भाव 2022

4 जून 2022 के अनुसार देश की प्रमुख मंडियों में तिल का भाव 6310 से लेकर 13010 रुपए प्रति क्विंटल है। जबकि तिल तेल का भाव 13500 से 17500 रुपए प्रति क्विंटल है। 


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