Published - 06 Aug 2020
हरियाणा और पंजाब में पराली जलाने की समस्या काफी पुरानी है। यहां के किसानों द्वारा पराली जलाने के बाद उठे धुंए से दिल्ली में भी पर्यावरण को नुकसान होने का अंदेशा जताया गया था। इस पर जमकर सियासत भी हुई थी। जिस पर यहां के किसानों ने अपनी मजबूरी भी बयां की। वहीं सरकार ने पराली जलाने वाले किसानों पर के प्रति कड़ा रूख भी अपनाया और कृषि विभाग की ओर से किसानों को नोटिस जारी कर जुर्माना लगाया गया और जुर्माना नहीं भरने वाले किसानों पर एफआईआर दर्ज कराई गई।
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इसके बाद पराली जलाने का सिलसिला कम जरूर हुआ पर बिलकुल खत्म नहीं। आखिरकार सरकार ने इस समस्या का हल किसानों से मिलकर निकालने की पहल की। इसी क्रम में हरियाणा सरकार द्वारा पराली जलाने की समस्या से निबटने के लिए किसानों की मदद करने का निश्चय किया है और इसके लिए फसल अवशेष प्रबंधन योजना की शुरुआत की गई। इस योजना के तहत किसानों की मदद के लिए हरियाणा राज्य सरकार ने 1,304.95 करोड़ रुपए जारी किए हैं।
पराली धान की फसल के कटने बाद बचा बाकी हिस्सा होता है जिसकी जड़ें धरती में होती हैं। किसान पकने के बाद फसल का ऊपरी हिस्सा काट लेते हैं क्योंकि वही काम का होता है बाकी अवशेष होते हैं जो किसान के लिए बेकार होते हैं, उन्हें अगली फसल बोने के लिए खेत खाली करने होते हैं तो सूखी पराली को आग लगा दी जाती है। पराली ज्यादा होने की वजह यह भी है कि किसान अपना समय बचाने के लिए आजकल मशीनों से धान की कटाई करवाते है। मशीनें धान का सिर्फ उपरी हिस्सा काटती हैं और और नीचे का हिस्सा भी पहले से ज्यादा बचता है। इसी बचे हुए हिस्से के अवशेष को हरियाणा व पंजाब में पराली कहा जाता है।
एनजीटी के आदेशानुसार दो एकड़ में फसलों के अवशेष जलाने पर 2500 हजार रुपए, दो से पांच एकड़ भूमि तक 5 हजार रुपए, 5 एकड़ से अधिक जमीन पर धान के अवशेष जलाने पर 15 हजार रुपये जुर्माना किए जाने का प्रावधान है। इसके लिए जिम्मेदारी सरकार ने जिला राजस्व अधिकारी की तय की गई है।
हरियाणा के मुख्यमंत्री श्री मनोहर लाल ने राज्य में फसल अवशेष प्रबंधन के लिए 1,304.95 करोड़ रुपए की एक व्यापक योजना स्वीकृति प्रदान की है। इस योजना का उद्देश्य राज्य में फसल अवशेषों को जलाने से रोकना है। केंद्र सरकार द्वारा इस वर्ष इस योजना के तहत राज्य को 170 करोड़ रुपए मुहैया करवाए गए हैं। कृषि एवं किसान कल्याण विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव श्री संजीव कौशल ने बताया कि राज्य सरकार ने फसल अवशेष के इन-सीटू प्रबंधन के लिए कृषि यंत्रीकरण को प्रोत्साहन योजना के तहत केंद्र सरकार को 639.10 करोड़ रुपए की वार्षिक योजना प्रस्तुत की है।
पराली जलाने की समस्या से निबटने के लिए हरियाणा राज्य सरकार राज्य के किसानों को प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि दे रही है जिसे इस वर्ष भी जारी रखा गया है। इस योजना को और भी व्यापक रूप से बढ़ाया जा रहा है। इसके लिए केंद्र सरकार के तरफ से हरियाणा राज्य सरकार को वित्तीय मदद भी दी गई है। साथ ही फसल अवशेष जलाने से रोकने के लिए इन-सीटू योजना के अंतर्गत विभिन्न प्रकार के कृषि यंत्र सब्सिडी पर दिए जा रहे हैं जिसे किसान आसानी से ऑनलाइन आवेदन कर के प्राप्त कर सकते हैं।
इसके अलावा सर्वोच न्यायालय के निर्देशों के तहत गैर-बासमती उत्पादों को फसल अवशेष प्रबंधन के लिए सात दिनों के भीतर 1000 रुपए प्रति क्विंटल की दर से प्रोत्साहन भी दिया जा रहा है। राज्य सरकार ने पर्याप्त मशीनों और परिचालन लागत के रूप में 1,000 रुपए प्रति एकड़ प्रदान करके, गैर-बासमती तथा बासमती की मुच्छल किस्म उगने वाले छोटे और सीमांत किसानों की मदद की है। इन दोनों उद्देश्यों के लिए राज्य सरकार द्वारा राज्य बजट में पहले ही 453 करोड़ रुपए का प्रावधान किया गया है।
योजना के बारे में विस्तार से जानकारी देते हुए श्री कौशल ने बताया कि राज्य सरकार फसल अवशेष प्रबंधन के लिए उपकरण वितरित करने, कस्टम हायरिंग सेंटर (सीएचसी) स्थापित करने और कृषि एवं किसान कल्याण निदेशालय में राज्य मुख्यालय पर समर्पित नियंत्रण स्थापित करने सहित धान की पुआल के प्रबंधन के लिए हर संभव उपाय कर रही है। हरियाणा सरकार द्वारा इन-सीटू प्रबंधन को बढ़ावा देने के लिए स्ट्रा बेलर इकाइयों की स्थापना को भी प्रोत्साहित किया गया है। इस पहल के तहत, 5 नवंबर 2019 तक 64 ऐसी इकाइयां जबकि 6 नंबर से 11 दिसंबर के बीच 131 इकाइयां स्थापित की गई। राज्य सरकार ने इन इकाइयों की खरीद के लिए किसानों को 155 परमिट भी जारी किए हैं।
पर्यावरणविदों के अनुसार पराली को ट्रैक्टर में छोटी मशीन (रपट) द्वारा काटकर खेत में उसी रपट द्वारा बिखेरा जा सकता है। इससे आगामी फसल को प्राकृतिक खाद मिल जाएगी और प्राकृतिक जीवाणु व लाभकारी कीट जमीन की उर्वरा शक्ति को बढ़ाने के लिए पराली के अवशेषों में ही पल जाएंगे। पराली को मशीनों से उखाडक़र एक जगह 2-3 फ़ीट का खड्डा खोदकर उसमें जमा कर सकते हैं।
उसकी एक फुट की तह बनाकर उस पर पानी में घुले हुए गुड़, चीनी, यूरिया,गाय-भैंस का गोबर इत्यादि का घोल छिडक़ दें और थोड़ी मिट्टी डालकर हर 1-2 फुट पर इसे दोहरा दें तो एनारोबिक बैक्टीरिया पराली को गलाने में सहायक हो जाएं, अगर केंचुए भी खड्ड में छोड़ सकें तो और भी अच्छा है। आखिरी तह को मिट्टी के घोल में तर पॉलिथीन से ढक देना चाहिए। इतना ही नहीं पराली का प्रयोग चारा और गत्ता बनाने के अलावा बिजली बनाने के लिए भी हो सकता है। गैसीफायर द्वारा गैस बनाकर ईंधन के रूप में मिथेन गैस मिल सकती है।
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