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मेथी की खेती : ये किस्में देंगी भरपूर पैदावार, होगी अच्छी कमाई

Published - 09 Nov 2020

जानें, मेथी की बुवाई का सही तरीका और इसके फायदे

दहलनी कुल की फसलों में मैथी का भी अपना विशिष्ट स्थान है। अधिकांशत: मैथी को सब्जी, अचार व सर्दियों में लड्डू आदि बनाने में प्रयोग किया जाता है। इसके स्वाद में कड़वापन होता है पर इसकी खुशबू काफी अच्छी होती है। इसमें कई औषधीय गुण होते हैं। यह एक नकदी फसल के रूप में मानी जाती है। यदि किसान इसकी व्यवसायिक रूप से खेती करें तो अच्छा मुनाफा कमाया जा सकता है। आइए जानते हैं कैसे करें इसकी खेती और इसमें क्या रखें सावधानियां कि कम लागत में भी अच्छा मुनाफा मिल सके। इन्हीं बातों को ध्यान में रखते हुए आज हम अपने किसान भाइयों को मेथी की खेती की जानकारी दे रहे है ताकि उन्हें इसका भरपूर फायदा मिल सके।

 

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मेथी खाने से स्वास्थ्य को होने वाले लाभ

मेथी लिग्यूमनस परिवार से संबंधित पौधा है जो 1 फुट से छोटा होता है। इसकी पत्तियां साग बनाने के काम आतीं हैं तथा इसके दाने मसाले के रूप में प्रयुक्त होते हैं। स्वास्थ्य की दृष्टि से यह बहुत गुणकारी है। मेथी दाने में सोडियम, जिंक, फॉस्फोरस, फॉलिक एसिड, आयरन, कैल्शियम, मैग्नीशियम, पोटैशियम, जैसे मिनरल्स और विटामिन ्र, बी और सी भी पाए जाते हैं। इसके अलावा इसमें भरपूर मात्रा में फाइबर्स, प्रोटीन, स्टार्च, शुगर, फॉस्फोरिक एसिड जैसे न्यूट्रिएंट्स पाए जाते हैं। इसका प्रयोग डायबिटीज में चूर्ण बनाकर सेवन किया जाता है। पेट संबंधी बीमारियों में भी इसका प्रयोग काफी फायदेमंद है। इसके सेवन करने से जोड़ों के दर्द में आराम मिलता है। उच्च रक्त चाप (हाई वीपी), डायबिटीज व अपच में इसका प्रयोग लाभकारी बताया गया है। हरी मैथी ब्लड शुगर कम करने में मदद करती है। इस प्रकार इसका सेवन कई बीमारियों में इलाज के रूप में किया जाता है। हरी मेथी हो या दाना मैथी। दोनों प्रकार से इसका सेवन शरीर को स्वस्थ रखने में मददगार है।

 

 

मेथी उत्पादन में अग्रिय राज्य

भारत में पंजाब, राजस्थान, दिल्ली सहित तमाम उत्तरी भारत में इसकी खेती सफलतापूर्वक की जाती है। देश में राजस्थान और गुजरात सर्वाधिक मेथी उत्पादन करने वाले प्रमुख राज्य हैं। 80 फीसदी से ज्यादा मेथी का उत्पादन राजस्थान में होता है। मेथी की फसल मुख्यतया रबी मौसम में की जाती है, लेकिन दक्षिण भारत में इस की खेती बारिश के मौसम में की जाती है।


मेथी की खेती से पूर्व जानने योग्य बातें (methi ki kheti)

  • मेथी की खेती के लिए ठंडी जलवायु की अच्छी रहती है। इसकी फसल में पाला सहने की क्षमता अन्य फसलों की तुलना में अधिक होती है।
  • इसकी खेती के लिए औसत बारिश वाले इलाके सही रहते हैं अधिक बारिश वाले इलाकों में इसकी खेती नहीं की जा सकती है।
  • मेथी की खेती सभी तरह की मिट्टियों में की जा सकती है, लेकिन अच्छे जल निकास वाली चिकनी मिट्टी इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त रहती है। मिट्टी का पीएच मान 6-7 के बीच होना चाहिए।
  • मैदानी इलाकों में इसकी बुवाई सितंबर से मार्च तक तथा पहाड़ी इलाकों में इसे जुलाई से ले कर अगस्त तक बोया जा सकता है।
  • यदि आप इसकी खेती भाजी के लिए कर रहे हैं तो 8-10 दिनों के अंतर में बुवाई करनी चाहिए। जिससे हर समय ताजा भाजी मिलती रहे। और यदि इसके बीजों के लिए इसे बोना चाहते हैं तो इसकी बुवाई नवंबर के अंत तक की जा सकती है।
  • इसकी बुवाई अधिकतर छिडक़वा विधि से की जाती है।
  • बुवाई के समय खेत में नमी होना आवश्यक है।
  • मेथी की फसल के साथ इसकी मेड में मूली उगाकर भी कमाई की जा सकती है।
  • मेथी के साथ खरीफ फसलें जैसे धान, मक्की, हरी मूंग और हरे चारे वाली फसलें उगाई जा सकती हैं।


मेथी की उन्नत किस्में

कसूरी मेथी

यह किस्म भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद दिल्ली द्वारा विकसित की गई है। इस की पत्तियां छोटी और हंसिए के आकार की होती हैं। इस में 2-3 बार कटाई की जा सकती है। इस किस्म की यह खूबी है कि इस में फूल देर से आते हैं और पीले रंग के होते हैं, जिन में खास किस्म की महक भी होती है। बोआई से ले कर बीज बनने तक यह किस्म लगभग 5 महीने लेती है। इस की औसत पैदावार 65 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है।

लाम सिलेक्शन

दक्षिणी राज्यों में इस किस्म को बीज लेने के मकसद से उगाया जाता है. इस का पौधा औसत ऊंचाई वाला, लेकिन झाड़ीदार होता है। इस में शाखाएं ज्यादा निकलती हैं।

पूसा अर्ली बंचिंग

मेथी की इस जल्द पकने वाली किस्म को भी आईसीएआर द्वारा विकसित किया गया है. इस के फूल गुच्छों में आते हैं। इस में 2-3 बार कटाई की जा सकती है। इस की फलियां 6-8 सेंटीमीटर लंबी होती हैं। इस किस्म का बीज 4 महीने में तैयार हो जाता है।

यूएम 112

यह मेथी की उन गिनीचुनी किस्मों में से एक है, जो सीधी बढ़ती है। इस के पौधे औसत से लंबे होते हैं। भाजी और बीज दोनों के लिहाज से यह किस्म अच्छी होती है।

कश्मीरी

मेथी की कश्मीरी किस्म की ज्यादातर खूबियां हालांकि पूसा अर्ली बंचिंग किस्म से मिलती जुलती हैं, लेकिन यह 15 दिन देर से पकने वाली किस्म है, जो ठंड ज्यादा बरदाश्त कर लेती है। इस के फूल सफेद रंग के होते हैं और फलियों की लंबाई 6-8 सेंटीमीटर होती है। पहाड़ी इलाकों के लिए यह एक अच्छी किस्म है।

हिसार सुवर्णा

चौधरी चरणसिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय हिसार द्वारा विकसित की गई यह किस्म पत्तियों और दानों दोनों के लिए अच्छी होती है। इस की औसत उपज 16 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। सर्कोस्पोरा पर्र्ण धब्बा रोग इस में नहीं लगता है। हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के लिए यह काफी उपयुक्त किस्में है। इन किस्मों के अलावा मेथी की उन्नतशील किस्में आरएमटी 1, आरएमटी 143 और 365, हिसार माधवी, हिसार सोनाली और प्रभा भी अच्छी उपज देती हैं।


मेथी की खेती कैसे करें?/ मेथी की बुवाई का तरीका

मेथी की बुवाई से पूर्व खेत को अच्छी तरह तैयार कर ले। इसके लिए खेत की देशी हल या हरो की सहायता से जुताई कर मिट्टी को भुरभुरा बना लें। जुताई के समय 150 क्विंटल गोबर की खाद प्रति हेक्टेयर की दर से डालें। अगर खेत में दीमक की समस्या है, तो पाटा लगाने से पहले खेत में क्विनालफास (1.5 फीसदी) या मिथाइल पैराथियान (2 फीसदी चूर्ण) 25 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से मिला देना चाहिए। इसके बाद अच्छी तरह पाटा चलाए। इसकी एक एकड़ में बिजाई के लिए इसके 12 किलोग्राम बीज की आवश्यकता होती है। बिजाई से पहले बीजों को 8 से 12 घंटे के लिए पानी में भिगो दें। बीजों को कीट और बीमारियों से बचाने के लिए थीरम 4 ग्राम और कार्बेनडाजि़म 50 प्रतिशत डब्लयु पी 3 ग्राम प्रति किलोग्राम बीज से उपचार करें। रासायनिक उपचार के बाद एजोसपीरीलियम 600 ग्राम + ट्राइकोडरमा विराइड 20 ग्राम प्रति एकड़ से प्रति 12 किलो बीजों का उपचार करें। अधिकतर मेथी की बुवाई छिडक़वा विधि से की जाती है। बुवाई के समय पंक्ति से पंक्ति के बीच की दूरी 22.5 सेंटीमीटर रखें और बैड पर 3-4 सेंटीमीटर की गहराई पर बीज बोएं।


खाद एवं उर्वरक

बिजाई के समय 5 किलो नाइट्रोजन (12 किलो यूरिया), 8 किलो पोटाश्यिम (50 किलो सुपर फासफेट) प्रति एकड़ में डालें। अच्छी वृद्धि के लिए अंकुरन के 15-20 दिनों के बाद ट्राइकोंटानोल हारमोन 20 मि.ली. प्रति 10 लीटर पानी में मिलाकर स्प्रे करें। बिजाई के 20 दिनों के बाद एनपीके (19:19: 19) 75 ग्राम प्रति 15 लीटर पानी की स्प्रे भी अच्छी और तेजी से वृद्धि करने में सहायता करती है। अच्छी उपज प्राप्त करने के लिए ब्रासीनोलाइड 50 मि.ली. प्रति एकड़ 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 40-50 दिनों के बाद स्प्रे करें। इसकी दूसरी स्प्रे 10 दिनों के बाद करें। कोहरे से होने वाले हमले से बचाने के लिए थाइयूरिया 150 ग्राम प्रति एकड़ की 150 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 45 और 65 दिनों के बाद स्प्रे करें।


खरपतवार नियंत्रण

पहली गुड़ाई बिजाई के 25-30 दिनों के बाद और दूसरी गुड़ाई पहली गुड़ाई के 30 दिनों के बाद करें। नदीनों को रासायनिक तरीके से रोकने के लिए फलूक्लोरालिन 300 ग्राम प्रति एकड़ में डालने की सिफारिश की जाती है इसके इलावा पैंडीमैथालिन 1.3 लीटर प्रति एकड़ को 200 लीटर पानी में मिलाकर बिजाई के 1-2 दिनों के अंदर अंदर मिट्टी में नमी बने रहने पर स्प्रे करें। जब पौधा 4 इंच ऊंचा हो जाए तो उसे बिखरने से बचाने के लिए बांध दें।


कब-कब करें सिंचाई

बीजों के जल्दी अंकुरण के लिए बिजाई से पहले सिंचाई करें। मेथी की उचित पैदावार के लिए बिजाई के 30, 75, 85, 105 दिनों के बाद तीन से चार सिंचाई करें। फली के विकास और बीज के विकास के समय पानी की कमी नहीं होने देनी चाहिए क्योंकि इससे पैदावार में भारी नुकसान होता है।


कब करें कटाई

सब्जी के तौर पर उपयोग के लिए इस फसल की कटाई बिजाई के 20-25 दिनों के बाद करें। बीज प्राप्त करने के लिए इसकी कटाई बिजाई के 90-100 दिनों के बाद करें। दानों के लिए इसकी कटाई निचले पत्तों के पीले होने और झडऩे पर और फलियों के पीले रंग के होने पर करें। कटाई के बाद फसल की गठरी बनाकर बांध लें और 6-7 दिन सूरज की रोशनी में रखें। अच्छी तरह से सूखने पर इसकी छंटाई करें, फिर सफाई करके ग्रेडिंग करें।


कितनी पैदावार और कितना हो सकता है मुनाफा

अगर 1 बार कटाई के बाद बीज लिया जाए, तो औसत पैदावार करीब 6-8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर मिलती है और 4-5 कटाइयां की जाएं तो यही पैदावार घट कर करीब 1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर रह जाती है। भाजी या फिर हरी पत्तियों की पैदावार करीब 70-80 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक मिलती है। बता दें कि मेथी की पत्तियों को सुखाकर भी बेचा जाता है जिसके 100 रुपए प्रति किलोग्राम तक दाम मिल जाते हैं। अगर वैज्ञानिक तरीके से मेथी की खेती की जाए, तो 1 हेक्टेयर से करीब 50000 रुपए तक कमाया जा सकता है।

 

 

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