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किसान आंदोलन : नए कृषि कानूनों को लेकर मचा बवाल, पीछे हटने को तैयार नहीं सरकार

Published - 30 Nov 2020

जानें, क्या है ऐसा इन नए तीन कृषि कानूनों में जिसे लेकर हो रहा विरोध? और अब क्या होगा आगे?

नए कृषि कानूनों को लेकर देश में बवाल मचा हुआ है। एक ओर किसानों की सरकार से नाराजगी बरकरार है जिसे लेकर देश भर में कई जगहों पर विरोध प्रदर्शन चल रहा है। दूसरी ओर केंद्र सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं है। वे हर तरीके से किसानों को समझाने का प्रयास कर रही है लेकिन किसान बात मानने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि दोनों के बीच नए कानूनों को लेकर मतभेद की स्थिति पैदा हो गई है। परिणामस्वरूप किसान सडक़ों पर उतर आए है और पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, यूपी में किसान आंदोलनरत हैं। किसान आंदोलन से जहां भारतीय रेल सेवा प्रभावित हो रही हैं वहीं मंडियों में सब्जियां नहीं पहुंचने से इसनके दाम बढ़ बढ़ गए हैं। किसान आंदोलन को देखते हुए कई जगह पर सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी गई हैं। सोनीपत, बहादुरगढ़, मथुरा और गाजियाबाद से दिल्ली को जोडऩे वाले पांचों एंट्री प्वाइंट्स पर सुरक्षा कड़ी कर दी गई है। 

 

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किसान आंदोलन अपडेट

किसान आंदोलन के दौरान किसानों के आंदोलन में शामिल लुधियाना समराला के खटरा भगवानपुरा गांव के रहने वाले किसान गज्जर सिंह की बहादुरगढ़ बाईपास पर न्यू बस स्टैंड के पास रविवार देर रात दिल का दौरा पडऩे से मौत हो गई। बता दें कि साल 2020 के मानसून सत्र में केंद्र की मोदी सरकार द्वारा पास कराए गए तीन विवादित कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों ने मोर्चा खोल दिया है। किसानों द्वारा कई इलाकों में पुलिस की ओर से उन्हें रोकने के लिए लगाए बैरिकेड को उखाड़ कर फेंक दिए गए हैं। वहीं कुछ जगहों पर प्रदर्शनकारियों द्वारा पुलिस पर पथराव की खबर भी है। पुलिस प्रदर्शनकारियों को रोकने के लिए वॉटर कैनन का इस्तेमाल कर रही है। इन नए कानूनों का इतना जबरदस्त विरोध आखिर क्यूं किया जा रहा है? आज हम इसी विषय पर चर्चा कर इसके पीछे की वजह जानने का प्रसाय करेंगे और इसी के साथ कानूनों को लेकर किसानों का डर और आंदोलन को लेकर सरकार की पीड़ा जानेंगे। 

 


 

कौनसे हैं वे नए तीन कानून हैं जिनका किसान कर रहे हैं विरोध

कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020

इसमें सरकार कह रही है कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है। किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे। निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे। लेकिन, सरकार ने इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध दिया है। इसके जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट दी गई है। बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं।

कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020

इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना है कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है। इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा। किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर रहे हैं।

आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020

यह न सिर्फ किसानों के लिए बल्कि आम जन के लिए भी खतरनाक है। अब कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी। उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी। सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट। यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा है। सरकार कानून में साफ लिखती है कि वह सिर्फ युद्ध या भुखमरी या किसी बहुत विषम परिस्थिति में रेगुलेट करेगी। सिर्फ दो कैटेगोरी में 50 प्रतिश (होर्टिकल्चर) और 100 प्रतिशत (नॉन-पेरिशबल) के दाम बढऩे पर रेगुलेट करेगी नहीं, बल्कि कर सकती है कि बात कही गई है।


क्या है कृषि कानूनों को लेकर किसानों को डर?

  • नए कृषि कानूनों में सरकार ने किसानों को उपज मंडी के बाहर अपने अनाज बेचने की छूट दी है। नए कानूनों के अनुसार किसानों के लिए मंडी के बाहर कारोबार का रास्ता खुल गया है, लेकिन इस बीच किसानों को डर है कि सरकार धीरे-धीरे न्यूनतम समर्थन मूल्य को खत्म कर सकती है। जबकि केंद्र सरकार साफ कर चुकी है कि एमएसपी खत्म नहीं किया जाएगा, लेकिन किसानों की मांग है कि सरकार कानून में इसे शामिल करे कि न्यूनतम समर्थन मूल्य खत्म नहीं होगा।
  • नए कानूनों में सरकार ने मंडियों को खत्म करने की बात नहीं की है, लेकिन किसानों को डर है कि कानूनों से मंडियां खत्म हो सकती हैं। इसमें मंडियों के आढ़ाती भी किसानों का साथ दे रहे हैं और उनका कहना है कि मंडियां बचेंगी तभी तो किसान अपनी फसल बेच पाएगा। किसानों का कहना है कि मंडी के अंदर औसतन 6-7 फीसदी तक का मंडी टैक्स लगता है, जबकि बाहर कोई टैक्स नहीं लगता है। ऐसे में आढ़ाती टैक्स बचाने के लिए मंडी के बाहर खरीद कर सकते हैं। किसानों की मांग है कि टैक्स व्यवस्था को ठीक किया जाए।
  • किसान संगठनों को डर है कि मंडी व्यवस्था कमजोर होने के बाद कृषि क्षेत्र भी पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के हाथों में चला जाएगा और किसानों को नुकसान होगा। किसानों को डर है कि कॉरपोरेट्स फायदा कमाने के लिए न्यूनतम समर्थन (एमएसपी) कीमतों से कम पर खरीदारी करेंगे। किसानों की मांग है कि सरकार सुनिश्चित करे कि फसल एमएसपी से कम में ना बिके।
  • किसानों को डर है कि कृषि क्षेत्र में पूंजीपतियों या कॉरपोरेट घरानों के आने से जमाखोरी बढ़ेगी और इससे छोटे किसानों को नुकसान होगा। इसलिए किसानों की मांग है कि सरकार जमाखोरी रोकने के लिए कड़े कदम उठाए।
  • एक कानून कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग को लेकर भी है, इसमें किसानों के अदालत जाने का हक छीन लिया गया है। कानून के अनुसार किसानों और कंपनियों के बीच विवाद होने पर एसडीएम फैसला करेगा। इसके बाद भी विवाद नहीं सुलझने की स्थिति में किसानों को डीएम के यहां अपील करनी होगी, वह कोर्ट नहीं जा सकते हैं। किसानों का कहना है कि उन्हें डीएम और एसडीएम पर विश्वास नहीं है। उनकी मांग है कि विवाद होने पर उन्हें कोर्ट जाने की छूट दी जाए।


क्या हैं किसानों की मांग

केंद्र सरकार संसद के पिछले सत्र में खेती से जुड़े तीन कानून लेकर आई थी। ये तीन कानून हैं- कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक 2020, कृषक (सशक्तिकरण व संरक्षण) कीमत आश्वासन-कृषि सेवा पर करार विधेयक 2020 और आवश्यक वस्तु (संशोधन) विधेयक 2020। ये तीनों कानून संसद के दोनों सदनों से पारित हो भी चुके हैं और कानून बन चुके हैं। किसानों की मांग है कि इन तीनों का कानूनों को सरकार वापस ले। और इसी को वापस लेने की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे हैं।


सरकार का दावा, नए कानून किसानों के हित में

केंद्र के नए कृषि कानूनों के विरोध में जारी किसान आंदोलन के बीच प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने मासिक मन की बात कार्यक्रम में कहा कि किसानों को नए अधिकार और नए अवसर मिले हैं। पीएम ने कहा कि संसद ने कृषि सुधारों को काफी विचार-विमर्श के बाद कानूनी स्वरूप दिया है।

पीएम मोदी ने कहा कि भारत में खेती और उससे जुड़ी चीजों के साथ नए आयाम जुड़ रहे हैं। बीते दिनों हुए कृषि सुधारों ने किसानों के लिए नई संभावनाओं के द्वार भी खोले हैं। किसानों की वर्षों से कुछ मांगें थीं और उन्हें पूरा करने के लिए हर राजनीतिक दल ने कभी न कभी वादा किया था, लेकिन वे कभी पूरी नहीं हुईं। प्रधानमंत्री ने कहा, संसद ने काफी विचार-विमर्श के बाद कृषि सुधारों को कानूनी स्वरूप दिया। इन सुधारों से न सिर्फ किसानों के अनेक बंधन समाप्त हुए हैं, बल्कि उन्हें नए अधिकार और अवसर भी मिले हैं। संसद द्वारा मानसून सत्र में पारित तीन कृषि विधेयकों को राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद की मंजूरी के बाद कानूनों के रूप में लागू किया जा चुका है जिनका कांग्रेस समेत कई विपक्षी दल विरोध कर रहे हैं और अनेक किसान सडक़ों पर उतर आए हैं।


अब आगे क्या?

केंद्र की भाजपा सरकार किसानों को नए कानून को लेकर बार-बार सफाई दे रही है कि ये कानून हर तरीके से किसानों के हित में हैं, पर किसान इस बात को मानने को तैयार नहीं है। यही कारण है कि एक ओर किसान इन नए कानूनों को वापस लेने की मांग कर रहे हैं, तो दूसरी ओर सरकार पीछे हटने को तैयार नहीं?

अब आगे क्या होगा? इस बात को लेकर सरकार में विचार-विर्मश चल रहा है। वहीं किसान, आंदोलन को ओर तेज करने की रणनीति बना रहे हैं। इस बीच कई विपक्षी दल किसानों का सहयोग कर रहे हैं जो केंद्र की भाजपा सरकार की चिंता को बढ़ा रहा है। आगे क्या होगा सरकार का रूख? क्या बेक फुट आएगी सरकार या फिर किसान ही समझ जाएंगे सरकार की बात? इस बारे में अभी कुछ भी तय कर पाना मुश्किल है। फिलहाल किसानों की ओर से आंदोलन को ओर तेज करने की बात कही जा रही है जिसको लेकर केंद्र सरकार चिंतित है।

 

 

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