Published - 05 Aug 2021 by Tractor Junction
मसाला फसलों में अजवाइन का भी अपना एक अलग ही महत्वपूर्ण स्थान है। मसाले के रूप में प्रयोग में होने के साथ ही अजवाइन में औषधीय गुण भी पाएं जाते हैं। इसका प्रयोग कई रोगों में घरेलू उपचार के रूप में किया जाता है। जैसे- पेट दर्द होने पर नमक के साथ अजवाइन लेने की सलाह तो आपने अपने बुजुर्गों से तो सुनी ही होगी। इसके अलावा भी इसमें पाए जाने वाले कई औषधीय गुण इसकी महत्ता को बढ़ा देते हैं। इसकी खेती सीधे तौर पे औषधीय फसल के रूप में की जाती है।
अजवाइन का पौधा झाड़ीनुमा होता है, यह धनिया कुल की प्रजाति का पौधा है। इसके दानों में कई तरह के खनिज तत्वों का मिश्रण पाया जाता है, जो मनुष्य के लिए लाभकारी है। इससे निकले तेल का इस्तेमाल औषधियों के रूप में किया जाता है। इसकी खेती में खास बात ये हैं कि इसके पौधे को कम पानी की आवश्यकता होती है। इसलिए इसकी खेती रबी की फसल के समय की जाती है। हालांकि इसके पौधों को विकास करने के लिए सर्दी के मौसम की जरूरत होती है। वहीं अजवाइन के पौधे कुछ हद तक सर्दियों में पडऩे वाले पाले को भी सहन कर सकते हैं। इतना ही नहीं अजवाइन बाजार भाव काफी अच्छा मिलता है, इस कारण इसकी खेती किसानों के लिए लाभ देने वाली मानी जाती है। आइए जानतें हैं कि अजवाइन की खेती कैसे की जाती है और इससे कितना लाभ प्राप्त किया जा सकता है।
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अजवाइन तीन प्रकार की होती है। इसमें अजवाइन, जंगली अजवाइन और खुरासानी अजवाइन होती है। इसका कई रोगों में इलाज में इस्तेमाल किया जाता है। इसका सेवन मसाला, चूर्ण, काढ़ा और रस के रूप में करने से किसी भी तरीके से करें इसके फायदे मिल जाते हैं। सर्दी-जुकाम, अपज, पेट दर्द, गठिया, मसूड़ों की सूजन दूर करने, मुंहसों निकलने पर इसका इस्तेमाल किया जाता है। इसके अलावा महिलाओं के पीरियड्स के दर्द को भी कम करने में इसका प्रयोग औषधी के रूप में किया जाता है।
अजवाइन की खेती मुख्यत उत्तरी अमेरिका, मिस्त्र ईरान, अफगानिस्तान तथा भारत में प्रमुखता से होती है। भारत में इसकी खेती महाराष्ट्र, पश्चिम बंगाल, मध्यप्रदेश, उत्तरप्रदेश, पंजाब, तमिलनाडु, बिहार, आंध्रप्रदेश तथा राजस्थान के कुछ हिसों में अजवाइन की व्यावसायिक खेती की जाती हैं। राजस्थान मे अजवाइन की खेती प्रमुख रूप से चितौडग़ढ़ एवं झालावाड़, उदयपुर, कोटा, बूंदी, राजसमन्द, भीलवाड़ा, टोंक, बांसवाड़ा जिलों में इसकी खेती की जाती है।
अजवाइन शीत ऋतु में उगने वाला पौधा है। अधिक गर्मी इस पौधे के लिए अच्छी नहीं होती है। इसमें सिंचाई की कम आवश्कता पड़ती है। इसलिए इसकी खेती रबी सीजन में की जाती है। भारत में इसकी बुवाई अगस्त से सिंतबर के दौरान में की जाती है।
अजवाइन के बेहतर उत्पादन के लिए अजवाइन की उन्नत किस्मों का चुनाव किया जाना बेहद जरूरी है। बीजों की गुणवत्ता पर ही पैदावार का कम या अधिक होना निर्भर करता है।
यह किस्म नेशनल रिसर्च फॉर सीड स्पाइसेज, तबीजी, अजमेर द्वारा विकसित की गई है । यह देर से पकने वाली किस्म 165 दिन में तैयार होती है । पौधे की औसत ऊँचाई 112 से.मी. है। प्रति पौधे औसत रूप से 219 पुष्प-छत्रक होते हैं । यह किस्म प्रतापगढ़ में स्थानीय रूप से विकसित की गई है। इस किस्म में उत्पादन की उच्च क्षमता होती है तथा औसत उपज 14.26 क्विंटल प्रति हैक्टेयर है। सिंचित क्षेत्र में 5.8 क्विंटल प्रति हैक्टयर बारानी क्षेत्र में प्राप्त होती है। यह किस्म सिंचित व बारानी क्षेत्र, दोनों के लिए ही उपयुक्त है। वाष्पशील तेल 3.4 प्रतिशत पाया जाता है।
यह किस्म गुजरात के स्थानीय जर्म प्लाज्मा से चयन विधि द्वारा नेशनल रिसर्च सेन्टर फार फील्ड स्पाइसेज, तबीजी, अजमेर द्वारा विकसित की गई है। यह एक जल्दी तैयार होने वाली किस्म है जो 147 दिन में परिपक्य हो जाती है । यह देश में जल्दी पकने वाली पहली किस्म है । इसकी औसत ऊंचाई 80 से.मी. है। प्रति पौधे पर औसत पुष्प-छत्रों की संख्या 185 है, इसकी सिंचित क्षेत्र में 12.83 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज होती है तथा असिंचित में 5.2 क्विंटल है। यह छाछया रोग प्रतिरोधक किस्म है। यह सिंचित व बारानी दोनों ही क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्म है।
सबसे पहले मिट्टी पलटने वाले हल से जुताई करने के बाद बुवाई से पहले एक बार गहरी जुताई करने के बाद 2 से 3 बार कल्टीवेटर से जुताई करने के बाद पाटा लगाएं। इसके बाद खेत में 10 से 15 टन प्रति हेक्टेयर की दर से गोबर की सड़ी खाद या कंपोस्ट खाद डाल दें। इसके अलावा 40 किलोग्राम नाइट्रोजन और 40 किलोग्राम फास्फोरस की प्रति हेक्टेयर की दर से उपयोग करें। ये ध्यान रखें कि नाइट्रोजन की आधी मात्रा और फास्फोरस की पूरी मात्रा को खेत में बोआई से पहले डालनी चाहिए। और बची हुई नाइट्रोजन की मात्रा को बोआई से करीब 30 व 60 दिनों के अंतर पर 2 बार में डालनी चाहिए। वहीं पोटाश की मात्रा हमें मिट्टी के परिक्षण के बाद डालना चाहिए।
अजवायन की खेती कतार में करना चाहिए जिससे की हमें फसल की निदाई -गुड़ाई करने में आसानी हो। इसके पौधे से पौधे की दूरी 25-30 सेमी और पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेमी के आसपास रखनी चाहिए। अजवाइन की बुवाई के लिए प्रति हैक्टेयर 4 किलोग्राम बीज की आवश्यकता पड़ती है। बता दें कि अजवाइन के पौधों की रोपाई बीज और नर्सरी में तैयार की गई पौध दोनों के माध्यम से की जाती है। लेकिन पौध के रूप में इसकी खेती करना ज्यादा बेहतर होता है।
बीज के माध्यम से रोपाई के दौरान इसके पौधों की रोपाई छिडकाव विधि के माध्यम से की जाती है। छिडक़ाव विधि से रोपाई करने के दौरान लगभग तीन से चार किलो बीज की जरूरत होती है। इसके बीजों की रोपाई से पहले उनसे उपचारित कर लेना चाहिए। इसके बीजों की रोपाई के लिए पहले खेत में उचित आकार की क्यारियां बनाकर उनमें इसके बीजों को छिडक़ दिया जाता है। उसके बाद दंताली या हाथों से इसके बीजों को मिट्टी में एक सेंटीमीटर की गहराई में मिला देते हैं। ज्यादा गहराई में लगाने से इसके दानों का अंकुरण प्रभावित होता है।
अजवाइन की रोपाई सूखी या नम भूमि में की जाती है। इसलिए इसकी रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई कर देनी चाहिए। सिंचाई के दौरान पानी का बहाव धीमा ही रखना चाहिए। क्योंकि तेज बहाव में सिंचाई करने पर इसका बीज बहकर किनारों पर चला जाता है।
अजवाइन के पौधे रोपाई के लगभग 140 से 160 दिन बाद कटाई के लिए तैयार हो जाते हैं। अजवाइन की विभिन्न किस्मों के पौधों का प्रति हेक्टेयर औसतन उत्पादन 10 क्विंटल के आसपास पाया जाता है। जिसका बाजार भाव 12 हजार से लेकर 20 हजार रुपए प्रति क्विंटल तक प्राप्त किया जा सकता है। इस हिसाब से एक हेक्टेयर अजवाइन की खेती करके सवा लाख से दो लाख तक की कमाई की जा सकती है।
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