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जनवरी माह में बोई जाने वाली फसलें, करें इन फसलों की रोपाई, होगा भरपूर फायदा

Published - 29 Dec 2020

जानें, किन-किन फसलों की कर सकते हैं रोपाई और क्या अपनाएं तरीका

किसान भाइयों की सुविधा के लिए हम हर माह, महीने के हिसाब से फसलों की बुवाई की जानकारी देते हैं। जिससे आप सही समय पर फसल की बुवाई कर बेहतर उत्पादन प्राप्त कर सके। इसी क्रम में आज हम जनवरी माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में जानकारी दे रहे हैं। इसी के साथ उनकी अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों से भी आपको अवगत करा रहे हैं ताकि आप अपने क्षेत्र के अनुकूल रहने वाली उन्नत किस्मों का चयन करके उत्पादन को बढ़ा सके। आशा करते हैं हमारे द्वारा दी जा रही ये जानकारी किसान भाइयों के लिए फायदेमंद साबित होगी। तो आइए जानते हैं जनवरी माह में बोई जाने वाली फसलों के बारे में।

 

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टमाटर

टमाटर की नवंबर माह में लगाई नर्सरी जनवरी माह में रोपी जा सकती है परंतु पाले से बचाव करते रहे। प्रत्येक 10 दिन बाद हल्की सिंचाई देते रहे । टमाटर के खेते में खरपतवार बिल्कुल नहीं होने चाहिए। इन्हें समय-समय पर निकालते रहें। पुरानी फसल में यदि फल छेदक का संक्रमण हो जाए तो खराब फलों को तुरंत तोडक़र तुरंत नष्ट कर दें। अधिक संक्रमण की स्थिति में 0.1 प्रतिशत मैलाथियान या 0.1 प्रतिशत थायोडान 15 दिन के अन्तराल पर छिडक़े 7 छिडक़ाव से पहले तैयार फल तोड़ लें तथा अगली तुडाई 17 दिन बाद करें।

 


मिर्च

मिर्च की नवंबर माह में लगाई गई नर्सरी जनवरी में रोपी जा सकती है। लाइनों व पौधों में 18 ईच का फासला रखें। फैलने वाली किस्मों में फसला 24 ईच तक बढ़ा दें । रोपाई से पहले खेत में 100 किवंटन गोबर की सडी गली खाद 1 बोरा यूरिया (1/2 नेत्रजन की दूसरी किस्त) 1.7 बोरा सिंगल सुपर फास्फेट तथा 1 बोरा म्युरेट आफ पोटाश डालें । सर्दियों में 10-17 दिन बाद हल्की सिंचाई से फूल व फल गिरते नहीं हैं व फसल पाले से भी बची रहती है ।

 

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फ्रेचबीन

फ्रेचबीन को सभी प्रकार की मिट्टियों में उगया जा सकता है। मैदानी क्षेत्रों में 20 से 30 जनवरी तक बोया जा सकती है। झाड़ीनुमा किस्मों कोनटनडर व पूसा सरवती का 37 कि.ग्रा. बीज को 2 फुट लाइनों में तथा 8 ईच पौधों में दूरी पर लगाएं। लंबी ऊची किस्में कैन्टुकी व हेमलता के 17 कि.ग्रा. बीज को 3 फुट लाइनों में तथा एक फुट पौधे में दूरी पर लगाएं। बेले चढऩे के लिए लकड़ी या लोहे के खंबे लगाएं। बीजाई से पहले खेत में 100 क्विंटल गोबर की सड़ी-गली खाद, 4 बोरे सिंगल सुपर फास्फेट, 1 बोरा म्युरेट आफ पोटाश तथा 1 बोरा यूरिया डालें। पहली सिंचाई, बीजाई के 17 दिन बाद करें ।


मूली व गाजर

पूसा हिमानी मूली किस्म दिसंबर से फरवरी तक लगा सकते है। यह 40 से 70 दिन में तैयार हो जाती है तथा हल्का तीखा स्वाद देती है। जापानी व्हाइट मूली खेत में है तो सिंचाई तथा गुडाई समय-समय पर करें तथा खरपतवार निकाल दें। मूली व गाजर को तैयार होने पर उखाडऩे से 2-3 दिन पहले हल्की सिंचाई करें। इन फसलों को उखाडऩे में देर न करें क्योंकि देर से इनकी गुणवत्ता खराब हो जाती है तथा मूल्य भी कम मिलता है।


प्याज

प्याज की रोपाई 17 जनवरी तक की जा सकती है। तैयार किए गए खेत में उर्वरक डाले। सिंचाई के साधन के अनुसार क्यारियां तैयार करें। तैयार क्यारियों में 10-20 सेमी की दूरी पर रोपाई करें। ध्यान रहे रोपाई सांयकाल के समय करना उचित रहता है। रोपाई के तुरंत बाद सिंचाई करें।

 

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लोबिया

यह समय लोबिया की बुवाई के लिए उपयुक्त समय है। इसके लिए खेत की तैयारी करें और इसकी अच्छी किस्मों चयन करें। इसकी उन्नत किस्मों में पूसा कोमल, अर्का गरिमा व पूसा दोफसली किस्मों का चयन किया जा सकता है। इसमें पूसा कोमल लोबिया की ऐसी किस्म है जो बैक्टीरियल ब्लाईट प्रतिरोधी है। इस किस्म की बुवाई बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में आसानी से की जा सकती है। इसकी प्रति हेक्टेयर 100 से 120 क्विंटल पैदावार मिल जाती है। वहीं अर्का गरीमा खम्भा प्रकार की किस्म कहलाती है, इसे बारिश और बसंत ऋतु में आसानी से बो सकते हैं।

इसके अलावा पूसा दोफसली किस्म को बसंत, ग्रीष्म और बारिश, तीनों मौसम में लगाई जा सकती है। यह 45 से 50 दिन में पककर तैयार हो जाती हैं। इससे प्रति हेक्टेयर 75 से 80 क्विंटल पैदावार मिल सकती है। लोबिया की खेती में प्रति हेक्टेयर के लिए 12 से 20 किग्रा बीज पर्याप्त होता है। लोबिया के बीज की बुवाई को पंक्तियों में करें। इनकी दूरी लगभग 45 से 60 सेमी की होनी चाहिए। इसके साथ ही बीजों की दूरी लगभग 10 सेमी की रखनी चाहिए। अगर किस्म बेलदार है, तो पंक्ति की दूरी लगभग 80 से 90 सेमी की होनी चाहिए। बता दें कि बुवाई से पहले बीज को राइजोबियम से उपचारित कर लेना चाहिए।


राजमा

राजमा की बुवाई भी इस महीने की जा सकती है। इसके लिए इसकी उन्नत व अधिक पैदावार देने वाली किस्मों का चयन किया जा सकता है। इनमें पी.डी.आर.-14 (उदय), मालवीय-15, मालवीय-137, वीएल-63, अम्बर, उत्कर्ष शामिल हैं। यह प्रजाति कम समय मेें तैयार हो जाती हैं। राजमा की खेती के लिए 120 से लेकर 140 किलोग्राम बीज की प्रति हेक्टेयर जरूरत होती है।

खास बात यह है कि राजमा से अधिकतम उत्पादन लेने के लिए ढाई से साढ़े 3 लाख पौधे प्रति हेक्टेयर जरूरी होते हैं। पौधों की यह संख्या दानों के भार के अनुसार हासिल की जा सकती है। राजमा की बुवाई करते समय एक पंक्ति से पंक्ति की दूरी 30-40 सेंटीमीटर होनी चाहिए। बीज को 8-10 सेंटीमीटर गहराई में थीरम से बीज उपचार करने के बाद डालना चाहिएं ताकि पर्याप्त नमी मिल सके।


भिंडी

इस समय भिंडी की बुवाई भी किए जाने के लिए उपयुक्त समय है। भिंडी की बुवाई के लिए इसकी उन्नत किस्मों में परभन क्रांति, पूसा सावनी, पंजाब पद्मनी, पूजा ए-4, अर्का भय, अर्का अनामिका, पंजाब-7, पंजाब-13 भिंडी की उन्नत किस्में मानी जाती है। अन्य किस्मों में वर्षा, उपहार, वैशाली, लाल हाइब्रिड, ई.एम.एस.-8 (म्यूटेंट), वर्षा, विजय, विशाल आदि आती है। आप अपने क्षेत्र के अनुकूल उन्नत किस्म का चुनाव कर इसकी बुवाई कर सकते हैं। सामान्यतय: इसकी बुवाई करते समय लाइन से लाइन की दूरी 4.5 सेमी तथा बीज से बीज की दूरी 60 सेमी रखी जाती है। बीज उत्पादन की दृष्टि से फसल लेते समय लाइनों तथा बीजों के बीच की दूरी 60x60 सेमी रखी जाती है।


अंगूर, आडू, अनार व नाशपाती के पौधे लगाएं

जनवरी में अंगूर, आडू, अनुचा, अनार व नाशपाती के पौधे लगाने के लिए सर्वोत्तम समय है। लगाने के समय दीमक नियंत्रण जरूर करें। अंगूर के बेलें 17 जनवरी से 17 फरवरी तक 10 फुट के फासले पर लगा दें। नई बेलों को गोबर की खाद 20 कि.ग्रा. प्रति बेल जनवरी माह में देकर सिंचाई करें। बेल चढ़ाने के तरीकों में हैड, निफिन, टेलीफोन तथा बाबर मुख्य है इनका चुनाव किस्मों के हिसाब से करें।

 

 

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