Published - 13 Nov 2020
केंद्र की नरेंद्र मोदी सरकार किसानों को आमदनी 2022 तक दोगुना करने की दिशा में लगातार प्रयास कर रही है। इसके लिए नई-नई योजनाएं किसानों के लिए जारी की जा रही है। सरकार द्वारा दिए जा रहे प्रोत्साहन से किसान भी आगे बढ़ रहा है। किसान अब पारंपरिक खेती के साथ-साथ अन्य उपाय भी कर रहा है जिससे उसकी आमदनी बढ़ सके। किसानों की आमदनी बढ़ाने में नकदी फसल की भी महत्वपूर्ण भूमिका है। आज हम आपको बंपर मुनाफ देने वाली कोको की खेती के बारे में बता रहे हैं।
चॉकलेट आज बच्चों से लेकर बड़ों तक सभी की पसंद बन चुकी है। चॉकलेट की देश के हर गांव तक पहुंच बन गई है। चॉकलेट का कारोबार लगातार बढ़ रहा है। चॉकलेट बनाने के लिए कोको की खेती की जाती है। कोको की खेती दुनियाभर में की जाती है। कोको की खेती कमाई का बेहतरीन विकल्प साबित हो सकती है। काजू और कोको विकास निदेशालय देशभर में एक बेहतरीन योजना के तहत कोको की खेती को बढ़ावा देने में जुटे हैं। कोको एक नकदी और निर्यात फसल है। देश के कई प्रांतों में कोको की खेती मुख्य रूप से की जाने लगी है।
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कोको की खेती के लिए उचित तापमान 18 डिग्री से 32 डिग्री सेल्सियस के बीच माना गया है। कोको की खेती कई तरह की मिट्टी में की जा सकती है। लेकिन गहरी और समृद्ध मिट्टी को सबसे अच्छा माना जाता है। अगर आपको कोको की नियमित खेती करनी है तो ऐसी मिट्टी चुनें जिसमें नमी बनी रहे और कोको की खेती करने का सबसे उचित समय मानसून के शुरुआत में होता है।
कोको की खेती करने के लिए 1 एकड़ जमीन पर 400 पौधे लगाए जा सकते हैं। दो सीडलिंग्स के बीच कम से कम 4 मीटर की दूरी होनी आवश्यक है। कोको के अच्छे उत्पादन के लिए इसके पौधों को पर्याप्त मात्रा में धूप मिलनी चाहिए। कोको की उन्नत खेती के लिए सूखी मिट्टी का इस्तेमाल करें। हाइब्रिड सीडलिंग का इस्तेमाल करने का यह लाभ है कि प्रत्येक फली से अधिक से अधिक फलियों मिल सकती हैं। कोको की खास बात यह है कि इसे इंटर क्रॉपिंग या फिर मुख्य फसल के रूप में भी उगाया जा सकता है। इंटरक्रॉपिंग का मतलब है कि कोको की खेती दूसरी फसलों के बीच में भी की जा सकती है। जैसे नारियल या सुपारी के बगीचे में भी कोको की खेती की जा सकती है, जिन किसानों को अपनी फसलों के बदले अच्छा दाम नहीं मिलता या सिर्फ फसलों की बिक्री कमाई नहीं देती तो वह कोको की खेती आजमा कर शानदार कमाई कर सकते हैं।
कोको की खेती से जिन किसानों ने बेहतर पैदावार पाकर मुनाफा कमाया है, उन किसानों का कहना है कि कोको बिना देखभाल के 3 साल के भीतर बेहतरीन पैदावार देने में सक्षम है। किसानों के अलावा गृहणियां भी छोटे स्तर पर तीन-चार पेड़ों के माध्यम से एक अच्छी आय प्राप्त कर सकती है। रसोई के वेस्ट पानी का उपयोग करके कोको को छोटे पैमाने पर उगाया जा सकता है। किसानों के अनुसार खाद को कोको की खेती के लिए एक अच्छा उर्वरक माना गया है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कोको नामक वृक्ष के फलों के बीज से कोको तैयार किया जाता है। इसका फल पपीता के समान होता है, जिसमें 30 से 60 तक बीज होता है। इन बीजों को सुखाकर भुननें पर कोको तैयार होता है। यह भी चाय की तरह पेय पदार्थ है तथा इससे चॉकलेट भी बनाया जाता है। इसका वृक्ष 4 मीटर से 7 मीटर तक ऊंचा होता है तथा इसके फल तनों पर लगते हैं। कोको विषुवत् रेखीय उष्ण तथा आर्द्र निम्न भूमि प्रदेशों का पौधा है। अत: इसे उच्च तापमान तथा अधिक वर्षा की आवश्यकता होती है। कोको के मुख्य उत्पादक देश आइवरी तट, घाना, ब्राजील, मैक्सिको, न्यूगिनी, वेनेजुएला, फिलीपीन्स तथा मलेशिया हैं।
केन्द्रीय बागवानी फसल अनुसंधान केन्द्र और केरल कृषि विश्वविद्यालय कोको की खेती के लिए किसानों को बीज ओर पौधे उपलब्ध करा रहे हैं। यह दोनों संस्थान मिलकर कोको की कई प्रजातियों पर शोध भी किया है जो भारत में खेती के लिए अच्छी हैं। केरल कृषि विश्वविद्यालय ने एम-16.9, एम-13.12, जीआई-5.9 और बागवानी विभाग ने आई-56, आई-14, आईआईआई-105 और एनसी-42 नामक प्रजाजियों को खेती के लिए संस्तुति किया है।
देश के बाजार में कोको करीब 200 रुपए प्रति किलोग्राम के भाव से मिल जाता है। फर्मेंटेड कोको बीन्स और भी ज्यादा महंगे होते हैं। कोको की खेती करने से सबसे बड़ा फायदा यह है कि इस फसल से पूरे साल 100 प्रतिशत उपज होती है। हमारे देश में करीब 10 बहुराष्ट्रीय कंपनियां हैं जो कोको पाउडर, कोको बटर, चॉकलेट, बीन और ऐसे कई प्रकार के अन्य कोको के प्रोडक्ट को निर्यात करती हैं।
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