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अप्रैल के कृषि कार्य : सूरजमुखी, उड़द, मूंग, गन्ना, लहसुन और आम में होगा फायदा

Share Product Published - 15 Apr 2021 by Tractor Junction

अप्रैल के कृषि कार्य : सूरजमुखी, उड़द, मूंग, गन्ना, लहसुन और आम में होगा फायदा

अप्रैल माह में करें ये कृषि कार्य : किसान भाइयों के लिए साबित होंगे उपयोगी

इस समय देश के कई राज्यों में गेहूं की फसल की कटाई का समय चल रहा है और राज्य की मंडियां किसानों से इसकी खरीद की जा रही है। हालांकि किसान इस समय काफी भागदौड़ में लगे हुए हैं। एक तो रबी की कटी फसल बेचना फिर नई फसल के लिए खेत तैयार करना। इसके अलावा जो फसल पहले से खेत में बोई हैं उसका ध्यान रखना भी जरूरी है। आज हम किसानों को अप्रैल महीने में कौनसे कृषि कार्य किए जा सकते हैं इसकी जानकारी किसानों को दे रहे हैं। जैसा की आपको पता है कि हम महीने के अनुसार किसान भाइयों को कृषि से संबंधित जानकारी प्रदान करते हैं। उसी क्रम में इस बार अप्रैल महीने के कृषि कार्यों के बारे में आपको बता रहे हैं। आशा है ये जानकारी हमारे किसान भाइयों के लिए उपयोगी साबित होगी।

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गेहूं : कटाई काम जल्द निपटाएं, खेत को करें तैयार

गेहूं की फसल की कटाई करने से पहले खरपतवार या गेहूं की अन्य प्रजातियों की बालियों को निकल देना चाहिए। इससे मड़ाई के समय इनके बीज गेहूं के बीज में न मिल पाएं। इसके अलावा जौ, चना, मटर, सरसों व मसूर आदि फसलों की कटाई व मड़ाई सही समय पर पूरा कर लें। इन फसलों की कटाई पूरी होने पर खेत को अगली फसल के लिए तैयार करें। इससे पहले अवशेषों को भूमि में मिला दें। ऐसा करने से भूमि की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।


सूरजमुखी : फुदका कीट का करें नियंत्रण

सूरजमुखी की खेती करने वाले किसानों को अपनी फसल की सुरक्षा करने को दीमक, हरे फुदके, डस्की बग आदि से बचाना होगा। ये कीट फसल को भारी क्षति पहुंचाते हैं। खड़ी फसल पर यदि इनका प्रकोप दिखे, तो सिंचाई के पानी के साथ क्लोरपाइरीफास 20 ईसी दो से तीन लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। हरे फुदका फसल की पत्तियों से रस चूसकर उसको हानि पहुंचा देते हैं। इसके नियंत्रण को मिथाइल ओडिमेटान 25 ईसी एक लीटर या इंडोसल्फान 35 ईसी की सवा लीटर मात्रा का 600 से 800 लीटर पानी के साथ प्रति हेक्टेयर छिडक़ाव करना चाहिए।


उड़द/मूंग : पत्ती खाने वाले कीट से करें सुरक्षा

उड़द/मूंग की फसल में पत्ती खाने वाले कीटों की रोकथाम करें। आमतौर पर उड़द और मूंग में फली का रस चूसने वाला कीटों का प्रकोप अधिक रहता है। यह रस चूसने वाले कीट लगने से फलियों को नुकसान पहुंचता है। इससे पैदावार काफी खराब हो जाती है। इससे निजात के लिए डाइमिथोएट 30 ईसी 800 मिली दवा का 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर के हिसाब से छिडक़ाव करना चाहिए। साथ में इमिडाक्लोप्रिड 17.4 ईसी 250 मिली दवा का 800 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर छिडक़ाव कर सकते हैं।


शरदकालीन/बसंतकालीन गन्ना : दो कतारों के बीच मूंग की एक कतार लगाएं

गन्ना की फसल को जरूरत के मुताबिक, समय-समय पर सिंचाई करते रहना चाहिए। वहीं इस माह गन्ने की दो कतारों के मध्य इस समय मूंग की एक कतार बोई जा सकती है। इससे आपको गन्ने के साथ ही मूंग का भी लाभ होगा। वहीं ऐसा करने से भूमि की उर्वरा शक्ति में भी इजाफा होगा।


बैंगन/भिंडी/लोबिया : कीट से बचाव करें

बैंगन में इस समय तनाछेदक कीट का प्रकोप अधिक रहता है। इस कीट से अपनी बैंगन की फसल को बचाने के लिए नीमगिरी 4 प्रतिशत का छिडक़ाव 10 दिन के अंतराल पर करने करें। वहीं भिंडी/लोबिया की फसल में पत्ती खाने वाले कीट से बचाने के लिए क्यूनालफास 20 प्रतिशत 1.0 ली./हे. 800 ली. पानी में घोलकर छिडक़ाव करें।


लहसुन : खुदाई करते समय इस बात कर रखें ध्यान

अप्रैल माह में प्याज व लहसुन की खुदाई की जाती है। खुदाई करते समय किसानों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि वे जब भी खुदाई करें इससे 10-12 दिन पहले इसकी सिंचाई करना बंद कर दें। वहीं प्याज व लहसुन में लाल भृंग कीट की रोकथाम के लिए सुबह के समय राख का इस्तेमाल करें। इसका इस्तेमाल करने से कीट पौधों पर नहीं बैठते हैं।


आम/लीची : रोगों से बचाएं, आवश्यकतानुसार सिंचाई करें

आम के गुम्मा रोग (मालफारमेशन) से ग्रस्त पुष्प मंजरियों को काट कर जला या गहरे गड्ढे में दबा देना चाहिए। आम के फलों को गिरने से बचाने के लिए एल्फा नेफ्थलीन एसिटिक एसिड 4.5 एस.एल. के 20 मिली को प्रति लीटर पानी में घोलकर छिडक़ाव करें। आवश्यकतानुसार समय-समय पर सिंचाई करें। वहीं लीची के बगीचों की आश्यकतानुसार सिंचाई करते रहे। लीची में फ्रूट बोरर की रोकथाम हेतु डाईक्लोरोवास आधा मिलीलीटर प्रति लीटर पानी (0.05 प्रतिशत) या 2 मिलीलीटर प्रति 5 लीटर पानी (0.04 प्रतिशत) में घोल बनाकर छिडक़ाव करें।


बरसीम : खेत में करें हल्की सिंचाई

बीज वाले बीज वाले बरसीम के खेत में हल्की सिंचाई करें। ऐसा नहीं करने से वानस्पतिक वृद्धि अधिक होती है और बीज उत्पादन कम हो जाता है।

 

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