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कृषि कानून वापसी बिल को लोकसभा के बाद राज्यसभा ने भी दी मंजूरी

Published - 29 Nov 2021

जानें, तीन नए कृषि कानूनों को लेकर क्या था किसानों और सरकार के बीच विवाद

मोदी सरकार की कृषि बिल कानून वापसी की घोषणा के बाद सोमवार को लोकसभा में इन नए कृषि कानूनों की वापसी की संवैधानिक प्रक्रिया शुरू की गई। बिल वापसी को लेकर इसे लोकसभा में पेश किया गया जहां बिना किसी चर्चा के इसे पास कर दिया गया है। इसके बाद इस बिल को राज्यसभा में वापसी हेतु रखा गया जहां भी बिना बहस के ये कृषि बिल वापसी के लिए पास कर दिए गए है। अब इस बिलों को राष्ट्रपति के पास भेजा जाना है, जहां राष्ट्रपति के हस्ताक्षर के बाद ये तीन बिल रद्द मानें जाएंगे। मोदी सरकार ने अपनी घोषणा के अनुसार बिलों की वापसी का किसानों को जो वादा किया था वो पूरा कर दिया है। 

नए तीन कृषि बिलों को लेकर किसान कर रहे थे आंदोलन

बता दें कि बीते करीब एक साल से अधिक समय से किसान इन कृषि बिलों का विरोध कर रहे थे और इसको लेकर आंदोलन कर रहे थे। किसानों के हट के पीछे सरकार को आखिर झुकना पड़ा और पिछले दिनों प्रकाशपर्व पर पीएम मोदी ने इन कृषि बिलों को वापस लेने की घोषणा कर दी थी। इधर किसान संगठन के अध्यक्ष राकेत टिकैत ने कहा था कि जब तक ये कृषि बिल पूरी तरह से संवैधानिक रूप से खत्म नहीं हो जाते उनका आंदोलन जारी रहेगा। अब चूंकि इन कृषि बिल कानूनों की संवैधानिक प्रक्रिया जारी है। राष्ट्रपति के हस्ताक्षर होना शेष हैं। 

तीनों विवादित कृषि कानूनों की वापसी और विपक्ष का हंगामा

मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार तीनों विवादित कृषि कानूनों की वापसी से संबंधित विधेयक को लोकसभा में पेश किया गया। कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने विपक्ष के हंगामे के बीच इसे सदन के पटल पर रखा। विपक्ष के हंगामे के बीच यह बिल लोकसभा से पास हो गया। लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता अधीर रंजन चौधरी ने इस विधेयक पर सदन में चर्चा की मांग की है। विपक्ष के हंगामे के कारण सदन को स्थगित कर दिया गया। लोकसभा ने विपक्ष के हंगामे के बीच तीन विवादास्पद कृषि कानूनों को निरस्त करने संबंधी कृषि विधि निरसन विधेयक 2021 को बिना चर्चा के ही मंजूरी दी है। वहीं राज्यसभा में भी इन कृषि बिल की वापसी के प्रस्ताव को मंजूरी मिल चुकी है।

कृषि बिल कानूनों को लेकर कांग्रेस ने किया प्रदर्शन

इससे पहले कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व में पार्टी के सांसदों ने विवादास्पद कृषि कानूनों के खिलाफ सोमवार को संसद भवन परिसर में प्रदर्शन किया। परिसर में लगी महात्मा गांधी की प्रतिमा के समक्ष एकत्रित कांग्रेसी सदस्य एक बड़ा बैनर फैलाए हुए थे जिसमें अंग्रेजी में लिखा था -हम काले कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग करते हैं। बता दें कि तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को सरकार वापस लेने की घोषणा कर चुकी है। कांग्रेस का कहना है कि जब तक किसानों के हितों की रक्षा नहीं होती, पार्टी शांत नहीं बैठेगी। विपक्ष के हंगामे के बीच दोनों सदनों की कार्यवाही कुछ-कुछ देर के लिए स्थगित करनी पड़ी। 

ये हैं वे नए कृषि बिल कानून जिन पर था विवाद 

1. कृषक उपज व्यापार और वाणिज्य (संवर्धन और सरलीकरण) विधेयक, 2020

  • इस विधेयक को लेकर सरकार का कहना था कि वह किसानों की उपज को बेचने के लिए विकल्प को बढ़ाना चाहती है। किसान इस कानून के जरिये अब एपीएमसी मंडियों के बाहर भी अपनी उपज को ऊंचे दामों पर बेच पाएंगे। निजी खरीदारों से बेहतर दाम प्राप्त कर पाएंगे। लेकिन किसानों को डर था कि सरकार इस कानून के जरिये एपीएमसी मंडियों को एक सीमा में बांध देना चाहती है और एमएसपी पर फसल की खरीद खत्म कर देना चाहती है। वहीं किसानों का मनाना था कि इस कानून के जरिये बड़े कॉरपोरेट खरीदारों को खुली छूट मिल जाएगी और बिना किसी पंजीकरण और बिना किसी कानून के दायरे में आए हुए वे किसानों की उपज खरीद-बेच सकते हैं।

2. कृषि (सशक्तिकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा करार विधेयक, 2020

  • इस कानून के संदर्भ में सरकार का कहना था कि वह किसानों और निजी कंपनियों के बीच में समझौते वाली खेती का रास्ता खोल रही है। इसे सामान्य भाषा में कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग कहते है। आप की जमीन को एक निश्चित राशि पर एक पूंजीपति या ठेकेदार किराये पर लेगा और अपने हिसाब से फसल का उत्पादन कर बाजार में बेचेगा। किसान इस कानून का पुरजोर विरोध कर थे। किसानों को डर था कि इस विधेयक की आड में निजी कंपनियां उन पर दबाव डालकर उनका शोषण करेंगी। 

3. आवश्यक वस्तु संशोधन विधेयक, 2020

  • इस विधेयक के अनुसार कृषि उपज जुटाने की कोई सीमा नहीं होगी। कोई कितनी भी सीमा में उपज को संग्रह करके रख सकता है यानि स्टाक कर सकता है। ऐसा होने पर इस बिल से उपज जमा करने के लिए निजी निवेश को छूट होगी। सरकार को पता नहीं चलेगा कि किसके पास कितना स्टॉक है और कहां है? खुली छूट। यह तो जमाखोरी और कालाबाजारी को कानूनी मान्यता देने जैसा था। सरकार कानून में साफ लिखती है कि वह सिर्फ युद्ध या भुखमरी या किसी बहुत विषम परिस्थिति में रेगुलेट करेगी। सिर्फ दो कैटेगोरी में 50 प्रतिशत (होर्टिकल्चर) और 100 प्रतिशत (नॉन-पेरिशबल) के दाम बढने पर रेगुलेट करेगी नहीं, बल्कि कर सकती है कि बात कही गई थी।  इसे लेकर किसान, सरकार से नाराज थे। किसानों को डर था कि व्यापारी या कंपनी कम कीमत पर किसानों से उपज खरीदकर स्टाक कर लेगी और अधिक मुनाफा कमाएगी। एक तरीके से उनका आर्थिक रूप से शोषण किया जा सकता है। 

कृषि बिल कानून वापसी प्रस्ताव की मंजूरी को लेकर किसने, क्या कहा

एक तरफ किसानों की मांग के अनुसार केंद्र की मोदी सरकार की ओर से कृषि बिल वापसी प्रस्ताव को लोकसभा और राज्य सभा दोनों में बिना किसी बहस और चर्चा के पास कर दिया गया। इसी के साथ नेताओं की प्रतिक्रिया आनी शुरू हो गई है। मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार इस संबंध में कांग्रेस सांसद मल्लिकार्जुन खडग़े ने कहा कि सोमवार को कृषि कानून निरसन विधेयक बिना चर्चा के लोकसभा में पास किया गया हम उसे सपोर्ट करते हैं लेकिन हम ये चाहते थे कि उस पर चर्चा हो कि क्यों इतनी देर हुई और दूसरे मुद्दे भी हैं जिन पर चर्चा हो, लेकिन उन्होंने (सरकार) टालने की कोशिश की। 

कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी ने लोकसभा में बिल पास होने के बाद कहा कि एमएसपी लीगल गारंटी के साथ लागू की जाए। 35,000 किसानों को झूठे केसों में फंसाया गया उन्हें मुक्त कराने की मांग और आंदोलन के दौरान मृतक 700 किसानों को मुआवजा देने की मांग पर सदन में चर्चा के लिए मौका दिया जाना चाहिए था, लेकिन हमें सदन में बोलने नहीं दिया गया।

इधर क्या बोले किसान नेता टिकैत

इससे पहले लोकसभा में कृषि कानून वापसी बिल पास होने पर राकेश टिकैत ने कहा कि अब सरकार एमएसपी पर चर्चा करे। उन्होंने कहा कि अब 4 दिसंबर को आगे की कार्रवाई का फैसला करेंगे। उन्होंने कहा कि सरकार के साथ टकराव की कोई बात ही नहीं है। अभी सरकार है कहां? टिकैत ने कहा कि सरकार अब दूसरे मुद्दों पर बात करे।

 

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