Published - 22 Jan 2021
बांस की खेती ने महाराष्ट्र के उस्मानाबाद के रहने वाले राजशेखर की तकदीर ही बदल दी। कभी वह 2 हजार की नौकरी करके अपना गुजारा करते थे। पर आज बांस की खेती कर सालाना एक करोड़ रुपए से ज्यादा का टर्नओवर कर रहे हैं। राजशेखर की कामयाबी से प्रभावित होकर दूर-दूर से लोग उनके खेत में लगे बांस के पौधों को देखने के लिए आते हैं और बांस की खेती के तरीके की जानकारी लेते हैं। बता दें कि राजशेखर एक किसान परिवार से संबंध रखते हैं।
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मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार राजशेखर बताते हैं कि उनके पास 30 एकड़ जमीन भी थी। लेकिन, पानी की कमी के चलते उपज अच्छी नहीं होती थी। तब न तो बिजली थी, न ही हमें सिंचाई के लिए पानी मिल पाता था। इसलिए हमारे गांव का नाम निपानी पड़ गया। मैंने अपनी तरफ से नौकरी की पूरी कोशिश की, लेकिन जब कहीं मौका नहीं मिला तो अन्ना हजारे के पास रालेगण चला गया। उन्हें गांव में काम करने के लिए कुछ युवाओं की जरूरत थी। वहां भी मेरा सिलेक्शन नहीं हुआ। अन्ना से बहुत मिन्नत की तो मुझे पानी और मिट्टी के संरक्षण का काम दिया गया। दो हजार रुपए महीने की तनख्वाह थी। चार-पांच साल तक वहां काम किया। तनख्वाह कम थी, लेकिन इस दौरान मुझे खेती और जल संरक्षण को लेकर काफी कुछ सीखने को मिला।
राजशेखर के अनुसार जब वे 30 साल थे तब एक दिन खबर मिली कि उनके पिता को पैरालिसिस हो गया है। इसके बाद वह अपने गांव लौट आए। यहां आकर फिर से खेती करने का विचार किया। इसी बीच उन्हें पता चला कि पास के गांव में एक किसान अपनी बांस की खेती को उजाडऩा चाहता है। उसे बांस की खेती में फायदा नहीं हो रहा था। उन्होंने वहां से बांस के 10 हजार पौधे उठा लिए और अपने खेत में लगा दिए। तीन साल बाद जब बांस तैयार हुए तो हाथों-हाथ बिक गए। इसका सत्कारात्मक परिणाम यह निकला कि बांस की खेती से पहले ही साल टर्नओवर 20 लाख रुपए पहुंच गया।
पहले ही साल अच्छी कमाई होने से राजशेखर का कॉन्फिडेंस बढ़ गया। अगले साल उन्होंने पूरे खेत में बांस के पौधे लगा दिए। सिंचाई के लिए गांव के 10 किलोमीटर लंबे नाले की सफाई करवाई। उसे खोदकर गहरा किया ताकि बारिश का पानी जमा हो सके। इससे उन्हें सिंचाई में भी मदद मिली और गांव को पानी का एक सोर्स भी मिल गया। उनके आसपास के लोग बताते हैं कि रोजाना कम से कम 100 लोग उनसे मुलाकात करने और सलाह लेने आते हैं। राजशेखर ने बांस की 50 से ज्यादा किस्में लगा रखी हैं। इनमें कई विदेशी वैराइटी भी हैं। महाराष्ट्र के साथ-साथ दूसरे राज्यों से भी लोग उनके यहां बांस खरीदने आते हैं। उन्होंने एक नर्सरी का सेटअप भी तैयार किया है, जिसमें बांस की पौध तैयार की जाती है।
बांस की खेती के साथ-साथ राजशेखर किसानों को इसकी ट्रेनिंग भी देते हैं। कुछ साल पहले उन्हें नागपुर में हुई एग्रो विजन कांफ्रेंस में भी बुलाया गया था। राजशेखर इंडियन बैंबू मिशन के एडवाइजर के तौर पर भी काम कर चुके हैं। उन्हें कई सम्मान और पुरस्कारों से नवाजा जा चुका है। अभी उनके यहां 100 से ज्यादा लोग काम करते हैं। ये लोग खेती के अलावा मार्केटिंग और ट्रांसपोर्टेशन का भी काम देखते हैं।
राजशेखर के अनुसार बांस की खेती के लिए किसी खास जमीन की जरूरत नहीं होती है। आप ये समझ लीजिए कि जहां घास उग सकती है, वहां बांस की भी खेती हो सकती है। इसके लिए बहुत देखभाल और सिंचाई की भी जरूरत नहीं होती है। जुलाई में बांस की रोपाई होती है। अमूमन बांस तैयार होने में तीन साल लगते हैं। इसकी खेती के लिए सबसे जरूरी है, उसकी वैराइटी का चयन। अलग-अलग किस्म के बांस का उपयोग और मार्केट रेट अलग होता है। बांस का पौधा तीन-चार मीटर की दूरी पर लगाया जाता है। इसके बीच की जगह पर दूसरी फसल की खेती भी की जा सकती है। बांस की खेती के लिए राष्ट्रीय बैंबू मिशन से भी मदद ली जा सकती है। इसके तहत हर राज्य में मिशन डायरेक्टर बनाए गए हैं।
आजकल मार्केट में बांस की खूब डिमांड है। गांवों में ही नहीं, बल्कि शहरों में भी बांस से बने प्रोडक्ट की मांग है। लोग घर की सजावट और नया लुक देने के लिए बांस से बने प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल कर रहे हैं। बांस से बल्ली, सीढ़ी, टोकरी, चटाई, फर्नीचर, खिलौने तैयार किए जाते हैं। इसके अलावा कागज बनाने में भी बांस का उपयोग होता है। राजशेखर बताते हैं कि अभी देश में बांस एक बड़ी इंडस्ट्री के रूप में उभर रहा है। बहुत कम लोग हैं जो बांस की खेती कर रहे हैं। जो कर रहे हैं, वे इसे बिजनेस के लिहाज से नहीं कर रहे हैं।
एक एकड़ खेत में बांस लगाने के लिए 10 हजार के आसपास का खर्च आता है। तीन-चार साल बाद इससे प्रति एकड़ तीन लाख रुपए की कमाई हो सकती है। एक बार लगाया हुआ बांस, अगले 30-40 साल तक रहता है।
बांस की कीमत उसकी क्वालिटी पर निर्भर होती है। उसी के मुताबिक बांस से आमदनी होती है। क्वालिटी के मुताबिक एक बांस की कीमत 20 रुपए से लेकर 100 रुपए तक मिल सकती है।
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