Published - 13 Jan 2021
किसान आंदोलन को 50 दिन पूरे हो रहे हैं, लेकिन अभी तक किसानों की मांगे पूरी नहीं हुई हैं। हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने नए कृषि कानूनों को लेकर अगले आदेश तक रोक लगा दी है। वहीं नए कृषि कानूनों को लेकर आ रही समस्याओं को सुलझाने के लिए चार सदस्यीय एक कमेटी का गठन भी कर दिया है। लेकिन सुप्रीम कोर्ट के फैसले से किसान संतुष्ट नहीं है। किसानों का कहना है कि वे कमेटी के समाने नहीं जाएंगे। यहीं कारण है कि मोदी सरकार के नए कृषि कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी किसानों का आंदोलन जारी है। आज किसानों के आंदोलन का आज 50वां दिन है। किसानों ने आंदोलन जारी रखने का फैसला किया है। मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर आंदोलन कर रहे किसान कृषि कानूनों की कॉपी जलाकर लोहड़ी मनाएंगे। बता दें कि हरियाणा और पंजाब सहित देश के विभिन्न हिस्सों के किसान पिछले साल 26 नवंबर 2020 से दिल्ली की अलग-अलग सीमाओं पर प्रदर्शन कर रहे हैं और तीनों कानूनों को वापस लेने तथा अपनी फसलों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की वैधानिक गारंटी की मांग कर रहे हैं।
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किसान नेताओं द्वारा मीडिया को बताए गए अनुसार उपरोक्त कार्यकमों के साथ-साथ अदानी, अंबानी के उत्पादों का बहिष्कार करने और भाजपा के समर्थक दलों पर दबाव डालने के हमारे कार्यक्रम बदस्तूर जारी रहेंगे। तीनों किसान विरोधी कानूनों को रद्द करवाने और एमएसपी की कानूनी गारंटी हासिल करने के लिए किसानों का शांति पूर्वक एवं लोकतांत्रिक संघर्ष जारी रहेगा।
पठानकोट-अमृतसर राष्ट्रीय राजमार्ग पर पडऩे लदपालवा टोल प्लाजा के समीप एक किसान ने कृषि कानूनों के विरोध में जहर निगल लिया। इसके चलते किसान को इलाज के लिए निजी अस्पताल ले जाया गया जहां उसकी मौत हो गई। किसान की मौत के बाद अन्य किसानों ने अस्पताल के बाहर प्रदर्शन किया। इस सबंध में जानकारी देते किसानों ने बताया कि किसान सुच्चा सिंह (गुरदासपुर के गांव खोखर निवासी) संघर्ष में हिस्सा लेने के लिए पहुंच था। उसने कहा था कि उससे किसानों का दुख देखा नहीं जा रहा और लगता है कि इसी वजह से उस ने अपनी शहादत दी है। बता दें कि किसान आंदोलन के शुरू होने से लेकर अब तक करीब 22 से ज्यादा किसानों की मौत हो चुकी है।
भारतीय जनता पार्टी की सांसद और बॉलीवुड अभिनेत्री हेमा मालिनी ने धरने पर बैठे किसानों को लेकर सवाल खड़ा कर दिया है। हेमा मालिनी का कहना है कि जो किसान धरने पर बैठे हैं, उन्हें कानून में समस्या ही नहीं पता है।
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