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मौसम अपडेट : क्या अभी करना होगा मानसून का इंतजार!

Published - 30 Jun 2021

8 जुलाई से मानसून को मिलेगी गति, जानें, क्या कहती है मौसम विभाग की भविष्यवाणी

देश के कई राज्यों में मानसून समय पर नहीं पहुंचा है। इससे खरीफ फसलों की खेती में लगे किसान की चिंताएं बढ़ गई है। देश के दिल्ली व उत्तर भारत के मैदानी इलाकों के किसानों को मानसून का इंतजार बना हुआ है। मानसून के अभाव में दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, राजस्थान, गुजरात व मध्यप्रदेश के अधिकांश जिलों में सूखे के हालात बने हुए हैं। निजी मौसम पूर्वानुमान एजेंसी स्काईमेट वेदर के मौसम अनुमान के अनुसार 8 जुलाई से बंगाल की खाड़ी से पूर्वी हवाएं चलेंगी। इसके बाद ही देश के बाकी हिस्से में मॉनसून आगे बढ़ेगा। तब तक इन इलाकों को बारिश के लिए इंतजार करना पड़ेगा। कृषि विशेषज्ञों का कहना है कि मानसून की धीमी गति के कारण प्रमुख खरीफ फसलों दलहन, तिलहन, धान और मोटे अनाज की बुवाई में देरी हुई है। अगर एक सप्ताह और बारिश नहीं हुई तो देश के कुछ हिस्सों में फिर से बुवाई करनी पड़ सकती है। 

 

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जानें, क्या है मानसून के कमजोर होने की वजह

देश में जून महीने के शुरुआती दिनों में अच्छी बरसात हुई थी। 20 जून तक 42 प्रतिशत सरप्लस बारिश का अनुमान था, जो 28 जून तक घटकर मात्र 16 प्रतिशत रह गई। फिलहाल मानसून के कमजोर होने का सिलसिला बरकरार है। हालांकि पूर्वी भारत के राज्यों में अभी भी अच्छी बारिश हो रही है। बिहार के कुछ हिस्सों, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और पूर्वोत्तर के राज्यों में सही बारिश हो रही है। आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र के अनुसार दिल्ली, हरियाणा, पंजाब के कुछ हिस्सों, पश्चिमी उत्तर प्रदेश और पश्चिमी राजस्थान में बंगाल की खाड़ी से चलने वाली पूर्वी हवाएं मानसून लाती हैं। लेकिन बंगाल की खाड़ी में वर्तमान में कोई सक्रिय प्रणाली नहीं है जो पूर्वी हवाओं को इस क्षेत्र में मानसून लाने में मदद कर सके। महापात्र ने बताया कि अरब सागर में बनी एक प्रणाली ने मॉनसून को गति प्रदान की, जिसने बाड़मेर सहित राजस्थान के कुछ हिस्सों को कवर कर लिया है।


मानसून की उत्तरी सीमा में 16 जून के बाद कोई बदलाव नहीं

आईएमडी के अनुसार मानसून की उत्तरी सीमा अभी भी बाड़मेर, भीलवाड़ा, धौलपुर, अलीगढ़, मेरठ, अंबाला और अमृतसर से होकर गुजर रही है। उत्तरी सीमा में 16 जून से कोई बदलाव नहीं आया है। केरल में दो दिन देरी से पहुंचने के बाद मानसून ने सामान्य से 7 से 10 दिन पहले पूर्वी, मध्य और आसपास के उत्तर-पश्चिम भारत को कवर कर लिया था। अब इसने राजस्थान के बाड़मेर सहित उत्तर भारत के कुछ हिस्सों को भी कवर कर लिया है। लेकिन पश्चिम उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा के कुछ हिस्सों में अभी बारिश नहीं हुई है।


तय समय से दो सप्ताह पहले बाड़मेर पहुंचा मानसून

मौसम विभाग के क्षेत्रीय पूर्वानुमान केंद्र के प्रमुख कुलदीप श्रीवास्तव ने जानकारी देते हुए बताया कि पश्चिमी राजस्थान का प्रमुख जिला बाड़मेर में मानसून हर साल सबसे आखिरी में पहुंचता है। आमतौर पर दक्षिण-पश्चिम मानसून जुलाई के पहले सप्ताह तक पश्चिमी राजस्थान में पहुंचता है। वहीं आईएमडी के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्र ने जानकारी दी कि मानसून इस बार अपने तय समय से दो सप्ताह पहले बाड़मेर पहुंच गया है।


यूपी में एक जुलाई से मानसून के सक्रिय होने की उम्मीद

स्काईमेट वेदर की रिपोर्ट में बताया गया है कि एक जुलाई से पूर्वी और मध्य उत्तर प्रदेश में फिर से मानसून सक्रिय होने की उम्मीद है। इसके बाद क्षेत्र में अच्छी बारिश होगी। बिहार के तराई के इलाकों में भी दो-तीन दिन तक अच्छी बारिश की संभावना है। 8 जुलाई के आसपास बंगाल की खाड़ी से चलने वाली पूर्वी हवाएं सक्रिय हो जाएंगी और इसी समय मानसून को गति मिल सकती है।


मानसून की देरी का फसलों पर प्रभाव

मानसून में देरी से ख्ररीफ फसलों पर प्रभाव पड़ रहा है। मानसून जून के मध्य तक अच्छा दिख रहा था। हालांकि, अब मध्य प्रदेश, राजस्थान, गुजरात के कुछ हिस्सों और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में खरीफ की बुवाई की प्रगति को लेकर कुछ चिंताएं बढ़ रही हैं। विशेषज्ञों के अनुसार मानसून के हिसाब से अगला सप्ताह बहुत महत्वपूर्ण होगा। सोयाबीन प्रोसेसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया के कार्यकारी निदेशक डीएन पाठक के मीडिया में प्रकाशित बयानों के अनुसार मध्य प्रदेश में 20 फीसदी से भी कम सोयाबीन की बुवाई हुई है। जबकि अखिल भारतीय स्तर पर यह पिछले साल के रकबे का करीब 33 फीसदी है। अगर 5 जुलाई के बाद बारिश तेज होती है, तो फसल को बड़ा नुकसान नहीं होगा। केवल फसल में देरी होगी।  वहीं सोयाबीन और कपास का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक और दलहन का महत्वपूर्ण उत्पादक राज्य महाराष्ट्र विषम वर्षा पैटर्न से सबसे अधिक प्रभावित रहा है। 21 जून तक महाराष्ट्र ने 2.27 मिलियन हेक्टेयर में खरीफ की बुवाई पूरी कर ली थी, जो पिछले साल की इसी तारीख तक 5.96 मिलियन हेक्टेयर थी, जो 62 प्रतिशत कम थी। खरीफ अनाज की बुआई 71 फीसदी, दलहन 56 फीसदी, तिलहन 58 फीसदी और कपास की बुआई 64 फीसदी कम है।

 

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