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भारत में कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी, एक वेरिएंट ही बना चिंता का कारण

Published - 03 Jun 2021

जानें, कितना खतरनाक है ये वेरिएंट और कैसे पहुंचाता है नुकसान

भारत में बीते कुछ दिनों से कोरोना संक्रमण के मामलों में कमी देखी जा रही है। यह एक राहत भरी खबर है। लेकिन भारत में सबसे पहले पाए गए डेल्टा स्ट्रेन ने डब्ल्यूएचओ की चिंता को बढ़ा दिया है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने साप्ताहिक महामारी अपडेट में कहा कि यह स्पष्ट हो गया है कि फिलहाल अधिकतर मामले डेल्टा वेरिएंट से जुड़े हैं, जबकि अन्य वंशों के ट्रांसमिशन की दर में कमी देखी गई है। बी.1.617.2 वेरिएंट अभी भी वीओसी है। इसे ओरिजनल वर्जन की तुलना में अधिक खतरनाक माना जा रहा है क्योंकि उनका ट्रांसमिशन तेजी से हो रहा है और वह बहुत ही घातक हैं। साथ ही वह वैक्सीन को भी चकमा दे सकते हैं।

 

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अब इन नामों से जाएंगे कोरोना के ये वेरिएंट

मीडिया से मिली जानकारी के आधार पर कोरोना वायरस के भारत में पहली बार पाए गए स्वरूप बी.1.617.1 और बी.1.617.2 को अब से क्रमश: ‘कप्पा’ तथा ‘डेल्टा’ से नाम से जाना जाएगा। दरअसल विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने कोरोना वायरस के विभिन्न स्वरूपों की नामावली की नई व्यवस्था की घोषणा की है जिसके तहत वायरस के विभिन्न स्वरूपों की पहचान ग्रीक भाषा के अक्षरों के जरिए होगी। यह फैसला वायरस को लेकर सार्वजनिक विमर्श का सरलीकरण करने तथा नामों पर लगे कलंक को धोने की खातिर लिया गया। डब्ल्यूएचओ ने कहा कि इस वेरिएंट पर आगे की और जानकारी पर नजर रखना, स्वास्थ्य एजेंसी की प्राथमिकता में है। डब्ल्यूएचओ की कोविड-19 संबंधी तकनीकी प्रमुख डॉ. मारिया वान केरखोव ने कहा कि हम जानते हैं कि बी.1.617.2, डेल्टा संस्करण तेजी से ट्रांसमीट हो रहा है। इसका मतलब कि यह लोगों के बीच आसानी से फैल सकता है। 


भारत ने जताई थी आपत्ति

तीन हफ्ते पहले नोवेल कोरोना वायरस के बी.1.617 स्वरूप को मीडिया में आई खबरों में भारतीय स्वरूप बताने पर भारत ने आपत्ति जताई थी उसी की पृष्ठभूमि में डब्ल्यूएचओ ने यह कदम उठाया है। हालांकि भारत के केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने कहा था कि संयुक्त राष्ट्र की शीर्ष स्वास्थ्य एजेंसी ने अपने दस्तावेज में उक्त स्वरूप के लिए भारतीय शब्द का इस्तेमाल नहीं किया है। इसी क्रम में संयुक्त राष्ट्र की स्वास्थ्य एजेंसी ने कोविड-19 के बी. 1.617.1 स्वरूप को कप्पा नाम दिया है तथा बी.617.2 स्वरूप को डेल्टा नाम दिया है। वायरस के ये दोनों ही स्वरूप सबसे पहले भारत में सामने आए थे। संरा स्वास्थ्य एजेंसी ने नामकरण की नई प्रणाली की घोषणा करते हुए कहा कि नई व्यवस्था, स्वरूपों के सरल, बोलने तथा याद रखने में आसान नाम देने के लिए है। उसने कहा कि वायरस के स्वरूप जिन देशों में सबसे पहले सामने आए, उन्हें उन देशों के नाम से पुकारना कलंकित करना और पक्षपात करना है।


अन्य देशों में भी मिले वेरिएंट का भी हुआ नामांकरण

इस तरह का एक स्वरूप जो सबसे पहले ब्रिटेन में नजर आया था और जिसे अब तक बी.1.1.7 नाम से जाना जाता है उसे अब से अल्फा स्वरूप कहा जाएगा। वायरस का बी.1.351 स्वरूप जिसे दक्षिण अफ्रीकी स्वरूप के नाम से भी जाना जाता है उसे बीटा स्वरूप के नाम से जाना जाएगा। ब्राजील में पाया गया पी.1 स्वरूप गामा और पी.2 स्वरूप जीटा के नाम से पहचाना जाएगा। अमेरिका में पाए गए वायरस के स्वरूप एपसिलन तथा लोटा के नाम से पहचाने जाएंगे। आगे आने वाले चिंताजनक स्वरूपों को इसी क्रम में नाम दिया जाएगा।


भारत में मिले कोरोना वायरस के वेरिएंट के खतरे को लेकर गुड न्यूज

भारत में मिले कोरोना वायरस के वेरिएंट के खतरे को लेकर गुड न्यूज है। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने कहा कि भारत में सबसे पहले मिले कोविड-19 वेरिएंट, जिसे डेल्टा वेरिएंट का नाम दिया गया है, उसका बस एक स्ट्रेन ही अब चिंता का विषय है, जबकि बाकी दो स्ट्रेन का खतरा कम हो गया है। कोरोना के इस वेरिएंट को बी.1.617 के नाम से जाना जाता है और इसी की वजह से भारत में कोरोना की दूसरी लहर में इतनी अधिक तबाही देखने को मिली। यह ट्रिपल म्यूटेंट वेरिएंट है क्योंकि यह तीन प्रजातियों (लिनिएज) में है।


भारत में मिला वेरिएंट क्यों हैं ज्यादा खतरनाक

मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार भारत में मिला कोरोना का बी.1.617 वेरिएंट ओरिजिनल वेरिएंट की तुलना में अधिक आसानी से फैल रहा है। कोरोना पर काम कर रही डब्ल्यूएचओ की वैज्ञानिक मारिया वान केरखोव ने कहा था कि कोरोना का बी.1.617 वेरिएंट का संक्रमण तेजी से फैल रहा है, इसकी जानकारी उपलब्ध हैं। डब्ल्यूएचओ के अनुसार भारत के बी.  1.617 वैरिएंट वायरस की संक्रमण क्षमता बहुत ज्यादा है। GISAID  के डेटा के अनुसार कोरोना का भारतीय वेरिएंट कोरोना के ऑरिजनल वेरिएंट के मुकाबले 2.6 गुना अधिक संक्रामक है। इतना ही नहीं यह यूके वेरिएंट से 60 परसेंट अधिक संक्रामक है। भारतीय वेरिएंट कम से कम तीन सब वेरिएंट में म्यूटेट हो चुका है। ये तीन सब-वेरिएंट बी. 1.617.1, बी. 1.617.2 और बी.1.617.3 हैं। 


एंटीबॉडी बनने से रोकता है वेरिएंट

अमेरिका और ब्रिटेन समेत कई नेशनल हेल्थ अथॉरिटीज भारतीय वेरिएंट बी. 1.617 को लेकर चिंता जता चुकी हैं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के साइंटिस्टों का कहना है कि इसके कुछ म्यूटेशन ऐसे हैं जो ट्रांसमिशन को बढ़ाते हैं और वैक्सीन या नेचुरल इंफेक्शन के बाद एंटीबॉडीज को बनने से रोकते है। वहीं दूसरी ओर कोविड-19 के भारतीय वेरिएंट बी. 1.617 के पास वैक्सीन से डिवेलप हुई एंटीबॉडी के बच निकलने की क्षमता है। कोरोना का यह वेरिएंट वैक्सीन की वजह से तैयार हुए सुरक्षात्मक लेयर से बच निकलता है। भारत और ब्रिटेन के वैज्ञानिकों ने अधिकतर लोगों के लिए वैक्सीनेशन को ही सुरक्षित पाया है।


वैक्सीनेशन के बावजूद कर रहा संक्रमित

10 देशों की लैबोरेट्री के समूह भारत के  INSACOG और ब्रिटेन की कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी ने SARS-CoV-w B.v.{v| को लेकर रिसर्च पेपर में संभावना का जिक्र किया है कि वैक्सीनेशन के बावजूद भी कुछ लोग इस वेरिएंट से संक्रमित हो जा रहे हैं। हालांकि यह संक्रमण काफी हल्का रहेगा। 


भारत सहित इन देशों में पाए गए वेरिएंट भी है चिंता बढ़ाने वाले

डब्ल्यूएचओ ने कोविड के भारतीय स्वरूप (बी-1617) को वैश्विक स्तर पर चिंताजनक स्वरूप की श्रेणी में रखा है। भारतीय वेरिएंट के अलावा कोरोना का यूके वेरिएंट बी.1.1.7 पहली बार पिछले साल सितंबर में केंट में पाया गया था। इस वेरिएंट का असर यूरोप में काफी अधिक था। भारत में भी इसके वेरिएंट वाले संक्रमित मिले थे। इसके अलावा साउथ अफ्रीका का बी.1.351 और ब्राजील का बी.1.1.248 वेरिएंट भी चिंता का सबब बने हुए हैं।

 

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