Published - 21 Nov 2020 by Tractor Junction
गेहूं की रोग प्रतिरोधी किस्म : कीट व्याधि प्रकोप का नहीं होगा असर, मिलेगी अधिक पैदावार
जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर की ओर से गेहूं की एक ऐसी प्रजाति विकसित की गई है जिसमें कीट व्याधि प्रकोप का कोई असर नहीं पड़ेगा। और यही नहीं आंधी आने पर भी गेहूं का पौधा झुकेगा नहीं। वहीं अन्य किस्मों की तुलना में इस किस्म से उत्पादन भी पांच क्विंटल प्रति हेक्टेयर ज्यादा होता है। ऐसा विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों का कहना है। वैज्ञानिकों के अनुसार गेहूं में मुख्य रूप से पीला रतुआ, गेरूआ रोग और काला कंडुआ (खुली कांगियारी) रोग होता है। यह रोग फफूंद के रूप में फैलता है। तापमान में वृद्धि के साथ-साथ गेहूं को पीला रतुआ रोग लग जाता है। रोग के प्रकोप से गेहूं की पत्तियों पर छोटे-छोटे अंडाकार फफोलो बन जाते हैं। ये पत्तियों की शिराओं के साथ रेखा सी बनाते हैं। ये फफोले बाद में फैलकर पत्ती और पूरे तने को चपेट में ले लेते हैं। रोगी पत्तियां पीली पडक़र सूख जाती हैं। इससे उपज प्रभावित होती है। इस समस्या से निबटने के लिए जबलपुर के वैज्ञानिकों ने ये प्रमुख दो किस्में यहां के लिए विकसित की है जो रोग प्रतिरोधी हंै। साथ ही इसकी पैदावार अन्य किस्मों से ज्यादा है।
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कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर की ओर से एमपी 3382 किस्म विकसित की गई है। यह किस्म 110 दिन में पककर तैयार हो जाती है। एमपी 3382 किस्म तापमान रोधी है। इस पर तापमान का काई असर नहीं होगा ये तेज धूप में भी नहीं झुलसेगा। यह किस्म जबलपुर कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक एवं अनुसंधानकर्ता प्रो.आरएस शुक्ला ने तैयार की है। यह 110 दिन की फसल है और इससे 55-65 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उत्पादन प्राप्त होता है। सामान्यतौर पर गेहूं की फसल को पकने के लिए 120 दिन लगते हैं।
जेडब्ल्यू (एमपी) 3288 में एक खासियत है कि इसका फसल तेज हवा-आंधी आने के बाद झुकेगा नहीं। इसके दाने बड़े होते है। इसके दाने छिंटकते नहीं है। गेहूं की यह किस्म गेरूआ रोग के प्रतिरोधी है। इस किस्म से दो सिंचाई में उपज 47 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।
इच्छुक किसान जवाहरलाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय जबलपुर या अपने नजदीकी कृषि विज्ञान केंद्र पर पहुंचकर बीज ले सकते हैं। वहीं किसान सोसायटियों और कृषि विभाग के माध्यम से भी इसे प्राप्त कर सकते हैं।
गर्मी के प्रति सहनशील, गेरूआ रोग के प्रतिरोधी, मोटे दानो वाली है। एक-दो सिंचाई में 45-47 क्विंटल उत्पादन होता है। सूखे तथा गेरुआ रोग के प्रति रोधी है।
सूखे तथा गेरूआ रोग के प्रतिरोधी, चपाती बनाने के लिए उत्तम, एक-दो सिंचाई में पक जाती है। 40-45 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादन होता है।
यह पिसिया किस्म है, जो भूरा गेरूआ निरोधक है। यह 130 दिन में पकती है। पैदावार असिंचित अवस्था में 13 से 19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। दाना, शरबती, चमकदार होता है।
यह पिसिया किस्म है जो भूरा गेरूआ निरोधक है। असिंचित अवस्था के लिये उपयुक्त है। यह 130 दिन में पकती है। इसकी पैदावार 13-15 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है।
यह काला और भूरा गेरूआ निरोधक कठिया जाति असिंचित अवस्था के लिए उपयुक्त है। पकने का समय 135 दिन है। पैदावार 11 क्विंटल प्रति हेक्टेयर होती है। दाना कड़ा होता है।
यह पिसी शरबती किस्म, काला और भूरा गेरूआ निरोधक है। इसके पकने का समय 125 दिन हैं। पैदावार 12-19 क्विंटल प्रति हेक्टेयर है। दाना शरबती चमकदार होता है।
यह काला और भूरा गेरूआ निरोधक कठिया किस्म असिंचित के लिए उपयुक्त है। यह 135 दिन मे पककर तैयार होती है। पैदावार 10 से 11 क्विंटल प्रति हेक्टयर होती है।
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