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किसान आंदोलन के बीच राज्य सरकारों की किसानों को खुश करने के प्रयास

Published - 28 Nov 2020

मध्यप्रदेश में मंडी शुल्क में भारी कटौती, अब 1.50 रुपए की जगह 50 पैसा लगेगा मंडी शुल्क

किसान आंदोलन के बीच राज्य सरकारों की ओर से किसानों को खुश करने के प्रयास जारी हैं। हाल ही में यूपी के बाद मध्यप्रदेश ने भी अपने यहां मंडी शुल्क में भारी कटौती कर दी है। पहले यहां मंडी शुल्क 100 रुपए पर 1.50 पैसा लिया जाता था लेकिन कटौती के बाद अब किसानों को 100 रुपए पर सिर्फ 50 पैसा ही मंडी शुल्क चुकाना होगा। मध्यप्रदेश सरकार का मानना है कि इससे किसानों को काफी राहत पहुंचेगी। बता दें कि इससे पहले यूपी में आदित्नाथ योगी की सरकार ने अपने यहां मंडी शुल्क में घटाया है। यूपी में पहले मंडी शुल्क 2 रुपए लिया जाता था जिसे अब घटकर एक रुपया कर दिया गया है। यह भी आपको बताते चले कि हर राज्य में मंडी शुल्क की अलग-अलग होता है। 

 

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मध्यप्रदेश में मंडी शुल्क

मीडिया में प्रकाशित खबरों के हवाले से मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री श्री शिवराज सिंह चौहान ने कहा है कि मध्य प्रदेश की कृषि उपज मंडियों में व्यापारियों से लिए जाने वाले मंडी शुल्क की राशि अब 1.50 रु. के स्थान पर 50 पैसे प्रति 100 रु. होगी। यह छूट 14 नवंबर 2020 से आगामी 3 माह के लिए रहेगी। मध्य प्रदेश सरकार ने गत दिनों व्यापारियों से इस संबंध में किए गए वादे को पूरा कर दिया है। व्यापारियों द्वारा मुख्यमंत्री श्री चौहान को आश्वत किया गया था कि इससे मंडियों की आय में कमी नहीं होगी। 3 महीने बाद इस छूट के परिणामों का अध्ययन कर आगे के लिए निर्णय लिया जाएगा।

 


मंडी शुल्क : आगे भी जारी रखी जा सकती है ये छूट

व्यापारियों के आश्वासन पर मंडी शुल्क में छूट दी गई है। छूट की अवधि में यदि मंडियों को प्राप्त आय से मंडियों के संचालन, उनके रखरखाव एवं कर्मचारियों के वेतन भत्तों की व्यवस्था सुनिश्चित करने में कठिनाई नहीं होती है, तो राज्य शासन द्वारा इस छूट को आगे भी जारी रखा जा सकता है।


पिछले साल मंडी शुल्क से हुई थी 1200 करोड़ रुपये की आय

वर्ष 2019-20 में प्रदेश की कृषि उपज मंडी समितियों को मंडी फीस एवं अन्य स्रोतों से कुल 12 सौ करोड़ रुपए की आय हुई थी। मंडी बोर्ड में लगभग 4200 तथा मंडी समिति सेवा में लगभग 29 सौ अधिकारी-कर्मचारी कार्यरत हैं तथा लगभग 2970 सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारी हैं। इनके वेतन भत्तों पर गत वर्ष 677 करोड़ रुपए का व्यय हुआ था।


किसानों से क्यूं लिया जाता है मंडी शुल्क

मंडी शुल्क में कटौती किसानों के द्वारा उत्पादित फसल, सब्जी, फल-फूल तथा अन्य प्रकार के उत्पाद को बेचने के लिए सभी राज्यों में मंडी शुल्क लिया जाता है। मंडी शुल्क से होने वाली आय के बदले में वहां विभिन्न व्यवस्थाएं जैसे पानी शौचालय, रुकने की व्यवस्था, गाड़ी पार्किंग की व्यवस्था शासन की तरफ से ही की जाती है। मंडी में किसानों के लिए एक अच्छे बाजार के साथ ही अन्य प्रकार की सुविधा भी दी जाती है।


मंडी शुल्क का क्या होता है उपयोग

आपके मन में एक बात जरूर आती है कि सरकार द्वारा लिया जाने वाला मंडी शुल्क कहां खर्च किया जाता है। तो बता दें कि मंडी शुल्क से प्राप्त आय का उपयोग राजस्थान राज्य कृषि विपन्न बोर्ड, कृषि उपज मंडी समितियों के संचालन, मंडी प्रांगणों के विकास व संचालन, कृषि विपन्न की आधारभूत संरचना विकसित करने एवं कृषकों, मजदूरों व हम्मालों आदि के लिए विभिन्न योजनाओं के संचालन करने में किया जाता है।


इधर 180 टन प्याज लेकर गुवाहाटी पहुंची किसान रेल, फरवरी 2021 तक चलेगी

पिछले दिनों इंदौर से 180 टन प्याज लेकर रवाना हुई किसान रेल गुवाहाटी पहुंच गई है। यह किसान ट्रेन फरवरी 2021 तक चलाई जाएगी। बता दें कि यह किसान रेल इंदौर से गुवाहाटी के लिए रवाना हुई थी। पश्चिम रेलवे की इस पहली किसान रेल को लक्ष्मीबाई नगर स्टेशन से इंदौर के सांसद श्री शंकर ललवानी ने हरी झंडी दिखाकर रवाना किया था। इस साप्ताहिक किसान रेल को फरवरी 2021 तक हर मंगलवार को चलाया जाएगा। 20 कोच वाली इस रेल के 18 कोच में 180 टन प्याज लादा गया। शेष 2 कोच में रास्ते के अन्य स्टेशनों से किसानों की फसल लादी गई है।

इस ट्रेन का इंदौर से गुवाहाटी पहुंचने का रूट बैरागढ़, बीना, झांसी,कानपुर,लखनऊ ,बाराबंकी, हाजीपुर, कटिहार, किशनगंज और न्यू जलपाईगुड़ी जैसे प्रमुख स्टेशनों से होते हुए गुवाहाटी है। इस दौरान इस किसान रेल का इन स्टेशनों पर ठहराव होता है। उल्लेखनीय है कि भारत की पहली ‘किसान रेल’ को केंद्रीय मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से हरी झंडी दिखाकर महाराष्ट्र के नासिक जिले में स्थित देवलाली से बिहार के दानापुर के लिए 7 अगस्त में रवाना किया था। किसान रेल चलाने का उद्देश्य किसानों की मदद करना है।

किसान रेल के माध्यम से किसान अपने कृषि उत्पादों, सब्ज़ी और फल आदि को बड़े शहरों के बाज़ार की मंडियों तक आसानी से भेज सकते हैं। इस किसान रेल से सस्ती दरों पर कृषि उत्पादों, खासतौर से जल्दी खराब होने वाली उपज के परिवहन में मदद मिलेगी, जिससे किसानों को उनकी फसलों का उचित मूल्य दिलाने में सहायक होगी। इससे देश के किसान आत्मनिर्भर व समृद्ध होंगे। बता दें कि भारतीय रेलवे द्वारा कोविड-19 महामारी के चलते देश भर में खाद्य पदार्थों की आपूर्ति सुनिश्चित करने के लिए 96 मार्गों पर 4,610 रेलगाडिय़ों का संचालन पीपीपी मॉडल के तहत किया जा रहा है। जिसका किराया मालगाड़ी जैसा ही होगा।

 

 

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