प्रिसिजन फार्मिंग : आलू की खेती में बन सकती है लाभ का सौदा

Share Product Published - 11 May 2021 by Tractor Junction

प्रिसिजन फार्मिंग : आलू की खेती में बन सकती है लाभ का सौदा

प्रिसिजन फार्मिंग अपनाएं, कम लागत पर बेहतर उत्पादन और अधिक मुनाफा पाएं

भारत में अधिकांश क्षेत्रों में वहीं पुराने और परंपरागत तरीके से खेती की जा रही है जिससे किसानों को बेहतर उत्पादन नहीं मिल पा रहा है। इसके परिणामस्वरूप उनकी आय में बढ़ोतरी नहीं हो पा रही है। हालांकि कुछ किसान आधुनिक तरीके से खेती कर अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। आज आवश्यकता भी इसी बात की है कि किसान उन परंपरागत तरीकों को छोडक़र आधुनिक और तकनीकी खेती की ओर अग्रसर ताकि देश के उत्पादन में बढ़ोतरी होने के साथ ही उनकी आय में भी बढ़ोतरी हो सके। इस दिशा में प्रिसिजन फार्मिंग किसानों के लिए बेहतर विकल्प बन सकता है। इसे अपनाकर किसान कम लागत पर अच्छा उत्पादन प्राप्त कर अपने लाभ में बढ़ोतरी कर सकते हैं। आइए जानते हैं आखिर क्या है प्रिसिजन फार्मिग और इससे कैसे हो सकता है किसानों को फायदा।

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क्या है प्रिसिजन फार्मिंग या परिशुद्ध खेती

प्रिसिजन फार्मिंग को परिशुद्ध खेती के नाम से भी जाना जाता है। यह खेती की वैज्ञानिक पद्धति है जो कृषि उत्पादन में स्थिरता लाने में सक्षम है। इसमें आधुनिक तकनीकी यंत्रों की सहायता से उर्वरक, कीटनाशक, सिंचाई, भूमि और श्रम का बेहतर उपयोग किया जा सकता है। वहीं दूसरी तरफ पर्यावरण पर हो रहे दुष्प्रभाव को कम किया जा सकता है। प्रिसिजन फार्मिंग में आधुनिक तकनीकी उपकरणों का बेहतर उपयोग किया जाता है। इसमें सेंसर की मदद से फसल, मिट्टी, खरपतवार, कीट या बीमारियों की स्थिति को मापा जा सकता है। वहीं मिट्टी की स्कैनिंग, ड्रोन कैमरों, हवाई जहाजों और उपग्रहों की मदद से फसल के छोटे से छोटे परिवर्तन पर निगाह रखी जा सकती है।


भारत में प्रिसिजन फार्मिंग या परिशुद्ध खेती की आवश्यकता

अब प्रश्न उठता है कि भारत में प्रिसिजन फार्मिंग की आवश्यकता क्यूं है? जैसा की हम जानते हैं कि भारत जनसंख्या की दृष्टि से दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा देश है, वहीं क्षेत्रफल की दृष्टि से सातवां बड़ा देश है। ऐसे में इतनी बड़ी आबादी को अन्न सुरक्षा देना बेहद चुनौतीपूर्ण है। ऐसे में हमें पारंपरिक खेती की बजाय आधुनिक और तकनीकी खेती की ओर बढऩा होगा। यह माना जा रहा है कि दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी आबादी की खाद्यान्न आपूर्ति के प्रिसिजन फार्मिंग यानी परिशुद्ध खेती के बेहतर विकल्प हो सकती है। यह भारत के लिए वरदान साबित हो सकती है। देश में इस समय अन्नदाता को को आर्थिक रूप से मजबूती देने के लिए अनेक प्रयास किए जा रहे हैं। ऐसे में दुनिया के अन्य देशों की तरह आधुनिक खेती के तौर-तरीकों को अपनाना होगा। 


आलू की खेती के लिए कैसे लाभदायक

वैसे तो प्रिसिजन फार्मिंग का इस्तेमाल सभी प्रकार की खेती के लिए किया जा सकता है लेकिन आलू की खेती के संदर्भ में इसके आश्चर्यजनक परिणाम देखें गए हैं। इससे उत्पादन में बढ़ोतरी होने के साथ ही लागत में कमी आई है और किसानों का लाभ भी बढ़ा है। नीदरलैंड समेत दुनिया के कई देशों में प्रिसिजन फार्मिंग के जरिए आलू की सफल खेती की जा रही है। इससे आलू का गुणवत्तापूर्ण और अधिक उत्पादन लिया जा रहा है। इस पद्धति के उपयोग से एक तरफ यहां के किसानों की खेती लागत कम हो रही है वहीं दूसरी तरफ अधिक मुनाफा हो रहा है। जिस वजह से किसान आर्थिक रूप से समृद्ध हो रहे हैं वहीं अपने देश को अन्न सुरक्षा प्रदान कर रहे हैं। 


किसानों का मुनाफा बढ़ाने में कैसे मददगार साबित हो सकती है ये तकनीक

आधुनिक खेती की यह तकनीक किसानों का मुनाफा बढ़ाने में मददगार साबित हो सकती है। इस पद्धति या तकनीक का इस्तेमाल करके किसानों को उत्पादकता, लाभप्रदता और स्थिरता प्रदान करने में मदद मिल सकती है। इस पद्धति से फसल में उर्वरकों और कीटनाशकों उपयोग समान रूप से किया जा सकता है। पोषक स्थिति को मापकर उर्वरक दर को समायोजित किया जा सकता है। इस कारण से आवश्यकता के अनुसार उर्वरकों और कीटनाशकों का उपयोग होता है, जिससे फसल से अधिक पैदावार होती है। वहीं महंगे उर्वरकों और कीटनाशकों के दुरूपयोग से बचा जा सकता है। इससे खेती की लागत में कमी आती है। जैसे प्रिसिजन फार्मिंग से आलू की खेती करने पर एक समान कंद का निर्माण होता है। इस कारण से अधिक पैदावार होती है। आज विभिन्न कीटनाशकों का प्रयोग पर्यावरण पर विपरीत प्रभाव डाल रहा है लेकिन प्रिसिजन फार्मिंग में कम्प्यूटर की सहायता से खरपतवारों को बिना पर्यावरण पर नकारात्मक प्रभाव डाले नष्ट किया जा सकता है।


प्रिसिजन फार्मिंग में महिंद्रा ट्रैक्टर्स का प्लाटिंग मास्टर पोटैटो कैसे मददगार है

आलू की खेती अधिक श्रम और अधिक लागत की खेती मानी जाती है। वहीं इसमें अधिक समय और अधिक मेहनत लगती है। लेकिन महिन्द्रा टैक्टर्स का प्लाटिंग मास्टर पोटैटो का उपयोग करने से इन सबकी बचत होती है। आइए जानते हैं किस प्रकार महिन्द्रा टैक्टर्स का प्लाटिंग मास्टर पोटैटो किस प्रकार किसानों के लिए लाभकारी साबित हो सकता है। इससे अनेक लाभ मिलते हैं। कुछ लाभ इस प्रकार से हैं-

  • महिंद्रा पोटैटो प्लांटर का उपयोग करके किसानों का श्रम और मेहनत कम की जा सकती है।
  • इसकी मदद से बीजों को रोपण बेहद कुशलता पूर्वक होता है जिससे आलू की खेती से अधिक लाभ लिया जा सकता है।
  • यह भारत के आलू किसानों की आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है।
  • इसके लिए महिन्द्रा ने एक प्रमुख आलू मैकेनिंग कंपनी डेवुल्फ के साथ समझौता किया है।
  • इसका प्लांटिंग मास्टर महिन्द्रा और डेवुल्फ ने विकसित किया है।
  • महिंद्रा पोटैटो प्लांटर की तकनीक आलू किसानों के लिए भारतीय परिस्थितियों के अनुकूल है।
  • यह आलू की सटीक बुवाई के लिए आश्वत करता है। इससे बुवाई में गति मिलती है। 
  • इसके उपयोग से उत्पादन में 25 प्रतिशत की बढ़ोतरी होती है।


क्या है प्लांटिंग मास्टर के एडवांस्ड मैकेनिज्म की खासियत

  • मशीन में एक मुविंग फ्लोर होता है जो रोपने वाले बेल्ट को लगातार आलू प्रदान करता है।
  • इसमें एक मैकेनिकल वाइब्रेटर होता है जिसकी मदद से एक समय में आलू का एक ही बीज लोडेड होता है।
  • इसका पैराबॉलिट शेप इस बात को सुनिश्चितकरता है कि रोपाई के दौरान बीज हमेशा नली के केन्द्र में हो।
  • इसमें निर्देशन प्लेट्स होती है जो आलू की रोपाई में सटिकता प्रदान करती है।
  • इसका प्लांटिंग मास्टर इस बात के लिए सुनिश्चित करता है कि बीज की रोपाई एक समान गहराई पर हो और पौधे से पौधे की दूरी एक समान हो।

 

प्रिसिजन फार्मिंग तकनीक द्वारा क्या है खेती का तरीका

प्रिसिजन फार्मिंग का प्रचलन दूसरे देशों में तेजी से बढ़ रहा है। भारत के लिए यह तकनीक बेहद लाभदायक सिद्ध हो सकती है। आइये जानते हैं कैसे होती है प्रिसिजन फार्मिंग-

प्रिसिंजन फार्मिंग तकनीक में काम आने वाले आवश्यक उपकरण

  • प्रिसिंजन फार्मिंग तकनीक का इस्तेमाल करने से पहले उसमें प्रयोग में आने वाले उपकरणों की जानकारी होना बेहद जरूरी है। इस तकनीक में कौन-कौन से उपकरणों का प्रयोग किया जाता है, इसे इस प्रकार समझा जा सकता है-

जीपीएस

  • प्रिसिजन फार्मिंग के लिए जीपीएस सिस्टम बेहद जरूरी होता है। इससे मिट्टी की सही और सटीक जानकारी लेने में मदद मिलती है। साथ ही मिट्टी के प्रकार, कीटों की जानकारी और बढ़ते खरपतवारों आदि की जानकारी ली जा सकती है।

सेंसर

  • सेंसर की मदद से मिट्टी की आर्द्रता, वायु की गति, सही तापमान का आकलन, वाष्प की मात्रा आदि का सटीक पता लगाया जा सकता है। साथ ही इस तकनीक से फसल में लगने वाले कीटों और रोगों की जानकारी, खरपतवारों की जानकारी और सुखे जैसी स्थिति से निपटने में सहायता मिलती है। सेंसर की मदद से बिना किसी प्रयोगशाला के फसल के अच्छे उत्पादन के लिए आवश्यक कदम उठाने में मदद मिल सकती है।

जीआईएस

  • जीआईएस यानि जियोग्राफिक इनफार्मेशन सिस्टम्स खेतों के आसपास की भौगोलिक परिस्थितियों की जानकारी लेने में मदद मिलती है। जिससे फसल की सही उत्पादकता का आंकलन पहले ही किया जा सकता है। वहीं इससे फसल के उचित भंडारण में भी मदद मिलती है। वहीं इसकी मदद से पूरे खेत की मिट्टी के नमूने इकट्ठा करने में सहायता मिलती है।

उपग्रह

  • उपग्रह की मदद से किसानों को खेत और फसल की संरचना की अधिक जानकारी मिल सकती है। इससे फसल की जरूरतों का सटीक अनुमान लगाना बहुत ही आसान हो जाता है। इसके आधार पर किसान बीज, उर्वरक, कीटनाशक और पानी आदि का सही इनपुट लिया जा सकता है।

 

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