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आलू की खेती : आलू की ये किस्में देगी ज्यादा उत्पादन

Published - 03 Oct 2021

आलू की फसल : जानें, आलू की अधिक पैदावार देने वाली किस्मों की विशेषताएं और लाभ

देश में आलू सभी प्रांतों में खाएं जाने वाली कंदीय सब्जी है। आलू हर मौसम में खाया जा सकता है। इसे अकेले या अन्य सब्जी के साथ मिलाकर बनाया जाता है। आलू से कई प्रकार की भोजन सामग्री बनाई जाती है। इतना ही नहीं आलू का प्रयोग कई घरेलू सौंदर्य नुस्को में भी किया जाता है। भारत में अधिकांश राज्यों में प्रमुखता से इसकी खेती की जाती है। 

देश के आलू उत्पादक किसानों के सामने सबसे बड़ी समस्या ये हैं कि आलू का उत्पादन काल में जितनी लागत आती है उसके मुकाबले उन्हें लाभ नहीं मिल पाता है। इस समस्या को दूर करने का उपाय उत्पादन की मात्रा को बढ़ाकर लागत को कम करना है। इसके लिए किसानों को अधिक उत्पादन देने वाली किस्मों का चयन करना चाहिए। आज हम आपको ट्रैक्टर जंक्शन के माध्यम से आलू की उन किस्मों के बारे में बता रहे हैं जो कम लागत में अधिक पैदावार देती हैं। आशा करते हैं हमारे किसान भाइयों को हमारे द्वारा दी गई जानकारी लाभकारी सिद्ध होगी। 

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आलू की खेती (Aalu Ki Kheti) का उचित समय

आलू की अगैती बुआई का समय 15-25 सितंबर का होता है। जबकि आलू की बुवाई का उचित समय से 15-25 अक्टूबर तक का माना गया है। वहीं इसकी पछेती बुआई का समय 15 नवंबर से 25 दिसंबर के बीच का रहता हैं।

Potato Cultivation in India : आलू की उन्नत किस्में

आलू की अगेती किस्मों में कुफरी अलंकार, कुफरी पुखराज, कुफऱी चंदरमुखी, कुफरी अशोका, कुफरी जवाहर आदि हैं। वहीं आलू की मध्यम समय वाली किस्मों में कुफरी बहार, कुफरी लालिमा, कुफरी सतलुज, कुफरी सदाबहार आदि हैं। इसके अलावा कुफरी सिंधुरी कुफरी फ्ऱाईसोना और कुफरी बादशाह इसकी देर से पकने वाली किस्में हैं।

आलू की कम समय में अधिक उत्पादन देने वाली कुफरी किस्में

आलू की कई किस्म होती है और इनका औसत उत्पादन 152 क्विंटल प्रति हेक्टेयर माना जाता है लेेकिन कुफरी किस्म का उत्पादन इससे भी बहुत अधिक होता है। ये कुफरी किस्में 70 से 135 दिन में की तैयार हो जाती हैं। इन कुफरी किस्मों से 152 से 400 क्विंटल तक की पैदावार ली जा सकती है। आलू की ये कुफरी किस्में इस प्रकार से हैं-

  • कुफरी अलंकार : आलू की ये किस्म केंद्रीय आलू अनुसंधान शिमला द्वारा कई विकसित की गई है। इस किस्म से फसल 70 दिन में तैयार हो जाती है। इससे प्रति हैक्टेयर 200-250 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। बता दें कि यह किस्म पछेती अंगमारी रोग के लिए कुछ हद तक प्रतिरोधी है। 
  • कुफरी चंद्र मुखी : यह किस्म में 80 से 90 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
  • कुफरी नवताल जी 2524 : आलू की यह किस्म फसल को 75 से 85 दिनों में तैयार कर देती है, जिससे प्रति हेक्टेयर 200 से 250 क्विंटल पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 
  • कुफरी ज्योति : आलू की इस किस्म से फसल 80 से 150 दिनों में पक कर तैयार हो जाती है। इस किस्म से 150 से 250 क्विंटल प्रति हैक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 
  • कुफरी लालिमा : आलू की यह किस्म से फसल को मात्र 90 से 100 दिन में ही तैयार हो जाती है। यह किस्म अगेती झुलसा के लिए मध्यम अवरोधी भी है।
  • कुफरी शीलमान : आलू की खेती (Potato Farming) की यह किस्म 100 से 130 दिनों में तैयार होती है। इससे 250 क्विंटल प्रति हेक्टेयर तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है। 
  • कुफरी स्वर्ण : आलू की यह किस्म फसल को 110 दिन में तैयार कर देती है। इस किस्म से प्रति हेक्टेयर 300 क्विंटल तक आलू की पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
  • कुफरी सिंदूरी : आलू की यह किस्म फसल को 120 से 125 दिनों में तैयार कर देती है। इस किस्म से आलू की प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल तक पैदावार प्राप्त की जा सकती है।
  • कुफरी देवा : आलू की यह 120 से 125 दिनों में तैयार हो जाती है। इससे प्रति हेक्टेयर 300 से 400 क्विंटल तक उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। 

आलू की संकर किस्में

  • ई 4486 : यह किस्म 135 दिन में फसल को तैयार करती है। इससे प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल पैदावार मिल सकती है। इसको यूपी, हरियाणा, बिहार, पश्चिम बंगाल, गुजरात और मध्य प्रदेश के लिए अधिक उपयोगी माना गया है।
  • कुफरी जवाहर जेएच 222 : आलू की यह किस्म फसल को 90 से 110 दिन में तैयार कर देती है। यह किस्म अगेता झुलसा और फोम रोग के लिए प्रतिरोधी है। इससे प्रति हेक्टेयर 250 से 300 क्विंटल पैदावार प्राप्त हो सकती है।

आलू की नई किस्में

आलू की नई किस्मों में कुफरी चिप्सोना-2, कुफरी गिरिराज, कुफरी चिप्सोना-1 और कुफरी आनंद आदि अच्छी किस्में मानी गई हैं। 

कहां से मिलेगा आलू का बीज

किसान आलू प्रौद्योगिकी केंद्र शामगढ़ जिला करनाल से आलू की तीन किस्मों का बीज खरीद सकते हैं। यहां से किसानों को आलू की कुफरी ख्याती, कुफरी, पुखराज, कुफरी चिपसोना-1 का बीज मिल सकता है। टीशु कल्चर द्वारा आलू बीज उत्पादन किया जाता है। इस विधि द्वारा विषाणु रहित आलू का बीज उत्पादन किया जा सकता है। सालाना एक लाख सूक्ष्म पौधों का उत्पादन होता है। नेट हाउस में 5-6 लाख मिनी ट्यूबर का उत्पादन होता है। सीपीआरआई शिमला एवं अंतर राष्ट्रीय आलू केंद्र लीमा, पेरू के साथ नई प्रजातियों की टेस्टिंग की जाती है। 

आलू की वैज्ञानिक खेती : कैसे करें आलू की बुवाई

सबसे पहले ट्रैक्टर और कल्टीवेटर की सहायता से खेत की अच्छे से जुताई कर ले और पाटा लगाकर खेत को समतल बना लें। इसके बाद महिंद्रा आलू प्लांटनर की सहायता से आलू के बीजों की बुवाई करें। बता दें कि यह आलू बोने की एक सटीक मशीन है जिसे महिंद्रा ने वैश्विक पार्टनर डेल्फ के सहयोग से डिजाइन और विकसित किया है। इसका हाई लेवल सिंगुलेशन आलू के बीज को खराब नहीं होने देता है। यह एक जगह पर एक ही बीज डालता है। इसके प्रयोग से आलू की गुणवत्तापूर्ण और अधिक पैदावार होती है। महिंद्रा आलू प्लांटनर का गहराई नियंत्रण पहिया आलू की उचित गहराई पर बुआई करता है। 20 से 60 मिमी साइज के आलू बीज को आसानी से बोया जा सकता है। इसमें एक फर्टिलाइजर टैंक होता है जो बीज की बुवाई के दौरान उर्वरकों को आनुपातिक वितरण करता है। आलू की फसल में पंक्ति से पंक्ति की दूरी 50 सेमी. व पौधे से पौधे की दूरी 20-25 सेमी होनी चाहिए। इसके लिए 25 से 30 क्विंटल बीज प्रति हेक्टेयर पर्याप्त होता है। इसलिए कतारों और पौधो की दूरी में ऐसा संतुलन बनाना होता है कि न उपज कम हो और न आलू की माप कम हो। महिंद्रा का आलू प्लांटर आलू के बीज की एक समान दूरी और गहराई पर बुआई करता है जिसके कारण उत्पादन अधिक से अधिक मिलता है।

सिंचाई के लिए करें स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई का इस्तेमाल

आलू में हल्की सिंचाई की आवश्यकता होती है। इसलिए किसानों को आलू की खेती में स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई का उपयोग करना चाहिए। आलू की पहली सिंचाई अधिकांश पौधे उग जाने के बाद करें व दूसरी सिंचाई उसके 15 दिन बाद आलू बनने व फूलने की अवस्था में करनी चाहिए। कंदमूल बनने व फूलने के समय पानी की कमी का उपज पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इन अवस्थाओं में पानी 10 से 12 दिन के अंतर पर दिया जाना चाहिए। आलू की खेती के दौरान खेत में सिंचाई के समय इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि नालियों में मेढों की ऊंचाई के तीन चौथाई से अधिक ऊंचा पानी नहीं भरना चाहिए। 

आलू की खेती (Potato Cultivation) की उन्‍नत विधि : आलू की खुदाई के लिए करें पोटैटो डिग्गर यंत्र का प्रयोग

अलग-अलग किस्म के बीजों वाली फसल 70 से 135 दिन में पूरी तरह से पक जाती है। पकी आलू की फसल की खुदाई उस समय करनी चाहिए जब आलू के कंदों के छिलके सख्त हो जाए। किसानों के लिए आलू की खुदाई के लिए पोटैटो डिग्गर एक महत्वपूर्ण उपकरण है। इसकी सहायता से आलू की खुदाई बड़ी ही आसानी से कम समय में की जा सकती है। इसके अलावा इसकी की सहायता से आलू बिना कोई कट लगे ये जमीन से बाहर आ जाता है। इतना ही नहीं यह जमीन से आसानी से आलू को बाहर तो करता ही है, साथ में लगी मिट्टी को भी झाड़ देता है और इस प्रकार बेहतरीन गुणवत्ता के आलू बाहर निकल आते हैं। एक सटीक गहराई सेट करते हुए इस यंत्र को ट्रैक्टर के साथ इस्तेमाल किया जा सकता है।

आलू की जैविक खेती (Potato production by organich)

भारत में आलू की जैविक खेती भी की जाती है। जैविक उत्पादों की बढ़ती मांग के कारण किसानों की आलू की जैविक खेती में रूचि बढ़ रही है। प्राय : किसान सही जानकारी के अभाव में आलू की जैविक खेती में ज्यादा उत्पादन नहीं ले पाते हैं। आलू की जैविक की खेती में आलू की बुवाई और आलू में उर्वरक का विशेष ध्यान दिया जाए तो ज्यादा उत्पादन संभव है।

आलू की खेती (Potato Farming) में काम आने वाले कृषि यंत्र

  • ट्रैक्टर 
  • कल्टीवेटर
  • आलू प्लांटनर
  • पोटैटो डिग्गर यंत्र
  • सिंचाई यंत्र- स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई यंत्र

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