Published - 22 May 2021
by Tractor Junction
भारत में तिलहन फसलों का उत्पादन बढ़ाने पर जोर दिया जा रहा है। उसमें सरसों को प्रमुखता देते हुए इसकी खेती बढ़ाने का लक्ष्य रखा गया है। मिशन मस्टर्ड के तहत 2025 तक इसके उत्पादन का लक्ष्य 20 मिलियन टन रखा गया है। इस हिसाब से आने वाले सालों में किसानों के लिए सरसों की खेती मुनाफे का सौदा साबित होने वाली है। इस साल भी सरसों का अच्छा उत्पादन हुआ है। इसे देखते हुए तिलहन क्रांति में सरसों अग्रणी भूमिका निभा सकता है। इसी साल खाद्य तेल उद्योग के अनुभवी सदस्यों और शासन के संबंध अधिकारियों द्वारा एक वेबिनार के रूप में सॉल्वेंट एक्सट्रैक्टर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया द्वारा आयोजित किया गया। इसमें सरसों को लेकर चर्चा हुई कि किस तरह सरसों तिलहन क्रांति में अहम भूमिका निभा सकता है। वेबिनार में हुई चर्चा में सामने आया कि भारत इस बार कृषि क्षेत्र में पीली क्रांति लाने के लिए प्रतिबद्ध है और इस बार यह क्रांति तिलहन पौधों के उत्पादन के लिए है। इस क्रांति की शुरुआत सरसों के उत्पादन के द्वारा होगी जिसे जल्द ही देश के सबसे ज्यादा उगाए जाने वाले तिलहन के रूप में प्रतिष्ठित किया जा सकता है।
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मीडिया से मिली जानकारी के आधार पर एसईए के प्रेसिडेंट अतुल चतुर्वेदी ने कहा कि एसईए लगातार इस दिशा में कार्य कर रहा है जिससे घरेलू तिलहन के उत्पादन को बढ़ाकर खाद्य तेल के क्षेत्र में भारत की आयात निर्भरता को कम से कम किया जा सके। इस उद्देश्य के लिए एसईए ने मस्टर्ड मिशन की शुरुआत की है जिसके द्वारा 2025 तक भारत में सरसों के उत्पादन को 20 मिलियन टन तक बढ़ाये जाने की योजना है। कृषि के तरीके में सुधार, सही तकनीक के इस्तेमाल, गुणवत्तायुक्त बीज और दूसरे इनपुट प्रबंधन के द्वारा इसे हासिल किया जा सकता है।
इस मौके पर बोलते हुए डिपार्टमेंट ऑफ फूड एंड पब्लिक डिस्ट्रीब्यूशन के सेक्रेटरी सुधांशु पांडेय ने कहा कि इसकी व्यावसायिक क्षमता और स्वास्थ्यवर्धक गुणों के कारण सरसों में यह बड़ी क्षमता है कि भारत के समूचे तिलहन उत्पादन को बढ़ावा दे सके। पांडेय ने कहा कि सरसों की खेती में मुनाफा सबसे अधिक 31 हजार रुपए हेक्टेयर आता है जबकि गेहूं में 26 हजार रुपए और चावल में केवल 22 हजार रुपए का रीटर्न मिलता है। सरसों की मौजूदा कीमतों ने ये मुनाफे को कई गुना बढ़ा दिया है। उन्होंने आगे कहा कि उद्योग को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि यदि किसान अपना उत्पादन और उत्पादकता को बढ़ाते हैं तो श्रम के अनुसार उपयुक्त लाभ किसानों को मिल सके।
कृषि मंत्रालय की ज्वाइंट सेक्रेटरी, श्रीमती शुभि ठाकुर जो आयलसीड मिशन की हेड भी हैं ने कहा कि सरकार भी सरसों के उत्पादन को बढ़ाने को लेकर उत्साहित है और मस्टर्ड मिशन की सरकार के द्वारा पहले ही शुरुआत की जा चुकी है। उन्होंने आगे कहा कि सरकार का ध्यान इस ओर भी है कि सरसों के अलावा प्रति एकड़ तिलहन के अंदर आने वाले फसलों जैसे मूंगफली के उत्पादन को बढ़ाया जाए और चावल की खेती के बाद परती भूमि का सदुपयोग अंतर-फसल कृषि को बढ़ावा देकर किया जा सके।
एसईए और सोलिडरिडैड के द्वारा वर्ष 2019 से संयुक्त रूप से राजस्थान में विकसित मॉडल सरसों फार्म के परिणाम स्वरूप उत्पादकता में 49 प्रतिशत की वृद्धि देखी गई है, जिसमें बेहतर, बेहतर बीज और तकनीक का इस्तेमाल किया गया है। कोविड के बाद की दुनिया में भी सरसों को इसके स्वास्थ्यवर्धक गुणों जैसे ओमेगा -3 और मोनोसैचुरेटेड फैटी एसिड और पॉलीअनसैचुरेटेड फैट की मात्रा के कारण सबसे ज्यादा पसंद किए जाने वाला तिलहन के रूप में देखा जा रहा है।
सरसों में तेल की मात्रा सोयाबीन के 18 प्रतिशत की तुलना में 40 प्रतिशत है जो कि बहुत ज्यादा है। इसमें 36 प्रतिशत प्रोटीन होता है और जलवायु के हिसाब से भी अधिक उपयुक्त फसल है जिसे पानी की आवश्यकता बहुत कम होती है। भारत की 130 करोड़ की आबादी में से 80 करोड़ लोग खाना पकाने के लिए सरसों के तेल का इस्तेमाल करते हैं, यह बात अडानी विल्मर लिमिटेड के सीईओ और एमडी अंगुशु मलिक ने कही।
एसइए रेप-मस्टर्ड कौंसिल के चेयरमैन विजय दाता के अनुसार चालू साल में भारत का सरसों उत्पादन हाल के बाजार वर्ष में जो अक्टूबर से शुरू हुआ है, 8.5 से 9 मिलियन टन पहुंच गया है। रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच चुकी ऊंची कीमत भी किसानों को इस बात के लिए प्रेरित करेगी कि वो आने वाले वर्षों में सरसों का ज्यादा से ज्यादा उत्पादन करें जो देश की अगले पांच साल में 20 मिलियन टन के लक्ष्य को प्राप्त करने में मदद करेगा। यह आने वाले वर्षों में भारत में सरसों को सबसे ज्यादा उगाया जाने वाले तिलहन के रूप में स्थापित कर देगा।
इस साल सरसों के बाजार में अच्छे भाव मिलने से किसान की रूचि सरसों के उत्पादन में दिखाई दे रही है। बाजार विशेषज्ञों का अनुमान है कि इस साल सरसों व कपास का रकबा बढ़ सकता है। केंद्र सरकार द्वारा दो महीने पहले जारी फसल वर्ष 2020-21 के दूसरे अग्रिम उत्पादन अनुमान के अनुसार, देशभर में इस साल सरसों का उत्पादन 104.27 लाख टन है। हालांकि खाद्य तेल उद्योग संगठन सेंट्रल ऑगेर्नाइजेशन फॉर ऑयल इंडस्ट्री एंड ट्रेड (सीओओआईटी) और मस्टर्ड ऑयल प्रोडूसर्स एसोसिएशन ऑफ इंडिया (मोपा) की द्वारा किए गए आकलन के अनुसार, देश में इस साल सरसों का उत्पादन 89.50 लाख टन है।
राजस्थान देश का सबसे बड़ा उत्पादक राज्य माना जाता है। यहां सरसों की खेती काफी क्षेत्र में की जाती है। राज्य में श्रीगंगानगर एवं अलवर के बाद भरतपुर में सर्वाधिक सरसों का उत्पादन होता है तो देश का सर्वाधिक सरसों तेल उत्पादन भरतपुर में होता हैं। यहां उत्पादित सरसों की गुणवत्ता सर्वोत्तम है। इसके अलावा उत्तर प्रदेश, पंजाब, हरियाणा, मध्यप्रदेश, पश्चिम बंगाल, गुजरात और देश के पूर्वी व अन्य राज्यों में भी सरसों का उत्पादन किया जाता है।
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