Published - 29 Oct 2021 by Tractor Junction
देश के कई राज्यों खाद की किल्लत होने से रबी की अगेती बुवाई पिछड़ गई है। एक तो पहले से ही मानसून का लंबे समय तक बने रहने से रबी की बुवाई में देर हुई। इस पर खाद की किल्लत को लेकर किसान परेशान हैं। इससे रबी फसलों की बुवाई में देरी हो रही है। बता दें कि समय पर फसलों की बुवाई करने पर उत्पादन में बढ़ोतरी आती है, वहीं देरी से बुवाई करने पर उत्पादन में कमी हो जाती है। इस बार यही हो रहा है रबी की बुवाई में देरी हुई है। इससे रबी की अगेती बुवाई इस बार काफी कम हो पाई है। बता देें कि इस बार देश में रबी फसलों की बुवाई का सामान्य क्षेत्रफल 622.10 लाख हेक्टेयर रखा गया है। लेकिन अभी तक केवल 21.37 लाख हेक्टेयर में ही बुवाई का काम हो पाया है।
किसानों का कहना है कि रबी की बुवाई में देरी का कारण मानसून लंबे समय तक बने रहना और खाद की सही मात्रा में आपूर्ति नहीं हो पाना है। हालांकि सरकार खाद की कालाबाजारी को रोकने के लिए किसानों को टोकन देकर खाद वितरित कर रही है। लेकिन खाद की कालाबाजारी करने वाले भी बैखाफ होकर ऊंची कीमत पर किसानों को खाद को खाद बेच रहे हैं। सरकार ऐसे दुकानदारों और व्यापारियों पर सख्त रवैया अपना रही है। सूचना मिलने पर कानूनी कार्रवाई भी की जा रही है। लेकिन इसके बाद भी देश में खाद की किल्लत दूर नहीं हो रही है और किसानों को खाद के लिए परेशान होना पड़ रहा है।
कृषि मंत्रालय से प्राप्त जानकारी अनुसार इस वर्ष रबी की बुवाई अभी तक 21.37 लाख हेक्टेयर में हो पाई है। तिलहनी फसलों में 22 अक्टूबर की स्थिति में सरसों की बुवाई 14.48 लाख हेक्टेयर में हो गई है। सरसों का कुल सामान्य क्षेत्र 59.44 लाख हेक्टेयर है। देश में रबी में तिलहनी फसलों का कुल क्षेत्र 75.45 लाख हेक्टेयर है। वहीं गेहूं का सामान्य रकबा 303.06 हेक्टेयर और चना का क्षेत्र 92.77 लाख हेक्टेयर है। कई प्रदेशों में मानसून असामान्य रूप से लंबा खिंच जाने के कारण खरीफ फसलों की कटाई प्रभावित हुई है, वहीं रबी फसलों की अगेती बुवाई भी पिछड़ गई है। आने वाले सप्ताह और दीपावली त्यौहार के बाद बुवाई में तेजी आएगी।
इस रबी सीजन में रबी की फसलों का रकबा सामान्य रहने की उम्मीद है। खाद की किल्लत के चलते अब तक रबी फसलों की बुवाई जोर नहीं पकड़ पाई है। इसका प्रभाव उत्पादन पर भी पड़ सकता है। किसानों को खाद की आपूर्ति सुचारू हुई तो दीवाली बाद यदि रबी फसलों की बुवाई जोर पकड़ सकती है। अभी फिलहाल किसानों को लंबी लाइन में लगकर खाद के लिए अपनी बारी का इंतजार करना पड़ रहा है। यूपी, मध्यप्रदेश और हरियाणा में किसानों की ओर से खाद के लिए चक्काजाम तक की खबरे मीडिया में आ रही है। यदि खाद वितरण व्यवस्था सुचारू नहीं हुई तो इस बार बुवाई का रकबा कम हो सकता है जिसके कारण उत्पादन प्रभावित होगा
देश में रबी की बुवाई का काम शुरू हो गया है। किसान की ओर से रबी फसलों की बुवाई की जा रही है। लेकिन खाद की पर्याप्त मात्रा में उपलब्धता नहीं होने से किसान इस बार कम ही क्षेत्र में रबी की अगेती बुवाई कर पाएं हैं। कृषि मंत्रालय से प्राप्त जानकारी के अनुसार तक देश में इस रबी सीजन बुवाई का जो रकबा रखा गया है वे इस प्रकार से है-
क्र. सं. | रबी फसल का नाम | कुल बुवाई रकबा |
1. | गेहूं | 303.06 लाख हेक्टेयर |
2. | धान | 42.51 लाख हेक्टेयर |
3. | दलहन | 144.02 लाख हेक्टेयर |
4. | चना | 92.77 लाख हेक्टेयर |
5. | मसूर | 14.23 लाख हेक्टेयर |
6. | मटर | 8.03 लाख हेक्टेयर |
7. | कुल्थी | 2 लाख हेक्टेयर |
8. | उड़द | 9.07 लाख हेक्टेयर |
9. | मूंग | 9.85 लाख हेक्टेयर |
10. | तेवड़ा | 3.62 लाख हेक्टेयर |
11. | अन्य दलहन | 4.44 लाख हेक्टेयर |
12. | मोटा अनाज | 57.06 लाख हेक्टेयर |
13. | ज्वार | 31.75 लाख हेक्टेयर |
14. | बाजरा | 0.3 लाख हेक्टेयर |
15. | रागी | 0.31 लाख हेक्टेयर |
16. | मक्का | 18.15 लाख हेक्टेयर |
17. | जौ | 6.14 लाख हेक्टेयर |
18. | तिलहन | 75.45 लाख हेक्टेयर |
19. | सरसों | 59.44 लाख हेक्टेयर |
20. | मूंगफली | 7.24 लाख हेक्टेयर |
21. | कुसुम | 0.9 लाख हेक्टेयर |
22. | सूर्यमुखी | 1.86 लाख हेक्टेयर |
23. | तिल | 3.35 लाख हेक्टेयर |
24. | अलसी | 2.53 लाख हेक्टेयर |
25. | अन्य तिलहन | 0.12 लाख हेक्टेयर |
उपरोक्त सभी फसलों की कुल बुवाई रकबा : 622.1 लाख हेक्टेयर
बता दें कि केंद्र ने जून में समाप्त होने वाले चालू फसल वर्ष 2021-22 के लिए 30 करोड़ 73.3 लाख टन खाद्यान्न उत्पादन का लक्ष्य रखा है। यह लक्ष्य फसल वर्ष 2020-21 के रिकॉर्ड 30 करोड़ 86.5 लाख टन के अनुमानित उत्पादन से थोड़ा कम है। यह पिछले वर्ष के उत्पादन से 3.74 प्रतिशत अधिक है। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के माध्यम से आयोजित रबी अभियान 2021-22 के लिए कृषि पर राष्ट्रीय सम्मेलन के दौरान चालू फसल वर्ष का लक्ष्य निर्धारित किया गया था।
मीडिया में प्रकाशित खबरों के अनुसार उत्तर प्रदेश के ललितपुर में मंडालायुक्त ने सभी एसडीएम व सीओ को निर्देशित किया कि यदि किसी भी थानाध्यक्ष के क्षेत्र से खाद का आवागमन होता है, तो उनके विरुद्ध आवश्यक कार्रवाई होगी। यह भी संज्ञान में आया है कि कुछ लोगों ने खाद को अपने गोदाम से हटाकर अन्य स्थानों पर रख दिया है। ऐसे लोगों को चिह्नित करके गोदाम सील कराये जायें। ऐसे लोगों का लाइसेंस रद्द करने की कार्रवाई की जाए। वहीं कृषि विभाग के अधिकारियों को मण्डलायुक्त ने निर्देशित किया कि वे किसानों से अनुरोध करें कि भविष्य की आशंकाओं को ध्यान में रखकर खाद का भंडारण न करें। जिससे खाद की आपूर्ति लगातार बनी हुई है। लेखपालों, ग्राम विकास अधिकारियों के माध्यम से गांव-गांव में कृषि गोष्ठियां आयोजित करवाई जाएं। इसी प्रकार अन्य राज्यों हरियाणा व मध्यप्रदेश में भी सरकार हर संभव प्रयास कर रही है कि किसानों को खाद की कमी नहीं हो पाए।
कृषि वैज्ञानिकों के अनुसार मृदा में उर्वरक जरूरत के अनुसार उपयोग की जानी चाहिए। प्रति एकड़ एक बोरी उर्वरक का उपयोग करने से फसल की पैदावार बहुत बेहतर होती है। इसलिए अधिक मात्रा में खाद का उपयोग नहीं करे और अपने पैसों की बचत करें। उत्तर प्रदेश में गेंहू की बुआई 15 नवंबर के बाद प्रारंभ होगी। इसलिए गेंहू के लिए खाद का भंडारण अभी से नहीं करें। इस समयावधि तक पर्याप्त मात्रा में खाद उपलब्ध रहेगी।
यदि एक एकड़ में एक बोरी यूरिया का प्रयोग भी किसान करते हैं तो भी इस सीजन में देश में कितनी खाद की आवश्कता होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। बता दें देश में रबी बुवाई का सामान्य क्षेत्रफल 622.10 लाख हेक्टेयर माना गया है। यदि एक एकड़ में एक बोरी यूरिया का प्रयोग किया जाता है तो भी इस रबी सीजन में किसानों को कम से कम 251.86 लाख बोरी यूरिया की आवश्यकता होगी।
रबी फसल में गेहूं की बुवाई पर डीएपी का प्रयोग किया जाता है। इसमें पाए जाने वाले फास्फोरस और नाइट्रोजन तत्व बीज को उगाने और पौधों को बड़ा कर फलने फूलने में टानिक का काम करते हैं। यदि कोई किसान बुवाई के समय डीएपी नहीं डाल पाता है तो उसके एक तत्व नाइट्रोजन की कमी को यूरिया से पूरा किया है लेकिन फास्फोरस की कमी फसल के लिए घातक साबित होती है। यह तत्व पौधों को न मिलने पर फल व फूल की प्रक्रिया कम होती है जिससे उत्पादन काफी कम हो जाता है। पौधों के विकास में एक तत्व पोटाश भी प्रमुख है इससे जड़ों का विकास होता है। यूरिया का काम पौधों को पोषक बनाता है। इसकी कमी से क्लोरोफिल का निर्माण नहीं होता है पौधा पीला पड़ जाता है। जिससे पौधे को कम भोजन मिलता है। इसका परिणाम होता है कि पैदावार न के बराबर होती है।
सरकार ने ऐसा अभी तक ऐसा कोई कानून नहीं बनाया है कि खाद न मिलने से बर्बाद हुई फसल का बीमा क्लेम किया जा सके। सिर्फ दैवीय आपदा में क्लेम की व्यवस्था है। ऐसे में किसानों को खाद का उपयोग बड़ी कुशलता से करना चाहिए। आवश्यकता से अधिक रायायनिक खाद का उपयोग करने से भूमि की उर्वरा शक्ति पर विपरित प्रभाव पड़ता है और धीरे-धीरे भूमि के प्राकृतिक पोशक तत्व खतम हो जाते हैं और अंत में भूमि बंजर होने लगती है। इसलिए किसान भाइयों को फसलों में रासायनिक खाद का प्रयोग सही और संतुलित मात्रा में ही करना चाहिए।
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