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इफको की अब कर्नाटक में नैनो यूरिया संयंत्र लगाने की तैयारी

Published - 15 Jun 2021

वर्ष 2022-23 तक चार और संयंत्र किए जाएंगे चालू, 18 करोड़ नैनो यूरिया की बोतलों का होगा उत्पादन

दुनिया का सबसे पहले नैनो यूरिया तरल का उत्पादन बढ़ाने को लेकर इफको ने अपनी तैयारी तेज कर दी हैं। अब उत्तरी भारत के अलावा दक्षिण भारत में भी इफको नैनो यूरिया संयंत्र स्थापित करने की दिशा में काम कर रहा है। हाल ही में मीडिया से मिली जानकारी के अनुसार केंद्रीय रसायन और उर्वरक मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कर्नाटक को नैनो यूरिया प्रेषण को हरी झंडी दिखा दी है। मंत्री ने भारतीय किसान उर्वरक सहकारी (इफको) को बंगलौर हवाई अड्डे के पास नैनो यूरिया उत्पादन इकाई शुरू करने के लिए भूमि देने का भी वादा किया है। 

 

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इफको को बैंगलोर में हवाई अड्डे के पास मिलेगी भूमि

गौड़ा ने कर्नाटक को नैनो यूरिया प्रेषण को हरी झंडी दिखाते हुए कहा कि यह भारत के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है जहां इफको प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भर भारत और आत्मनिर्भर कृषि के सपने को साकार करने की दिशा में काम कर रहा है। हम आपको बैंगलोर में हवाई अड्डे के पास एक साइट (भूमि) देंगे जहां से इफको कर्नाटक से नैनो यूरिया का उत्पादन कर सकता है। इससे पहले इफको ने गौड़ा से कर्नाटक में एक संयंत्र के लिए जमीन देने का आग्रह किया था जहां नैनो यूरिया और नैनो डीएपी (डायमोनियम फॉस्फेट) का उत्पादन भारत के दक्षिणी हिस्सों के लिए किया जा सकता है। इफको के अनुसार, किसानों द्वारा नैनो यूरिया के उपयोग से न केवल मिट्टी के स्वास्थ्य और फसल की उत्पादकता में सुधार होगा, बल्कि रासायनिक उर्वरकों के उपयोग में भी कमी आएगी।


कलोल संयंत्र में हो रहा है प्रतिदिन 15 हजार नैनो यूरिया बोतल का उत्पादन

इफको पहले से ही गुजरात में अपनी कलोल इकाई और उत्तर प्रदेश के आंवला और फूलपुर में नैनो यूरिया संयंत्रों के निर्माण की प्रक्रिया में है। इफको के प्रबंध निदेशक डॉ यूएस अवस्थी ने कहा कि कलोल संयंत्र प्रतिदिन 15,000 बोतल नैनो यूरिया के साथ एक ट्रक भेज रहा है और जल्द ही संयंत्र हर दिन 10 ट्रक भेजेगा। संयंत्र प्रतिदिन 6,750 टन यूरिया के बराबर उत्पादन कर रहा है, जिससे सरकार के सब्सिडी बोझ से 35,000 करोड़ रुपए की बचत होगी और किसानों को 35,000 करोड़ रुपए अतिरिक्त कमाने में मदद मिलेगी।


इफको नैनो यूरिया और नैनो डीएपी दोनों का करेगा उत्पादन

इस खरीफ फसल के मौसम से नैनो यूरिया और नैनो डीएपी के उत्पादन की शुरुआत की है और इफको को सफलता की बहुत उम्मीद है। अवस्थी ने कहा, जिसके बाद संयंत्र नैनो यूरिया और नैनो डीएपी दोनों का उत्पादन करेगा। इफको ने पहले उत्तर प्रदेश और जम्मू और कश्मीर राज्यों को नैनो यूरिया शिपमेंट भेजा था। इफको ने कहा कि स्टॉक आधे घंटे के भीतर बिक गया। बता दें कि इफको पहले से ही वर्ष 2021-22 में प्रथम चरण में गुजरात में अपनी कलोल इकाई और उत्तर प्रदेश के आंवला और फूलपुर में नैनो यूरिया संयंत्रों के निर्माण की प्रक्रिया में है। कुल वार्षिक उत्पादन क्षमता शुरू में 500 मिलीलीटर की 14 करोड़ बोतल होगी, जिसे आगे बढ़ाकर 18 करोड़ बोतल कर दिया जाएगा।


दूसरे चरण में 18 करोड़ बोतलें बनाने का लक्ष्य

इफको के अनुसार दूसरे चरण में, वर्ष 2022-23 तक चार और संयंत्र चालू किए जाएंगे, और 18 करोड़ बोतलें बनाई जाएंगी। ये गैर-सब्सिडी वाली बोतलें किसानों को बिना किसी सब्सिडी के 45 किलो पारंपरिक यूरिया बैग की कीमत से 10 प्रतिशत कम कीमत पर बेची जाएंगी। इफको ने सूचित किया है कि इस उत्पाद के उपयोग से विशेष रूप से यूरिया की रासायनिक उर्वरक खपत में 50 प्रतिशत या उससे अधिक की कमी आएगी।


नैनो यूरिया का 11 हजार से अधिक स्थानों पर परीक्षण

नैनो यूरिया का परीक्षण 11,000 से अधिक स्थानों, 94 फसलों और 20 भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (आईसीएआर) संस्थानों और राज्य कृषि विश्वविद्यालयों (एसएयू) पर किया गया है। इफको ने कहा है कि नतीजे बताते हैं कि नैनो यूरिया फसल की पैदावार बढ़ाने के साथ-साथ पोषण की गुणवत्ता में भी बहुत उपयोगी है।


एक एकड़ में एक बोतल से दो बार छिडक़ाव ही काफी

किसानों द्वारा इसका उपयोग करना बहुत आसान है। नैनो यूरिया की 500 मिलीलीटर की एक बोतल एक एकड़ खेत में दो बार छिडक़ाव के लिए पर्याप्त है। अब किसान 45 किलो यूरिया की बोरी कंधे पर ले जाने के बजाय 500 मिली की बोतल इफको नैनो यूरिया को आसानी से खेतों में ले जा सकता है।


दानेदार यूरिया तुलना में नैनो यूरिया तरल कैसे श्रेष्ठ

अब तक किसान सामान्य यूरिया का इस्तेमाल खेतों में अपनी फसल में करते रहे हैं। नैनो यूरिया तरल उनके लिए एक नई चीज है। परिवर्तन को एकाएक स्वीकार करना हर किसी के लिए मुश्किल होता है जब तक की वे नई चीज के फायदें न जान ले। अब प्रश्न उठता है कि किसान नैनो यूरिया का इस्तेमाल आखिर क्यों करें? इस प्रश्न के जवाब में हम आपको बताते है कि नैनो यूरिया तरल किस प्रकार किसानों के लिए उपयोगी साबित हो सकता है और इसका इस्तेमाल से उन्हें क्या-क्या लाभ हो सकते हैं।


पर्यावरण प्रदूषण का खतरा नहीं

साधारण यूरिया के अधिक प्रयोग से पर्यावरण प्रदूषित होता है, मृदा स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचता है, पौधों में बीमारी और कीट का खतरा अधिक बढ़ जाता है, फसल देर से पकती है और उत्पादन कम होता है। साथ ही फसल की गुणवत्ता में भी कमी आती है। लेकिन नैनो यूरिया तरल फसलों को मजबूत और स्वस्थ बनाता है तथा फसलों को गिरने से बचाता है। इफको ने अपने बयान में ये भी कहा कि किसानों द्वारा नैनो यूरिया तरल के प्रयोग से पौधों को संतुलित मात्रा में पोषक तत्व प्राप्त होंगे और मिट्टी में यूरिया के अधिक प्रयोग में कमी आएगी। 


सामान्य यूरिया से 10 फीसदी सस्ता

इफको के अनुसार नैनो यूरिया तरल को सामान्य यूरिया के प्रयोग में कम से कम 50 प्रतिशत कमी लाने के प्रयोजन से तैयार किया गया है। इसके 500 मि.ली. की एक बोतल में 40,000 पीपीएम नाइट्रोजन होता है जो सामान्य यूरिया के एक बैग के बराबर नाइट्रोजन पोषक तत्व प्रदान करेगा। आधा लीटर ( 500 मि.ली) नैनो यूरिया की एक बोतल की कीमत 240 रुपए निर्धारित की गई है। जो सामान्य यूरिया के एक बैग के मूल्य से 10 प्रतिशत कम है। फसलों की लागत में कमी, किसानों की आय बढ़ेगी- इफको नैनो यूरिया किसानों के लिए सस्ता है और यह किसानों की आय बढ़ाने में प्रभावकारी होगा। इफको नैनो यूरिया तरल की 500 मि.ली. की एक बोतल सामान्य यूरिया के कम से कम एक बैग के बराबर होगी। इसके प्रयोग से किसानों की लागत कम होगी। 


परिवहन व भंडारण में आसानी

नैनो यूरिया तरल का आकार छोटा होने के कारण इसे पॉकेट में भी रखा जा सकता है जिससे परिवहन और भंडारण लागत में भी काफी कमी आएगी।


देश में कितनी बढ़ी यूरिया की खपत

देश में उपयोग होने वाले उर्वरकों में यूरिया का स्थान पहले नंबर पर है। देश में नाईट्रोजन खपत में 82 प्रतिशत स्थान यूरिया का है। यूरिया की खपत साल दर साल बढ़ती जा रही है। वर्ष 2020-21 के दौरान यूरिया की खपत 3.7 करोड़ टन तक पहुंचने की उम्मीद है। एक सवाल के जवाब में रसायन और उर्वरक मंत्री श्री सदानन्द गौंड ने बताया था कि वर्ष 2019-20 में देश में 33.526 मिलियन टन यूरिया की खपत है। इसमें से 24.45 मिलियन टन यूरिया का उत्पादन किया जाता है जबकि 9.123 मिलियन टन आयात किया जाता है। 

इफको ने यह उम्मीद जताई है की नैनो यूरिया के आने से दाने वाली यूरिया के उपयोग में कमी आएगी। इफको का लक्ष्य है दाने वाले यूरिया के उपयोग में 50 प्रतिशत की कमी करना है। वर्ष 2023 तक 13.7 मिलियन टन दानेदार यूरिया के बराबर नैनो यूरिया लाया जाएगा। बता दें कि इफको भारत में उत्पादित फॉस्फेटिक के लगभग 32.1 फीसदी और नाइट्रोजन उर्वरकों में 21.3 फीसदी का योगदान देता है। देश को कृषि क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने के लिए हरित क्रांति के बाद यूरिया का प्रयोग बड़े स्तर पर शुरू किया गया था। जहां 1980 में यूरिया की खपत 60 लाख टन थी, वहीं 2017 में बढक़र 3 करोड़ टन तक जा पहुंची। 2018-19 में 320.20 लाख टन की बिक्री हुई। जबकि 2019-20 में 336.97 लाख टन की खपत दर्ज की गई थी।

 

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