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किसानों के लिए खुशखबरी : जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य में 250 रुपए बढ़ाया

Published - 24 Mar 2022

जानें, अब किस भाव पर होगी जूट की खरीद

देश के पटसन यानि जूट उत्पादक किसानों के लिए खुशखबरी आई है। केंद्र सरकार की ओर से जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) में 250 रुपए की बढ़ोतरी की गई है। इससे अब जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4750 रुपए प्रति क्विंटल हो गया है। केंद्र सरकार की ओर से इस बढ़ोतरी को लेकर देश के जूट उत्पादक किसानों ने खुशी जताई है। बता दें कि जूट का पहले न्यूनतम समर्थन मूल्य 4500 रुपए था जिसे बढ़ाकर 4750 किया गया है। हाल ही में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति की ओर से 2022-23 सीजन के लिए कच्चे जूट के नए तय किए गए न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को मंजूरी दे दी गई है। यह मंजूरी कृषि लागत और मूल्य आयोग की सिफारिशों पर आधारित है।  

किस आधार पर बढ़ाया गया है जूट का एमएसपी

2022-23 सीजन के लिए कच्चे जूट का घोषित एमएसपी बजट 2018-19 में सरकार द्वारा घोषित उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत के कम से कम 1.5 गुना के स्तर पर एमएसपी तय करने के सिद्धांत के अनुरूप है। भारतीय जूट निगम (जेसीआई) मूल्य समर्थन को लेकर केंद्र सरकार की नोडल एजेंसी के रूप में अपना काम जारी रखेगा और इस तरह के संचालन में किसी प्रकार का नुकसान होने पर केंद्र सरकार द्वारा पूरी तरह उसकी प्रतिपूर्ति की जाएगी। यह उत्पादन की अखिल भारतीय भारित औसत लागत पर 60.53 प्रतिशत का लाभ सुनिश्चित करेगा। सरकार का मानना है कि तय किया गया एमएसपी किसानों को महंगाई के कारण लागत में आने वाले खर्च को पूरा करने मेें समक्ष होगा।  

किन-किन फसलों का निर्धारित किया जाता है न्यूनतम समर्थन मूल्य

केंद्र सरकार की ओर से प्रतिवर्ष रबी और खरीफ की फसलों के न्यूनतम समर्थन मूल्य घोषित किए जाते हैं। इसमें खरीफ की फसल- धान, ज्वार, बाजरा, रागी, मक्का, अरहर, मूंग, उड़द, कपास, मूंगफली, सूरजमुखी के बीज, सोयाबीन और तिल आदि और रबी फसलों में गेहूं, जौ, चना, मसूर, रेपसीड व सरसों, कुसुम और तोरिया के एमएसपी की घोषणा सरकार द्वारा पहले ही की जा चुकी है। इसी कड़ी में गन्ना, खोपरा एवं कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य अलग से जारी किया जाता हैं। अब केंद्र सरकार ने इस वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए देश में उत्पादित होने वाले कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य जारी किया है। 

क्या है कच्चे जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य वर्ष 2022-23 

फसल सीजन वित्तीय वर्ष 2022-23 के लिए कच्चे जूट (टीडीएन 3 के समतुल्य से टीडी 5 ग्रेड) का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,750 रुपए प्रति क्विंटल निर्धारित किया गया है। वहीं केंद्र सरकार ने पिछले वित्तीय वर्ष जूट का न्यूनतम समर्थन मूल्य 4,500 रुपए प्रति क्विंटल तय किया था। इस वर्ष जूट के मूल्य में 250 रुपए प्रति क्विंटल की बढ़ोतरी की गई है। 

क्या है जूट और इसके उपयोग

जूट मुख्य रूप से गंगा के डेल्टा में पैदा की जाने वाली बायो-डिग्रेडेबल फसल है। जूट एक ऐसी फसल है, जिसे जलोढ़ मिट्टी और अधिक पानी या बारिश की आवश्यकता होती है। जूट की फसल के लिए 20 से 40 डिग्री सेल्सियस का तापमान और गर्म व उच्च आर्द्र जलवायु वाला मानसूनी मौसम उपयुक्त माना जाता है। जूट जिसे पटसन भी कहा जाता है। एक प्रकार के पौधे के रेशे होते हैं। इसके रेशे से बोरे, दरी, तम्बू, तिरपाल, टाट, रस्सियां, निम्नकोटि के कपड़े तथा कागज बनाने के काम आता है। जूट के रेशे से बोरे, हेसियन तथा पैंकिंग के कपड़े बनते हैं। कालीन, दरियां, परदे, घरों की सजावट के सामान, अस्तर और रस्सियां भी बनती हैं। डंठल जलाने के काम आता है और उससे बारूद के कोयले भी बनाए जा सकते हैं। डंठल का कोयला बारूद के लिए अच्छा होता है। डंठल से लुगदी भी प्राप्त होती है, जो कागज बनाने के काम आ सकती है।

इन राज्यों के किसानों को मिलेगा जूट के बढ़े एमएसपी का लाभ

जूट उत्पादन में भारत का पहला स्थान है। यहां दुनियाभर में सबसे अधिक जूट का उत्पादन होता है। पूरी दुनिया के लगभग 60 प्रतिशत जूट का उत्पादन भारत में होता है। भारत में जूट का वार्षिक अनुमानित उत्पादन 11,494 हजार बंडल है। सबसे ज्यादा जूट का उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। देश में पैदा किए जाने वाले कुल जूट का 75 प्रतिशत उत्पादन पश्चिम बंगाल में होता है। गंगा के निचले मैदानों के मुख्य हिस्सों में विशेष रूप से मिदनापुर, बर्धमान, 24 परगना, मालदा और मुर्शिदाबाद आदि जिलों में जूट का भारी मात्रा में उत्पादन किया जाता है। इसके बाद दूसरा स्थान बिहार का आता है। इस राज्य के पूर्णिया, दरभंगा, सहरसा और कटिहार आदि जिलों में जूट का उत्पादन होता है। तीसरे नंबर असम का राज्य का आता है। असम राज्य के तेजपुर, गोवालपारा, दारांग और शिवसागर आदि जैसे जिले प्रमुख जूट उत्पादक हैं। इसके अलावा ओडिशा, आंध्रप्रदेश सहित अन्य राज्यों में जूट का उत्पादन होता है। इससे यह उम्मीद की जा सकती है कि बढ़े हुए एमएसपी का फायदा सबसे ज्यादा इन राज्यों के किसानों को मिलेगा। 

Minimum Support Price of Jute : क्या होता है एमएसपी

एमएसपी कृषि मूल्य नीति का एक अभिन्न हिस्सा है और इसका लक्ष्य किसानों को समर्थन मूल्य और उपभोक्ता को वहनीय मूल्य सुनिश्चित करना है। भारत सरकार कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (सीएसीपी) की सिफारिशों के आधार पर हर साल बुवाई के मौसम की शुरुआत में अनाज, दलहन, तिलहन और वाणिज्यिक फसलों जैसी फसलों के लिए एमएसपी की घोषणा संबंधित राज्य सरकारों और केंद्रीय मंत्रालयों/ विभागों से विचार-विमर्श करने के बाद करती है। 

एमएसपी निर्धारित करने से किसानों को क्या होता है लाभ

एमएसपी किसी फसल की न्यूनतम खरीद कीमत होती है। सरकार की ओर से एमएसपी निर्धारित होने से किसान को सबसे बड़ा फायदा ये होता है कि जब बाजार में किसी खास फसल की कीमतें कितने भी नीचे पहुंच जाएं तो भी सरकार इस फसल के लिए घोषित एमएसपी पर ही खरीद करती है। इससे न केवल किसानों के नुकसान की भरपाई होती है। वहीं वो आगे भी फसल उत्पादन जारी रख पाते हैं। 

कैसे तय किया जाता है न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी)

एमएसपी में फसल उत्पादन के दौरान आने वाली कुल लागत जिसमें चुकाई जाने वाली कीमत शामिल होती है, यानी मजदूरों की मजदूरी, बैल या मशीन द्वारा जुताई और अन्य काम, पट्टे पर ली जाने वाली जमीन का किराया, बीज, उर्वरक, खाद, सिंचाई शुल्क, उपकरणों और खेत निर्माण में लगने वाला खर्च, गतिशील पूंजी पर ब्याज, पम्प सेटों इत्यादि चलाने पर डीजल/बिजली का खर्च इसमें शामिल किया जाता है। इसके अलावा अन्य खर्च तथा परिवार द्वारा किए जाने वाले श्रम के मूल्य को भी इसमें रखा गया है। इस प्रकार से कुल लागत का हिसाब लगाया जाता है। इ कुल लागत का डेढ़ गुना अधिक एमएसपी तय किया जाता है।  

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