Published - 28 Nov 2020 by Tractor Junction
किसानों का रूझान अब सामान्य गेहूं की तुलना में काले गेहूं के प्रति बढ़ता ही जा रहा है। इसके पीछे कारण यह है कि इस किस्म के गेहूं की बाजार मांग अधिक है और पिछले कुछ समय से इसका निर्यात भी काफी बढ़ा है। इससे किसानों का ध्यान अब काले गेहूं की खेती पर ज्यादा है। उत्तरप्रदेश में कई किसान काला गेहूं की खेती कर बंपर कमाई कर रहे हैं। कृषि अधिकारी मानते हैं कि ये गेहूं डायबिटीज वाले लोगों के लिए बहुत ही फायदेमंद है। मौजूदा समय में उत्तर प्रदेश के कई जिलों में धीरे-धीरे काला गेहूं की फसल की बुवाई का रकबा बढ़ रहा है।
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इसमें पाए जाने वाला एंथ्रोसाइनीन एक नेचुरल एंटी ऑक्सीडेंट व एंटीबायोटिक है, जो हार्ट अटैक, कैंसर, शुगर, मानसिक तनाव, घुटनों का दर्द, एनीमिया जैसे रोगों में काफी कारगर सिद्ध होता है। काले गेहूं रंग व स्वाद में सामान्य गेहूं से थोड़ा अलग होते हैं, लेकिन बेहद पौष्टिक होते हैं।
सात बरसों के रिसर्च के बाद काले गेहूं की इस नई किस्म को पंजाब के मोहाली स्थित नेशनल एग्री फूड बायोटेक्नॉलजी इंस्टीट्यूट या नाबी ने विकसित किया है। नाबी के पास इसका पेटेंट भी है। इस गेहूं की खास बात यह है कि इसका रंग काला है। इसकी बालियां भी आम गेहूं जैसी हरी होती हैं, पकने पर दानों का रंग काला हो जाता है। नाबी की साइंटिस्ट और काले गेहूं की प्रोजेक्ट हेड डॉ. मोनिका गर्ग के अनुसार नाबी ने काले के अलावा नीले और जामुनी रंग के गेहूं की किस्म भी विकसित की है।
काले गेहूं की तरह ही काला चावल भी होता है। इंडोनेशिअन ब्लैक राइस और थाई जैसमिन ब्लैक राइस इसकी दो जानीमानी वैरायटी हैं। म्यामांर और मणिपुर के बॉर्डर पर भी ब्लैक राइस या काला चावल उगाया जाता है। इसका नाम है चाक-हाओ। इसमें भी एंथोसाएनिन की मात्रा ज्यादा होती है।
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि मौजूदा समय काला गेहूं खेती के लिए उपयुक्त है, क्योंकि इसकी खेती के लिए खेत में पर्याप्त नमी होनी चाहिए। किसान 30 नवंबर तक की इस गेहूं की बुवाई आसानी से कर सकते हैं। अगर इसकी बुवाई देर से की जाए, तो फसल की पैदावार में कमी आ जाती है। जैसे-जैसे बुवाई में देरी होती है, वैसे-वैसे गेहूं की पैदावार में गिरावट आ जाती है।
गेहूं की बुवाई सीडड्रिल से करने पर उर्वरक एवं बीज की बचत की जा सकती है। काले गेहूं की उत्पादन सामान्य गेहूं की तरह ही होता है। किसान भाई बाजार से इसके बीज खरीद कर बुवाई कर सकते हैं। पंक्तियों में बुवाई करने पर सामान्य दशा में 100 किलोग्राम तथा मोटा दाना 125 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की आवश्यकता होती है। वहीं छिटकाव विधि से बुवाई में सामान्य दाना 125 किलोग्राम, मोटा-दाना 150 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए। बुवाई से पहले जमाव प्रतिशत अवश्य देख ले। राजकीय अनुसंधान केन्द्रों पर यह सुविधा नि:शुल्क उपलबध है। यदि बीज अंकुरण क्षमता कम हो तो उसी के अनुसार बीज दर बढ़ा ले तथा यदि बीज प्रमाणित न हो तो उसका शोधन अवश्य करें। इसके लिए बीजों का कार्बाक्सिन, एजेटौवैक्टर व पी.एस.वी. से उपचारित कर बुवाई कर लेना चाहिए। सीमित सिंचाई वाले क्षेत्रों में रेज्ड वेड विधि से बुवाई करने पर सामान्य दशा में 75 किलोग्राम तथा मोटा दाना 100 किलोग्राम प्रति हैक्टेयर की दर से प्रयोग करना चाहिए।
खेत की तैयारी के समय जिंक व यूरिया खेत में डालें तथा डीएपी खाद को ड्रिल से दें। बोते समय 50 किलो डीएपी, 45 किलो यूरिया, 20 किलो म्यूरेट पोटाश तथा 10 किलो जिंक सल्फेट प्रति एकड़ देना चाहिए। वहीं पहली सिंचाई के समय 60 किलो यूरिया दें।
काले गेहूं की फसल की पहली सिंचाई तीन हफ्ते बाद करें। इसके बाद फुटाव के समय, गांठें बनते समय, बालियां निकलने से पहले, दूधिया दशा में और दाना पकते समय सिंचाई अवश्य करें।
गेहूं के साथ अनेक प्रकार के खरपतवार उग जाते हैं। यदि इन पर नियंत्रण नहीं किया जाए तो गेहूं की उपज में 10-40 प्रतिशत हानि पहुंचने की संभावना होती है। गेहूं के खेत में चौड़ी पत्ती वाले और घास कुल के खरपतावारों का प्रकोप होता है। कृष्णनील, बथुआ, हिरनखुरी, सैंजी, चटरी-मटरी, जंगली गाजर आदि खरपतवारों पर के नियंत्रण के लिए 2,4-डी इथाइल ईस्टर 36 प्रतिशत (ब्लाडेक्स सी, वीडान) की 1.4 किग्रा. मात्रा अथवा 2,4-डी लवण 80 प्रतिशत (फारनेक्सान, टाफाइसाड) की 0.625 किग्रा. मात्रा को 700-800 लीटर पानी मे घोलकर एक हेक्टर में बोनी के 25-30 दिन के अन्दर छिडक़ाव करना चाहिए। वहीं संकरी पत्ती वाले खरपतवारों में जंगली जई व गेहूंसा का प्रकोप अधिक देखा गया है। यदि इनका प्रकोप अधिक हो तब उस खेत में गेहूं न बोकर बरसीम या रिजका की फसल लेनी लेना फायदेमंद रहता है।
इनके नियंत्रण के लिए पेन्डीमिथेलिन 30 ईसी (स्टाम्प) 800-1000 ग्रा. प्रति हेक्टर अथवा आइसोप्रोटयूरॉन 50 डब्लू.पी. 1.5 किग्रा. प्रति हेक्टेयर को बोआई के 2-3 दिन बाद 700-800 लीटर पानी में घोलकर प्रति हैक्टेयर की दर से छिडक़ाव करना चाहिए। इकसे बाद खड़ी फसल में बोआई के 30-35 दिन बाद मेटाक्सुरान की 1.5 किग्रा. मात्रा को 700 से 800 लीटर पानी में मिलाकर प्रति हेक्टेयर छिडक़ाव करना चाहिए। मिश्रित खरपतवार की समस्या होने पर आइसोप्रोट्यूरान 800 ग्रा. और 2,4-डी 0.4 किग्रा. प्रति हे. को मिलाकर छिडक़ाव करना चाहिए। गेहूं व सरसों की मिश्रित खेती में खरपतवार नियंत्रणके लिए पेन्डीमिथालिन का छिडक़ाव किया जा सकता है।
जब गेहूं के दाने पक कर सख्त हो जाएं और उनमें नमी का अंश 20-25 प्रतिशत तक आ जाए तब इसकी फसल की कटाई करनी चाहिए। बात करें इसकी प्राप्त उपज की तो इसकी 10 से 12 क्विंटल तक प्रति बीघे उपज प्राप्त की जा सकती है।
काले गेहूं की मार्केट में 4,000 से 6,000 हजार रुपए प्रति क्विंटल की कीमत पर बिकता है, जो कि अन्य गेहूं की फसल से दोगुना है। इसी साल सरकार ने गेहूं के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य 1,975 रुपए प्रति क्विंटल तय किया है। इस हिसाब से देखें तो काला गेहूं की खेती से किसानों की कमाई तीन गुना तक बढ़ सकती है।
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