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काली मिर्च की खेती : एक एकड़ से सालाना चालीस लाख तक की कमाई

Published - 22 Sep 2020

जानें काली मिर्च की खेती से जुड़ी संपूर्ण जानकारी

काली मिर्च की विश्व बाजार में बढ़ती मांग के कारण इसकी खेती मुनाफे का सौदा साबित हो रही है। किसान इसकी खेती करके अच्छी आमदनी प्राप्त कर सकते हैं। भारत में प्रतिवर्ष 20 करोड़ रुपए की कालीमिर्च का निर्यात विदेशों को किया जाता है। इसे देखते हुए इसकी खेती किसी भी प्रकार से घाटा नहीं है। भारत में अधिकांशत: इसकी खेती दक्षिणी भारत में की जाती है। छत्तीसगढ़ में किसान इसकी खेती करके अच्छा मुनाफा कमा रहे हैं। यदि इसकी जैविक तरीके से खेती की जाए तो काफी अच्छा उत्पादन लिया जा सकता है। आइए जानते हैं कि किस प्रकार काली मिर्च की खेती कर अच्छी कमाई की जा सकती है। 

 

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काली मिर्च का परिचय

वनस्पति जगत में पिप्पली कुल के मरिचपिप्पली नामक लता जैसे दिखाई देने वाले बारहमासी पौधे के अधपके और सूखे फलों का नाम काली मिर्च है। पके हुए सूखे फलों को छिलकों से बिलगाकर सफेद गोल मिर्च बनाई जाती है जिसका व्यास लगभग 5 मिमी होता है। यह मसाले के रूप में प्रयुक्त होती है। 

 


 

कैसा होता है काली मिर्च का पौधा

काली मिर्च के पौधे की पत्तियां आयताकार होती है। इसकी पत्तियों की लम्बाई 12 से 18 सेंटीमीटर की होती है और 5 से 10 सेंटीमीटर की चौड़ाई होती है। इसकी जड़ उथली हुई होती हैं। इसके पौधे की जड़ दो मीटर की गहराई में होती है। ये झाड़ के रूप में विकसीत होता है। 


कहां - कहां होती है काली मिर्च की खेती

काली मिर्च के पौधे का मूल स्थान दक्षिण भारत ही माना जाता है। इसके अलावा त्रावणकोर, कोचीन, मलाबार, मैसूर, कुर्ग, महाराष्ट्र तथा असम के सिलहट और खासी के पहाड़ी इलाकों में भी इसे उपजाया जाता है। अब इसकी खेती छत्तीसगढ़ में भी काफी की जाने लगी है। भारत के अलावा इंडोनेशिया, बोर्नियो, इंडोचीन, मलय, लंका और स्याम इत्यादि देशों में भी इसकी खेती की जाती है। 


काली मिर्च के गुण व उपयोग

आयुर्वेद के अनुसार काली मिर्च की तासीर गर्म होती है। इसके दानों में 5 से 9 प्रतिशत तक पिपेरीन, पिपेरिडीन और चैविसीन नामक ऐल्केलायडों के अतिरिक्त एक सुगंधित तेल 1 से 2.6 प्रतिशत तक, 6 से 14 प्रति शत हरे रंग का तेज सुगंधित गंधाशेष, 30 प्रति शत स्टार्च इत्यादि पाए जाते हैं। काली मिर्च सुगंधित, उत्तेजक और स्फूर्तिदायक वस्तु है। आयुर्वेद और यूनानी चिकित्साशास्त्रों में इसका उपयोग कफ, वात, श्वास, अग्निमांद्य उन्निद्र इत्यादि रोगों में बताया गया है। भूख बढ़ाने और ज्वर की शांति के लिए दक्षिण में तो इसका विशेष प्रकार का रसम भोजन के साथ पिया जाता है। भारतीय भोजन में मसाले के रूप में इसका न्यूनाधिक उपयोग सर्वत्र होता है। पाश्चात्य देशों में इसका विशिष्ट उपयोग विविध प्रकार के मांसों की डिब्बाबंदी में, खाद्य पदार्थो के परिरक्षण के लिए और मसाले के रूप में भी किया जाता है।


सफेद मिर्च और काली मिर्च में अंतर

सफेद मिर्च, काली मिर्च की एक विशेष किस्म है जिसकी कटाई फसल पकने से पहले ही हो जाती है। सफेद और काली मिर्च दोनों एक ही पौधे के फल हैं; बस अपने रंग की वजह से उनका इस्तेमाल अलग हो जाता है। 

 


सफेद काली मिर्च का उपयोग

सफेद मिर्च का प्रयोग आमतौर हल्के रंग के व्यंजनों जैसे कि सूप, सलाद, ठंडाई, बेक्ड रेसिपी इत्यादि में किया जाता है।


काली मिर्च की खेती कैसे करें

काली मिर्च की खेती करना आसान है। इसके लिए कोई विशेष प्रशिक्षण की आवश्यकता नहीं होती है। कोई भी किसान इसकी खेती कर सकता है। यदि इसकी जैविक तरीके से खेती की जाए तो काफी अच्छा उत्पादन प्राप्त होता है। 


काली मिर्च की बुवाई के लिए भूमि व जलवायु व तापमान

काली मिर्च की खेती के लिए लाल लेटेराइट मिट्टी और लाल मिट्टी उत्तम मानी जाती है। जिस भूमि में काली मिर्च की खेती की जाती है उस खेत की मिट्टी में जल धारण करने की क्षमता होनी चाहिए। भूमि का पी. एच. मान 5 से 6 के बीच होना चाहिए। इसके लिए हल्की ठंड वाली जलवायु उत्तम होती है। इसके लिए न्यूनतम तापमान 10 से 12 डिग्री सेल्सियस होना आवश्यक है। इससे नीचे के तापमान में इसका पौधा बढ़ोतरी नहीं कर पाता है। 


काली मिर्च के रोपण का उचित समय

कलम द्वारा इसका रोपण सितंबर माह के मध्य में किया जाता है। रोपण करने के बाद हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। 


काली मिर्च का रोपण कैसे करें 

काली मिर्च के पौधे के विस्तार करने के लिए कलमों का उपयोग किया जाता है। इसकी एक या दो कलमों को काटकर रोपित किया जाता है। काली मिर्च के कलमों को एक कतार में लगाना चाहिए। कलमों को लगाते समय इनके बीच की दूरी का ध्यान रखना चाहिए ताकि इसे फैलने के लिए उचित स्थान मिल सके। एक हेक्टेयर भूमि पर 1666 पौधे होने चाहिए। काली मिर्च की बेल चढ़ाई जाती है। यह ऊंचे पर ये 30 से 45 मीटर तक की ऊंचाई पर चढ़ जाते है। लेकिन इसके फलों को आसानी से लेने के लिए इसकी बेल को केवल 8 से 9 मीटर की ऊंचाई तक ही बढऩे दिया जाता है। काली मिर्च का एक पौधा कम से कम 25 से 30 साल तक फलता-फूलता है। इसकी फसल को कोई छाया की जरूरत नहीं होती है। 

 

खाद व उर्वरक

  • खाद की 5 किलोग्राम की मात्रा को मिलाना चाहिए। भूमि में पी. एच. मान के अनुसार अमोनिया सल्फेट और नाइट्रोजन को मिलना चाहिए। इसकी फसल में 100 ग्राम पोटाशियम, 750 ग्राम मैग्नीशियम सल्फेट की मात्रा को भूमि में मिलाना चाहिए। जिस भूमि एम एसिड होता है। उसमें 500 ग्राम डोलोमिटिक चूना को 2 साल में एक बार जरूर प्रयोग करना चाहिए।
  • काली मिर्च की जैविक खेती में परंपरागत प्रजातियों का इस्तेमाल होता है। जो फसल को कीटों, सूत्रकृमियों तथा रोगों से बचाव करने में समर्थ होती हैं। क्योंकि जैविक खेती में किसी भी प्रकार का कृत्रिम रासायनिक उर्वरक, कीटनाशक या कवकनाशक का उपयोग नहीं होता है। इसलिए उर्वरकों की कमी को पूरा करने के लिए फार्म की सभी फसलों के अवशेष, हरी घास, हरी पत्तियां, गोबर, तथा मुर्गी लीद आदि को कंपोस्ट के रूप में उपयोग करके मृदा की उर्वरता उच्च स्तर की बनाते हैं।
  • इन पौधों की आयु के अनुसार इनमें एफ.वाई.एम. 5-10 कि. ग्राम में प्रति पौधा केंचुआ खाद या पत्तियों के अवशेष (5-10 कि.ग्राम प्रति पौधा) को छिडक़ा जाता है। मृदापरीक्षण के आधार पर फॉस्फोरस और पोटैशियम की न्यूनतम पूर्ति करने के लिए पर्याप्त मात्रा में चूना, रॉक फॉस्फेट और राख का उपयोग किया जाता है।
  • इसके अतिरिक्त उर्वरता और उत्पादकता में वृद्धि करने के लिए ऑयल केक जैसे नीम केक (1 कि.ग्राम / पौधा ), कंपोस्ट कोयर पिथ (2.5 कि. ग्राम/पौधा) या कंपोस्ट कॉफी का पल्प ( पोटैशियम की अत्यधिक मात्रा ), अजोस्पाइरियलम तथा फॉस्फेट सोलुबिलाइसिंग जीवाणु का उपयोग किया जाता है। पोषक तत्वों के अभाव में फसल की उत्पादकता प्रभावित होती है। मानकता सीमा या संगठनों के प्रमाण के आधार पर पोषक तत्वों के स्त्रोत खनिज / रसायनों को मृदा या पत्तियों पर उपयोग कर सकते हैं।

 

कब- कब करें सिंचाई

इसकी खेती वर्षा पर आधारित है। बारिश नहीं होने की अवस्था में इसकी हल्की सिंचाई करनी चाहिए व आवश्यकतानुसार सिंचाई करते रहना चाहिए। इसके रोपण के तुरंत बाद हल्की सिंचाई करनी चाहिए। उसके बाद आवश्यकतानुसार सिंचाई की जा सकती है। 

 

कीट व रोग प्रबंधन

  • जैविक खेती में रोगों कीटों, सूत्रकृमियों का प्रबंधन और जैव कीटनाशक, जैव नियंत्रण कारक, आकर्षण और फाइटोसेनीटरी उपायों का उपयोग करके किया जाता है। 21 दिनों के अंतराल में नीम गोल्ड (0.6 प्रतिश ) को छिडक़ा जाता है, यह जुलाई से अक्टूबर के मध्य छिडक़ना चाहिए। इससे पोल्लू बीट को भी नियंत्रण किया जा सकता है। शल्क कीटों को नियंत्रण करने के लिए अत्यधिक बाधित शाखाओं को उखाड़ कर नष्ट कर देना तथा नीम गोल्ड (0.6 प्रतिश) या मछली के तेल की गंधराल (3 प्रतिशत) का छिडक़ाव करना चाहिए।
  • कवक द्वारा उत्पन्न रोगों का नियंत्रण ट्राइकोडरमा या प्सयूडोमोनस जैव नियंत्रण कारकों को मिट्टी में उचित वाहक मीडिया जैसे कोयरपिथ कंपोस्ट, सूखा हुआ गोबर या नीम केक के साथ उपचारित करके किया जा सकता है। साथ ही अन्य रोगों को नियंत्रित 1 त्न बोर्डियो मिश्रण तथा प्रति वर्ष 8 कि.ग्राम प्रति हेक्टेयर की दर से कॉपर का छिडक़ाव करके कर सकते हैं।

 

काली मिर्च के पकने का समय व उत्पादन

काली मिर्च के गहरे रंग के घने पौधे पर जुलाई महीने के बीच सफेद और हल्के पीले फूल निकलते है। जनवरी से मार्च के बीच में फल पककर तैयार हो जाते है। फल गोल आकार में 3 से 6 मिमी व्यास के होते है। सूखने पर हर एक पौधे में से 4 से 6 किलोग्राम गोल काली मिर्च प्राप्त हो जाती है। इसके हर एक गुच्छे में 50 से 60 दाने रहते है। पकने के बाद इन गुच्छों को उतारकर भूमि में या चटाईयां बिछाकर रख दिया जाता है। इसके बाद हथेलियों से दानों को रगडक़र इलाज किया जाता है। दानों को अलग करने के बाद इन्हें 5 या 7 दिन तक धूप में सुखा दिया जाता है। जब काली मिर्च के दाने पूरी तरह से सूख जाते है तो इन पर सिकुड़ जाती है और इस पर झुरियां पड़ जाती है। इन दानों का रंग गहरा काला हो जाता है। इस अवस्था में यह काली मिर्च बाजार में बेचने के लिए तैयार हो जाती है। 


सफेद काली मिर्च बनाना

सफेद काली मिर्च तैयार करने के लिए पकी हुई लाल काली मिर्च को 7 से 8 दिनों के लिए पानी मे भिगोकर रख दिया जाता है, जिसके बाद उसका बाहरी कवर हट जाता है, और को अंदर से सफेद रंग की निकलती है इसके बाद उसे सूखा लिया जाता है। काली मिर्च और सफेद मिर्च की अलग अलग पैकिंग की जाती है। इसकी पैकिंग के लिए साफ सुथरा मटेरियल इस्तेमाल करना चाहिए और प्लासिटक के बैग का इस्तेमाल काम करना चाहिए। काली मिर्ची खराब न हो इसके लिए इसे पूर्णत: सूखा कर ही इसका भंडारण करना चाहिए।


काली मिर्च के उत्पादन में ध्यान देने वाली आवश्यकत बातें 

काली मिर्च के फल को तोडऩे के बाद विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाएं जैसे थ्रेसिंग, उबालना, सुखाना, सफाई, ग्रेडिंग तथा पैकिंग की जाती है। यह सभी बहुत ध्यान से की जानी चाहिए। काली मिर्च की गुणवत्ता बनी रहे इसके लिए काफी सावधानी बरतनी चाहिए। सभी प्रक्रिया अच्छे से होगी तो ही मिर्ची की गुणवत्ता सही बनी रहेगी।
थ्रेसिंग-  इसमें परंपरागत विधि द्वारा काली मिर्च की बोरियों को स्पाइक से किसान अपने पैरों से कुचलकर अलग करते हैं। यह बहुत ही अंशोधित, धीमी तथा अस्वस्थ्यकर विधि है। परन्तु आज कल काली मिर्ची को स्पाइक से अलग करने के लिए 50 किलो ग्राम प्रति घंटा से 2500 किलोग्राम प्रति घंटा की क्षमता वाले थ्रेसर का प्रयोग किया जाता है।

 


काली मिर्च की गुणवत्ता बढ़ाने के लिए करें ये उपाय

मिर्च की गुणवत्ता को बढ़ाने के किए इसे एक मिनट तक उबले पानी मे डालकर निकल लिया जाता है। जिससे सूखने के बाद सभी काली मिर्ची के एक जैसे रंग की हो जाती है। इससे सूक्ष्मजीवों का भी नाश होता है। 3 से 4 दिन बाद जब काली मिर्ची सूखती है, इसके बाद इसका बाहरी कवर हट जाता है, और गंदगी भी दूर हो जाती है।


काली मिर्च को सुखाना

  • जब काली मिर्ची को तोड़ते है तो इसमें 65 से 70 प्रतिशत तक पानी होता है। और इसे सुखाने के बाद 10 प्रतिशत तक रह जाता है। इसे सुखाते समय फनोलेस एन्जाइम का उपयोग करने से वातावरणीय ऑक्सीजन द्वारा एन्जाइम और फिनोलिक यौगिकों का ऑक्सीकरण के कारण हरी काली मिर्च का रंग काला हो जाता है। पहले इसे सूरज की धूप में ही सुखाया जाता था।
  • यदि इसमें 12 प्रतिशत से अधिक पानी रह जाता है तो इसके सडऩे की समस्या रहती है। जो कि मानव शरीर को नुकसान पहुंचाती है। काली मिर्च की लगभग 33-37 प्रतिशत सूखी उपज प्राप्त होती है। मिर्च को सुखाने के लिए यांत्रिक ड्रायर भी मिलते हैं जो बिजली चलते हैं। इसका भी उपयोग किया जा सकता है।

ग्रेडिंग -  इसके बाद ग्रेडिंग की प्रकिया होती है जिसमें काली मिर्च को फटकर साफ किया जाता है । जिससे सारी गंदगी उड़ कर बाहर चली जाती है। और काली मिर्च अच्छे से साफ हो जाती है।

पैकिंग -  ग्रेडिंग की प्रकिया के बाद काली मिर्च की पैकिंग की जाती है जिसमें यह ध्यान रखना चाहिए कि जिसमें भंडारण या पैकिंग किया जाना है वह वायुरोधी होना चाहिए ताकि काली मिर्च की गुणवत्ता बनी रहे। 

 

कितनी होती है पैदावार और कितनी होगी कमाई

काली मिर्च की एक झाड़ से लगभग दस हजार रुपए की आमदनी कर सकते है और इसकी खेती में किसानों को ज्यादा मेहनत करने की आवश्यकता भी नहीं पड़ती है। गत वर्ष में घरेलू बाजार में काली मिर्च के दाम 400 रुपए प्रति-किलोग्राम के आसपास था। अब यह बाजार में 420 रुपए प्रति किलो की दर से बिक रही है। हम यदि काली मिर्च के 400 झाड़ लगाते हैं तो हमें सालाना 40 से 50 लाख रुपए तक की कमाई हो सकती है।
 

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